सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएं | सिन्धु सभ्यता पर एक संक्षिप्त लेख | सिन्धु घाटी सभ्यता पर एक संक्षिप्त लेख
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषताएं (प्रस्तावना)–
सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। सिन्धु नदी व उसकी सहायक नदियों के प्रदेशों में इस सभ्यता का विकास हुआ था। कुछ विद्वान तो इसका समय 4000 वर्ष ई० पूर्व बताते हैं और कुछ विद्वान 2500 वर्ष ई० पूर्व मानते हैं। इस प्रकार सिन्धु सभ्यता का समय 4000 ई० पूर्व से 2500 ई० पूर्व में कहीं रहा होगा। डॉ० राधाकुमुद मुकर्जी ने इसे विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता बतलाते हुए लिखा है, सिन्धु घाटी की सभ्यता का न तो मेसोपोटामिया की सभ्यता के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है और न ही वह उसकी ऋणी है। अब यह धारणा दृढ़ होती जा रही है कि सिन्धु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता के प्राप्त अवशेष-
सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाइयों के अतिरिक्त, अन्य लगभग 250 स्थानों पर हुई खुदाइयों से प्राप्त हुए हैं। इन अवशेषों से सिन्धु घाटी की सभ्यता पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इन अवशेषों से पता चलता है कि यह सभ्यता लोगों के बहुत ही ऊँचे स्तर के जीवन को प्रदर्शित करती है। डॉ० विमलचन्द्र पाण्डेय के अनुसार, “आधुनिक भौगोलिक नामों में सिन्धु संस्कृति के क्षेत्र के अन्तर्गत, बलूचिस्तान, उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त, पंजाब, काठियावाड़ का अधिकांश भाग, राजपूताना और गंगा घाटी का उत्तरी भाग समाविष्ट था।” सिन्धु सभ्यता के अन्य क्षेत्रों की खोज भी अभी जारी है।
सिन्धु सभ्यता के निर्माता-
सिन्धु सभ्यता के निर्माताओं के सम्बन्ध में विद्वानों में बहुत मतभेद हैं। कुछ विद्वानों के मतानुसार, इसके निर्माता द्रविड़ थे। कुछ विद्वानों का मत है कि इसके निर्माता वैदिक आर्य थे। कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार सुमेरियन जाति के लोग इसके निर्माता थे। अधिकांश विद्वानों का मत है कि सिन्धु सभ्यता के निर्माता एक ही जाति के नहीं थे, बल्कि अनेक जाति के लोगों के सम्मिश्रण से इस सभ्यता का निर्माण हुआ। डॉ० विमलचन्द्र पाण्डेय का मत है कि भूमध्यसागरीय जाति सिन्धु प्रदेश में सबसे अधिक संख्या में थी और इसी जाति को समाज में सम्मानीय स्थान प्राप्त था।
नगर निर्माण एवं वास्तुकला-
सिन्धु घाटी सभ्यता में नगर निर्माण योजना बहुत ही सुव्यवस्थित थी। सड़कें काफी चौड़ी होती थीं तथा उनके दोनों ओर नालियाँ थीं जिनमें होकर नगर का गन्दा पानी बाहर निकाला जाता था। सड़क के दोनों ओर पक्के मकान थे जिनमें चौड़े दरवाजे, दीवारों में आलमारियाँ तथा रोशनदान होते थे। जल-प्राप्ति के लिए सार्वजनिक स्थानों एवं घरों में कुएँ खुदे थे। नगरों की सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता था। नगर के कूड़े-करकट को नगर के बाहर जान नगरों में रोशनी की भी व्यवस्था थी। एक विशाल स्नानागार और भण्डारामा अवशेषों से वहाँ के सार्वजनिक व्यवस्थित जीवन का भी पता चलता है।
सामाजिक जीवन-
सिन्धु घाटी का समाज चार वर्गों में विभक्त था- (i) विद्वान- जिसमें पुजारी, वैद्य और ज्योतिषी सम्मिलित थे, (ii) योद्धा लोग- जिनका काम समाज की रक्षा करना था, (iii) व्यवसायी- जो विभिन्न प्रकार के उद्योग-धन्धे करते थे, (iv) घरेलू नौकर तथा मजदूर। लोग शाकाहारी एवं माँसाहारी दोनों ही थे। कुछ लोग दाड़ी-मूंछे रखते थे, कुछ के बाल काफी लम्बे होते थे तथा चोटी रखते थे। पुरुष शाल ओढ़े रखते थे तथा एक वस्त्र नीचे के अंग पर पहनते थे। स्त्रियाँ एक विशेष प्रकार का वस्त्र सिर पर पहनती थीं जो पीछे को और पंख की तरह उठा रहता था। स्त्री और पुरुष दोनों को आभूषण पहनने का शौक था। स्त्रियों को केश-श्रृंगार में बहुत रुचि थी। उन्हें लम्बे बाल रखने, जूडा बनाने, चोटियाँ करने तथा मांग निकालने का शौक था। वे काजल, पाउडर, लिपिस्टिक, दर्पण, कंघी आदि का प्रयोग करती थीं। लोगों को आमोद-प्रमोद का शौक था। वे शिकार करते थे तथा शतरंज और जुआ खेलते थे। स्त्रियों में पर्दा प्रथा नहीं थी और समाज में स्त्रियों का सम्मान किया जाता था। लोग विभिन्न प्रकार की औषधियों से परिचित थे तथा रोगमुक्ति के लिए वे उनका उपयोग करते थे। वे मुख्यतया शवों को जलाकर उसकी राख को गाड़ देते थे।
राजनीतिक जीवन-
सिन्धु घाटी के लोगों के राजनीतिक जीवन के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिली परन्तु इतना निश्चित है कि ऐसी विस्तृत एवं सम्मुन्नत सभ्यता की व्यवस्था के लिए कोई शक्तिशाली शासन-सत्ता रही होगी।
धार्मिक जीवन-
सिन्धु घाटी के लोग परम पुरुष एवं परम नारी की शक्तियों के रूप में पूजा करते थे। हड़प्पा में प्राप्त मोहर के अनुसार ये लोग शिव की भी पूजा करते थे। इसके अतिरिक्त ये लोग विभिन्न पशुओं, वृक्षों, लिंग, योनि, जल आदि की भी पूजा करते थे।
आर्थिक जीवन-
आर्थिक दृष्टि से सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग सम्पन्न एवं वैभवशाली रहे होंगे। इन लोगों की जीविका का मुख्य साधन कृषि था। ये लोग अनाज, फल, कपास आदि की खेती करते थे। ये लोग शिकार करके भी अपना भरण-पोषण करते थे। पशुओं के बाल, खाल तथा हड्डियों से अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनाया करते थे। ये लोग गाय, बैल, भैंस, भेड़, बकरी, हाथी, सुअर, कुत्ते आदि जानवरों को भी पालते थे। इसके साथ ही साथ ये लोग बडे कुशल शिल्पी तथा व्यवसायी थे। ये लोग मिट्टी, पत्थर तथा हाथी दांत की अनेक वस्तुओं का निर्माण करते थे। सूती कपड़े बुनकर पश्चिमी देशों को भेजते थे, यो लोग ऊनी तथा रेशमी वस्त्र भी बनाते थे। सैन्धव लोगों का व्यापार भी उन्नत अवस्था में था। व्यापार जल और थल दोनों मार्गों से होता था। सिन्धु-निवासी सोना, चांदी, टिन, सीसा आदि अफगानिस्तान, ईरान आदि से मंगाते थे। इन लोगों का सुमेरिया, ईरान, अफगानिस्तान, मिस्त्र, क्रीट आदि देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध था। इनके तौलने के लिए बाट तथा नापने के लिए फुट होता था।
कला-
सिन्धु घाटी के लोग बड़े कुशल शिल्पी थे। ये लोग मिट्टी के बर्तन बनाने में निपुण थे। इन बर्तनों पर सुन्दर चित्रकारी की जाती थी। ये लोग सुन्दर, सजीव एवं उत्कृष्ट मूर्तियों का निर्माण करते थे। मोहरों पर हुई चित्रकारी भी सजीव एवं सूक्ष्म है। सिन्धु घाटी सभ्यता काल में पत्थर, धातु, हाथी के दांत तथा मिट्टी की बनी मुद्राओं का प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग नृत्य एवं संगीत कला में भी प्रवीण थे। इनको नाचने-गाने का शौक था। ये लोग सूत और ऊन कातने में बहुत कुशल थे तथा कपड़ों की रंगाई में भी बहुत कुशल थे।
सिन्धु सभ्यता का विनाश-
परन्तु ऐसी समुन्नत एवं उत्कृष्ट सभ्यता नष्ट हो गई। यह सभ्यता कैसे नष्ट हुई, इसकी तो कोई निश्चित जानकारी नहीं है परन्तु फिर भी अनुमान है कि निम्नलिखित में से एक या अधिक कारण इस सभ्यता के पतन में सहायक हुए होंगे-
(i) सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियों में बाढ़ आना।
(ii) अकाल पड़ जाना या अनावृष्टि होना।
(iii) भूकम्प आ जाना।
(iv) जलवायु में क्रान्तिकारी परिवर्तन होने के कारण।
(v) राजनीतिक या आर्थिक विघटन होना।
(vi) किसी विदेशी आक्रमण का होना।
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