दबाव समूह के लक्षण क्या है? | दबाव समूहों का महत्त्व | What are the characteristics of pressure group in Hindi | importance of pressure groups in Hindi
दबाव समूह के लक्षण
वस्तुतः दबाव समूह ऐसा माध्यम है जिनके द्वारा सामान्य हित वाले व्यक्ति सार्वजनिक मामलों को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं। इस अर्थ में ऐसा कोई भी सामाजिक समूह जो प्रशासनिक और संसदीय दोनों ही प्रकार के पदाधिकारियों को, सरकार का नियन्त्रण प्राप्त करने हेतु कोई प्रयत्न किये बिना ही प्रभावित करना चाहते हैं तो दवाव गुट की श्रेणी में आयेंगे। दबाव समूहों की तुलना ‘अज्ञात साम्राज्य’ से की जाती है। जब इनके हित संकट में होते हैं अथवा जब इन्हें कतिपय स्वार्थों की प्राप्ति करनी होती है तो वे सक्रिय बन जाते हैं। अन्यथा वे हित समूहों के रूप में निष्क्रिय ही बने रहते हैं।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर दबाव समूहों के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
(1) दबाव समूह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नीति-निर्माताओं को प्रभावित करते हैं।
(2) दबाव समूहों का सम्बन्ध विशिष्ट मसलों से होता है।
(3) ये राजनीतिक संगठन नहीं होते और न ही ये चुनाव में भाग लेते हैं।
(4) दबाव समूहों को अज्ञात साम्राज्य कहा जाता है। जब उनके हित खतरे में होते हैं तो वे सक्रिय बन जाते हैं।
दबाव समूहों का महत्त्व
दबाव समूहों को महत्त्व अत्यन्त व्यापक बनता जा रहा है। अधिकांश देशों के संविधान इस बात को स्वीकार करते हैं कि वहाँ पर इस प्रकार के समूहों के विकास के लिए उपयुक्त सुविधाएँ प्रदान की जायें। ये समूह प्रशासन को जन-इच्छा के अनुकूल बनाने में महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। दबाव समूहों की उपयोगिता तथा महत्त्व के प्रमुख कारण निम्नवत् हैं-
(1) जनतान्त्रिक प्रक्रिया की अभिव्यक्ति के लिए दबाव समूह- दबाव समूहों को लोकतन्त्र की अभिव्यक्ति का साधन माना जाता है। लोकतन्त्र की सफलता के लिए लोकमत तैयार करना आवश्यक है ताकि विशिष्ट नीतियों का समर्थन अथवा विरोध किया जा सके। विभिन्न देशों में दबाव गुट विभिन्न तरीकों से अपनी बात मनवाने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। लोकमत को शिक्षित करके, आँकड़े इकट्ठे करके, नीति निर्माताओं के पास आवश्यक सूचनाएं पहुँचाकर अपने अभीष्ट की प्राप्ति करना आज जनतान्त्रिक प्रक्रिया का अंग बन गया है।
(2) शासन के लिए सूचनाएँ एकत्रित करने वाले संगठनों के रूप में दबाव समूह- प्रत्येक देश में सरकार का शासन के पास आवश्यक सूचनाएँ पर्याप्त रूप से होनी चाहिए। शासन की सूचनाओं के गैर-सरकारी स्रोत के रूप में दबाव समूह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। दबाव समूह आंकड़े इकट्ठे करते हैं, शोध करते हैं तथा सरकार को अपनी कठिनाइयों से परिचित कराते हैं।
(3) शासन को प्रभावित करने वाले संगठन के रूप में दबाव समूह- आजकल दबाव समूहों का अस्तित्व एक ऐसी संस्था के रूप में है जिनके पास इस दृष्टि से काफी शक्ति होती है कि वह स्वार्थ या हित विशेष की रक्षा के लिए सरकारी मशीनरी पर उपयोगी व सफल प्रभाव डाल सकें।
(4) सरकार की निरंकुशता को सीमित करना– प्रत्येक शासन-व्यवस्था में केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है और समूची शक्तियाँ सरकार के हाथों में केन्द्रित होती जा रही हैं। दबाव समूह अपने साधनों द्वारा सरकारी निरंकुशता को परिसीमित करते हैं।
(5) समाज और शासन में सन्तुलन स्थापित करना- दबाव समूहों के अस्तित्व का एक लाभ यह है कि विभिन्न हितों के बीच सन्तुलन-सा बना रहता है और इस प्रकार कोई भी एकमात्र प्रभावशील सत्ता उदित नहीं हो पाती। व्यापारी, श्रमिक, किसान, जातीय समुदाय, स्त्रियाँ और धार्मिक समुदाय, आदि सभी अपने स्वयं के हितों को प्राप्त करना चाहते हैं, किन्तु उनको एक-दूसरे से प्रतियोगिता करने के लिए मजबूर किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप समाज और शासन में सन्तुलन स्थापित हो जाता है और यह सन्तुलनकर्ता प्रवृत्ति (Countervailing Tendency) समाज को उस स्थिति से बचाती है जिसमें कि व्यक्तिगत समुदाय ही सारी शक्ति को हथिया लेते हैं।
(6) व्यक्ति और सरकार के मध्य संचार के साधन- दबाव समूह लोकतान्त्रिक राज्य- व्यवस्था में व्यक्तिगत हितों का राष्ट्रीय हितों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हैं। ये समूह नागरिक और सरकार के बीच संचार साधन का कार्य करते हैं। रॉडी के अनुसार, “निर्वाचित नेता दबाव समूहों के माध्यम से अपने निर्वाचकों की इच्छा आकांक्षाओं का पता लगा लेते हैं। अतः इन्हें गैर-सरकारी संचार सूत्र कहा जा सकता है।”
(7) विधानमण्डल के पीछे विधानमण्डल का कार्य- दबाव समूह विधि-निर्माण में विधायकों की सहायता करते हैं। अपनी विशेषज्ञता तथा ज्ञानगुरुता के कारण ये विधि-निर्माता समितियों के सदस्यों को आवश्यक परामर्श देते हैं। इनका परामर्श और सहायता दोनों ही इतनी उपयोगी होती है कि इन्हें विधानमण्डल के पीछे का विधानमण्डल कहा जाने लगा है।
वस्तुतः दबाव समूह लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था का दूसरा नाम है। निरंकुश तन्त्र में भी इनका अभाव नहीं होता। भारत में दबाव समूहों के उद्भव के प्रमुख कारण हैं लोक कल्याणकारी राज्य का सिद्धान्त, आर्थिक क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप की नीतियाँ और व्यक्तिवाद में समाजवाद की तरफ बढ़ता हुआ झुकाव।
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