राजनीति विज्ञान

सुपरिवर्तनशील एवं दुष्परिवर्तनशील संविधान में अन्तर | सुपरिवर्तनशील संविधान | दुष्परिवर्तनशील संविधान | सुपरिवर्तनशील संविधान के गुण | सुपरिवर्तनशील संविधान के दोष | दुष्परिवर्तनशील संविधान के गुण | दुष्परिवर्तनशील संविधान के दोष

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सुपरिवर्तनशील एवं दुष्परिवर्तनशील संविधान में अन्तर

  1. सुपरिवर्तनशील संविधान

(Flexible Constitution)

सुपरिवर्तनशील संविधान वह संविधान है, जिसे सुगमतापूर्वक संशोधित किया जा सके, अर्थात् सुपरिवर्तनशील संविधान में सांविधानिक विधि और साधारण विधि में कोई मौलिक अन्तर नहीं रखा जाता। ब्रिटेन का संविधान इसका उदाहरण है।

सुपरिवर्तनशील संविधान के गुण (Merits of the Flexible Constitution)

(i) इस संविधान का सबसे बड़ा गुण इसकी परिवर्तनशीलता है, क्योंकि इसे किसी भी समय आवश्यकतानुसार बदला जा सकता है।

(ii) चूँकि सुपरिवर्तनशील संविधान में आसानी से परिवर्तन हो सकता है, इसलिए इसमें क्रान्ति एवं विद्रोह का भय नहीं रहता।

(iii) राष्ट्रीय संकट के दिनों में सुपरिवर्तनशील संविधान को अधिक उपयोगी समझा जाता है। इस सम्बन्ध में लॉर्ड ब्राइस ने ठीक ही कहा है, “सुपरिवर्तनशील संविधान ढाँचे का विनाश किए बिना इच्छानुसार झुकाया या बढ़ाया जा सकता है और जब संकट टल जाता है, तब वह अपनी पूर्व-अवस्था को प्राप्त कर लेता है, जिस प्रकार किसी पेड़ के नीचे से गाड़ी ले जाने की सुविधा के लिए उसकी टहनियों को खींचकर एक ओर कर दिया जाता है।”

(iv) राष्ट्रीय प्रगति के लिए यह संविधान उपयोगी होता है।

(v) इससे राष्ट्रीय एकता बनी रहती है।

दोष (Demerits)-

उपर्युक्त गुणों के साथ सुपरिवर्तनशील संविधान में निम्नलिखित दोष भी हैं:-

(i) स्थिरता एवं स्थायित्व का अभाव- चूँकि सुपरिवर्तनशील संविधान सदैव बदलते रहते हैं, इसलिए ऐसे संविधानों में स्थिरता एवं स्थायित्व का अभाव रहता है।

(ii) क्षणिक आवेश का शिकार- अपनी सुपरिवर्तनशीलता के कारण यह संविधान क्षणिक आवेश का शिकार हो जाता है। इस सम्बन्ध में डॉ. हरमन फाइनर ने ठीक ही कहा है कि “सुपरिवर्तनशील संविधान राजनीतिक दलों और प्रभावशाली राजनीतिक नेताओं के हाथ का खिलौना बन जाता है।”

(iii) बिना आवश्यकता का परिवर्तन- परिवर्तन की सुगमता के कारण संविधान में बिना आवश्कता के भी परिवर्तन होता रहता है। संविधान के अपरिवर्तनशील अंश को भी संशोधित कर दिया जाता है।

(iv) विधानमण्डल के अधिकार में वृद्धि- इस संविधान में शासन-सम्बन्धी नियम अस्थिर होने के कारण विधानमण्डल के अधिकार में वृद्धि होने लगती है। विधानमण्डल की निरंकुशता और सरकारी कर्मचारियों की स्वेच्छाचारिता बढ़ने लगती है।

(v) दलबन्दी को प्रोत्साहन-संविधान में हमेशा परिवर्तन होते रहने से शासन व्यवस्था में भी सदा परिवर्तन होता रहता है। इससे. दलबन्दी प्रोत्साहित होती है और समस्त देश का वातावरण अशान्त हो उठता है।

(vi) अविकसित देशों के प्रतिकूल- सुपरिवर्तनशील संविधान संघात्मक राज्यों तथा अविकसित देशों के प्रतिकूल होता है; क्योंकि पिछड़े हुए देशों के लोगों में जनतांत्रिक भावना का अभाव रहता है।

  1. दुष्परिवर्तनशील संविधान

(Rigid Constitution)

जो संविधान सरलता से संशोधित नहीं होता और जिसके संशोधन में विशेष प्रकार की पद्धतियों का सहारा लेना पड़ता है, उसको दुष्परिवर्तनशील संविधान कहते हैं। इसके संशोधन में जटिल प्रक्रिया अपनायी जाती है। सेट (Sait) ने कहा है, “दुष्परिवर्तनशील संविधान को साधारण कानूनों से ऊँचा स्थान प्राप्त रहता है और उसमें परिवर्तन लाने में कठिनाई होती है।” स्ट्राँग के अनुसार, “वह संविधान जो बिना टूटे संशोधित नहीं होता, दुष्परिवर्तनशील संविधान है।” डायसी के विचार में, “दुष्परिवर्तनशील संविधान वह संविधान है, जिसमें सांविधानिक कानून साधारण कानून की तरह बदले नहीं जा सकते।”

(iii) लिखित।

(iv) पवित्रता।

गुण (Merits)-

दुष्परिवर्तनशील संविधान को आसानी से परिवर्तित नहीं किया जा सकता। ऐसे संविधानों के निम्नलिखित गुण हैं:-

(i) स्थायित्व (Stability)- इस संविधान में स्थायित्व एवं स्थिरता का गुण पाया जाता है। यह संविधान राजनीतिज्ञों के हाथ का खिलौना नहीं बन सकता। समस्त देश की जनता के चाहने पर ही इसमें संशोधन हो सकता है।

(ii) स्पष्ट और सुनिश्चित (Precise and definite)- दुष्परिवर्तनशील संविधान स्पष्ट और सुनिश्चित होता है। गहन विचार-विमर्श के बाद सोच-समझ कर इसका निर्माण किया जाता है। ऐसे संविधानों में शंकाओं और सन्देहों का कोई स्थान नहीं होता।

(iii) लिखित (Written)-दुष्परिवर्तनशील संविधान, चूँकि, लिखित होता है, इसलिए इसमें नागरिकों की स्वतंत्रता तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा होती है।

(iv) पवित्रता (Purity)- यह संविधान अधिक पवित्र इसलिए होता है कि इसके अन्तर्गत जनता के सर्वोच्च अधिकारी को प्रतीक माना जाता है। यह संविधान न्यायालय की देखरेख में काम करता है।

(v) संघात्मक राज्यों के अनुकूल (Favourable to the Federal States)- यह संविधान संघात्मक राज्यों के लिए उपयुक्त समझा जाता है; क्योंकि यह लिखित होता है और संघीय शासन के लिए लिखित एवं कठोर संविधान का होना आवश्यक है।

(vi) क्षणिक आवेशों पर रोक (Brake on transitory sentiments)- इस संविधान में संशोधन की प्रक्रिया जटिल होती है। इसलिए यह संविधान राजनीतिज्ञों और सरकार के क्षणिक आवेश का शिकार नहीं होता । यह इस संविधान का बहुत बड़ा लाभ है।

दोष (Demerits)-

दुष्परिवर्तनशील संविधान के दोष निम्नलिखित हैं-

(i) कठोरता (Rigidity)- इस संविधान का बड़ा दोष इसकी कठोरता है, जो संशोधन-प्रक्रिया में बाधक होता है। चूंकि मानव- जीवन सदैव प्रगतिशील होता है, इसलिए वह परिवर्तन चाहता है। कठोरता के कारण मानव-जीवन की प्रगति नहीं हो पाती।

(ii) सभी समयों के लिए उपयुक्त नहीं (Not favorable for all times)- दुष्परिवर्तनशील संविधान का निर्माण तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में होता है, इसलिए यह संविधान सभी समयों और परिस्थितियों में उपयुक्त नहीं हो सकता।

(iii) क्रान्ति एवं विद्रोह की सम्भावना (Possibility of revolt and revolution)- चूँकि दुष्परिवर्तनशील संविधान में आवश्यकतानुसार संशोधन नहीं लाया जा सकता, इसलिए क्रान्ति एवं विद्रोह की सम्भावना बनी रहती है। मेकॉले का कहना है कि विभिन्न क्रांतियों का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि जब राष्ट्र प्रगति के पथ पर रहता है, तब संविधान स्थिर रहता है।

(iv) राष्ट्रीय संकट बढ़ाने में सहायक (Congenial to the National crisis)-  जब राष्ट्र पर संकट आते हैं तब संविधान में संशोधन की आवश्यकता पड़ती है। बाहरी दुश्मनों का सामना करने के लिए संविधान को परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब संविधान दुष्परिवर्तनशील न हो। इसलिए, अप्रत्यक्ष रूप से दुष्परिवर्तनशील संविधान राष्ट्रीय संकट को और भी अधिक बढ़ा देता है।

(v) जटिलता (Complexity)- चूँकि यह संविधान पेंचीदा और जटिल होता है, इसलिए देश की जनता को शासन-व्यवस्था के स्वरूप तथा अपने अधिकारों की जानकारी नहीं हो पाती। अपनी जटिलता के कारण ऐसे संविधान आम नागरिकों की समझ से बाहर हो जाते हैं।

(vi) जनता की माँग के प्रतिकूल (Opposite to public demands)- दुष्परिवर्तनशील संविधान जनता की माँग को ध्यान में नहीं रखता। यदि कभी जनता की माँग के अनुसार संशोधन भी लाया जाता है, तो उसमें काफी देर हो जाती है और तब तक जनता की माँग का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। अमेरिकी संविधान में इतनी जटिलता है कि अनेक संशोधनों में वहाँ वर्षों लग गये हैं।

सुपरिवर्तनशील एवं दुष्परिवर्तनशील संविधान में अन्तर

(Distinctions between Flexible and Rigid Constitutions)

निम्नलिखित तालिका से इन संविधानों में अन्तर स्पष्ट किया जा सकता है-

सुपरिवर्तनशील संविधान

(i) संविधान अलिखित होता है।

(ii) सुपरिवर्तनशील संविधान में विशिष्ट कानून और सामान्य कानून में अन्तर नहीं किया जाता है।

(iii) सुपरिवर्तनशील संविधान के अन्तर्गत संविधान में संशोधन की प्रक्रिया और साधारण कानून बनाने की प्रक्रिया अलग-अलग नहीं होती।

दुष्परिवर्तनशील संविधान

(i) दुष्परिवर्तनशील संविधान लिखित होता है।

(ii) दुष्परिवर्तनशील संविधान में विशिष्ट कानून और सामान्य कानून में अन्तर किया जाता है।

(iii) दुष्परिवर्तनशील संविधान में संशोधन की प्रक्रिया और साधारण कानून बनाने की प्रक्रिया भिन्न होती है।

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Pankaja Singh

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