भारतीय इतिहास में सिन्धु घाटी सभ्यता की महत्ता | सिन्धु घाटी की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक | सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलु
भारतीय इतिहास में सिन्धु घाटी सभ्यता की महत्ता
सिन्धु घाटी की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक-
सिन्धु घाटी की सभ्यता विश्व की चार प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। इन सभ्यताओं का विकास (i) भारत में सिन्धु और उसकी सहायक नदियों की घाटियों में, (ii) अफ्रीका में नील नदी के किनारों पर (iii) मेसोपाटमिया में दजला और फरात नदियों के कछारों पर और (iv) चीन में ह्वांगहो और यांगटटिसीक्यांग नदियों के आसपास हुआ। यूनानी सभ्यता सम्भवतया इन चारों सभ्यताओं की अपेक्षा कुछ देर से आई। इसलिए प्राचीनता के लिहाज से सिन्धु सभ्यता की खोज़ होने पर भारत की सुव्यवस्थित एवं सुविकसित सभ्यता तथा संस्कृति का इतिहास सिन्धु घाटी की सभ्यता से प्रारम्भ होता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता का ज्ञान-
सिन्धु घाटी सभ्यता की खोज होने से पहले आर्यों के आगमन से ही भारतीय संस्कृति का इतिहास प्रारम्भ होता था और उनके ग्रन्थ वेदों से ही हमको भारत की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक दशा की पहली विस्तृत तस्वीर मिलती थी। सन् 1920 से 1923 ई० तक की ऐतिहासिक खोज ने इन सबको बदल दिया। सन् 1920 में दयाराम साहनी ने तथा सन् 1922 में राखालदास बनर्जी ने पंजाब के मान्टगोमरी जिले में हड़प्पा और सिन्धु के लरकाना जिले में मोहनजोदड़ो नामक स्थानों पर खुदाई की और आज से लगभग पांच हजार वर्ष पहले भारत में विकसित होने वाली प्राचीन सभ्यता के ध्वंसावशेषों को खोज निकाला। सन् 1923 ई० में सर जॉन मार्शल के नेतृत्व में सिन्धु घाटी के प्रदेश तथा कुछ अन्य स्थानों पर आगे ख़ुदाइयां की और इन खुदाइयों में वही वस्तुएँ मिली हैं जैसी हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिली थीं। ऐसा अनुमान है कि सिन्धु घाटी के सम्पूर्ण प्रदेश की सभ्यता एक-सी थी।
सिन्धु घाटी सभ्यता का अर्थ-
सिन्धु भारत की एक बड़ी नदी है जो हिमालय पर्वत से निकलती है तथा पंजाब और सिन्धु प्रदेश में होती हुई अरब सागर में गिरती है। किसी नदी के दोनों ओर स्थित प्रदेश को, जिसकी कि उस नदी के पानी से सिंचाई होती है, घाटी कहते हैं। सिन्धु घाटी से तात्पर्य सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियों के दोनों ओर फैले हुए प्रदेश से है। किसी प्रदेश की सभ्यता का अर्थ वहाँ के तत्कालीन लोगों के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन से होता है।
सिन्धु सभ्यता का विस्तार-
सिन्धु सभ्यता का प्रभाव-क्षेत्र बहुत अधिक व्यापक था। सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के प्रदेशों के अलावा इसी सभ्यता जैसे चिह्न अन्य अनेक स्थानों पर भी मिले हैं। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के अतिरिक्त आजकल पाकिस्तान में कराची के पास अमरी, सिन्धु में चन्हूदड़ो और बिलोचिस्तान में केलात के पास नाल नामक स्थानों में सिन्धु सभ्यता जैसे अवशेष प्राप्त हुए हैं। पंजाब में रोपड़, सौराष्ट्र में रंगपुर व लोथल, उत्तर प्रदेश में आलमगीर, कोशाम्बी आदि स्थानों पर खुदाई में इसी सिन्धु सभ्यता जैसे अवशेष प्राप्त हुए हैं। सिन्धु घाटी की सभ्यता को हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता कहते हैं, परन्तु इसके विस्तार को देखते हुए अधिकांश विद्वान इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता कहते हैं और आज यह सभ्यता इसी नाम से विख्यात है।
सिन्धु सभ्यता का काल-
सिन्धु सभ्यता के काल के विषय में इतिहासकारों में काफी मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों ने इस सभ्यता का काल 4000 ई० पू० से 2500 ई० पू० तक माना है। कुछ विद्वान इस सभ्यता को विश्व की प्राचीनतम सभ्यता बताते हुए इसका काल 4000 ई० पू० बताते हैं। डॉ० राधाकुमुद मुकर्जी कहते हैं कि सिन्धु सभ्यता का प्रारम्भ 3200 ई० पू० से पहले का है। डॉ० राजबली पाण्डेय सिन्धु-सभ्यता का समय 4000 ई० पूर्व मानते हैं। डॉ० सी० एल० फैब्री ने सिन्धु-सभ्यता का समय 2800 और 2500 ई० पू० पूर्व के मध्य माना है, परन्तु व्हीलर महोदय सिन्धु-सभ्यता का समय 2500-1500 ई० पूर्व मानते हैं। धर्मपाल ने कार्बन 14 पद्धति के द्वारा सिन्धु सभ्यता का समय 2300-1750 ई० पूर्व माना है। यद्यपि सिन्धु-सभ्यता की तिथि के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं, परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है।
सिन्धु-सभ्यता के निर्माता-
सिन्धु-सभ्यता के निर्माताओं के विषय में भी विद्वानों में मतभेद हैं। सर जान मार्शल के अनुसार सिन्धु-सभ्यता के निर्माता द्रविड़ लोग थे। कुछ विद्वानों जैसे रामचन्दन, शंकरानन्द, दीक्षितार आदि के अनुसार सिन्धु-सभ्यता के निर्माता आर्य थे। अनेक विद्वानों का मत है कि कई जातियों के सम्मिश्रण से सिन्धु-सभ्यता का निर्माण हुआ था। इन जातियों में आदि-आस्ट्रेलियाई, भूमध्यसागरीय, मंगोलियन तथा अलपाइन उल्लेखनीय थे। अतः ऐसा प्रतीत होता है कि इस सभ्यता की जनसंख्या मिश्रित प्रकार की थी तथा इस सभ्यता के निर्माण में कई लोगों ने अपना योगदान दिया था।
सिन्धु सभ्यता का विनाश-
सिन्धु सभ्यता के विनाश के बारे में निश्चित रूप से अभी खोज नहीं हुई है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगर लगभग 2,500 ई०पू० नष्ट और ध्वस्त हो गए थे। इस सभ्यता के विनाश के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
(1) सिन्धु नदी में भयंकर बाढ़ें,
(2) सिन्धु नदी का मार्ग बदलना और सिन्धु सभ्यता के क्षेत्र को रेगिस्तान बना देना,
(3) जलवायु में असाधारण परिवर्तन, मौसमी हवाओं का रुख बदलना, वर्षा कम होना आदि के कारण इस सभ्यता का धीरे-धीरे रेत के टीलों से ढक जाना,
(4) भयंकर भूकम्प तथा
(5) विदेशी आक्रमण।
कोलम्बो के मतानुसार, ‘कृष व्यवस्था की अवनति के कारण सिन्धु सभ्यता का अन्त हुआ। उनका कहना है कि नदियों के मार्ग बदलने से सिंचाई व्यवस्था ठप्प पड़ गई और बन्दरगाह बर्बाद हो गये।” डॉ० राजबली पाण्डेय के मतानुसार, “सिन्धु घाटी में क्रांतिकारी जलवायु परिवर्तन और सिन्धु नदी के मार्ग बदलने से यह सभ्यता नष्ट हो गई। कुछ विद्वानों का मत है कि आर्यों के आगमन व आक्रमणों ने सिन्धु घाटी की सभ्यता को नष्ट कर दिया, क्योंकि यहाँ के लोग शान्तिप्रिय थे जबकि आर्य लोग युद्धप्रिय थे।
उपसंहार- कुछ विद्वानों के मतानुसार आर्य सभ्यता का ही विकसित रूप थी, लेकिन यह मत तर्क-संगत प्रतीत नहीं होता। दोनों सभ्यताओं में पर्याप्त मौलिक अन्तर था। सिन्धु सभ्यता के जितने अवशेष मिले हैं, उनके आधार पर इस सभ्यता की विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है। न ही इस सभ्यता एक सुसंगठित, व्यवस्थित और उन्नत सभ्यता थी और इसने बाद की सभ्यताओं को भी पर्याप्त मात्रा में प्रभावित किया।
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