इतिहास

सिन्धु घाटी सभ्यता  की नगर निर्माण एवं वास्तुकला | City building and architecture of the Indus Valley Civilization in Hindi

सिन्धु घाटी सभ्यता  की नगर निर्माण एवं वास्तुकला | City building and architecture of the Indus Valley Civilization in Hindi

सिन्धु घाटी सभ्यता  की नगर निर्माण एवं वास्तुकला

सिन्धु घाटी सभ्यता के नगर निर्माण व वास्तुकला का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-

  1. नगर निर्माण-

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों ही सिन्धु घाटी सभ्यता के विशाल नगर थे। आश्चर्य में डालने वाले इन नगरों के अवशेषों को देखकर ऐसा लगता है जैसे कि वे पूर्ण विकसित आधुनिक नगर रहे हों। सिन्धु घाटी सभ्यता में नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के अनुसार किया जाता था। नगर निर्माण की योजना बनाने वाले व्यक्ति बहुत अनुभवी एवं दूरदर्शी थे।

  1. सड़कें-

नगरों की सड़कें उत्तर से दक्षिण दिशा को तथा पूर्व से पश्चिम दिशा को एक-दूसरे को समकोण पर काटती हुई जाती थीं। इस प्रकार की सड़कों से नगर कई वर्गाकार एवं आयताकार भागों में बँट जाता था। नगर की प्रमुख सड़कें काफी चौड़ी होती थीं। मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़क 33 फीट चौड़ी थी। बड़ी-बड़ी सड़कों से मिलने वाली गलियाँ भी काफी चौड़ी होती थीं। कोई भी गली चार फुट से कम चौड़ी नहीं थी। सड़कें कच्ची होती थीं फिर भी उन पर स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाता था। सड़कों के किनारे कूड़ा इकट्ठा करने के लिए गड्ढे बने होते थे, इसलिये सड़कों पर गन्दगी नहीं फैलती थी। डॉ० मैके का कथन है कि “सड़कों का विन्यास कुछ इस प्रकार से था कि हवा स्वयं ही सड़कों को साफ करती रहे।”

  1. नालियाँ-

सड़कों के किनारे नालियाँ होती थीं जिनमें घरों की नालियाँ भी मिल जाती थीं। मकानों में स्वच्छता के प्रबन्ध के लिए छोटी-छोटी नालियाँ होती थीं। सड़कों के किनारे की नालियाँ पक्की होती थीं तथा इन नालियों को ढकने के लिए बड़ी ईंटों तथा पत्थरों का प्रयोग किया जाता था। ऊपर की मंजिल का गन्दा पानी नीचे लाने के लिए मिट्टी के पाइप काम में लिये जाते थे। मकानों की नालियों को सड़कों की नालियों से जोड़ रखा था। नालियों के निर्माण में ईंट, पत्थर एवं चूने का प्रयोग किया जाता था। नालियों के किनारे कहीं-कहीं गड्ढे बने हुए थे। अनुमान है कि नालियों का निकाला हुआ कूड़ा-करकट इन्हीं गड्ढों में जमा कर दिया जाता था।

  1. कुएँ-

सिन्धु घाटी के लोग अपने उपयोग के लिए जल कुओं से प्राप्त करते थे। इन कुओं की चौड़ाई दो से सात फीट तक होती थी। जनता के लिए सार्वजनिक कुएँ तो होते ही थे, परन्तु अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए लोग कुएँ अपने घरों में भी खुदवाते थे।

  1. वृक्ष एवं रोशनी-

सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगाये जाते थे। थोड़ी-थोड़ी दूर पर दीप स्तम्भ बने होते थे, जिससे पता चलता है कि सड़कों एवं सार्वजनिक स्थानों पर रोशनी की व्यवस्था थी। नगरों की सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता था। सडकों के किनारे कूड़ा-करकट इकट्ठा करने के लिए मिट्टी के बर्तन रखे जाते थे अथवा सड़कों के किनारे गड्ढे खोदे जाते थे। नगर के कूडे-करकट को नगर से बाहर फेंके जाने की व्यवस्था थी। नगर की स्वच्छता, वृक्ष तथा रोशनी आदि को देखकर ऐसा अनुमान लगता है कि नगर सुव्यवस्था के लिए नगरपालिका जैसी संस्था अवश्य उस समय रही होगी।

  1. विशेष इमारतें-

हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाइयों में कुछ विशेष प्रकार की इमारतों के अवशेष भी निकले हैं। हड़प्पा में सात-सात मकानों की दो पंक्तियाँ मिली हैं। इनके समीप सोलह भट्टियाँ हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये श्रमिकों के मकान होंगे। इसी प्रकार इन्हीं मकानों के उत्तर में बड़े-बड़े गोल अठारह चबूतरे हैं, जिनके उत्तर में छः-छः कमरों की दो पंक्तियों में बड़े-बड़े मकान मिले हैं। इनका प्रयोग सम्भवतः अनाज पीसने तथा अनाज इकट्ठा करने के लिए किया जाता था। मोहनजोदड़ो में एक विशाल भवन मिला है, जो 242 फीट लम्बा तथा 112 फीट चौड़ा है। व्हीलर के अनुसार यह सार्वजनिक सभा भवन था। इसी प्रकार मोहनजोदड़ो में स्नान कुंड के पास एक विशाल भवन मिला है, जो सम्भवतः किसी उच्च अधिकारी का निवास-गृह रहा होगा।

  1. विशाल स्नानागार-

मोहनजोदड़ो की खुदाई का सबसे अधिक महत्वपूर्ण खण्डहर एक विशाल स्नानागार के रूप में मिला है। इस स्नानागार के मध्य में प्रधान स्नान कुण्ड, पश्चिम तथा दक्षिण में बरामदे और उनके पीछे छोटे-छोटे कमरे बने हैं। इस स्नानागार की लम्बाई 180 फीट, चौड़ाई 108 फीट है। इसके मुख्य स्नान कुण्ड की लम्बाई 39 फीट, चौड़ाई 23 फीट, गहराई 8 फीट है। मुख्य स्नान कुण्ड में उतरने के लिए दोनों ओर सीढ़ियाँ बनी हैं। स्नानागार का फर्श पक्की ईंटों का बनाया गया है तथा सील से बचने के लिए राल का लेप किया गया है। स्नान कुण्ड से गन्दा पानी निकालने के लिए दक्षिणी भाग में एक नाली बनी है। इस जलाशय के चारों ओर एक बारादरो बनी है जिसकी चौड़ाई 15 फीट है। इसके निकट ही एक कुआं भी मिला है। सम्भवतः इस कुएँ के पानी से इस विशाल स्नानागार को भरा जाता था। जलाशय के निकट ही एक भवन मिला है जो शायद हम्माम था और यहाँ गर्म पानी से स्नान का भी प्रबन्ध था। इस स्नानागार से प्रतीत होता है कि सिन्धुवासी एक उच्च स्तर का जीवन व्यतीत करते थे।

  1. भण्डारागार-

हड़प्पा में कुछ भण्डारागार पाये गये हैं जिनका निर्माण 6-6 की पंक्तियों में किया गया था। प्रत्येक भण्डारागार लगभग 50 फीट लम्बा तथा 20 फीट चौड़ा था। सम्भवतया राज्य की ओर से इनमें अन्न का भण्डारण किया जाता होगा तथा आवश्यकतानुसार फिर उसको जनता में वितरित किया जाता होगा।

  1. भवन निर्माण-

नगर का प्रत्येक खण्ड एक निश्चित एवं व्यवस्थित योजना के अनुसार निर्मित होता था। सड़कों के दोनों किनारों पर पक्की ईंटों के मकान बने होते थे। अधिकांश मकान दो मंजिले होते थे, परन्तु दीवारों की मोटाई से पता चलता है कि दो से अधिक मंजिलों के मकान भी बनते थे। छोटे मकानों में चार-पाँच कमरे होते थे और साधारणतया 30×40 फीट के नाप के होते थे। बडे-बडे मकानों में 30 तक कमरे होते थे। उनके दरवाजे काफी चौड़े होते थे। कुछ दरवाजे तो इतने चौड़े होते थे कि उनमें होकर रथ व बैलगाड़ी भी निकल सकती थी। मकानों के कमरे में दीवारों के साथ आलमारियाँ लगी होती थीं। मकान नींव डालकर बनाये जाते थे। मकानों की नींव डालने के लिए कच्ची और टूटी- फूटी ईंटों का प्रयोग किया जाता था। धनी लोगों के मकान पक्के तथा दो मंजिले होते थे जिनमें सीढ़ियाँ, दरवाजे, खिडकियाँ, रोशनदान आदि का अच्छा प्रबन्ध होता था। मकानों में स्नानागारों के फर्श पक्की ईंटों के बने होते थे और वे शौच-गृह के समीप बनाये जाते थे। मकानों का गन्दा पानी निकालने के लिए नालियों की व्यवस्था थी। छतों के ऊपर का पानी निकालने के लिए मिट्टी या लकड़ी के परनाले बने होते थे। मकानों की खिड़कियाँ एवं दरवाजे गली में खुलते थे। वे मुख्य सड़क की ओर नहीं खुलते थे।

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Pankaja Singh

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