सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ | Salient Features of Indus Valley Civilization in Hindi
सिन्धु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ
सिन्धु घाटी सभ्यता में खुदाई में मिली वस्तुओं पर यदि हम विचार करें तो सिन्धु घाटी की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हमको दिखाई पड़ती हैं-
- नगर-प्रधान सभ्यता- यद्यपि लोगों का व्यवसाय कृषि एवं शिकार करना भी था, फिर भी समृद्धिशाली लोग व्यापार में लगे हुए थे और अच्छे-अच्छे मकानों में रहते थे। नगरों का निर्माण एवं उनकी व्यवस्था बहुत सुन्दर थी। इस प्रकार सिन्धु घाटी सभ्यता ग्राम-प्रधान सभ्यता न होकर नगर-प्रधान सभ्यता थी।
- व्यापार प्रधान सभ्यता- सिन्धु घाटी सभ्यता कृषि प्रधान नहीं थी। यद्यपि लोग कृषि करते थे परन्तु उन्नत दर्जे के लोग काफी थे और वे नगरों में रहकर देश-विदेश में व्यापार करते थे। उस समय भारत के अन्य देशों से व्यापारिक सम्बन्ध थे ।
- जनतन्त्रात्मक- सार्वजनिक स्नानागार एवं भण्डारागारों के अवशेष मिलने से तथा राजप्रासादों आदि के कोई अवशेष न मिलने से पता चलता है कि सिन्धु सभ्यता पूर्णतया जनतांत्रिक थी। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे विशाल एवं सुव्यवस्थित नगरों को देखकर किसी शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता का आभास तो होता है, परन्तु ऐसा लगता है कि वह सत्ता जनशक्ति के नियन्त्रण में धी।
- सामाजिक सभ्यता- सिन्धु घाटी की सभ्यता कोई आखेट युग की अविकसित सामाजिक सभ्यता नहीं थी वरन् यह पूर्ण रूप से व्यवस्थित एवं सन्तुलित सामाजिक व्यवस्था की सभ्यता थी।
- आर्थिक वैषम्यता की कमी- सिन्धु सभ्यता के लोगों में आर्थिक दृष्टि से विषमता तो थी जैसा कि छोटे एवं बड़े मकानों के मिले अवशेषों से पता चलता है, फिर भी यह आर्थिक विषमता वैमनस्यपूर्ण नहीं थी। सिन्धु की सभ्यता का समाज चार वर्गों में विभाजित था जिनका आगे चलकर चार वर्षों से साम्य दिखाया जा सकता है, फिर भी सभी लोगों में आपसी मनमुटाव न होकर सामंजस्य था।
- कांस्य सभ्यता- यद्यपि मिट्टी, पत्थर तथा हाथी दांत की वस्तुओं का उपयोग किया जाता था फिर भी यह सभ्यता प्रमुखतया कांस्यकालीन सभ्यता थी। यह उस समय के तृतीय चरण की सभ्यता थी। कांसे एवं अन्य धातु की वस्तुओं का अच्छा व्यापार होता था।
- औद्योगिक सभ्यता- कृषि तथा शिकार से अधिक लोग व्यापार एवं उद्योगों में लगे हुए थे। सिन्धु घाटी के वासियों का आर्थिक जीवन मुख्यतया व्यापार तथा उद्योगों पर आधारित था। सम्भवतः एक ही प्रकार का व्यवसाय करने वाले लोग एक ही क्षेत्र में रहते थे।
- द्वि-देवता मूलक सभ्यता- सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग यद्यपि शिव, प्रकृति, वृक्ष तथा पशुओं की पूजा करते थे, परन्तु प्रमुख रूप में ये दो के प्रति सर्वाधिक श्रद्धालु थे और यह दो थे- परम पुरुष और परम नारी।
- लेखन कला का ज्ञान- खुदाई में प्राप्त मोहरों पर लेख देखकर यह निश्चित हो जाता है कि सिन्धुवासियों भाषा तथा लिपि का विकास कर लिया था। यद्यपि मोहरों पर लिखी लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि इस लिपि के माध्यम से वे अपने विचारों का आदान-प्रदान करते होंगे। राजस्थान में कालीबंगा से प्राप्त लिपि से अनुमान लगता है कि सम्भवतया इनकी लिपि दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती थी।
- सिन्धुघाटी सभ्यता का प्रभाव- ऐसी महान् सभ्यता एवं संस्कृति बिना कोई निरन्तरता छोड़े किस प्रकार काल के गाल में समा गई, इस सम्बन्ध में तो निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, परन्तु यह निश्चित है कि इस सभ्यता का काफी महत्वपूर्ण प्रभाव, भारत की बाद की सभ्यता एवं संस्कृति के सभी पक्षों पर पड़ा। इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि हिन्दू धर्म की बहुत-सी बातें इसी सभ्यता एवं संस्कृति में से ली गयीं। सिन्धु सभ्यता का प्रत्यक्ष प्रभाव भारतीय धार्मिक जीवन पर स्पष्ट दिखाई देता है।
निष्कर्ष-
इन विशेषताओं को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियों की घाटियों में एक सुन्दर, उत्कृष्ट एवं समुन्नत सभ्यता प्रस्फुटित हुई। आजद सिन्धु सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक ही नहीं वरन् विश्व की सबसे अधिक प्राचीन सभ्यता मानी जाती है। आज इस सभ्यता के गौरव से हम गौरवान्वित महसूस करते हैं तथा विश्व के लोग इस सभ्यता को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं।
प्रसिद्ध विद्वान गार्डन चाइल्ड के अनुसार, “सिन्धु सभ्यता परिस्थितियों के अनुकूल बहुत अच्छी तरह ढले हुए मानव जीवन की द्योतक है और इस स्तर तक पहुंचने में उसे कई वर्ष लगे होंगे। यह स्थिर रही है। यह तो वास्तव में भारतीय ही है और आधुनिक भारतीय संस्कृति का आधार है। भवन निर्माण और उद्योग में, वेश-भूषा और धर्म में, इस सभ्यता में ऐसी विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं जो ऐतिहासिक भारत में सदैव विद्यमान रही हैं।” दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है, वर्तमान भारत का निर्माण धीरे-धीरे सिन्धु सभ्यता के प्रभाव के अन्तर्गत ही हुआ। अतः सभी भारतीय इस सभ्यता के ऋणी हैं। डॉ० ओम प्रकाश लिखते हैं, “सिन्धु सभ्यता का भारत की संस्कृति पर बहुत प्रभाव पड़ा है। हिन्दू धर्म के बहुत-से विश्वास इन लोगों के धार्मिक विश्वासों पर आधारित हैं। भौतिक सभ्यता के क्षेत्र में तो आर्य लोगों ने इन लोगों से बहुत-सी बातें सीखीं। भारत की वर्तमान सभ्यता से सिन्धु घाटी के लोगों की देन कुछ कम नहीं है। यदि आर्य लोगों ने आध्यात्मिक क्षेत्र में अपना योग दिया तो सिन्धु घाटी के लोगों ने हमारे नगरों की सभ्यता के विकास में योग दिया। हमारे नगरों के मकान, सड़कें, खान-पान, वेशभूषा आदि पर सिन्धु सभ्यता का बहुत प्रभाव पड़ा है। हमारी वर्तमान संस्कृति में आर्य और सिन्धु दोनों सभ्यताओं का सुन्दर समन्वय है।”
पण्डित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “यह एक मनोरंजक बात है कि हिन्दुस्तान की कहानी के इस उषाकाल में हमें वह एक नन्हे बच्चे के रूप में दिखाई नहीं देता बल्कि इस समय वह भी अनेक प्रकार से सयाना हो चुका था। वह जिन्दगी के तरीकों से अनजान नहीं था, वह किसी धुंधली और न प्राप्त होने वाली दूसरी दुनिया के सपनों में खोया हुआ नहीं था, बल्कि उसने जिन्दगी की कला में एवं रहन-सहन के साधनों में काफी उन्नति कर ली थी और इसने न केवल सुन्दर वस्तुओं की रचना की थी, वरन् आज की सभ्यता के उपयोगों और खास चिह्न में-अच्छे हम्मामों और नालियों को भी तैयार किया था।”
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