सिन्धु घाटी का सामाजिक जीवन | सिन्धु घाटी की सभ्यता के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ
सिन्धु घाटी का सामाजिक जीवन
सिन्धु घाटी की सभ्यता के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
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सामाजिक स्थिति-
प्राप्त अवशेषों के आधार पर उस समय का समाज चार भागों में विभक्त था-विद्वान, योद्धा, व्यवसायी और श्रमिक। पुजारी, चिकित्सक और ज्योतिषी प्रथम वर्ग में आते थे। योद्धा वर्ग का कार्य जनता और राज्य की रक्षा करना था। तीसरे वर्ग में व्यापारी और उद्योग-धन्धों के व्यक्ति आते थे। अन्तिम वर्ग में किसान, मछुए, टोकरी बनाने वाले और चमड़े आदि का कार्य करने वाले थे। डॉ० विमल चन्द्र पाण्डेय का कथन है कि “कार्य विभाजन के आधार पर सैन्धव समाज में भी अनेक वर्ग थे। पुजारी, पदाधिकारी, ज्योतिषी, जादूगर, वैद्य इत्यादि उच्चवर्गीय समझे जाते होंगे। इनके अतिरिक्त कृषक, व्यवसायी, कुम्भकार, बढ़ई, मल्लाह आदि निम्नवर्गीय होंगे।”
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परिवार-
समाज की मूल इकाई परिवार थी। विद्वानों का अनुमान है कि उस युग में भी संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित रही होगी। खुदाई में प्राप्त नारी-मूर्तियों की बहुलता से ज्ञात होता है कि सैन्धव समाज मातृ-प्रधान था।
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भोजन-
यहाँ के लोगों का मुख्य अन्न गेहूँ था, जौ और चावल का भी प्रयोग होता था। फल, अण्डे और दूध का भी सेवन होता था। कुछ अधजली अस्थियों और छिलकों के आधार पर यह भी निश्चित है कि माँस और मछली भी सिन्धु लोगों द्वारा उपयोग में लाये जाते थे।
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वेशभूषा-
सिन्धु-घाटी के लोग सूती और ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करते थे। स्त्रियों की पोशाक सिर के पीछे की ओर पंख की तरह उठी रहती थी, जो घाघरों का प्रयोग करती थीं। कुछ स्त्रियाँ पगड़ी अथवा नुकीली टोपियाँ पहनती थीं। सामान्य लोग कमर तक कोई वस्त्र पहनते थे तथा उच्च वर्ग के लोग शाल से अपने शरीर के ऊपरी भाग को, ढकते थे।
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श्रृंगार-
पुरुष दाढ़ी और मूंछे रखते थे यद्यपि कुछ लोग सिर मुंडाये भी रहते थे। पुरुष छोटे या बड़े दोनों प्रकार के बाल रखते थे और बड़े बालों वाले चोटी बाँधे रहते थे। खुदाई में उस्तरा भी मिला है, जिससे ज्ञात होता है कि पुरुष हजामत भी बनाते थे। स्त्रियों को केश-विन्यास का शौक था। उन्हें लम्बे बाल रखने, जूड़ा बनाने, चोटियां करने तथा मांग निकालने का बड़ा शौक था। खुदाई में कंधियाँ, दर्पण, शृंगारदार प्राप्त हुए हैं जिन से ज्ञात होता है कि स्त्रियाँ बहुत शृंगारप्रिय थीं। वे काजल, सुरमा, पाउडर, लिपिस्टिक आदि का भी प्रयोग करती थीं।
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आभूषण-
स्त्री और पुरुष दोनों आभूषणों का प्रयोग करते थे। हार, भुजबन्द, कंगन, अंगूठी आदि मुख्य गहने थे। धनवानों के गहने सोने-चाँदी, हाथीदांत और अन्य कीमती पत्थरों के होते थे तथा निर्धन लोग तांबा, मिट्टी तथा हड्डी के बने आभूषण पहनते थे। पीतल के दर्पण और हाथीदाँत की कधियाँ भी उपयोग में लायी जाती थीं।
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स्त्रियों की दशा-
सिन्धु सभ्यता में स्त्रियों में पर्दा प्रथा नहीं थी। उनका समाज में सम्मान होता था और धार्मिक अनुष्ठानों में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहता था। स्त्री को मातृदेवी मानकर उसकी पूजा भी होती थी।
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मनोरंजन के साधन-
अनेक ऐसे चित्र मिले हैं जिनसे सिद्ध होता है कि पुरुष शिकार के शौकीन थे। खुदाई में बारहसिंगा, चीते, भेड़ और जंगली सुअरों का शिकार करते हुए चित्र प्राप्त हुए हैं। बच्चों के लिए मिट्टी के खिलौने होते थे। मुर्गियों, बैलों और कबूतरों को लड़ाकर मनोरंजन किया जाता था। जुआ और शतरंज भी मनोरंजन के साधन थे। इन लोगों को नाचने-गाने का भी शौक था।
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खिलौने-
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाइयों में अनेक प्रकार के खिलौने मिले हैं। बच्चे मिट्टी की छोटी-छोटी गाड़ियों से खेलते थे। मनुष्य और पशुओं के आकार के भी अनेक प्रकार के खिलौने बनाये जाते थे। चिड़ियों के खिलौने और बजाने के भोंपू बच्चों के खिलौने होते थे।
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यातायात के साधन-
सिन्धु घाटी सभ्यता की सड़कें चौड़ी परन्तु कच्ची होती थीं। उस समय लोग बैलगाड़ी की सवारी करते थे। हड़प्पा की खुदाई में इक्के के आकार का एक ताम्बे का वाहन मिला है।
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औषधियाँ-
सिन्धु घाटी के प्रदेश की खुदाई में कुछ ऐसी वस्तुयें भी मिली हैं जिनका कि उस समय के लोग रोगों से मुक्ति पाने के लिए औषधि के रूप में प्रयोग करते थे। शिलाजीत और नीम की पत्तियों का विभिन्न रोगों में उपयोग किया जाता होगा। आँख, कान आदि रोगों में वे लोग मछली की हड्डियों का प्रयोग करते थे। हिरण के सींग का चूर्ण बनाकर औषधि बनाते थे। मूंगा का भी औषधि के लिए प्रयोग किया जाता था। जादू-टोने द्वारा भी रोगों का इलाज किया जाता था।
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गृहोपयोगी वस्तुएँ-
सिन्धु-निवासी मिट्टी तथा धातु के बने घड़े, कलश, थाली, गिलास, तश्तरी, कटोरे आदि बर्तनों का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त ये लोग कुर्सी, पलंग, चारपाई, तिपाई, चटाई आदि का भी प्रयोग करते थे। गृहस्थ की अन्य वस्तुओं में चाकू, छुरी, कुल्हाड़ी, तकली, सुई, मछली पकड़ने का कांटा आदि भी उल्लेखनीय थे।
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मृतक व्यवस्था-
सर जान मार्शल के अनुसार मृतक संस्कार के तीन तरीके प्रयोग में लाये जाते थे-
(i) सारे शरीर को पृथ्वी में गाड़ दिया जाता था।
(ii) दाह-कर्म करके राख को पृथ्वी में गाड़ दिया जाता था।
(iii) शव को जानवरों को खाने के लिए डाल दिया जाता था और बाद में बची हुई हड्डयों को गाड़ दिया जाता था।
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