उद्यमिता और लघु व्यवसाय

व्यूरचनात्मक सन्धियों का अर्थ | व्यूहरचनात्मक सन्धियों के कारण | व्यूहरचनात्मक सन्धियों के प्रकार | व्यूहरचनामक सन्धियों की सीमाएं

व्यूरचनात्मक सन्धियों का अर्थ | व्यूहरचनात्मक सन्धियों के कारण | व्यूहरचनात्मक सन्धियों के प्रकार | व्यूहरचनामक सन्धियों की सीमाएं | Meaning of structural treaties in Hindi | Due to strategic alliances in Hindi | Types of strategic alliances in Hindi | limitations of strategic alliances in Hindi

व्यूरचनात्मक सन्धियों का अर्थ

(Meaning of Strategic Alliances)

व्यूहरचनात्मक सन्धि दो या दो से अधिक कम्पनियों के मध्य व्यूहरचनात्मक रूप से महत्वपूर्ण उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए समझौता होता है। यह उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बनाई जाती है जो परस्पर लाभदायक होती हैं। व्यूहरचनात्मक सन्धि, दो या दो से अधिक स्वतन्त्र कम्पनियाँ अपने लक्ष्यों को दक्ष एवं प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए करती है। व्यूहरचनात्मक सन्धि में कम्पनियाँ बिना अपनी पहचान खोए लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक होती है। साझेदारी फर्मे अपनी सन्धि से प्राप्त लाभ को आपस में बाँटती हैं एवं जिस कार्य के लिए साझेदारी की गई है उसके निष्पादन (Performance) को नियन्त्रित करती है। साझेदार फर्मे निरन्तर एक या अधिक व्यूहरचनात्मक क्षेत्रों में योगदान देती हैं, जैसे- प्रौद्योगिकी, उत्पाद, अनुसंधान इत्यादि। इस सन्धि में शामिल सभी पक्षों की व्यूहरचना जीतने की होती है। सभी साझेदार जीतना चाहते हैं। व्यूहरचनात्मक सन्धि के लिए सभी पक्षों द्वारा अपनाई जा रही व्यूहरचना को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाता है। ये व्यूहरचनात्मक साझेदारों की व्यूहरचना के समरूप होनी चाहिए। सभी साझेदारों के क्रियात्मक दायित्वों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता होती है ताकि एक अच्छी व्यूहरचनात्मक सन्धि की जा सके। एक अच्छी तरह से लिखित व्यूहरचनात्मक सन्धि इन उद्देश्यों की पूर्ति करती है। व्यूहरचनात्मक सन्धि के आवश्यक तत्व है साझेदारों में आपसी विश्वास एवं समर्पण की भावना, तभी एक अच्छी व्यूहरचनात्मक सन्धि लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बनती है। व्यूहरचनात्मक सन्धि उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए साझेदारों द्वारा बनाई गई सामान्य व्यूहरचना है जिसमें सभी साझेदार जीतने की प्रवृत्ति रखते एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आपसी सहयोग करते हैं।

व्यूहरचनात्मक सन्धियों के कारण

(Reasons for strategic Alliances) –

वैसे तो यह कहा जाता है कि व्यूहरचनात्मक सन्धि संगठनात्मक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त करने के लिए की जाती है। वाल्टर, पीटर एवं डेस ने निम्न कारणों को बताया है जिनकी वजह से सामन्य रूप में व्यूहरचनात्मक सन्धियाँ की जाती हैं-

(1) नए बाजार में प्रवेश करने के लिए (To Enter New Market)- एक कम्पनी जो सकल उत्पाद एवं सेवाओं का निर्माण करती है जब नए बाजार में प्रवेश करना चाहती है तो उस बाजार में पहले से कार्यरत कम्पनी के साथ व्यूहरचनात्मक सन्धि कर सकती है। जब कम्पनी यह महसूस करती है कि अपनी क्षमता के बल पर उस बाजार में प्रवेश करना कठिन हैं तो व्यूहरचनात्मक सन्धि की व्यूहरचना को अपनाया जाता है। यहाँ प्रवेश करने के लिए कम्पनी उस बाजार की क्षेत्रीय फर्मों के साथ साझेदारी कर लेती है। नया बाजार देश की सीमा के अन्तर्गत भी हो सकता है या विदेशी बाजार भी हो सकता है। विदेशी बाजारों तक अपने व्यवसाय का विस्तार करने के लिए भी कम्पनियाँ इस व्यूहरचना को अपनाती है।

(2) निर्माण लागत को कम करने के लिये (Reducing Manufacturing Cost) – जब दो या दो से अधिक कम्पनियाँ अपने साधनों का बेहतर तरीके से उपयोग करना चाहती हैं एवं निर्माण लागत को घटाना चाहती हैं तब आपस में साझेदारी करके व्यूहरचनात्मक सन्धि करती हैं। इससे प्रत्येक साझेदार फर्म एक दूसरी फर्म को आपसी सहयोग करती है जिससे कम्पनी की क्षमता एवं प्रभावकारिता में वृद्धि होती है और कम्पनी उत्पादन लागत को कम करने में सफल रहती है।

(3) प्रौद्योगिकी का विकास एवं विस्तार करने के लिए (Develop and Diffusing Technology)- आज तीव्र गति से प्रौद्योगिकी के अप्रचलित हो जाने के कारण एवं नई-नई निरन्तर प्रौद्योगिकी के विकास के कारण प्रत्येक कम्पनी के लिए यह सम्भव नहीं है कि निरन्तर प्रौद्योगिकी को बार-बार हटाकर नई प्रौद्योगिकी को लाया जाए। अपने उत्पाद एवं सेवाओं की गुणवत्ता में वृद्धि करने के उद्देश्य से प्रौद्योगिकी का विकास एवं विस्तार करने के लिए कम्पनियाँ व्यूहरचनात्मक सन्धियाँ करती हैं। इसमें एक कम्पनी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दूसरी साझेदार कम्पनी की प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकती है। अतः उसे अतिरिक्त कोष का निवेश नहीं करना पड़ता है एवं प्रौद्योगिकी के अप्रचलित होने के जोखिम भी सभी साझेदारों में बंट जाता है।

व्यूहरचनात्मक सन्धियों के प्रकार

(Types of Strategic Alliances) –

Yoshino एवं Rangan ने व्यूहरचनात्मक सन्धि को संगठनात्मक मेल-मिलाप एवं सन्धि साझेदारों के बीच होने वाले विरोधाभासों के आधार पर चार भागों में बाँटा है-

(1) प्रोकम्पीटिटिव सन्धियाँ (Procompetitive Alliances) – इस तरह की सन्धियाँ सामान्यता एक ही प्रकार के उद्योगों के अन्तर्गत निर्माताओं एवं आपूर्तिकर्ताओं के बीच उदग्र मूल्य- शृंखला सम्बन्ध के कारण होती है। ऐसी सन्धियों में संगठनात्मक मेल-मिलाप कम होता है एवं साझेदारों के बीच विरोध की सम्भावना भी कम होती है। ऐसी सन्धियां, फर्म को संसाधनों में निवेश किए बिना ही उदग्र एकीकरण का लाभ प्रदान करती है।

(2) नॉनकम्पीटिटिव सन्धियाँ (Non-Competitive Alliances) – इस प्रकार की सन्धियाँ अलग-अलग प्रकार के उन उद्योगों के बीच की साझेदारी होती हैं जिनके बीच प्रतिस्पर्द्धा नहीं होती है। ऐसी सन्धियाँ समान उद्योगों में कार्य करने वाली फर्मे भी कर सकती हैं जो एक-दूसरे को विरोधी नहीं मानती हैं। चूँकि इन फर्मों के कार्यक्षेत्र की दिशा अलग-अलग होती है एवं इसी असमानता की वजह से फर्म दूसरे को अपना प्रतिद्वन्द्वी नहीं मानती है इसीलिए इस प्रकार की सन्धियों में संगठनात्मक मेल-मिलाप अधिक होता है एवं साझेदारों में विरोध या विवाद कम होता है।

(3) कम्पीटिटिव सन्धियाँ (Competitive Alliances)- ऐसी सन्धियों में संगठनात्मक मेल-मिलाप अधिक होता है एवं साझेदारों में विवाद भी अधिक होता है, क्योंकि यह ऐसी साझेदारी है जो दो विरोधी फर्मों को सहयोगात्मक व्यवस्था में ले आती है। इस प्रकार की सन्धियाँ समान तरह के उद्योगों या अलग-अलग तरह के उद्योगों की फर्मों के मध्य हो सकती है। जैसे-एक भारतीय कम्पनी विदेश में स्वतन्त्र रूप से कार्य कर रही है एवं किसी विशेष उद्देश्य के लिए क्षेत्रीय विरोधी कम्पनी के साथ सन्धि कर लेती है तो इसे कम्पीटिटिव सन्धि कहते हैं।

(4) प्रीकम्पीटिटिव सन्धियाँ (Precompetitive Alliances)- जब किसी विशेष उद्देश्य के लिए दो अलग-अलग फर्मे जो प्रायः असम्बन्धित उद्योगों में कार्य करती हैं परस्पर साझेदारी करती हैं तो इसे प्रीकम्पीटिटिव सन्धि कहा जाता है। ऐसी सन्धियों में संगठनात्मक मेल- मिलाप कम होता है एवं साझेदारों में विवाद अधिक होता है।

व्यूहरचनामक सन्धियों की सीमाएं

(Limitations)-

व्यूहरचनात्मक सन्धियों की अपनी कुछ सीमाएं होती हैं, जिनकी उपस्थिति व्यूहरचनात्मक सन्धि करने वाली फर्मों के लिए हानिकारक होती है। ये सीमाएं निम्न हैं-

(1) विश्वास की कमी (Lack of Trust)- जब साझेदारों में आपसी विश्वास की कमी होती है तो व्यूहरचनात्मक सन्धि व्यर्थ हो जाती है।

(2) साझेदारों के मध्य गलतफहमी (Misunderstanding between Partners)- जब साझेदारों के बीच किसी मुद्दे पर गलतफहमी उत्पन्न हो जाती है तो सफल व्यूहरचनात्मक सन्धि का निर्माण नहीं हो पाता है।

(3) लक्ष्यों के विरोधाभास (Conflict among Goals)- साझेदारी फर्मे समान व्यूहरचनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समझौता करती हैं। यदि लक्ष्यों में ही विरोधाभास उत्पन्न हो जाए तो व्यूहरचनात्मक सन्धि अनुपयोगी हो जाती है।

(4) अपर्याप्त साझेदारी (Inadequate Partnership)- जब साझेदारी में प्रवेश करने के लिए किसी फर्म द्वारा अपर्याप्त तैयारी की जाती है तो यह साझेदारी वैध नहीं कहलाती है।

उद्यमिता और लघु व्यवसाय – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!