अर्थशास्त्र

गुणक के प्रकार | रोजगार गुणक | विदेशी व्यापार गुणक | कीमत गुणक

गुणक के प्रकार | रोजगार गुणक | विदेशी व्यापार गुणक | कीमत गुणक

गुणक के प्रकार

(Types of Multiplier)

केन्ज द्वारा प्रतिपादित निवेश शुल्क गुणक की धारणा के अतिरिक्त अर्थशास्त्रियों ने गुणक की कई और भी धारणाएं प्रस्तुत की हैं। इन धारणाओं में से कुछ धारणाएं निम्नलिखित हैं-

(1) रोजगार गुणक

(Employments Multiplier)-

अर्थशास्त्र में रोजगार गुणक की धारणा प्रो० केन्ज के निवेश की धारणा से भी पहले प्रस्तुत की गई थी। इस धारणा का प्रतिपादन कैम्बिज अर्थशास्त्री आर० एफ० काहन ने अपने लेख “The relation of Home Investment of Unemployment” (1931) में किया। प्रो० काहन द्वारा प्रतिपादित गुणक की धारणा का सम्बन्ध रोजगार में होने वाली वृद्धि से है। प्रो० काहन का यह दृष्टिकोण था निवेश के कारण रोजगार में हुई प्राथमिक वृद्धि कुल रोजगार में कई गुना वृद्धि करती है। अत: रोजगार गुणक वह संख्या है जो प्राथमिक रोजगार में वृद्धि होने के फलस्वरूप कुल रोजगार में होने वाली वृद्धि को प्रकट करती है।” काहन के अनुसार, निवेश में वृद्धि करने से रोजगार में वृद्धि केवल उन्हीं उद्योगों में ही नहीं होती जिनमें कि निवेश में वृद्धि भी की जाती है, बल्कि रोजगार में यह वृद्धि अन्य उद्योगों में भी होती है।

जब निवेश में वृद्धि करके उत्पादन में वृद्धि करने का प्रयास किया जाता है तो कुछ व्यक्तियों को तत्काल रोजगार प्राप्त हो जाता है। यह प्राथमिक,रोजगार (Primary Employment) कहलाता है। इन व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होने से इनकी आय में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं तथा सेवाओं की माँग में वृद्धि होती है। माँग में वृद्धि होने पर उत्पादन में पुनः वृद्धि होती है और उद्योगों का और अधिक विस्तार होता है। यह प्रक्रिया इसी प्रकार चलती रहती है और नये व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है। इस रोजगार को गौण रोजगार (Secondary Employment) कहा जाता है। गौण रोजगार को प्राथमिक रोजगार में जोड़ देने से कुल रोजगार की मात्रा ज्ञात होती है। अत: रोजगार गुणक कुल रोजगार में वृद्धि का अनुपात है।

रोजगार गुणक को निम्नलिाखित समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

K1 = N2/N1

K1 = रोजगार गुणक

N1 = प्राथमिक रोजगार

N2 = कुल रोजगार

काहन द्वारा प्रतिपादित रोजगार गुणक की धारणा इस बात के महत्व को स्पष्ट करती है कि मंदी (Depression) के दिनों में सार्वजनिक निर्माण कार्यों में निवेश में वृद्धि द्वारा प्रारम्भिक रोजगार में थोड़ी वृद्धि करके कुल रोजगार में कई गुणा वृद्धि की जा सकती है। केन्ज का निवेश गुणक तथा काहन का रोजगार गुणक अल्पकालीन समय-अवधि में एक समान हो सकते हैं क्योंकि अल्पकाल में आय तथा रोजगार में समान अनुपात में वृद्धि होने की संभावना होती है। परन्तु दीर्घकाल में ये एक-दूसरे के समान नहीं होते।

(2) विदेशी व्यापार गुणक

(Foreign Trade Multiplier)-

विदेशी व्यापार गुणक की व्याख्या प्रो० मैकलप (Machlup) ने अपने एक लेख “Mr. Clark and the Foreign Trade Multiplier” में की है। जब विदेशी लोग हमारे देश से वस्तुएँ खरीदते हैं तो इसके फलस्वरूप हमारे घरेलू निर्यात उद्योगों को आय प्राप्त होती है और जो व्यक्ति इन निर्यात उद्योगों में काम करते हैं उनकी आय में वृद्धि होती है। ये व्यक्ति आय में होने वाली इस वृद्धि को उपभोग वस्तुएं खरीदने पर खर्च करेंगे।

इससे उपभोक्ता वस्तुओं को निर्मित करने वाले उद्योगों का भी विस्तार एवं विकास होता है। इन उद्योगों के विस्तार से उन लोगों की आय में वृद्धि होगी जो इन उद्योगों में उपभोग वस्तुओ के निर्माण हेतु कार्यरत हैं। इस प्रकार निर्यात से प्राप्त आय के कारण कुल घरेलू आय में कई गुणा वृद्धि हो जाती है। अत: विदेशी व्यापार या निर्यातों के बढ़ने के फलस्वरूप कुल आय में जितने गुणा वृद्धि होती है, उसे ही विदेशी व्यापार गुणक कहते हैं। “अतएव विदेशी व्यापार गुणक निर्यातसे प्राप्त होने वाली वृद्धि के फलस्वरूप कुल आय में होने वाली वृद्धि का अनुपात है।”

KF = ΔΥ/ΔΕ

Kf= विदेशी व्यापार गुणक

∆Y = आय में परिवर्तन

∆E = निर्यात में परिवर्तन

विदेशी व्यापार गुणक को निम्न समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

जिस प्रकार केन्ज द्वारा प्रतिपादित निवेश गुणक की धारणा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) पर निर्भर करती है इसी प्रकार विदेशी व्यापार गुणक की धारणा बचत तथा आयात सम्बन्धी घरेलू सीमान्त प्रवृत्ति (Domestic Marginal Propensities to Save and Import) पर निर्भर करती है। जितनी यह प्रवृत्ति कम होती है विदेशी व्यापार गुणक उतना ही अधिक होता है तथा इसके विपरीत जितनी यह प्रवृत्ति कम होती है विदेशी व्यापार गुणक उतना ही अधिक होता है। इसे निम्नलिखित समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

Kf = 1/IS (जहाँ IS = सीमान्त बचत एवं आयात प्रवृत्ति)

(3) कीमत गुणक

(Price Multiplier)-

जब मुद्रा की मात्र में वृद्धि के कारण कुछ वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि होती है तो अन्य वस्तुओं के मूल्यों में भी वृद्धि हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप सामान्य मूल्य स्तर में कई गुणा अधिक वृद्धि हो जाती है। अतएव “कीमत गुणक मूल्यों में होने वाली प्रारम्भिक वृद्धि के फलस्वरूप सामान्य मूल्य स्तर में होने वाली वृद्धि का अनुपात है।”

कीमत गुणक = कीमतों में अन्तिम वृद्धि/कीमतों में प्रारंभिक वृद्धि

एक विकसित अर्थव्यवस्था में कीमत गुणक पूर्ण रोजगार स्तर के बाद क्रियाशील होता है। पूर्ण रोजगार स्तर की प्राप्ति के बाद साधनों की पूर्ति लोचहीन हो जाती है अर्थात् पूर्ण रोजगार अवस्था के बाद वस्तुओं, सेवाओं और साधनों की दुर्लभता अनुभव होने लगती है। पूर्ण रोजगार की अवस्था के बाद साधनों की पूर्ति लोचहीन होने पर जब इनकी माँग बढ़ती है तो पूर्ति नहीं बढ़ने पाती जिससे उत्पादन लागतें बढ़ जाती हैं। लागतें बढ़ने से कीमतें बढ़ जाती हैं। साधनों के स्वामियों की आय बढ़ने के कारण उपभोग वस्तुओं की माँग बढ़ती है, जिसके फलस्वरूप उत्पादन लागतों में और अधिक वृद्धि होती है। इस प्रकार की कीमतों में होने वाली वृद्धि का यह क्रम चलता रहता है जिसके परिणामस्वरूप सामान्य कीमत स्तर कई गुणा अधिक बढ़ जाता है। अल्पविकसित व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में माँग व पूर्ति की शक्तियों में प्रायः असंतुलन कुसमायोजन (mal- adjustment) बना रहता है, इसलिए इन अर्थव्यवस्थाओं में पूर्ण रोजगार स्तर से पहले ही कीमत गुणक क्रियाशील हो जाता है।

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Pankaja Singh

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