भारत में लघु व्यवसाय स्थापित करने की सम्भावनाएँ | सरकार द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों को सहायता एवं प्रोत्साहन | Scope of Setting up Small Business in India in Hindi | Measures adopted by the Government to Promote and Assist Small Scale and Cottage Industries in Hindi
भारत में लघु व्यवसाय स्थापित करने की सम्भावनाएँ-
(Scope of Setting up Small Business in India)
यद्यपि देश में बड़े पैमाने के उद्योगों के और लगने की बहुत अधिक सम्भावनायें हैं तथापि लघु व्यावसायिक उपक्रमों, उद्योगों की स्थापना को भी अस्वीकृत नहीं किया जा सकता है। लघु भारत के औद्योगिक विकास में इन इकाइयों की महत्वपूर्ण भूमिका है। लघु उपक्रम की स्थापना में निम्न घटकों का महत्वपूर्ण योगदान है-
(i) सीमित साधन (Limited Resources) – सामान्यः एक व्यक्ति, फर्म अथवा संस्था ऐसे व्यवसाय/उद्योग को स्थापित करने का प्रयास करता है। जिसमें सीमित साधन जैसे- कच्चा माल, उत्पादन तकनीक एवं कानूनी कार्यवाहियाँ कम से कम हो।
(ii) सीमित माँग (Limited Resources)- कुछ वस्तुओं की माँग मौसमी एवं कुछ की माँग स्थानीय होती हैं ऐसी स्थिति में बड़े पैमाने पर उत्पादन करना न तो सम्भव है और न वांछनीय। कहीं-कहीं तो उत्पादन की प्रकृति ही छोटे पैमाने पर उत्पादन करने के लिये ही उपयुक्त रहती है।
(iii) व्यक्तिगत ध्यान (Personal Touch)- छोटे व्यापारिक उपक्रम प्रायः उन स्थानों पर ज्यादा सफल माने जाते हैं जहाँ व्यक्तिगत ध्यान देने की आवश्यकता रहती है। आन्तरिक सजावट (Interior Decorator), ब्युटी पार्लर (Beauty Parlour) बाल काटने का सैलून (Hair Cutting Saloon) बुटीक (Boutiques) इत्यादि इसके उदाहरण हैं जहाँ कार्य करने के लिये व्यक्तिगत ध्यान देने की आवश्यकता है।
(iv) लोचशीलता (Eligibility)- कुछ उपक्रम ऐसे हैं, जहाँ माँग बदलती रहती है। जैसे- आभूषणों का उत्पादन (Manufacturing of Jewellery), सिले-सिलाये वस्त्रों का उत्पादन (Production of Readymade Garments) इत्यादि। ऐसे स्थानों पर छोटे पैमाने पर उत्पादन करना उचित रहता है।
(v) अधिक रोजगार के अवसर (More Employment Opportunities) – लघु पैमाने के उपक्रमों में अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त होने के अवसर विद्यमान होते हैं क्योंकि ये उपक्रम श्रम प्रधान होते हैं। इस समय देश में लगभग 340 लाख लोग इन उद्योगों या उपक्रमों में काम कर रहे हैं।
(vi) प्रत्यक्ष प्रेरणा (Direct Motivation)- लघु पैमाने के उपक्रमों में कार्य करने वालों को प्रत्यक्ष प्रेरणा एवं चातुर्य दिखाने का अवसर मिलता है। इस प्रकार के उपक्रमों का लाभ प्रत्यक्ष रूप से इनके मालिकों को ही प्राप्त होता है। यही कारण है कि वे इनको चलाने में अपना पूरा चातुर्य लगा देते हैं।
(vii) बड़े पैमाने के उपक्रम की हानियों से बचने के लिये (To Escape from Inherent Disadvantages of Large Business Enterprises) – बड़े पैमाने के उपक्रमों की हानियों से बचने के लिये भी छोटे-पैमाने के उपक्रमों की स्थापना पर अधिक जोर दिया जाता है।
सरकार द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों को सहायता एवं प्रोत्साहन
(Measures adopted by the Government to Promote and Assist Small Scale and Cottage Industries) –
केन्द्र सरकार की यह नीति रही है कि वह लघु एवं कुटीर उद्यमियों को प्रोत्साहन दें। इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा प्रदत्त सहायता एवं प्रोत्साहन इस प्रकार है-
(i) सरकार ने 800 मदों को Small Scale Industries ie, SSIs के माध्यम से उत्पादन हेतु निश्चित कर लिया है।
(ii) सरकार ने व्यापारिक एवं औद्योगिक बैंकों से इन इकाइयों को ऋण देने के तरीकों को आसान कर दिया है।
(iii) सरकार ने इन इकाइयों में धन विनियोजित करने के लिये बड़े उद्योगों को 24% तक की छूट दे रखी है।
(iv) सरकार ने 1 करोड़ तक की एक्साइज ड्यूटी SSI इकाइयों से हटा दी है।
(v) राज्य वित्त निगम (State Finance Corporation), लघु उद्योग निगम (Small Scale Industry Corporation), लघु उद्योग विकास संगठन (Small Scale Industry Development Organisation) इत्यादि की स्थापना की है।
(vi) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India or SIDBI) जैसे संस्थान छोटे उद्यमियों को व्यवसाय में सहायता करने के लिये स्थापित किये हैं।
(vii) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक SIDBI ऐसी संस्थाओं को जो आपसी सहयोग से कार्य करते हैं, अथवा सोसाइटी (Society) या ट्रस्ट (Trust) बनाकर काम करते हैं। 10 लाख रुपये तक ऋण प्रदान करते हैं।
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