इतिहास

नेपोलियन का उत्थान | नेपोलियन प्रथम की शक्ति अभ्युदय

नेपोलियन का उत्थान | नेपोलियन प्रथम की शक्ति अभ्युदय

नेपोलियन का उत्थान

(Rise of Napoleon)

नेपोलियन का जन्म 15 अगस्त, 1769 में कोर्सिका टापू को हुआ था। उसका पिता कार्लो बोनापार्ट (Carlo Bonaparte) काफी उत्साही व्यक्ति था । नेपोलियन के जन्म के साल ही जिनोओ से फ्रांस ने कोर्सिका खरीदा था जिसे कोर्सिकावासी स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। फलतः फ्रांस के विरुद्ध वहाँ असंतोष व्याप्त था। इसी संदर्भ में रूसो ने कहा था कि यह छोटा द्वीप किसी दिन यूरोप को अचंभित कर देगा। यद्यपि कहने के लिए नेपोलियन ने कुलीन परिवार में जन्म लिया था, लेकिन आर्थिक रूप से यह परिवार निर्धन था। ऐसी स्थिति में नेपोलियन का भविष्य इस समय बहुत उज्ज्वल नहीं दिखाई पड़ता था।

इस समय कोर्सिका को स्वतंत्र कराने के लिए आंदोलन चल रहा था। फ्रांसीसी सरकार ने कोर्सिका के लोगों को कई रियायतें दी, ताकि वे फ्रांस के हिमायती बन जाएँ। इसी क्रम में नेपोलियन को फ्रांस के सैनिक विद्यालय में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति मिल गई । इस विद्यालय में सामंतों एवं संपन्न लोगों के बच्चे पढ़ते थे जिनकी जीवन-शैली आरामदेह थी। नेपोलियन को यहाँ अपनी गरीबी और विदेशी होने के भान पर हीन भावना ग्रसित करने लगी। उसका फ्रेंच का उच्चारण शुद्ध नहीं होता था। इस कारण उसके सहपाठी उस पर हंसते थे। अपनी दुःखद मन स्थिति के संबंध में वह अपनी माता को पत्र लिखता था और कभी-कभी आत्महत्या करने के विषय में भी सोचता था।

सैनिक शिक्षा के दौरान नेपोलियन ने अपनी रुचि नौसेना में दिखायी, लेकिन नियोजकों ने उसे तोपखाने (artillery) के लिए चुना। संयोग की बात यह थी कि क्रांतिकाल में जितनी प्रमुख लड़ाइयाँ लड़ी गई वे भूमि पर ही लड़ी गई जहाँ नेपोलियन को अपना शौर्य और रण-कौशल दिखाने का मौका मिला। संभव था कि नौ सेना में वह गुमनाम अफसर के रूप में ही जीवन समाप्त कर देता।

आरंभिक सफलता-

जिस समय फ्रांस में क्रांति की शुरुआत हुई उस समय नेपोलियन की उम्र 20 वर्ष थी। क्रांतिकाल में जब जिरोंदिस्त और जैकोबिन झगड़ रहे थे तो उसने एक पुस्तिका लिखकर अपना समर्थन जैकोविन् दल को दिया। 1793 ई० में राजतंत्र के समर्थकों ने विदेशियों, विशेषकर इंगलैंड के उक्साने पर, टूलों बंदरगाह पर कब्जा कर लिया था। राजा के समर्थकों को बाने की जिम्मेवारी नेपोलियन को सौंपी गई जो वहाँ एक कनिष्ठ अधिकारी था। पहली बार नेपोलियन ने तोपखाने का प्रयोग कर राजतंत्रवादियों को खदेड़ दिया और विद्रोह को दबा दिया। उसने अंग्रेजों को भी वहाँ से भगा दिया। इस सफलता के बाद उसे ब्रिगेडियर जनरल का पद दिया गया। इसके अलावे टूलों (Toulon) से नीस (Nice) तक के समुद्र तट के किलेबंदी करने की योजना तैयार करने के लिए उसे कहा गया।

इसके बाद नेपोलियन को पुनः अपनी कुशलता दिखाने को मौका मिला। वास्तव में अगस्त, 1792 में उसने देखा था कि टूलरीज (Tuileries) के किले पर भीड़ किस तरह आक्रमण कर रही है और उसका विरोध कितना कम्जोर था। उस समय उसने लुई को इसलिए कोसा था कि उसने गोली चलवाकर कुछ लोगों को भूनकर भीड़ को शांत क्यों नहीं कर दिया। नेपोलियन को यह मौका अक्टूबर 1795 में तब मिला जब कंवेंशन पर राजतंत्रवादी और पेरिस के लोगों ने हमला कर दिया और कंवेंशन ने नेपोलियन को भीड़ को नियंत्रण करने के लिए आमंत्रित किया। उसने इस चुनौती को स्वीकार किया और दो घंटे के भीतर उसने सड़कों को भीड़ से साफ कर दिया और कंवेंशन को सुरक्षित बचा लिया। इसी के साथ भीड़ की शक्त् िचार सौ शवों के साथ दफना दी गई। लेकिन, इस घटना ने योग्य सेना के अधिकारियों को आगे बढ़ने का मौका दिया और इसी के परिणामस्वरूप बाद में नेपोलियन का सैनिक अधिनायकवाद शुरू हुआ।

इटली की चढ़ाई-

उपर्युक्त सफलता के बाद नेपोलियन आंतरिक सेना (army of the interior) का सेनापति था, लेकिन उसकी इच्ण् इटली पर आक्रमण करने की थी। इस समय पेरिस बहुत सुरक्षित नहीं था। इस समय डायरेक्टरी की शासन था और डायरेक्टर नेपोलियन को फ्रांस से दूर रखना चाहते थे; क्योंकि उनकी निगाहों में नेपोलियन एक खतरनाक महत्वाकांक्षी सैनिक अफसर था। इस समय आल्पस (Alps) की पहाड़ियों पर तीन वर्षों से फ्रांसीसी सेना इटली पर आक्रमण करने के लिए घात लगाई हुई थी, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही थी। यह सेना बीमारी से त्रस्त और भूखी थी। ऐसी ही स्थिति में नेपोलियन के आक्रमण की योजना को इटली पर आक्रमण करने वाली सेना के सेनापति के पास भेजा गया, जिससे चिढ़कर सेनापति ने लिखा कि जिस मूर्ख ने यह योजना बनाई है उसी को इसे कार्यान्वित करने के लिए कहा जाए। डायरेक्टरगण भी नेपोलियन को फ्रांस से दूर रखना चाहते थे, अतः उसे ही इस सेना के नेतृत्व का भार सौंपा गया। इटली के आक्रमण पर जाने के दो दिन पहले उसने जोसेफिन से शादी की जिसका पूर्वपति शुरू का क्रांतिकारी था और 1791 ई० में वह राष्ट्रीय सभा का अध्यक्ष था, लेकिन बाद में उसे फांसी दे दी गई थी। यदि रॉब्सपीयर को फाँसी नहीं दी गई होती तो जोसेफिन को भी मृत्यु वरण करना पड़ता। जोसेफिन् कुलीन परिवार से आती थी और उसका संपर्क फ्रांस के उच्च परिवारों से था, जिसका नेपोलियन लाभ उठाना चाहता था। कहा जाता है कि डायरेक्टर बरास (Barras) से जोसेफिन का अच्छा संबंध था और उसी के कारण नेपोलियन को इटली पर आक्रमण करने का भार सौंपा गया।

इटली अभियान (1796-97) के दौरान नेपोलियन ने अपनी सैनिक और कूटनीतिक क्षमता दिखाई। सेनापतित्व स्वीकार करते ही उसने सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा, “मैं तुम्हें विश्व के सबसे ऊर्वर मैदान में ले जाऊंगा. वहाँ तुम्हें प्रतिष्ठा और धन मिलेगा।” युद्ध के दौरान स्वयं जोखिम उठाकर उसने खिोली (Rivoli) और आर्कोला (Arcola) के अविश्वसनीय युद्ध जीते। इटली के राज्यों को जीतकर उसने वहाँ फ्रांस जैसा गणतंत्र स्थापित किया। युद्ध का खर्च उसने विजित प्रदेशों से निकालना शुरू किया। फ्रांस की जनता को बिना आर्थिक बोझ उठाए हुए विजय, धन एवं कलाकृति का उपहार मिलने लगा। नेपोलियन फ्रांसीसी जनता के नाम इटली में सुरक्षित असाधारण कला संग्रहालयों से चुन-चुनकर चित्र, मूर्तियाँ और अन्य कलात्मक उपहार भेजने लगा। धीरे-धीरे वह मनमाने ढंग से कार्य करने लगा, लेकिन वह युद्ध फ्रांस की सरकार के नाम पर ही करता था। पोप को पराजित कर उसने वैटिकुन राजप्रासाद से बहुमूल्य चित्र एवं मूर्तियाँ फ्रांस भेज दी और नए गणतंत्र से छह करोड़ फेंक भी वसूल किए। विजय प्राप्त करते हुए वह आस्ट्रिया की राजधानी वियना तक पहुंच गया। आस्ट्रिया के सम्राट को भी झक मारकर नेपोलियन से उसी की शतों पर संधि करनी पड़ी।

इस समय तक नेपोलियन अच्छी तरह समझ गया था कि उसे पुनः फ्रांस से सेना नहीं प्राप्त हो सकती है। इसके अलावा नेपोलियन अपनी सेना में व्याप्त असंतोष से भी अवगत हो चुका था। इसके अतिरिक्त इस समय फ्रांस को एक विजेता की कम और शांति-स्थापक की ज्यादा जरूरत थी। डायरेक्टरी चुनाव के पहले शांति चाहती थी और नेपोलियन की सफलताओं से भी भयभीत थी; क्योंकि उसे संदेह हो गया था कि ऐसा न हो कि नेपोलियन अपने को इटली का राजा घोषित कर दे और अपनी सेना सेना फ्रांस की ओर मोड़ दे। ऐसी स्थिति में डायरेक्टर नेपोलियन को जल्द-से-जल्द फ्रांस बुलाना ही उचित समझते थे। इसी तरह आस्ट्रिया भी युद्ध और आगे नहीं बढ़ाना चाहता था क्योंकि उसके मित्र या तो युद्ध से अनिच्छुक थे या अपनी परेशानियों में उलझे हुए थे।

अक्टूबर, 1797 में नेपोलियन के कैंपो फोर्मियो (Cumpo Formio) की संधि की जिसमें उसने एक कुशल कूटनीतिज्ञ का परिचय दिया। इस संधि ने आस्ट्रिया के साथ चल रहे युद्ध को समाप्त किया। आस्ट्रिया ने राइन नदी को फ्रांस की सीमा के रूप में स्वीकार किया। आस्ट्रिया ने अपने अधीन के नीदरलैंड्स, (अर्थात् आधुनिक बेल्जियम) फ्रांस को दिया और लोम्बार्डी भी फ्रांस को मिला। इसके बदले इटली में वेनिस आस्ट्रिया को मिला तथा आस्ट्रिया ने इटली में स्थापित गणतंत्रों को स्वीकार किया। इस संधि से आस्ट्रिया की राजनीतिक संधि पश्चिम से हटकर पूर्व की ओर हो गई जिसके कारण उसका संघर्ष रूस और तुर्कों से होने लगा। कैंपो फोर्मियो की संधि नेपोलियन की कूटनीतिक विजय थी।

इस संधि के बाद जब वह फ्रांस लौटा तो उसकी लोकप्रियता आकाश छू रही थी। डायरेक्टर भी उसकी इस लोकप्रियता से घबड़ाए हुए थे। लेकिन, नेपोलियन स्वयं अधिक दिनों तक फ्रांस में रहकर अपनी लोकप्रियता खोना नहीं चाहता था क्योंकि उसका विश्वास था कि फ्रांसीसी उसे तभी तक याद रखेंगे जबतक उन्हें वह विजय दिलाता रहेगा। ऐसी परिस्थिति में वह पूर्व की ओर अभियान पर निकलना चाहता था। वह इंगलैंड के साम्राज्य पर आक्रमण कर अपना यश फैलाना चाहता था और कहा करता था कि उसके लिए यूरोप बहुत छोटा है। मिस्र-विजय वह इसलिए लाभकारी समझता था कि इसके बाद भूमध्यसागर का उपयोग फ्रांस की झील के रूप में किया जा सकता था और इंगलैंड के भारत से संबंध में भी व्यवधान उपस्थित किया जा सकता था। वास्तव में नेपोलियन ने इंगलैंड को इंगलैंड में पराजित करना कठिन समझा। पूर्व में ‘रुग्ण तुर्की साम्राज्य’ को भी वह जीत सकता था। इसके अलावा उसका विश्वास था कि वह विजय पाकर और लोकप्रिय होगा जिसका उपयोग कर वह डायरेक्टरों को पदच्युत कर सकता था । डायरेक्टर भी नेपोलियन को फ्रांस से दूर रखने में अपनी भलाई समझते थे, इसलिए नेपोलियन का मिस्र अभियान शीघ्र ही स्वीकार कर लिया गया।

मिस्र का आक्रमण-

मई, 1798 में 400 जहाजों में लदकर नेपोलियन की 38,000 सेना और 175 गैर-सैनिक, जिसमें भूगर्भशास्त्री, पुरात्त्ववेत्ता, डॉक्टर, इंजीनियर, रसायनशास्त्री, राजनीतिक अर्थशास्त्री, साहित्यकार, पूर्वी ज्ञान के जानकार (orientalist) इत्यादि थे, टूलों (Toulon) बंदरगाह से मिस्र के लिए रवाना हुए। इस अभियान का उद्देश्य केवल सामरिक विजय हासिल करना ही नहीं था, बल्कि एक पुरानी सभ्यता का पता लगाना भी था। फ्रांसीसी सेना माल्या को जीतुती हुई सिकंदरिया पहुंच गई। उसने सिकंदरिया को जीता और रेगिस्तान से होता हुआ कैरो पहुंचा गया जहां उसने पिरामिडों का युद्ध [battle of Pyramids) जीता। यहां उसने मुसलमानों को मिलाना शुरू किया और कई मुसलमानों एवं उनके धर्म को पदवियाँ और सुरक्षा प्रदान की। कैरो के दीवान (Divan of Cairo) को उसने फ्रांसीसियों को मुस्लिम धर्म के नजदीक बताया और उसको योजना के अनुसार फ्रांसीसी सेना के लिए एक मस्जिद बनाने की योजना की पेशकश की, लेकिन मुसलमानी (circumcision) न होने और शराब पीने पर पूरी पाबंदी नहीं लगाने के कारण यह योजना सफल न हो सका।

इस समय नेपोलियन ने अपने साथ लाए विभिन्न विद्वानों को प्राचीन मिस्री सभ्यता की विशेषताओं का पता लगाने में लगा दिया जिससे बाद में ‘इजिप्टोलाजी’ (Egyptology) का जन्म हुआ। रोसेटा के पत्थर पर लिखी प्राचीन मिस्री लिपि को एक विद्वान् ने पढ़ने में सफलता पाई। वहाँ की वनस्पति, इतिहास, हर चीज का अध्ययन शुरू हुआ और एक अत्यंच पुरानी सभ्यता के विभिन्न पहलुओं पर पहली बार प्रकाश पड़ा। नेपोलियन ने स्वयं स्वेज नहर के पुराने रास्ते को खोज निकाला जिसके आधार पर फ्रांसीसी इंजीनियर डी लेलेप्स ने 50 वर्षों के बाद् स्वेज नहर बनाई। नेपोलियन का मिस्त्री अभियान सैनिक दृष्टिकोप से असफल हुआ, लेकिन उसका मिस्री सभ्यता के अध्ययन का कार्य इतिहास में सदैव एक महान् उपलब्धि माना जाता रहेगा।

यहां कार्य चल ही रहा था कि ब्रिटिश नौ-सेनापति नेल्सन अपने जंगी बेड़े के साथ मिस्र आ पहुंचा और उसने नील के युद्ध में फ्रांस के बेड़े को नष्ट कर दिया। उसी समय भारत के गवर्नर जनरल वेलेजली ने एक सेना भेजी जिससे नेपोलियन बुरी तरह घिर कर पराजित हो गया। उसने सीरिया होते हुए भू मार्ग से भागने की कोशिश की, लेकिन बीमारी और अंग्रेजों के लगातार पीछा करने से वह हताश हो गया। इसी समय उसने एक विवादास्पद निर्णय लिया जिसके अनुसार वह चुपके से अपनी सेना को अपने भाग्य के भरोसे छोड़कर फ्रांस भाग निकला। फिशर ने लिखा है कि नेपोलियन का मिस्री अभियान बड़े धूमधाम के साथ शुरू हुआ था और उसका अंत इस प्रकार हुआ कि नेपोलियन को किसी पंड्यंत्री भगोड़े की तरह भागना पड़ा।

जब नेपोलियन फ्रांस लौटा तो किसी ने उससे मिली अभियान के विषय में नहीं पूछा। डायरेक्टरी के शासन में भ्रष्टाचार व्याप्त था जिससे लोग ऊब गए थे। लोगों को क्रांति से चिढ़ हो गई थी। उसके आगमन से डायरेक्टर भयभीत थे। उनका विश्वास था कि नेपोलियन मिस्त्री अभियान में मर गया होगा। इस समय तक उसकी पत्नी जोसेफिन भी बदल गई थी। ऐसी हालत में नेपोलियन ने कहा, “मेरे लिए केवल अहंकारी होने का एकमात्र रास्ता रह गया है। लेकिन उसके आगमन से फ्रांसीसी काफी खुश थे। उसने कहा, “लगता है सभी मेरी राह देख रहे थे। यदि में कुछ पहले आता तो वह जल्दबाजी हो जाती और यदि कल आता तो देर हो जाती। मैं ठीक समय पर आया हूँ।” उसने अपने साथ सहानुभूति रखनेवालों से बातचीत शुरू की और आब्बे सिए (Abbe Sieyes). तैलेरॉ (Talleyran) आदि को अपने साथ मिला लिया।

नेपोलियन ने डायरेक्टरों को डरा-धमकाकर पटा लिया, लेकिन जब उसने पांच सौ सदस्यों बाली परिषद्, जिसकी अध्यक्षता उस माह उसका भाई लुसिन (Lucien) कर रहा था, में जाकर कुछ कहना चाहा तो परिषद उसकी बात सुनने से इंकार कर दिया और उसे कानून-विरोधी कहकर शोर-शरावा किया। ऐसी स्थिति में लुसिन ने उसकी मदद की। वह नेपोलियन् को पकड़कर दूसरे कमरे में ले गया। इस बीच सैनिकों ने गोलियां चलानी शुरू की जिससे सदस्य जैसे-तैसे भाग खड़े हुए। मध्य रात्रि तक कुछ सदस्य लौटकर आए जिन्होंने संविधान के परिवर्तन को स्वीकार कर लिया। इसके अनुसार नेपोलियन, आब्बे सिए (Sieyes) और ड्यूको (Ducos) को कौंसल बनाया गया जिन्हें देश के प्रशासन को चलाना था। यह प्रबंध अस्थायी था। सिए को एक नया संविधान बनाने का कार्य सौंपा गया जिसे उसने शीघ्र तैयार कर दिया और नेपोलियनु ने उसमें कुछ सुधार लाकर उसे स्वीकार कर लिया। इस संविधान के अनुसार प्रथम कौंसल के हाथों में अत्यधिक शक्ति आ गई। एक माह बाद जब चुनाव हुआ तो 30 वर्षों की उम्र के लोगों को मताधिकार मिला और उन्होंने नेपोलियन के पक्ष में काफी मत दिया। इस तरह फ्रांस में नेपोलियन की तानाशाही की शुरुआत नवम्बर, 1799 से हुई।

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Pankaja Singh

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