मौर्य राजवंश के इतिहास जानने के प्रारम्भिक स्रोत | Early sources to know the history of Maurya Dynasty in Hindi
मौर्य राजवंश के इतिहास जानने के प्रारम्भिक स्रोत
प्रारम्भिक मौर्य : इतिहास के स्रोत
प्रारम्भिक मौर्य राजवंश से इतिहास के पुनर्निर्माण में हमें निम्नलिखित साहित्यिक अभिलेखीय एवं विदेशी साक्ष्यों से मदद मिलती है-
साहित्यिक स्रोत
चन्द्रगुप्त को लेकर प्राचीन भारत में अनेक दन्त कथाएं चल पड़ी थीं जिनके कतिपय अंश लैटिन इतिहासकारों की कृतियों में भी उपलब्ध होते हैं। अपने देश में पालि, प्राकृत तथा संस्कृत में बहुत सी ऐसी प्रशस्तियां, कथायें, नाटक तथा दार्शनिक विवेचन मौजूद हैं जिनमें उस यशस्वी वीर का गुणगान किया गया है जिसके बाहुओं में म्लेच्छ से त्रस्त इस पृथ्वी को शरण मिली थी और जिसमें 8 “जम्बूद्वीप” (भारत) को एक सूत्र में बांध दिया था परन्तु दुर्भाग्यवश इस असाधारण व्यक्ति के विषय के रूप में ऐसी बहुत कम बातें उपलब्ध होती हैं जो प्रामाणिक कही जा सके। यहां उसके पौत्र अशोक के अभिलेखों में भी उसके नाम का कहीं उल्लेख नहीं मिलता । पातंजलिकृत महाभाष्य में “चन्द्रगुप्त सभा” तथा “मित्रघात” (बिन्दुसार), जो कि चन्द्रगुप्त का पुत्र था, का उल्लेख अवश्य मिलता है। परन्तु आदि मौर्य के कृतित्व के विषय में यह ग्रन्थ मौन है। चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में जितना हमें ज्ञात है उसके एक बहुत बड़े अंश का सम्बन्ध लोककथाओं की दुनिया से है। चन्द्रगुप्त कथा का प्रचलन शायद ईसवी सन् के प्रारम्भ के पूर्व से ही हो गया रहा होगा क्योंकि जस्टिन नामक लेखक की एक ऐतिहासिक कृति में इस कथामाला की अनेक घटनाओं का उल्लेख मिलता है। इस “चन्द्रगुप्त कथा” से ही आगे चलकर मध्ययुग में “चाणक्य चन्द्रगुप्त कथा” का विकास हुआ था। चन्द्रगुप्त कथा के कुछ अंश बौद्ध ग्रन्थ मिलिन्दपन्हों तथा थेरगाथा टीका में भी प्राप्त होते हैं तथा मैसूर के जैन तथा कुछ अन्य अभिलेखों में भी ये सुरक्षित हैं। बौद्धग्रन्थ अशोकावदान में चन्द्रगुप्त के पुत्र बिन्दुसार का उल्लेख तो मिलता है परन्तु चन्द्रगुप्त का कोई जिक्र नहीं है। तामिल साहित्य में उल्लिखित “बम्ब मोरियार” शायद चन्द्रगुप्त कथा से ही सम्बद्ध रहा हो। इसका अपेक्षाकृत पूर्णतर विवरण हेमचन्द्रकृत परिशिष्टार्वन, महावंश टीका, वर्मी उपाख्यानों तथा बृहत्कथा के कश्मीरी संस्करण में मिलता है। उपाख्यानों की एक रचना विशाखदत्त ने नाटक के रूप में प्रस्तुत की है। इस नाटक की मुख्य कथावस्तु का संकेत चण्डकौशिक में मिलता है। कतिपय और विवरण तथा विष्णुपुराण की टीका और विशाखदत्त के मुद्राराक्षस नामक कृति पर थुडिराज द्वारा कृत टीका में भी उपलब्ध है।
चन्द्रगुप्त के जीवन की सही कहानी के निर्माण के लिए इन कथाओं के अतिरिक्त हमें अभिलेखों, यूनानी तथा लैटिन सूत्री भारतीय तथा सिंहली पुरावृत्तों में सुरक्षित वंशवृक्षों तथा कतिपय प्रासंगिक चर्चाओं में उल्लिखित तमाम बिखरी सूचनाओं को संयोजित करने की भी आवश्यकता है।
अभिलेखीय साक्ष्य
अशोक तथा दशरथ के अभिलेख पूर्व मौर्यकाल के आध्यात्मिक टिचारों, धार्मिक अवस्था, आंतरिक शासन तथा सामाजिक अवस्था से सम्बन्धित सूचनाओं के स्रोत रूप में पर्याप्त महत्वपूर्ण हैं परन्तु उनमें ऐसी विशिष्ट घटनाओं का कहीं कोई जिक्र नहीं है जिन्हें निश्चित रूप से प्रथम मौर्य सम्राट अथवा उसके पुत्र बिन्दुसार के शासनकाल का कहा जा सके। इसके विपरीत रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलोलेखों में न केवल प्रथम मौर्य सम्राट के नाम का स्पष्ट उल्लेख है बल्कि उसके द्वारा विजित प्रदेशों की सीमा तथा उसके शासन पद्धति की भी स्पष्ट झलक मिलती है।
विदेशी स्रोत
चन्द्रगुप्त के जीवन चक्र के सम्बन्ध में सबसे विस्तृत जानकारी हमें देशी स्रोत की अपेक्षा हेलेनी युग तथा रोम साम्राज्य की प्रारम्भिक शताब्दियों के यूनानी तथा रोमन लेखकों के विवरणों से प्राप्त होती है। इनमें विवरणों से स्पष्ट होता है कि प्रथम दो मौर्य सम्राटों तथा सीरिया के समकालीन शासकों के बीच मैत्रीपूर्ण हुआ था तथा इनके बीच पत्र-व्यवहार भी हुआ था।
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