सिन्धु घाटी सभ्यता का धार्मिक जीवन | सिन्धु सभ्यता की कला | सिन्धु घाटी की सभ्यता के धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ | सिन्धु सभ्यता की कला की विशेषताएँ
सिन्धु घाटी सभ्यता का धार्मिक जीवन
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में प्राप्त मुहरों और चित्रों के आधार पर वहाँ के लोगों के धार्मिक जीवन के बारे में निम्नलिखित विशेषताओं का ज्ञान होता है-
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बहुदेववाद-
अनेक देवी-देवताओं की आराधना होती थी, जिनमें दो मुख्य शक्तियों की पूजा की जाती थी- परम पुरुष और परम नारी।
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मातृपूजा-
सिन्धु सभ्यता के लोग मातृ देवी की पूजा करते थे, जिसे मार्शल ने महादेवी के रूप में माना है। यहाँ के लोग सृष्टि का आरम्भ नारी-शक्ति द्वारा मानते थे। ये लोग मातृ देवी को सम्पूर्ण लोक की जननी एवं पोषिका मानते थे।
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लिंग-पूजा और योनि पूजा-
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में अनेक लिंग मिले हैं जो सामान्य पत्थर, लाल पत्थर अथवा नीले पत्थर, चीनी मिट्टी आदि के बने हैं। इनसे ज्ञात होता है कि सिन्धु-निवासी लिंग की पूजा करते थे। इसके अतिरिक्त खुदाई में बहुत से छल्ले को योनियों का प्रतीक मानते हैं। उनके मतानुसार सिन्धु-निवासी योनि की भी पूजा करते थे।
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देवी-देवताओं का मानवीयकरण-
यहाँ के लोगों ने देवी-देवताओं को मानव के रूप में देखा। प्राप्त मुहरों और मूर्तियों में मानव-आकृति का चित्रण यह बात सिद्ध करता है।
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शिव पूजा-
हड़प्पा की खुदाई में एक ऐसी मुहर प्राप्त हुई है, जिस पर अंकित चित्र शिव का प्रतीक होता है। मार्शल के अनुसार यह शिव की मूर्ति है। अतः सिन्धु-निवासी शिव की भी पूजा करते थे।
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पशु पूजा-
मुहरों पर पशुओं के चित्र भी मिले हैं, जिससे अनुमान लगाया जाता है कि बैल, हाथी, बारहसिंगा, हिरण, भैंस आदि की पूजा की जाती थी। कुछ पशु मानवीय और पाशविक दोनों ही रूपों में दर्शाये गये हैं। नाग की पूजा भी प्रचलित थी।
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जल-पूजा-
सिन्धु प्रदेश की खुदाई में जलकुण्डों के अवशेषों की प्राप्ति के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि जल को पवित्र मानकर इसकी पूजा होती थी।
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मूर्ति पूजा-
खुदाई में प्राप्त अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियों से ज्ञात होता है कि सिन्धु-निवासी मूर्ति-पूजक थे। ये लोग साकार ईश्वर की उपासना में विश्वास करते थे।
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प्रतीक पूजा-
खुदाई में सींग, स्तम्भ, स्वस्तिका आदि के चित्र प्राप्त हुए हैं। विद्वानों के अनुसार इन चिह्नों का भी कुछ धार्मिक महत्त्व रहा होगा तथा ये चिह्न किसी देवी-देवता के प्रतीक रहे होंगे अथवा किसी धार्मिक भावना के प्रतीक के रूप में इनकी पूजा की जाती होगी।
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अन्य पूजायें-
सिन्धु प्रदेश में खुदाई के अवशेषों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि वे लोग पीपल, नीम, तुलसी आदि वृक्षों, सूर्य, अग्नि की भी पूजा करते थे।
योनि तथा लिंग की प्रतिमा बनाकर प्रकृति की प्रजनन शक्ति की पूजा होती थी। यह भी अनुमान है कि यहाँ के लोग धार्मिक समारोह विशाल स्तर पर मनाते होंगे। कुछ मुहरें व तावीजों की प्राप्ति का अर्थ है कि यहाँ के लोगों में धार्मिक अन्धविश्वास भी था।
सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासियों के धर्म का आर्यों और बाद में हिन्दुओं पर गहरा प्रभाव व उसमें घनिष्ठ सम्बन्ध बताते हुए प्रो० रमेशचन्द्र मजूमदार कहते हैं-
“इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि सिन्धुघाटी की प्राचीन सभ्यता और वर्तमान हिन्दू धर्म में घनिष्ठ सम्बन्ध है।”
सिन्धु सभ्यता की कला
सिन्धु सभ्यता की कला की विशेषताओं का रेखांकन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया. गया है-
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मूर्ति-निर्माण-कला-
सिन्धु क्षेत्र में प्राप्त मूर्तियाँ कला की सुन्दरता, सजीवता और सूक्ष्मता व उत्कृष्ट कला के प्रमाण हैं। ये मूर्तियाँ, पत्थरों, भूरी तथा पीली चट्टानों और सेलखड़ी से काटकर बनायी जाती थीं। मूर्तियों की विभिन्न भाव-भंगिमाएँ और उनकी सूक्ष्मता इन्हें यूनानी मूर्तियों से भी अधिक उत्कृष्ट सिद्ध करती हैं। हड़प्पा से पत्थर की बनी हुई दो मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं- एक लाल पत्थर की बनी हुई मानव-मूर्ति है तथा दूसरी मूर्ति एक नर्तक की प्रतीत होती है। ये मूर्तियाँ मूर्तिकला की दृष्टि से उत्कृष्ट नमूने मानी जाती हैं। खुदाई में कांसे की बनी हुई एक नर्तकी की मूर्ति मिली है जो नृत्य के हाव-भाव को स्पष्ट करती है। डॉ. रमाशंकर त्रिपाठी का कथन है कि ‘यह मूर्ति बनावट में ऐतिहासिक काल की किसी भी मूर्ति से अधिक उत्कृष्ट है।”
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चित्रकला-
सिन्धु निवासी चित्रकला में भी निपुण थे। खुदाई में मिले अनेक बर्तनों और मुहरों पर अंकित चित्र बड़े सुन्दर हैं। इनमें सांड तथा बैलों के चित्र बड़े सजीव और सुन्दर हैं। बर्तनों पर पशु-पक्षियों,पेड़-पौधों आदि के चित्र बनाये जाते थे।
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मिट्टी के बर्तन बनाने की कला–
सिन्धु निवासी मिट्टी के सुन्दर बर्तन बनाते थे। बर्तनों पर सुन्दर चित्र बनाए जाते थे। बर्तनों पर पालिश भी की जाती थी। बर्तन चाक पर बनाए जाते थे। बर्तनों को आवां में पकाया जाता था। मिट्टी के सुन्दर खिलौने भी बनाए जाते थे।
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मुद्रा-निर्माण कला-
इस प्रदेश की मद्रा-निर्माण कला उच्चकोटि की थी। मुहरें भिन्न- भिन्न प्रकार के पत्थरों, धातुओं, हाथी दांत व मिट्टी की बनी होती थीं।
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लेखन कला-
यहाँ की खुदाई से यह स्पष्ट हो गया है कि वहाँ के लोग लिखना अवश्य जानते थे। 500 से अधिक मुहरें प्राप्त हुई हैं, लेकिन इस लिपि के बारे में कुछ निश्चित नहीं किया जा सका है और न ही इसे पढ़ा जा सका है।
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अन्य कलायें-
सिन्धु निवासी सूती तथा ऊनी वस्त्र बनाने में चतुर थे। रंगाई की कला भी वे जानते थे। ये कांसा, चाँदी, तांबी आदि की विभिन्न वस्तुयें बनाते थे। सुन्दर आभूषण विभिन्न धातुओं से बनाये जाते थे। प्राप्त अवशेष ताम्र-पत्र निर्माण, संगीत व नृत्य के प्रेम व वाद्य यन्त्रों, जैसे- बाँसुरी, ढोलक, तबला आदि का भी होना सिद्ध करते हैं।
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