राजनीति विज्ञान

लिखित और अलिखित संविधानों में अन्तर | लिखित संविधान के गुण | लिखित संविधान के दोष | अलिखित संविधान | अलिखित संविधान के गुण | अलिखित संविधान के दोष

लिखित और अलिखित संविधानों में अन्तर | लिखित संविधान के गुण | लिखित संविधान के दोष | अलिखित संविधान | अलिखित संविधान के गुण | अलिखित संविधान के दोष

लिखित और अलिखित संविधानों में अन्तर

  1. लिखित संविधान

(Written Constitution)

जिस संविधान के सिद्धान्त, स्वरूप और नियम स्पष्ट रूप से एक स्थान पर लिपिबद्ध रहते हैं, उसे हम लिखित संविधान कहते है। लिखित संविधान की परिभाषा देते हुए गार्नर ने बताया है-“लिखित संविधान उसे कहते हैं जिसके आधारभूत उपबन्ध एक या अनेक लेखपत्रों में लिखे होते हैं।” इस प्रकार लिखित संविधान के अन्तर्गत राज्य के स्वरूप, संगठन, नागरिकों के अधिकार तथा कर्त्तव्य, राज्य तथा नागरिकों के बीच सम्बन्ध इत्यादि विषयों का स्पष्ट रूप से उल्लेख कर दिया जाता है। ऐसे संविधान का निर्माण किसी निश्चित समय में काफी सोच- समझकर एक संविधान-सभा द्वारा किया जाता है। भारत, अमेरिका, सोवियत रूस, फ्रांस इत्यादि देशों के संविधान इसके उदाहरण हैं। लिखित संविधान का विकास न होकर निर्माण होता है, जबकि अलिखित संविधान का विकास होता है।

लिखित संविधान के गुण (Merits of the written Constitution)

लिखित संविधान में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं:-

(i) संघात्मक सरकार के उपयुक्त (Useful for Federal Government)- लिखित संविधान संघात्मक शासन-व्यवस्था के लिए उपयुक्त है। क्योंकि यह लिपिबद्ध होने के कारण स्पष्ट, सुनिश्चित और दृढ़ होता है। इसके अन्तर्गत शासन के विभिन्न अंगों तथा केन्द्र एवं राज्य सरकार के सम्बन्ध का स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाता है। इसलिए यह संघात्मक व्यवस्था के लिए उपयोगी है; क्योंकि संघात्मक सरकार के लिए केन्द्र एवं इकाइयों में स्पष्ट विभाजन रहना आवश्यक है।

(ii) शासन में सुगमता (Easy Administration)- लिखित संविधान के अन्तर्गत ही शासन में सुगमता आ सकती है; क्योंकि इसमें शासन संगठन तथा अधिकारों और कर्तव्यो की स्पष्ट व्याख्या होती है।

(iii) स्थायित्व (Stability)-लिखित संविधान स्थायी इसलिए होता है कि इसका निर्माण काफी सोच-समझकर विवेक के आधार पर किया जाता है।

(iv) पवित्र अभिलेख (Sacred document)- लिखित संविधान में जनता का पूर्ण विश्वास रहता है। इसमें जनता के अधिकारों, कर्तव्यों तथा दायित्वों का स्पष्ट रूप से वर्णन रहता है, इसलिए इसे पवित्र अभिलेख माना जाता है।

(v) दृढ़ और निश्चित शासन (Stable and definite Government)- लिखित संविधान देश के लिए एक दृढ़ और निश्चित शासन को जन्म देता है।

(vi) नागरिक अधिकारों की रक्षा (Custodian of civil-rights)- लिखित संविधान के अन्तर्गत नागरिकों के अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या कर दी जाती है। उन अधिकारों को कोई भी छीन नहीं सकता। नागरिक अधिकारों को व्यवस्थापिका और न्यायपालिका ले नहीं सकती। इसलिए, देश के नागरिक लिखित संविधान से काफी सन्तुष्ट रहते हैं।

(vii) निरंकुशता की समाप्ति (End of Dictatorship)-लिखित संविधान में सरकार का कोई भी अंग निरंकुश नहीं हो सकता; क्योंकि सरकार के सभी अंगों पर संविधान का अंकुश रहता है।

(viii) दलबन्दी से दूर (Far from Partisanship)- लिखित संविधान दलबन्दी से इसलिए दूर रहता है, क्योंकि इस पर जनता तथा राजनीतिक दलों की उत्तेजनाओं, भावावेशों और भावुकताओं का प्रभाव कम पड़ता है।

(ix) पिछड़े देशों के लिए उपयुक्त (Useful for backward Countries)- लिखित संविधान पिछड़े देशों के लिए उपयुक्त इसलिए होता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत विकासशील देश अपनी विकास सम्बन्धी सम्भावनाओं को राज्य के नीति-निदेशक तत्वों के अन्तर्गत लिपिबद्ध कर देता है।

लिखित संविधान के दोष (Demerits of the Written Constitution)-

उपर्युक्त गुणों के बावजूद लिखित संविधान में निम्नलिखित दोष भी पाये जाते हैं-

(i) संशोधन के लिए विशिष्ट प्रक्रिया (Specific. procedure for amendment)- इस संविधान का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें परिवर्तन लाने के लिए विशिष्ट प्रक्रियाओं का सहारा लेना पड़ता है। इन विशिष्ट प्रक्रियाओं को अपनाने में काफी कठिनाई और असुविधा होती है।

(ii) असामयिक (Inopportune)- लिखित संविधान का निर्माण उसी समय की परिस्थितियों और विचारों के अनुकूल होता है, जिस समय इसका निर्माण किया जाता है। अतः आनेवाली परिस्थितियों के लिए यह असामयिक हो जाता है और समयानुसार इसमें परिवर्तन लाना जटिल हो जाता है।

(iii) क्रान्ति और विद्रोह की सम्भावना (Possibility of revolt and revolution)- चूंकि यह संविधान असामयिक होता है, अतः इसमें नमनीयता का अभाव मिलता है। बदलती हुई परिस्थितियों में यह आसानी से बदला नहीं जा सकता, इसलिए क्रांति और विद्रोह की सम्भावना बनी रहती है।

(iv) राष्ट्रीय विकास के प्रतिकूल (Unfavourable National Development)-लिखित संविधान कभी-कभी राज्य के विकास में रुकावट भी पैदा करता है। इसके कारण राज्य की उन्नति एवं समृद्धि के लिए आवश्यक परिवर्तन नहीं लाए जा सकते, इसलिए यह राष्ट्रीय विकास के प्रतिकूल पड़ता है। गार्नर ने भी कहा है, कि “यह राजनीतिक जीवन और राष्ट्र के प्रगति-सम्बन्धी विचारों को अनिश्चित काल के लिए एक लेखपत्र में दबाए रखने का प्रयत्न करता है।“

(v) संकटकाल के लिए अनुपयुक्त (Unsuitable for Emergency)-  लिखित संविधान संकटकाल के लिए अनुपयुक्त है; क्योंकि इसमें शीघ्र संशोधन नहीं किया जा सकता और इस प्रकार संकटकाल का मुकाबला करने में कठिनाई होती है।

(vi) वाद-विवाद का विषय (Debatable)- लिखित संविधान राजनीतिशास्त्रियों, विधिवेत्ताओं तथा वकीलों के लिए वाद-विवाद का विषय हो जाता है। कानून के किसी एक पहलू को लेकर काफी विवाद उठ जाते हैं, जिनसे देश का राजनीतिक वातावरण अशान्त होता रहता है।

(vii) न्यायाधीशों का संविधान (Judge’s Constitution)- चूँकि लिखित संविधान जटिल होता है, इसलिए इसकी व्याख्या न्यायाधीश ही करते हैं। संविधान वही हो जाता है, जो न्यायाधीश चाहते हैं। अमेरिकी संविधान के सम्बन्ध में अमेरिका के भूतपूर्व न्यायाधीश हगेस ने कहा है, “हम लोग संविधान के अधीन हैं, परन्तु संविधान वही है जो न्यायाधीश कहते हैं। इसलिए, भारतीय संविधान को भी ‘वकीलों का स्वर्ग’ (Lawyer’s paradise) कहा जाता है।

  1. अलिखित संविधान

(Unwritten Constitution)

जो संविधान मुख्यतः जनश्रुतियों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं और अभिसमयों पर आश्रित रहता है, उसे हम अलिखित संविधान कहते है। लिखित संविधान के सदृश इसका निर्माण किसी निश्चित सभा द्वारा एक विशेष परिस्थिति में नहीं होता। अलिखित संविधान विकसित होता है। इसके अन्तर्गत सरकार के अंगों के संगठनों, अधिकारों, कार्यक्रमों, नागरिक अधिकारों इत्यादि को लिखित रूप नहीं दिया जाता। प्रो० गार्नर ने कहा है कि, “अलिखित संविधान वह है, जिसकी अधिकांश बातें कभी किसी पत्र या लेखपत्रों के संग्रह में लिखी हुई नहीं होतीं।” उदाहरण के लिए, हम ब्रिटेन के संविधान को ले सकते हैं, जो रीति-रिवाजों, परम्पराओं और न्यायिक नियंत्रणों पर आश्रित है।

अलिखित संविधान के गुण (Merits of Unwritten Constitution)- 

अलिखित संविधान में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं–

(i) समयानुकूल (Opportune)- अलिखित, संविधान समयानुसार बदलता रहता है। इसमें क्रांति और राजनीतिक उथल-पुथल की सम्भावना नहीं रहती। यह जनमत की माँग के अनुकूल अपने को परिवर्तित करता रहता है, इसलिए यह लोकभावना को सन्तुष्ट करता है।

(ii) नमनीयता (Flexibility)-इस संविधान का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसमें नमनीयता पायी जाती है। ऐसे संविधानों में साधारण कानूनों की तरह ही संशोधन होता है। यह देश की बदलती हुई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों का दर्पण होता है।

(iii) संकटकाल के लिए उपयोगी (Useful for Emergency)- अलिखित संविधान का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह सबसे अधिक संकटकाल के समय उपयोगी सिद्ध होता है। चूँकि यह परम्पराओं और रीति-रिवाजों पर आधृत है, इसलिए सरकार आवश्यकतानुसार सांविधानिक नियमों को आसानी से बदल सकती है। ब्राइस ने कहा है कि “ऐसे संविधान बिना उसके ढाँचे का विनाश किये इच्छा के अनुसार उसे झुकाया जा सकता है।’

(iv) राजनीतिक जीवन में निरन्तरता (Continuity in political life)- अलिखित संविधान देश के राजनीतिक जीवन में निरन्तरता ला देता है। इस संविधान में राष्ट्रीय अनुभव की उपेक्षा की सम्भावना कम रहती है; इसलिए इसमें भूत, वर्तमान एवं भविष्य के बीच एक अटूट सम्बन्ध तथा निरन्तरता बनी रहती है।

(v) राष्ट्र के स्वाभाविक विकास का परिणाम (Result of the natural evaluation of the Nation)- अलिखित संविधान किसी भी राष्ट्र के राष्ट्रीय जीवन के स्वाभाविक विकास का परिणाम होता है। यह राष्ट्र की प्रौढ़ता के साथ विकसित होता रहता है। जैसे-जैसे राष्ट्र का विकास होता रहता है, वैसे वैसे यह संविधान भी अपने विकास क्रम में आगे ही बढ़ता जाता है।

(vi) क्रान्ति और विद्रोह की असम्भावना (Impossibility of revolt and revolution)- चूँकि अलिखित संविधान समयानुसार बदलता रहता है, इसलिए क्रान्ति और विद्रोह की सम्भावना नहीं रहती। यह जनमत की माँग के अनुसार बदलता है।

अलिखित संविधान दोष (Demerits of the Unwritten Constitution)-

अलिखित संविधान के निम्नलिखित दोष हैं:-

(i) अस्पष्टता (Ambiguity)-अलिखित संविधान अस्पष्ट होता है; क्योंकि इसमें सरकार के विभिन्न अंगों के अधिकार स्पष्ट नहीं होते । इससे शासन में काफी असुविधा होती है।

(ii) मनमाना शासन (Arbitrary Administration)- अलिखित संविधान में स्थिरता और स्पष्टता का अभाव रहने से सरकारी पदाधिकारियों की मनमानी बढ़ जाती है। वे अपने कार्य इच्छानुसार करने लगते हैं।

(iii) संघात्मक शासन के लिए अनुपयुक्त (Unsuitable for the Federal Government)- अलिखित संविधान संघात्मक शासन-व्यवस्था के लिए कभी उपयुक्त नहीं हो सकता; क्योंकि इसमें केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों का स्पष्ट विभाजन नहीं होता।

(iv) नागरिक स्वतंत्रता का अपहरण (A abrogation of civil liberty)- अलिखित संविधान के अन्तर्गत नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं का व्यवस्थापिका द्वारा अपहरण हो सकता है। जहाँ अलिखित संविधान होता है वहाँ व्यवस्थापिका की तानाशाही स्थापित हो जाती है और वह काफी शक्तिशाली बन जाती है।

(v) प्रशासन-कार्य में गड़बड़ी (Confusion in administrative functions)- अलिखित संविधान में प्रशासन-कार्य में गड़बड़ी होने का डर बना रहता है; क्योंकि इसमें सरकार के विभिन्न अंगों की शक्ति तथा कार्य-क्षेत्र की स्पष्ट व्याख्या नहीं रहती। प्रशासन सदैव एक रहस्य का विषय बना रहता है।

(vi) अत्यन्त लचीला (Too flexible)- अलिखित संविधान बहुत ही लचीला होता है, इसलिए किसी भी समय उसमें संशोधन लाया जा सकता है। परिणाम यह होता है कि कभी-कभी क्षणिक आवेश में संविधान में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया जाता है।

(vii) स्थायित्व का अभाव (Lack of stability)- अलिखित संविधान में आसानी से संशोधन कर दिया जाता है, इसलिए इसमें स्थायित्व का अभाव रहता है। अलिखित संविधान राजनीतिक दलबन्दी का शिकार हो जाता है।

लिखित और अलिखित संविधानों में अन्तर

(Distinctions between Written and Unwritten Constitution)

लिखित संविधान

  1. लिखित संविधान में प्रशासन- संबंधी मौलिक बातें एक प्रलेख में लिपिबद्ध रहती हैं।
  2. लिखित संविधान दुष्परिवर्तनशील होता है। इसमें संशोधन के लिए विशेष प्रक्रिया अपनायी जाती है।
  3. लिखित संविधान का निर्माण किसी निश्चित समय के अन्दर किसी निश्चित निकाय द्वारा किया जाता है।
  4. लिखित संविधान संघात्मक शासन-व्यवस्था के लिए एक आवश्यक तत्व है।
  5. लिखित संविधान में नागरिकों के अधिकार और स्वतंत्रता सुरक्षित रहते हैं।

अलिखित संविधान

  1. अलिखित संविधान में शासन- सम्बन्धी बातें लिखी हुई नहीं रहतीं। यह संविधान रीति-रिवाजों, जनश्रुतियों और परम्पराओं पर आधृत रहता है।
  2. अलिखित संविधान सुपरिवर्तनशील होता है, अर्थात् इसमें एक साधारण कानून की भाँति ही संशोधन किया जा सकता है।
  3. अलिखित संविधान का निर्माण किसी निश्चित समय में किसी निश्चित निकाय द्वारा नहीं होता। यह तो विकास का परिणाम होता है।
  4. अलिखित संविधान एकात्मक शासन-व्यवस्था के लिए आवश्यक है।
  5. अलिखित संविधान में नागरिकों के अधिकार और स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारन्टी नहीं रहती।

लिखित और अलिखित संविधानों के बीच का अन्तर भ्रामक है-

लिखित और अलिखित संविधानों के बीच का अन्तर वास्तविक नहीं है; क्योंकि विश्व का कोई भी संविधान न तो पूर्णतया लिखित है। न पूर्णतया अलिखित । इसीलिए बहुत से विद्वानों ने लिखित और अलिखित संविधानों के बीच अन्तर को भ्रामक और अवैज्ञानिक बताया है। लॉर्ड ब्राइस, गार्नर, सी० एफ० स्ट्राँग तथा सर आइबा जेनिंग्स ने लिखित और अलिखित संविधानों के वर्गीकरण की आलोचना की है। उनकी दृषि में विश्व का कोई भी संविधान न तो पूर्णतया लिखित हो सकता है और न पूर्णतया अलिखित ही। लिखित संविधानों में भी समय बीतने पर अलिखित अंश के रूप की प्रथाएँ, रीतियाँ, परम्पराएँ तथा अभिसमय सामने आ जाते हैं। ठीक वैसे ही अलिखित संविधानों में संसद् द्वारा पारित विधियों, सांविधानिक संशोधनों तथा न्यायिक निर्णयों के कारण लिखित अंश उपस्थित हो जाते हैं। अन्तर केवल इतना है कि लिखित संविधानों में लिखित अंश अधिक और अलिखित अंश कम रहता है, जबकि अलिखित संविधानों में अलिखित अंश अधिक और लिखित अंश कम रहता है। इसलिए, हम कह सकते हैं कि लिखित और अलिखित संविधानों का अन्तर केवल मात्रा का है, प्रकार का नहीं। सी० एफ० स्ट्राँग ने इसका समर्थन करते हुए कहा है कि, “लिखित और अलिखित संविधानों का अन्तर गलत है; क्योंकि विश्व का कोई भी संविधान न तो पूर्णतया लिखित है और न तो प्रयास किया गया है, वह स्पष्ट है, क्योंकि विश्व के जितने भी लिखित संविधान होंगे, उनमें कुछ-न-कुछ अलिखित परम्पराओं का प्रयोग अवश्य निहित होगा। इसी तरह अलिखित संविधानों में लिखित प्रथाओं तथा परम्पराओं को अनिवार्य तथा बाध्य मानने की प्रवृत्ति प्रबल होती है।” सर आइवर जेनिंग्स ने भी इस सम्बन्ध में कहा है कि, “विधियों और परम्पराओं का अन्तर मौलिक महत्व नहीं रखता।” इससे यह स्पष्ट होता है कि लिखित और अलिखित संविधानों के बीच का अन्तर केवल औपचारिक ही है।

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