त्वरक सिद्धान्त | त्वरक का अर्थ | त्वरक की कार्यविधि | त्वरक की मान्यताएँ और सीमाएँ | गुणक और त्वरक में अन्तर
त्वरक सिद्धान्त
त्वरक को धारणा का प्रस्तुतीकरण ए० आफ्तालियों (A. Aftalion), टी० एन० कार्वर (T. N. Carver) व दूसरे अन्य अर्थशास्त्रियों ने किया है। त्वरक सिद्धान्त गुणक सिद्धान्त से भी पुराना है। त्वरक की धारणा का विकास 1914 में हुआ जबकि निवेश गुणक की धारणा 1936 के बाद ही लोकप्रिय हुई। “इस विचार को कि निवेश उपभोग स्तर में होने वाले परिवर्तनों पर निर्भर करता है” -लोकप्रिय बनाने का श्रेय अमेरिकन अर्थशास्त्री जे०एम० क्लार्क (J.M. Clark) को जाता है। अर्थात् जे०एम० क्लार्क ने ही त्वरक की धारणा को संशोधित स्वरूप प्रदान किया। इसके बाद प्रो० पीगू, साइमन, कुजनेट्स, हैरोड, राबर्टसन, हिम्स गुडविन, हैवरलर, हेन्सन, क्लस्की, सैम्युल्सन आदि ने इसे विकसित एवं परिमार्जित किया है। त्वरक सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाने में हैरोडे का योगदान काफी महत्त्वपूर्ण है। हैरोडे ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “Towards a Dynamic Economics” में त्वरक की धारणा को “The Relation” के नाम की संज्ञा दी। हैरोड के अनुसार व्यापार चक्रों के आगमन में त्वरक की क्रियाशीलता अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण होती है। इसे व्युत्पन्न मांग का त्वरक सिद्धान्त भी कहा जाता है।
त्वरक का अर्थ
(Meaning of Acceleration)
निवेश दो प्रकार के होते हैं-
- स्वतन्त्र या स्वायत्त निवेश (Autonomous Investment)
- प्रेरित निवेश (Induced Investment)
(1) स्वतन्त्र निवेश (Autonomous Investment)
स्वतन्त्र निवेश आय, उत्पादन तथा लाभ में परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता। इस प्रकार का निवेश प्राय: किसी देश की सरकार द्वारा किया जाता है। यह निवेश न तो ब्याज की दर पर निर्भर करता है और न ही भावी लाभ अथवा लाभ-निरपेक्ष (Income of Profit inleastic) होता है। पीटरसन के अनुसार, “स्वतन्त्र निवेश उत्पादन की नई तकनीकों के प्रयोग, नये साधनों के विकास या जनसंख्या और श्रम-शक्ति की वृद्धि आदि साधनों से सम्बन्धित है।” इस प्रकार का निवेश देश की आर्थिक प्रगति और सुरक्षा हेतु किया जाता है। प्रो० हिम्स व हैरोड के अनुसार-“स्वतन्त्र निवेश वैज्ञानिक आविष्कारों तथा अनुसंधानों से तो प्रभावित होता है लेकिन यह सम्भावित लाभ तथा आय से प्रभावित नहीं होता।” कुरीहारा के अनुसार, “स्वतंत्र निवेश आय के स्तर पर निर्भर नहीं करता। आय के अतिरिक्त और तत्त्वों जैसे तकनीक, सार्वजनिक नीति आदि में परिवर्तन आने से इसमें परिवर्तन आता है।”
पिछले रेखाचित्र में II1 स्वतन्त्र निवेश वक्र है। II1 वक्र ox रेखा के सामानान्तर एक सीधी रेखा है जो यह बताती है कि आय में कमी या वृद्धि होने पर निवेश में कोई परिवर्तन नहीं होता।
(2) प्रेरित निवेश (Induced Investment)
यह आय उत्पादन तथा लाभ में होने वाले परिवर्तनों से प्रेरित होता है अर्थात् प्रेरित निवेश लाभ या अन्य सापेक्ष (Profit or income clastic) होता है। एन०एफ० कीजर के अनुसार, “जब निवेश में वृद्धि वर्तमान आय तथा उत्पादन स्तर में वृद्धि के कारण होती है, तो इसे प्रेरित निवेश कहते हैं।”
प्रेरित निवेश आय के स्तर में परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होता है और प्रभावित होता है। इसकी रेखाचित्र द्वारा व्याख्या निम्नलिखित है-
रेखाचित्र में II1 प्रेरित निवेशY वक्र है। II1 वक्र नीचे से ऊपर की ओर उठता है क्योंकि जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है, प्रेरित निवेश में भी वृद्धि होती है।
अत: त्वरक के सिद्धान्त को समझने के लिए दोनों प्रकार के विनियोगों के अन्तर को ध्यान में रखना चाहिए। त्वरक सिद्धान्त मुख्य रूप से प्रेरित निवेश से सम्बन्धित है।
त्वरक सिद्धान्त उपभोग में होने वाले परिवर्तनों के विनियोग पर पड़ने वाले प्रभावों को दर्शाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार जब उपभोग वस्तुओं की मांग में वृद्धि होती है तो उपभोग वस्तुओं को निर्मित करने वाले पूँजीगत पदार्थों जैसे मशीनों आदि की माँग में भी वृद्धि होगी और पूँजीगत पदार्थों की माँग उपभोग वस्तुओं की माँग की तुलना में अधिक मात्रा में तीव्रगति से बढ़ेगी। पूँजीगत पदार्थों की माँग दो प्रकार से होगी-
(a) एक तो दिए हुए उत्पादन स्तर को बनाए रखने के लिए पुरानी-घिसी मशीनों के प्रतिस्थापन के लिए प्रत्येक वर्ष नई मशीनों की जरूरत पड़ेगी।
(b) दूसरे, अब चूँकि उपभोग माँग बढ़ जाती है और इस बढ़ी हुई उपभोग माँग को पूरा करने के लिए हमें अतिरिक्त नयी मशीनों की आवश्यकता पड़ेगी।
अत: उपभोग वस्तुओं की माँग जितनी ही अधिक होगी, उतनी ही नये-नये पूँजीगत पदार्थों की माँग में वृद्धि होगी और निवेश बढ़ेगा। इस प्रकार के निवेश को प्रेरित निवेश कहते हैं।
अत: त्वरक वह अनुपात है जो उपभोग व्यय में परिवर्तन तथा प्रेरित निवेश में परिवर्तन के बीच होता है। “त्वरक उपभोग वस्तुओं की माँग में वृद्धि के कारण हुई पूँजीगत वस्तुओं की माँग में वृद्धि को मापता है और उन दोनों के बीच कार्यात्मक संबंध (Functional relationship) स्थापित करता है।”
“उपभोग व्यय में परिवर्तन तथा प्रेरित विनियोग के बीच अनुपात को त्वरक गुणांक कहा जाता है।” (“Acceleration coefficient show the effect of a change in consumption on investment”)
यदि त्वरक-गुणांक को A मान लिया जाय, निवेश व्यय में परिवर्तन ∆I तथा उपभोग-व्यय में ∆C के रूप में व्यक्त किया जाये तओ
a = ∆I/∆C
a = Acceleration Coefficient
अर्थात् त्वरक = प्रेरित निवेश में परिवर्तन/उपभोग में परिवर्तन
∆I = Change in investment
(निवेश में परिवर्तन)
∆C = Change in Consumption
(उपभोग में परिवर्तन)
यदि उपभोग वस्तुओं का उत्पादन निवेश वस्तु उद्योगों में किसी प्रकार के निवेश को सम्मिलित नहीं करता तो उस अवस्था में त्वरक गुणांक का मूल्य शून्य होता है। परन्तु व्यावहारिक रूप में, उपभोग वस्तुओं के उत्पादन हेतु कुछ मात्रा में पूँजीगत पदार्थों की जरूरत अवश्य होती है अर्थात् उपभोग व्यय में वृद्धि से निवेश व्यय में वृद्धि अवश्य होती है। इसलिए त्वरक गुणांक सामान्यतया इकाई से अधिक होता है। वास्तव में त्वरक-गुणांक का मूल्य या आकार इस बात पर निर्भर करता है कि पूंजी-उत्पादन अनुपात (Capital-out put ratio) क्या है और पूँजीगत पदार्थों की चिरस्थायिता (Durability) कितनी है।
त्वरक की कार्यविधि
(Working of Acceleration)
त्वरक मुख्य रूप से दो तत्त्वों पर निर्भर करता है-
(a) पूँजी-उत्पादन अनुपात और (b) पूँजीगत पदार्थ की चिरस्थायिता । निम्नलिखित तालिका गुणक के बारे में दो बातों को स्पष्ट करती है-
(i) उपभोग में उसी अनुपात में प्रतिशत परिवर्तन के दिए हुए होने पर, निवेश में प्रतिशत परिवर्तन पूँजीगत पदार्थ अर्थात् मशीन की चिरस्थायिता के अनुपात में होता है अर्थात् पूँजीगत पदार्थ की चिरस्थायिता और निवेश में प्रतिशत परिवर्तन में प्रत्यक्ष सम्बन्ध पाया जाता है। पूँजीगत पदार्थ की चिरस्थायिता जितनी अधिक होगी, त्वरक का मूल्य उतना ही अधिक होगा।
(ii) त्वरक उपभोग के पूर्ण स्तर (Absolute level) निर्भर नहीं करता बल्कि त्वरक तो उपभोग के परिवर्तन की दर (Rate of change of Consumption) पर निर्भर करता है।
त्वरक की कार्यविधि की तालिका द्वारा व्याख्या
त्वरक गुणांक का मूल्य पूँजीगत पदार्थों की चिरस्थायिता और उपभोग व्यय के परिवर्तन की दर पर निर्भर करता है।
मान्यताएँ- (i) पूँजी-प्रदा अनुपात सभी अवस्थाओं के लिए 1:10 है।
तालिका
पहली अवस्था- मशीन की चिरस्थायिता 10 वर्ष | |||||||
माँग में 10% वृद्धि | समय
0 1 |
उपभोग में
परिवर्तन 1000 1100 |
मशीनों की आवश्यकता
100 110 |
नयी मांग
Nil 10 |
कुल निवेश प्रतिस्थापन मांग
10 10 |
कुल मांग
10 20 |
कुल निवेश में प्रतिशत परिवर्तन
_ 100% वृद्धि |
दूसरी अवस्था- मशीन की चिरस्थायिता 20 वर्ष | |||||||
मांग में 10% वृद्धि | 0
1 |
1000
1100 |
100
100 |
Nil
10 |
5
5 |
5
15 |
_
200% वृद्धि |
तीसरी अवस्था- मशीन की चिरस्थायिता 15 वर्ष | |||||||
माँग में 10% वृद्धि | 0
1 |
1000
1100 |
100
100 |
Nil
10 |
20
20 |
20
30 |
_
50% वृद्धि |
चौथी अवस्था- मशीन की चिरस्थायिता 10 वर्ष | |||||||
माँग में 10% वृद्धि दूसरी समय अवधि में माँग स्थिर रहती है।
|
0
1 2 |
1000
1100 1100 |
100
110 110 |
Nil
10 Nil |
10
10 10 |
10
20 10 |
_
100% वृद्धि 50% कमी |
पाँचवीं अवस्था- मशीन की चिरस्थायिता 10 वर्ष | |||||||
माँग में
10% कमी |
0
1 |
1000
900 |
100
90 |
Nil
Nil |
10
10-10 |
10
0 |
_
100% कमी |
पहली अवस्था- उपरोक्त तालिका में पहली अवस्था में 1000 उपभोग वस्तुओं के उत्पादन हेतु 100 मशीनों की आवश्यकता पड़ती है (जबकि पूँजी-उत्पादन अनुपात 1 : 10 है।) मान लो मशीन की चिरस्थायिता 10 वर्ष है। अतः 10 वर्ष बाद मशीन का प्रतिस्थापन किया जाना है अतः प्रत्येक समय अवधि में 1000 उपभोग वस्तुओं के प्रवाह को बनाए रखने के लिए 10 मशीनों का प्रतिस्थापन करना पड़ता है। इसे पुनः स्थापन माँग (Replacement Demand) कहा जाता है। अब मान लो प्रथम अवस्था में उपभोग वस्तुओं की माँग में 10% की वृद्धि होती है तो उपभोग परिवर्तित होकर 1100 इकाइयां हो जाएगा और इन्हें निर्मित करने हेतु 110 मशीनों की जरूरत पड़ेगी। उपभोग माँग में 10% की वृद्धि से कुल 20 मशीनों की आवश्यकता पड़ेगी अर्थात् कुल माँग 20 मशीनें होंगी-10 मशीनें प्रतिस्थापन के लिए और 10 बढ़ी हुई माँग को पूरा करने के लिए। अतः उपभोग वस्तुओं की माँग में 10% की वृद्धि से निवेश वस्तुओं की माँग (मशीनों) में 100% वृद्धि होगी।
दूसरी अवस्था- दूसरी अवस्था में मशीन की चिरस्थायिता 20 वर्ष है। अन्य बातों के समान रहने पर, उपभोग वस्तुओं की माँग में प्रथम समय अवधि में 10% की वृद्धि से कुल निवेश में 200% की वृद्धि होगी।
तीसरी अवस्था- तीसरी अवस्था में मशीन की चिरस्थायिता 5 वर्ष है। अन्य बातें समान रहने पर उपभोग वस्तुओं की माँग में 10% वृद्धि से कुल निवेश में केवल 50% की वृद्धि होगी।
“इसलिए इससे यह स्पष्ट होता है कि मशीन की चिरस्थायिता जितनी अधिक होगी, त्वरक का मूल्य उतना ही अधिक होगा तथा त्वरक प्रभाव भी उतना ही अधिक होगा। इसके विपरीत मशीन की चिरस्थायिता जितनी कम होगी, त्वरक का मूल्य उतना ही कम होगा तथा त्वरक प्रभाव भी उतना ही कम होगा।
चौथी अवस्था- चौथी अवस्था में हम मान लेते हैं कि मशीनों की चिरस्थायिता 10 वर्ष है और पूँजी उत्पादन अनुपात भी 1 : 10 है। यदि प्रथम समय अवधि में उपभोग वस्तुओं की माँग में 10% की वृद्धि होती है तो कुल निवेश में 100% की वृद्धि होगी। दूसरी समय अवधि में जब उपभोग वस्तुओं की माँग में वृद्धि नहीं होती और 1000 वस्तुओं पर स्थिर रहती है तो कुल निवेश में 50% की कमी होगी।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जब उपभोग वस्तुओं की माँग में कोई कमी नहीं होती अर्थात् उपभोग माँग स्थिर रहती है तो कुल निवेश में कमी होती है।
पाँचवीं अवस्था- पाँचवीं अवस्था में मान लो मशीन की चिरस्थायिता 10 वर्ष है। 1000 उपभोग वस्तुओं के उत्पादन हेतु हमें 100 मशीनों की जरूरत पड़ती है। परन्तु जब प्रथम अवधि में उपभोग वस्तुओं की मांग में 10% की कमी होती है तो हमें 900 उपभोग वस्तुओं हेतु 90 मशीनों की आवश्यकता नहीं होती है। उपभोग माँग में 10% की कमी से कुछ निवेश में 100% कमी होती है।
त्वरक की मान्यताएँ और सीमाएँ
(Assumptions and Limitation of the Acceleration)
त्वरक सिद्धान्त की कुछ महत्त्वपूर्ण मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) उपभोग वस्तु उद्योगों में अतिरिक्त उत्पादन क्षमता नहीं होनी चाहिए।
(2) निवेश वस्तु उद्योगों में अतिरिक्त क्षमता (Surplus Capacity) होनी चाहिए।
(3) उपभोग वस्तुओं की माँग में होने वाली वृद्धि स्थायी (Permanent) प्रवृत्ति की होनी चाहिए।
(4) उत्पादन के साधन सहजातीय तथा विभाज्य है।
(5) त्वरक सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि पूँजी-उत्पादन अनुपात (Capital- output Ratio) स्थिर रहता है।
(6) त्वरक की क्रियाशीलता के लिए यह जरूरी है कि अर्थव्यवस्था में साधन उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए। इसके साथ-साथ यह भी जरूरी है कि पूँजीगत पदार्थ अर्थात् मशीनों का उत्पादन करने वाले उद्योगों की योग्यता या क्षमता (Ability or Capacity) पर्याप्त मात्रा में मशीनें उत्पादित करने की होनी चाहिए।
(7) त्वरक सिद्धान्त की क्रियाशीलता के लिए यह भी आवश्यक है कि साख की पूर्ति लोचदार (Elastic Credit Supply) होनी चाहिए। इससे अभिप्राय यह है कि जब भी उपभोग व्यय में वृद्धि के कारण प्रेरित निवेश में वृद्धि हो, तो निवेश वस्तु उद्योगों में निवेश हेतु पर्याप्त साख पूर्ति होनी चाहिए।
(8) त्वरक सिद्धान्त की क्रियाशीलता इस मान्यता पर आधारित है कि निवेश हेतु उद्योग में द्रवता (Fluidity) व तरलता की अवस्था पाई जाती है।
गुणक और त्वरक में अन्तर
(Difference between Multiplier and Acceleration)
गुणक तथा त्वरक की धारणाओं में निम्नलिखित अन्तर है-
(1) गुणक (केन्ज का निवेश गुणक) की धारणा यह बताती है कि निवेश में प्रारम्भिक वृद्धि से आय में अन्तिम रूप से कई गुणा वृद्धि होती है। इस प्रकार गुणक निवेश में होने वाले परिवर्तन का उपभोग (और रोजगार) पर पड़ने वाले प्रभावों को व्यक्त करता है। इसके विपरीत त्वरक गुणांक उपभोग व्यय में होने वाले परिवर्तन का विनियोग पर पड़ने वाले प्रभावों को व्यक्त करता है जबकि त्वरक की धारणा के अन्तर्गत निवेश उपभोग पर निर्भर करता है।
गुणक = आय में परिवर्तन/निवेश में परिवर्तन
त्वरक = प्रेरित निवेश में परिवर्तन/उपभोग व्यय में परिवर्तन
(2) गुणक का मूल्य या आकार सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है जबकि त्वरक गुणांक का मूल्य या आकार पूँजीगत पदार्थ की चिरस्थायिता (Durability) तथा पूजा-उत्पादन अनुपात पर निर्भर करता है।
(3) गुणक मनोवैज्ञानिक तत्त्वों पर निर्भर करता है जबकि त्वरक तकनीकी कारणों पर निर्भर करता है।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- गुणक त्वरक अन्तर्प्रक्रिया | गुणक एवं त्वरक की परस्पर क्रिया का महत्त्व | अति-गुणक
- गुणक की कार्य-पद्धति | गुणक की प्रतिकूल कार्य-पद्धति | गुणक की कार्यपद्धति में रिसाव या छिद्र
- गुणक के प्रकार | रोजगार गुणक | विदेशी व्यापार गुणक | कीमत गुणक
- गुणक की आलोचनां | गुणक के सिद्धान्त का महत्त्व
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