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हिन्दू समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति के कारण | स्वतन्त्रता के पश्चातृ महिलाओं की स्थिति

हिन्दू समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति के कारण | स्वतन्त्रता के पश्चातृ महिलाओं की स्थिति | Reasons for the low status of women in Hindu society in Hindi | Status of women after independence in Hindi

हिन्दू समाज में महिलाओं की निम्न स्थिति के कारण

(Causes of Lower Status of Women in Hindu Society)

स्वतन्त्रता से पहले भारतीय समाज में हिन्दू महिलाओं की दयनीय स्थिति थी। इस स्थिति के निम्नलिखित कारण थे।

  1. महिला शिक्षा की उपेक्षा- अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक कारणों से महिलाओं को शिक्षा देना अनावश्यक समझा गया। यह माना जाने लगा कि महिलाओं को नौकरी नहीं करनी है, अतः उन्हें शिक्षा दिलाने की कोई आवश्यकता नहीं है। शिक्षा के अभाय में महिलाएँ अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं रह सकी और एक-एक करके उनके सभी अधिकार छिनते गये। अशिक्षा के कारण वे अंधविश्वासों, कुसंस्कारों और रूढ़ियों में इस प्रकार जकड़ गयीं कि अब उनमें चेतना नाम की कोई वस्तु शेष नहीं रह गयी। परिणाम यह हुआ कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्थिति काफी निम्न हो गयी।
  2. कन्यादान का आदर्श- हिन्दू विवाह से सम्बन्धित कन्यादान के आदर्श ने भी महिलाओं की स्थिति को निम्न करने में योग दिया। प्रारम्भ में ब्रह्म-विवाह के अन्तर्गत योग्य वर को ढूँढ कर पिता वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित अपनी लड़की को दान के रूप में उसे देता था। उस समय कन्यादान का महत्व योग्य वर को ढूँढ़ने से सम्बन्धित था। धीरे-धीरे स्मृतिकाल के बाद कन्यादान की धारणा के अन्तर्गत कन्या को एक वस्तु के रूप में समझ लिया गया। अब यह माना जाने लगा है कि जो वस्तु दान में दी जा चुकी है, उसे न तो वापस लिया जा सकता है और न ही पुनः उसका दान किया जा सकता है। जिस व्यक्ति ने कन्यादान के रूप में उन्हें ग्रहण किया है वह जैसा चाहे वैसा उसका उपयोग कर सकता है। इस प्रकार के विश्वासों का परिणाम यह हुआ कि महिलाओं के अधिकार छिनते गये।
  3. पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता- पति ही पत्नी का भरण-पोषण करने वाला माना गया है और इसी कारण उसे ‘भर्ता’ कहा गया है। ऐसी स्थिति में पत्नी का अपने पति पर आश्रित होना स्वाभाविक ही है। उत्तर वैदिक काल के बाद महिलाओं की सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार समाप्त कर दिये गये। उन्हें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ा। साथ ही उस समय स्वतन्त्र रूप से आजीविका कमाने की सुविधाएँ भी महिलाओं को प्राप्त नहीं थीं। आर्थिक दृष्टि से कोई भी काम करना महिलाओं के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता था। ऐसी स्थिति में महिलाओं पर पुरुष का एकाधिकार हो गया। पति पर आर्थिक निर्भरता के कारण पत्नी किसी भी अवस्था में पति के सम्बन्ध विच्छेद करने या परिवार की सदस्यता छोड़ने की बात सोच भी नहीं सकती थी। पुरुषों पर इस आर्थिक निर्भरता का परिणाम यह हुआ कि महिलाओं की स्थिति निम्न होती गयी।
  4. मुसलमानों के आक्रमण- भारत में मुसलमानों के आक्रमण और राज्य स्थापना के पश्चात् महिलाओं की स्थिति में तेजी से गिरावट आयी। गुस्लिम आक्रमणकारियों से हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु ब्राह्मणों के सामाजिक नियमों को कठोर बनाने और उन्हें कठोरता के साथ लागू करने का प्रयत्न किया। मुसलमानों में महिलाओं की कमी थी। अतः वे महिलाओं और विधवाओं तक से विवाह करना चाहते थे। इस स्थिति से बचने के लिए महिलाओं पर अनेक प्रतिबन्ध लगाये गये। बाल-विवाहों को प्रोत्साहित किया गया, विधवा पुनर्विवाह पर नियन्त्रण लगाया गया, पर्दा-प्रथा लागू की गयी और सतीत्व के आदर्श को काफी बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया। महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था। ऐसी स्थिति में लड़कियों के शिक्षा प्राप्त करने की कोई सम्भावना नहीं रही। इन सब परिस्थितियों ने महिलाओं को गिराने में योग दिया।
  5. अशिक्षा- महिलाओं में अशिक्षा के कारण भी समाज में उनकी स्थिति निम्न हो गयी। अशिक्षा के कारण वे रूढ़िवादी, धर्मान्ध एवं अन्ध-विश्वासी हो गयीं और सामाजिक कुरीतियों में जकड़ गयी। उन्हें इस प्रकार के धार्मिक आदेश दिये गये जिससे वे ऊपर न उठ सकें, पति परमेश्वर, पतिव्रत, कन्यादान और सतीत्व के आदर्श उसे बचपन से ही सिखाये गये और महिला का जीवन घर की चहारदीवारी तक ही सीमित हो गया।
  6. बाल-विवाह- स्मृतिकार बाल विवाह के पक्ष में थे। उन्होंने कम आयु में ही लड़की का विवाह कर देना माता-पिता का धार्मिक कर्तव्य का धार्मिक कर्तव्य माना। परिणाम यह हुआ कि लड़कियों के लिए विवाह संस्कार ने ही उपनयन संस्कार का स्थान ले लिया और लड़कियों के लिये शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं रही। ऐसी स्थिति में उन्हें अपने व्यक्तित्व के विकास का अवसर नहीं मिला। वे पुरुष की दासी बनकर रह गयीं और किसी भी रूप में उनका कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं रहा। घर की चहारदीवारी में सन्तानों का पालन-पोषण और अन्य सदस्यों की सेवा करना ही उनका कार्य रह गया। परिणाम यह हुआ कि उनकी स्थिति गिरती गयी।
  7. वैवाहिक कुरीतियाँ- महिलाओं की स्थिति को निम्न बनाने में अनेक वैवाहिक कुरीतियों जैसे, कुलीन विवाह, अन्तर्विवाह, विधवा-विवाह पर प्रतिबन्ध, दहेज-प्रथा आदि का काफी योग रहा है। कुलीन विवाह की प्रथा के कारण सामान्य स्थिति वाली लड़कियों के माता-पिता को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। दहेज की राशि बढ़ जाने से लड़कियों को भार के रूप में देखा जाने लगा। अन्तर्विवाह (Endogamy) के कारण प्रत्येक हिन्दू के लिए अपनी ही जाति या उपजाति में विवाह करना आवश्यक हो गया।

इससे जीवन साथी के चुनाव का क्षेत्र काफी सीमित हो गया। महिला शिक्षा के अभाव तथा बाल-विवाह के प्रचलन के कारण जीवन साथी के चुनाव में लड़कियों की इच्छा या अनिच्छा का कोई प्रश्न नहीं रहा। पति चाहे दुश्चरित्र और कितना ही क्रूर और अत्याचारी क्यों न हो, पत्नी को उसे परमेश्वर मानकर उसकी पूजा करनी पड़ती थी। वह किसी भी स्थिति में विवाह-विच्छेद नहीं कर सकती थी।

  1. संयुक्त परिवार व्यवस्था- संयुक्त परिवार प्रणाली ने महिलाओं की स्थिति को गिराने में सक्रिय योग दिया है। संयुक्त परिवार में महिलाओं को कोई स्वतन्त्रता नहीं होती और न ही उनके कोई आर्थिक अधिकार होते हैं। उन्हें तो पुरुषों की कृपा पर निर्भर करने वाली आश्रित नारियों के रूप में जीवन बिताना पड़ता था। परिवार में वयोवृद्ध महिला की आज्ञा का पालन और सभी सदस्यों की सेवा करना ही उनका प्रमुख धर्म माना गया। संयुक्त परिवार ने महिलाओं की चेतना-शून्य बनाकर सब अधिकारों से वंचित कर दिया।

स्वतन्त्रता के पश्चातृ महिलाओं की स्थिति

(Women’s Status after Independence)

महिलाओं की स्थिति परिवर्तन – स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से ही महिलाओं की स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। अब उनकी स्थिति में काफी सुधार भी हुआ है। पश्चिमीकरण, आधुनिकीकरण, लोकिकीकरण तथा जातीय गतिशीलता ने महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को उन्नत करने में काफी योग दिया है। कई महिलाएँ औद्योगिक संस्थाओं और विभिन्न क्षेत्रों में नौकरी करने लगी हैं। वर्तमान समय में महिलाओं की स्थिति में निम्नलिखित परिवर्तन हुए जो इस प्रकार हैं

  1. सामाजिक जागरूकता में वृद्धि – पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की सामाजिक जागरूकता में काफी वृद्धि हुई है। अब महिलाएँ पर्दा प्रथा को बेकार समझने लगी हैं। अब बहुत-सी महिलाएँ घर की चहारदीवारी के बाहर खुली हवा में साँस ले रही हैं। आजकल कई महिलाओं के विचारों और दृष्टिकोणों में इतना अधिक परिवर्तन आया है कि अब वे अन्तर्जातीय विवाह, प्रेम-विवाह और विलम्ब-विवाह को अच्छा समझने लगी हैं। जातीय नियमों और रूढ़ियों के प्रति महिलाओं की उदासीनता बराबर बढ़ रही है। अब वे रूढ़िवादी सामाजिक बन्ध बनें से मुक्त होने के लिए प्रयत्नशील हैं। आज अनेक महिलाएँ महिला संगठनों और क्लबों की सदस्य हैं। कई महिलाएँ तो समाज कल्याण के कार्य में लगी हुई हैं।
  2. आर्थिक क्षेत्र में वृद्धि- ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाली करीब 75 प्रतिशत महिलाएँ आर्थिक दृष्टि से कोई-न-कोई कार्य करती हैं। नगरों में भी निम्न वर्ग की महिलाएँ घरेलू कार्यों और उद्योगों के माध्यम से कुछ-न-कुछ कमाती हैं। साधारणतः मध्यम और उच्च वर्ग की महिलाओं द्वारा आर्थिक दृष्टि से कोई काम करना बुरा समझा जाता रहा है, लेकिन औद्योगीकरण एवं आधुनिकीकरण ने महिलाओं की पुरुष पर आर्थिक निर्भरता को कम करने और उनकी स्थिति को उन्नत करने में योग दिया है। शिक्षा के व्यापक प्रसार, नयी-नयी वस्तुओं के आकर्षण, उच्च जीवन बिताने की बलवती इच्छा तथा बढ़ती हुई कीमतों ने अनेक मध्यम एवं उच्च वर्ग की महिलाओं को नौकरी या आर्थिक दृष्टि से कोई-न-कोई काम करने के लिए प्रेरित किया। अब मध्यम वर्ग की महिलाएँ उद्योगों, दफ्तरों, शिक्षण संस्थाओं, अस्पतालों, समाज कल्याण केन्द्रों एवं व्यापारिक संस्थाओं में काम करने लगी हैं। वर्तमान में भारत में विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं का कुछ कार्यशील जनसंख्या में प्रतिशत 19.77 है।
  3. राजनैतिक चेतना में वृद्धि- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् महिलाओं की राजनैतिक चेतना में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। जहाँ सन् 1937 में महिलाओं के लिए, 41 स्थान सुरक्षित थे, वहाँ केवल 10 महिलाओं ने ही चुनाव लड़ा। भारत के नवीन संविधान के अनुसार सन् 1950 में महिलाओं को पुरुषों के बराबर नागरिक अधिकार प्रदान किये गये। 1952 में 23 महिलाएँ लोकसभा के लिए चुनी गयी थीं जबकि 1984 के चुनावों में 65 महिलाओं ने सांसद के रूप में चुनाव में सफलता प्राप्त की। 1999 के लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 26 थी परन्तु उनकी राजनीतिक चेतना काफी बढ़ी हुई है। पार्लियामेण्ट और विधानमण्डलों में महिला प्रतिनिधियों की संख्या और विभिन्न गतिविधियों में उनकी सहभागिता, राज्यपाल, मन्त्री, मुख्यमन्त्री और यहाँ तक कि प्रधानमन्त्री तक के रूप में उनकी भूमिकाओं से स्पष्ट है कि इस देश में महिलाओं में अपने वोट का स्वतन्त्र रूप से उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। भारतीय महिलाओं ने राज्यपालों, केबिनेट स्तर के मन्त्रियों और राजदूतों के रूप में यश प्राप्त किया है।
  4. महिलाशिक्षा के क्षेत्र में प्रगति- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् महिला-शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। इसके पूर्व न तो माता-पिता लड़कियों को शिक्षा दिलाने के पक्ष में ही थे और न ही शिक्षा की दृष्टि से समुचित सुविधाएँ उपलब्ध थीं। सन 1882 में लिखी-पढ़ी महिलाओं की कुल संख्या 2,054 थी जो सन् 1971 में 5 करोड़ 94 लाख तथा 1981 में 7 करोड़ 91.5 लाख से अधिक हो गयी। अब यह संख्या 10 करोड़ से भी अधिक हो चुकी है। 1991 की जनगणना के अनुसार महिलाओं में साक्षरता का प्रतिशत 39.29 तथा पुरुषों में 64.13 है। वर्तमान में लड़कियाँ व्यावसायिक शिक्षा भी ग्रहण कर रही हैं। शिक्षण से सम्बन्धित ट्रेनिंग कॉलेजों एवं मेडिकल कॉलेजों में लड़कियों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ती ही जा रही हैं। वे अब कला, विज्ञान, वाणिज्य, गृहविज्ञान, शिल्पकला और संगीत की शिक्षा भी प्राप्त कर रही हैं। महिला-शिक्षा के व्यापक प्रसार ने महिलाओं को अपने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के समुचित अवसर प्रदान किए हैं, उन्हें रूढ़िवादी विचारों से काफी सीमा तक मुक्त किया है।
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Pankaja Singh

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