राजनीतिक चिन्तन में मैकियावेली के योगदान | राज्यदर्शन के इतिहास में मैकियावेली के महत्त्व का मूल्यांकन | राजनीतिक चिन्तन में मैकियावेली का स्थान तथा प्रभाव
राजनीतिक चिन्तन में मैकियावेली के योगदान
(राजनीतिक चिन्तन में मैकियावेली की देन)
व्यावहारिक राजनीतिक और सिद्धान्त के क्षेत्र में मैकियावेली के अनुदान अधिक महत्वपूर्ण हैं। मैकियावेली ने जिन सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया उनका समकालीन राजनीतिज्ञों ने बड़ा विरोध किया।
(1) मानव-स्वभाव सम्बन्धी विधार- मैकियावेली का मानव-स्वभाव सम्बन्धी सिद्धान्त पूर्णतः ठीक है और जो कुछ ठीक है वह अपने स्थान पर आधुनिक भासित होता है। मैकियावेली ने राज्य की उत्पत्ति के सिद्धान्त का विवेचन करते हुए कहा कि मनुष्य की प्राकृतिक अवस्था दुःख और कष्टपूर्ण थी।
(2) प्रयोगात्मक पञ्चति- व्यावहारिक राजनीति में पहले सैद्धान्तिकता पर अधिक बल दिया जाता था। मैकियावेली ने सबसे पहले प्रयोगात्मक पद्धति को अपनाया और उसी के आधार पर अपने निष्कर्ष निकाले।
(3) व्यक्तिवाद की धारणा- मैकियावेली से पूर्व विचारकों ने व्यक्ति के अस्तित्व को स्पष्ट नहीं किया। तब राज्य ही सब कुछ था । मैकियावेली में जहाँ एक ओर राज्य को सर्वोच्च बतलाया वहाँ उसने मनुष्य की जीवन की सुरक्षा-सम्पत्ति रखने की सुविधा आदि के भी अधिकार प्रदान किये। कालान्तर में चलकर इन्हीं आधारभूत तत्त्वों को लेकर व्यक्तिवादी विचारकों ने व्यक्ति के अधिकारों का समर्थन किया।
(4) राज्य की उत्पत्ति का लौकिक आधार- राज्य की उत्पत्ति को पहले दैवी माना जाता था, परन्तु मैकियावेली ने बताया कि राज्य विशुद्ध मानवीय कृत्य (Human Act) का परिणाम है। कालान्तर में हॉब्स, रूसो आदि ने भी इसी सिद्धान्त का परोक्ष में समर्थन किया। मैकियावेली ने राज्य को लौकिक, संप्रभु, राष्ट्रीय, स्वतन्त्र तथा ऐकिक बताया जो कि उसकी महत्वपूर्ण देन है।
(5) विधि की कल्पना- विधि के निमित्त मैकियावेली ने बताया कि नागरिक विधियाँ (Civil Laws) ही सर्वोच्च होती हैं। हॉब्स ने भी नागरिक विधियों को ही सर्वोच्च स्थान दिया। उसने दैवी कानून को कोई महत्त्व नहीं दिया।
(6) नैतिकता का सिद्धान्त- मैकियावेली ने राजनीति से धर्म और नैतिकता को अलग करके, व्यक्ति और समाज को नैतिकता से दूर कर दिया था और इस प्रकार एक लौकिक राजनीति की सृष्टि की।
(7) प्रभुसत्ता की धारणा- मैकियावेली ने आधुनिक सिद्धान्तों को मध्ययुगीय राजनीतिक प्रचलित धारा से बिल्कुल अलग कर दिया, क्योंकि मध्ययुग में राज्य को धर्मसत्ता के अधीन बतलाया जाता था। उसने उसका अन्त कर दिया और राज्य को स्वतन्त्र एवं सर्वोच्च सत्ता का रूप प्रदान किया।
(8) राष्ट्र राज्य की कल्पना- मैकियावेली की सबसे प्रमुख देन राष्ट्रीय राज्य की धारणा है। वह आधुनिक राष्ट्रवाद का जन्मदाता है।
वह राज्य को चर्च के आधीन नहीं मानता। इसके विपरीत वह राज्य को चर्च से पूर्णतः स्वतन्त्र करता है। यह भी उसकी महत्त्वपूर्ण देन है।
मैकियावेली का स्थान तथा प्रभाव-
मैकियावेली की उसके अनैतिक सिद्धान्तों के कारण बडी कटु आलोचना होती रही है। उसे धूर्तता और शठता का प्रतीक माना जाता रहा है। मैकाले ने लिखा है कि इतिहास में मैकियावेली से अधिक बदनाम कोई व्यक्ति नहीं है; उसका वर्णन शैतान के रूप में किया जाता है। उसे महत्त्वाकांक्षा, प्रतिशोध, धूर्तता और धोखाधड़ी का आविष्कारक और प्रचारक समझा जाता है। इसके विपरीत मैक्सी ने लिखा है कि वह सच्चा उत्साही, देशभक्त था तथा आधुनिका राष्ट्रीयता का अग्रदूत था। अतः सत्य यह है कि मैकियावेली अपने दोषों में भी महान् दृष्टिगत होता है।
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