उद्यमिता और लघु व्यवसाय

लघु उद्योगों के विकास के लिये सरकार द्वारा किये गये प्रयत्न | Measures Taken by the Government for the Development of Small Industries in Hindi

लघु उद्योगों के विकास के लिये सरकार द्वारा किये गये प्रयत्न | Measures Taken by the Government for the Development of Small Industries in Hindi

लघु उद्योगों के विकास के लिये सरकार द्वारा किये गये प्रयत्न

(Measures Taken by the Government for the Development of Small Industries) :

लघु उद्योगों के विकास के लिये किये गये सरकारी प्रयत्नों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) स्वतन्त्रता से पूर्व ( Before Independence )- अंग्रेजों के भारत में आने के पूर्व लघु उद्योगों का भारी महत्व था। इनको भारतीय राजाओं व नवाबों का संरक्षण प्राप्त था। उस समय भारत में लघु उद्योग इतनी उन्नत अवस्था में थे कि भारत को विश्व का औद्योगिक कारखाना कहा जाता था, किन्तु भारत में अंग्रेजों के आवागमन के पश्चात ब्रिटिश सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण इन उद्योगों का पतन होना प्रारम्भ हो गया और कुछ समय पश्चात् ही ये जीर्ण अवस्था में पहुँच गये। बाद में स्वर्गीय महात्मा गाँधी के स्वादेशी आन्दोलन के कारण लघु उद्योगों का फिर से विकास होने लगा। सन् 1934 में ग्रामीण उद्योग संस्थान की स्थापना की गयी। सन् 1935 में प्रान्तों में उद्योग विभागों की स्थापना की गयी। सन् 1937 में प्रान्तों में कांग्रेस मन्त्रिमण्डल बनने से लघु उद्योगों को केवल कुछ राहत ही नहीं बल्कि उन्हें अपने विकास का भी सुअवसर मिला, लेकिन कुछ समय बाद ही मन्त्रिमण्डल के भंग हो जाने व द्वितीय महायुद्ध प्रारम्भ होने से भारत में लघु उद्योगों का विकास अवरुद्ध हो गया।

(2) स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् (After Independence )- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में राष्ट्रीय सरकार बनने पर लघु उद्योगों को सर्वोच्च प्राथमिकता दिये जाने की घोषणा की गयी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत सरकार व राज्य सरकारों द्वारा लघु उद्योगों के विकास के लिये उठाये गये कदमों का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-

(1) निगमों एवं बोर्डों की स्थापना

(Establishment of corporations and Boards)

(i) केन्द्रीय सरकार द्वारा निगमों एवं बोर्डों की स्थापना- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् केन्द्रीय सरकार ने लघु उद्योगों के विकास के लिये विभिन्न निगमों एवं बोडों की स्थापना की। उनमें से निम्न प्रमुख हैं-

(1) राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम, 1955.

(2) लघु उद्योग विकास संगठन, 1954

(3) लघु उद्योग बोर्ड, 1954

(4) अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड, 1952

(5) अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, 1953

(6) भारतीय लघु उद्योग परिषद्, 1979-

(7) जिला उद्योग केन्द्र, 1977

(8) भारतीय साख गारण्टी निगम, 1971

(9) राष्ट्रीय साहस एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान, 1983

(10) भारतीय दस्तकारी विकास निगम, 1958

(11) नारियल जटा वोर्ड, 1955

(12) अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड, 1952

(ii) राज्य स्तरीय संगठनों की स्थापना- केन्द्रीय सरकार की भाँति राज्य सरकारों ने भी राज्य स्तर पर लघु उद्योगों के विकास के लिये विभिन्न संगठनों की स्थापना की है। उदाहरण के लिये मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य में लघु उद्योगों के विकास के लिये मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम, मध्य प्रदेश उद्योग विकास एवं विनियोग निगम आदि की स्थापना की है। ये संगठन लघु उद्योगों को कच्चा माल, तकनीकी ज्ञान, प्रशिक्षण एवं विपणन आदि में सहायता प्रदान करते हैं।

(II) वित्तीय सहायता

(Financial Assistance)

लघु उद्योगों को पूँजी व अन्य वित्तीय सहायता प्रदान करने में केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आजकल इन्हें निम्न साधनों के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है-

(i) रिजर्व बैंक- रिजर्व बैंक ने 1 जुलाई, 1960 से लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता देने हेतु गारण्टी योजना चालू की है।

(ii) स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया- यह कच्चे एवं निर्मित माल की जमानत पर अल्पकालीन ऋण प्रदान करता है तथा विकास एवं सुधार हेतु मध्यकालीन ऋण प्रदान करता है।

(iii) व्यापारिक एवं सहकारी बैंक-व्यापारिक तथा सहकारी बैंक भी लघु उद्योगों को ऋण प्रदान करते हैं।

(iv) राज्य वित्त निगम- राज्य वित्त निगम अपने-अपने राज्यों में लघु उद्योगों को अवधि ऋण, कम ब्याज व आसान शर्तों पर ऋण अर्थात् दीर्घकालीन एवं मध्यकालीन दोनों प्रकार के ऋण प्रदान करते हैं।

(v) राज्य सरकारें- राज्य सरकारें भी सरकारी सहायता अधिनियम (State Aid to Industries Act) के अधीन अपने-अपने राज्यों में लघु उद्योगों को ऋण प्रदान करती हैं।

(vi) भारतीय औद्योगिक विकास बैंक– यह लघु उद्योगों को ऋण स्वीकृत करता है।

(vii) राष्ट्रीय उद्योग निगम- यह लघु उद्योग को किस्तों पर मशीनें उपलब्ध कराता है।

(viii) भारतीय साख गारण्टी योजना- यह लघु उद्योगों को बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिये जाने वाले ऋणों की गारण्टी देता है।

(ix) लघु उद्योग विकास कोष की स्थापना- देश में लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता देने के लिये ‘लघु उद्योग विकास’ की स्थापना की गई। लघु उद्योगों को विकास, विस्तार तथा उनके आधुनिकीकरण के लिये वित्तीय सहायता देना इस कोष की जिम्मेदारी होगी। इस कोष की स्थापना भारतीय औद्योगिक विकास बैंक के सहयोग से की गई है।

(x) राष्ट्रीय समता कोष- भारत सरकार ने लघु उद्योगों की ओर विशेष ध्यान देने हेतु राष्ट्रीय समता कोष की स्थापना की जिसमें 5 करोड़ रु० तो भारत सरकार ने दिये हैं तथा इतने ही रुपये भारतीय औद्योगिक विकास बैंक ने दिये हैं। यह नवीन लघु उद्योगों की स्थापना तथा जीर्ण एवं बीमार लघु उद्योगों की पुनर्स्थापना के लिये सहायता प्रदान करता है।

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Pankaja Singh

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