इतिहास

नेपोलियन के प्रथम कान्सल के रूप में सुधार | एक सुधारक के रूप में नेपोलियन के कार्यों का मूल्यांकन

नेपोलियन के प्रथम कान्सल के रूप में सुधार | एक सुधारक के रूप में नेपोलियन के कार्यों का मूल्यांकन

नेपोलियन के प्रथम कान्सल के रूप में सुधार

(Reforms of Nepoleon as First Consul)

  1. भूमिका (Introduction)-

नेपोलियन बोनापार्ट एक महान् सुधारक और आधुनिक फ्रांस का निर्माता था। 1799 ई० में वह फ्रांस का प्रथम कान्सल बन गया। चार वर्ष के अल्प काल में उसने देश के आन्तरिक क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण सुधार किए और स्वयं को क्रान्ति का वास्तविक उत्तराधिकारी सिद्ध कर दिया।

नेपोलियन स्वतन्त्रता , समानता तथा बन्धुत्व के सिद्धान्तों का प्रबल समर्थक था, परन्तु उसने फ्रांस की जनता को समानता एवं बन्धुत्व ही प्रदान किया और उन्हें राजनीतिक स्वतन्त्रता से सदैव मुक्त रखा। उसने अपने शासन में तीन सूत्रों को विशेष महत्व दिया। ये सूत्र थे-प्रतिभा, व्यापकता तथा कार्यक्षमता।

नेपोलियन ने प्रथम कान्सल के पद पर रहकर फ्रांस का पुनर्निर्माण किया और क्रान्ति के परिणामों को स्थायी बनाया। उसने अल्पकाल के अन्दर ही देश की जटिल समस्याओं का समाधान करके बड़े महत्वपूर्ण सुधार किये। उसके सुधारों की प्रशसा करते हुए ‘फिशर (Fisher) ने लिखा है-

“नेपोलियन की विजय अस्थायी थी किन्तु उसका शासन-प्रबन्ध फ्रांस को एक स्थायी देना था।”

(2) नेपोलियन के सुधार (Reforms of Nepoleon)-

नेपोलियन ने फ्रांस का पुनर्निर्माण करने के लिए निम्नलिखित सुधार किए-

(अ) शासन सम्बन्धी सुधार-नेपोलियन का शासन प्रतिभा, व्यापकता और कार्यक्षमता के सिद्धान्तों पर आधारित था। 1799 ई० में फ्रांस में सर्वत्र अराजकता एवं अशान्ति व्याप्त थी। नेपोलियन ने देश की अराजकता को समाप्त करने के लिए शासन का केन्द्रीकरण कर दिया। 1799 के संविधान के अनुसार नेपोलियन कार्यपालिका व व्यवस्थापिका सम्बन्धी अधिकारों का तो स्वामी बन ही गया था। कुछ अधिनियमों को पारित करवा करके उसने न्यायपालिका सम्बन्धी अधिकारों को भी अपर्ने हाथ में ले लिया। सन् 1800 ई० में उसने फ्रांस के केन्द्रीय और स्थानीय शासन का पूर्णतया केन्द्रीकरण कर दिया। उसने प्रान्तों (Departments) तथा जिलों (Arrondissment) के समस्त अधिकार अपने हाथ में ले लिए। राष्ट्रीय सभा ने फ्रांस का विकेन्द्रीकरण कर दिया था और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों का निर्वाचन वहाँ की जनता करती थी और स्थानीय अधिकारी अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होते थे, किन्तु नेपोलियन ने इस प्रणाली को समाप्त करके प्रशासनिक विभागों के लिए प्रीफेक्टों (Prefects), उपफ्रीफेक्ट (Subprefect) तथा मेयर (Mayor) की नियुक्तियाँ की और इन अधिकारियों को प्रथम कान्सल के प्रति उत्तरदायी बना दिया । नेपोलियन का यह कार्य 1789 ई. की मानव अधिकारों को घोषणा के विरुद्ध था किन्तु नेपोलियन ने फ्रांस में एक संगठित तथा सुव्यवस्थित शासन प्रणाली की स्थापना करके देश को अराजकता से मुक्त कर दिया। अपनी शासन व्यवस्था से सन्तुष्ट होकर नेपोलियन ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा-

“फ्रांस के प्रत्येक प्रान्त में उसका एक प्रतिनिधि नियुक्त हो गया है।”

यद्यपि फ्रांस की यह शासन प्रणाली एक प्रकार से राजतंत्रात्मक ही थी, फिर भी फ्रांस की जनता एक शास्न से सन्तुष्ट थी। स्थानीय शासन में नेपोलियन ने कोई विशेष परिवर्तन नहीं किया, परन्तु परोक्ष रूप से उसने स्थानीय शासन पर भी केन्द्र का नियन्त्रण स्थापित कर दिया।

(ब) आर्थिक सुधार- लुई 16वें के शासन काल में फ्रांस को आर्थिक दशा बड़ी शोचनीय हो गई थी और आर्थिक कट के कारण ही सम्राट को स्टेट्स जनरल का अधिवेशन बुलाने के लिए विवश होना पड़ा था। राजतन्त्र का उन्मूलन और गणतन्त्र की स्थापना का प्रमुख कारण फ्रांस की आर्थिक समस्या ही थी। राष्ट्रीय सभा, व्यवस्थापिका सभा, राष्ट्रीय सम्मेलन और डाइरेक्टरी सभी विधान सभायें देश की आर्थिक दशा को सुधारने में असफल रही थीं। असमान कर प्रणाली, मुद्रा प्रसार, भुखमरी बेकारी तथा महँगाई का फ्रांस में बोलबाला था। अत: नेपोलियन ने सर्वप्रथम फ्रांस की आर्थिक दशा को सुधारने की योजना बनाई। सर्वप्रथम उसने निम्नलिखित कार्य किए-

(i) फ़रवरी 1800 ई० में नेपोलियन ने ‘बैंक ऑफ फ्रांस’ की पेरिस में स्थापना करवाई। इस बैंक को नोट जारी करने का एकाधिकार दिया गया किन्तु यह बैंक एक निश्चित संख्या में ही नोट जारी कर सकता था।

(ii) नेपोलियन ने आवश्यकता पड़ने पर धन प्राप्त करने के लिए ‘सिकिंग फण्ड’ की स्थापना की।

(iii) उसने राष्ट्रीय ऋण की अदायगी के लिए एक पृथक् कोप की स्थापना की।

(iv) पुराने ऋणपत्रों को स्थगित करके नवीन ऋण जारी किए।

(v) पुरानी मुद्रा को बन्द करके कान्सल नामक नयी मुद्रा जारी की।

(vi) नेपोलियन ने 25 प्रतिशत ‘युद्ध कर’ निश्चित कर दिया।

(vii) 1804 ई० में उसने शराब पर कर लगाया

(viii) 1806 ई० में उसने नम पर कर लगाया।

(ix) तम्बाकू तथा मादक द्रव्यों पर भी कर लगाया।

(x) केन्द्र से कर वसूल करने की समुचित व्यवस्था की गई।

(xi) राष्ट्रीय भूमि, जो शेष थी, को बेचकर धन एकत्र किया गया।

(xii) वार्षिक बजट का निर्माण किया जाने लगा।

(xiii) विदेशों से अपार धन प्राप्त करके फ्रांस के राजकोप को भर दिया गया।

(xiv) व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए नेपोलियन ने आयात पर भारी कर लगाया और संरक्षण नीति को अपनाया।

(xv) मजदूरों का वेतन निश्चित करके गिल्ड प्रणाली का अन्त कर दिया गया और श्रमिक संघों के प्रति कठोर नियम बनाये गए।

(xvi) राष्ट्रीय उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन देने के लिए एक समिति स्थापित की गई।

(xvii) देश के किसानों को भूमि का स्थायी स्वामी बना दिया गया।

(xviii) बेकारी दूर करने के लिए नेपोलियन ने सार्वजनिक कार्यों को विशेष प्रोत्साहन दिया।

(xiv) नेपोलियन ने चोरबाजारी, सट्टेबाजी, मुनाफाखोरी जैसी व्यापारिक कुप्रथाओं का अन्त करके अपराधियों को कठोर दण्ड दिया।

इन सुधारों से फ्रांस की आर्थिक दशा में व्यापक सुधार हो गया और जनता सुखी तथा देश धन-धान्य से पूर्ण हो गया। आर्थिक संकट का समाधान नेपोलियन की एक बड़ी महत्वपूर्ण सफलता थी।

(स) धार्मिक सुधार- फ्रांस में धार्मिक समस्या एक गम्भीर रूप धारण कर चुकी थी। देश में धार्मिक असन्तोष व्याप्त था। राष्ट्रीय सभा ने चर्च की सम्पत्ति का अपहरण कर लिया था और पादरियों पर नियन्त्रण रखने के लिए 1790 ई० में पादरियों का सिविल विधान पारित किया था। इस संविधान के कारण देश में धार्मिक संघर्ष आरम्भ हो गया था। क्रान्ति के युग में देश के धार्मिक क्षेत्र में अनके परिवर्तन हुए थे जिनसे फ्रांस की जनता अत्यधिक असन्तुष्ट थी।

नेपोलियन ने देश की धार्मिक समस्या को भी सफलतापूर्वक हल किया। वह किसी धर्म विशेष का अनुयायी नहीं था, परन्तु वह धर्म के महत्व को अच्छी तरह से समझता था। उसका कथन था-

“धर्महीन राष्ट्र दिशादर्शक यन्त्र रहित जहाज के समान है।”

नेपोलियन ने अपनी धार्मिक नीति को स्पष्ट करते हुए कहा था-

“लोगों का धर्म अवश्य होना चाहिए और वह धर्म सरकार के नियन्त्रण में हो।”

नेपोलियन यह भली-भांति समझता था कि फ्रांस में शान्ति की स्थापना करने के लिए धार्मिक समस्या को हल करना आवश्यक है। अत: उसने देशवासियों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान करने का प्रयल किया। उसने घोषणा की-

“लोग चाहे मुझे पोप का समर्थक कहें, लेकिन मैं कुछ नहीं हूँ। मिस्र में मैं मुसलमान था, लेकिन यहां जनता के हित के लिए मैं कैथोलिक बन सकता हूँ। मैं धर्म में विश्वास नहीं करता। मैंने कैथोलिक बनकर ही वैन्डी के युद्ध को समाप्त किया था। एक मुसलमान बनकर ही मैंने मिस में कदम रखा था। पोप की प्रभुता मानकर ही मैंने इटली के पादरियों को विजय किया था। अगर यहूदियों पर मुझे शासन करना पड़े तो मैं सुलेमान बन जाऊंगा।”

अतः देश के धार्मिक असंतोष को दूर करने और रोमन कैथोलिक जनता को संतुष्ट करने के लिए 15 जुलाई 1801 ई० को नेपोलियन ने रोम के पोप पायस सप्तम से एक समझौता (Concordate) किया। इस समझौते के अनुसार रोम के पोप ने चर्च की सम्पत्ति के अपहरण को स्वीकार कर लिया एवं शासन ने पादरियों को धन देना स्वीकार कर लिया। प्रथम कान्सल को पादरियों की नियुक्ति का अधिकार दिया गया, पोप उनकी नियुक्तियों को अस्वीकार नहीं कर सकता था। समस्त पादरियों को राजभक्ति का शपथ लेना अनिवार्य कर दिया गया। मेटे पादरियों को नियुक्त करने का अधिकार उच्च पादरियों को दिया गया। पोप की विशेष आज्ञायें राष्ट्रीय चर्च और फ्रांस के पादरियों पर लागू नहीं होगी। नेपोलियन ने प्रवासी पादरियों को फ्रांस में आने की अनुमति प्रदान कर दी। इसी प्रकार अनेक अधिनियम बनाकर नेपोलियन ने चर्च पर राजकीय नियंत्रण स्थापित कर दिया। यह व्यवस्था 8 अप्रैल 1802 ई० को लागू की गई और 1805 ई. तक चलती रही।

यह समझौते को नेपोलियन ने इटली, बेल्जियम तथा राइन के प्रान्तों में भी लागू किया। ‘मारखम’ (Markkham) के अनुसार-

“Napoleon also had in mind the advantage of a concordate in extending French influence in the Catholic populations of Italy, Belgium and the Rhino provinces.

इसके साथ ही साथ नेपोलियन ने सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की। उसने क्रांतिकारी कैलेण्डर को भंग कर दिया और पुनः प्राचीन अवकाशों को मान्यता प्रदान की । 14 जुलाई तथा 22 सितम्बर के दिन को छोड़कर क्रांति के शेष सभी अवकाशों का अन्त कर दिया गया।

नेपोलियन के इन सुधारों ने रामन कैथोलिक जनता को सन्तुष्ट कर दिया और उनकी प्रशंसा भी प्राप्त कर ली। नेपोलियन ने चर्च पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया और उसके न्याय सम्बन्धी अधिकार भी छीन लिए। इस प्रकार उसने स्वयं को क्रांति का उत्ताराधिकारी सिद्ध कर दिया।

जनरल डेल्मास’ (General Delmas) के अनुसार-

“A fine monkish trick, the only thing missing was the 10,000 men who gave their lives to supprees all that.”

नेपोलियन ने अपनी धार्मिक नीति का समर्थन करते हुए कहा-

“असमानता के अभाव में समाज का अस्तित्व असम्भव है, बिना सदाचार के नियमों के असमानता असम्भव है और बिना धर्म के सदाचार के नियम असम्भव है। धर्म में मुझे ईश्वर के अवतार का रहस्य नहीं, अपितु सामाजिक सुव्यवस्था दृष्टिगोचर होती है। जो लोग ईश्वर में आस्था नहीं रखते, उन पर शासन नहीं किया जाता है अपितु उन्हें गोली मार दी जाती है। जनता को एक धर्म की आवश्यकता है, इसलिए धर्म की व्यवस्था शासन के हाथों में होनी चाहिए।

(द) न्याय सम्बन्धी सुधार अथवा नेपोलियन के कोड-नेपोलियन को अपने न्याय सम्बन्धी सुधारों से अमर ख्याति मिली। क्रांति के पूर्व फ्रांस की न्याय प्रणाली बड़ी दोषपूर्ण थी। देश में विभिन्न प्रकार के कानून प्रचलित थे और न्यायालयों में पक्षपात तथा भ्रष्टाचार का बोलबाला था। क्रांति के युग में फ्रांस की न्याय व्यवस्था में कोई विशेष सुधार न हो पाया था। अत: नेपोलियन ने फ्रांस के लिए विधि संहिताओं (Codes) का निर्माण करवाया।

नेपोलियन ने देश के विधि विशेषज्ञों, विद्वानों तथा समितियों को आमंत्रित किया, जिन्होंने रात-दिन कठोर परिश्रम कर्फे विधि संहिताओं का निर्माण किया। नेपोलियन ने स्वयं भी अपनी कुशाम बुद्धि एवं योग्यता का प्रयोग कर संहिताओं के निर्माण में सहयोग दिया। इस संहिताओं के आधार पर नेपोलियन ने देश में सुव्यवस्थित न्याय प्रणाली की स्थापना की। वास्तव में उसकी संहितायें फ्रांस के लिए एक महान वरदान सिद्ध हुई।

इन संहिताओं के निर्माण के समय नेपोलियन ने यह कहा था-

“पहले मेरा यह विचार था कि कानूनों की ज्यामिति के सिद्धान्तों के समान इतना सरल बना सकना सम्भव होगा कि जो भी इन्हें पढ़े ओर जो विचारों का सम्पर्क स्थापित करें, इनके आधार पर न्याय कर सकेगा, किन्तु मुझे तत्काल ही इस धारणा को मूर्खता ज्ञात हो गई। मैंने अनुभव किया कि कानूनों में अत्यंत सरलता सूक्ष्मता की शत्रु है। अत्यधिक सरल कानून बनाना असम्भव है, क्योंकि ऐसा करने पर गुत्थी सुलझाने के स्थान पर बहुधा काटनी ही पड़ेगी।”

अगस्त 1804 ई० में विधि समिति ने विधि संहिताओं का निर्माण कार्य पूरा कर लिया। पहला कोड ‘वृहत सिविल कोड’ (Civil Code) था। इसके अनुसार प्रत्येक परिवार को अध्यक्ष के अधीन कर दिया गया। पिता को पुत्र का अधिकारी, स्त्रियों पर पतियों का नियंत्रण, तलाक को कठिन, व्याज दर तथा सम्पत्ति सम्बन्धी नियम पारित किए गए।

नेपोलियन का दूसरा कोड् ‘कोड आफ सिविल प्रोसीडियोर था। उसमें मुकदमेबाजी से पूर्व समझौता करने पर विशेष बल दिया गया। तीसरा कोड ‘कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीडियोर’, और चौथा ‘पेनल कोड था। इनमें भिन्न-भिन्न अपराधों के लिए भिन्न-भिन्न दण्डों का विधान था। देश में शांति तथा व्यवस्था स्थापित करने के लिए मृत्युदण्ड, आजन्म कारावास, दाग देना, देश निष्कासन, सम्पत्ति अपहरण आदि कठोर दण्ड निश्चित किए गए। जूरी प्रथा प्रचलित की गई तथा अपराधी को वकील का सहयोग प्राप्त करने का अधिकार दिया गया।

नेपोलियन का पांचवाँ कोड ‘कॉमर्शियल कोड़’ था। इसमें व्यापार सम्बन्धी नियमों का उल्लेख था। नेपोलियन ने अपने इन कोडों को इटली, हालैंड, आस्ट्रिया, नीदरलैंड्स आदि देशों में प्रचलित किया।

नेपोलियन का यह कार्य फ्रांस को एक स्थायी देन था। उसने स्वयं एक बार कहा था-

“मेरी स्थायो कीर्ति का आधार मेरे चालीस युद्ध नहीं, वरन् मेरे कोड हैं।”

इतिहासकार ‘फिशर (Fisher) ने लिखा है-

“आलोचकों ने दीवानी संहिता को, शीघतापूर्वक खड़ा किया गया एक खोखला ढांचा’ तथा कानून के मूलाधार के सिद्धान्तों की एक छोटी-सी ‘नोट बुक’ कहकर आलोचना की है, किन्तु जो कार्य जर्मनी 15 वर्षों में पूरा कर सका, उसे नेपोलियन ने केवल चार महीनों में ही पूरा कर दिखाया।”

वास्तव में नेपोलियन के कोड फ्रांस के लिए बड़े उपयोगी व महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। इसके साथ ही साथ नेपोलियन ने न्याय के क्षेत्र में निम्न सुधार भी किये-

(i) न्यायाधीशों को जनता के प्रभाव से मुक्त रखने के लिए उनकी नियुक्ति राज्य की ओर से की जाने लगी।

(ii) नेपोलियन ने शांति के न्यायाधीश (Justice of Peace)के अधिकारों में कमी कर दी।

(iii) जनता को अपील की सुविधा देने के लिए हाईकोर्ट स्थापित किए गए और उनको प्राचीन अधिकार प्रदान किए गए।

(य) शिक्षा सम्बन्धी सुधार-नेपोलियन शिक्षा के महत्व को भली-भांति समझता था। इसलिए उसने शिक्षा में बड़े महत्वपूर्ण सुधार किए और फ्रांस में राष्ट्रीय शिक्षा की नींव डाली। उसने फ्रांस में निम्नलिखित स्कूलों की स्थापना करवाई-

(i) प्राथमिक स्कूल- नेपोलियन ने प्रत्येक कम्यून तथा जिले में प्राथमिक स्कूलों की स्थापना करवाई और इन्हें प्रोफेक्ट, उपतीफेक्ट तथा मेयरों के नियन्त्रण में रख दिया। इन स्कूलों के व्यय का भार स्थानीय कम्यूनों को सौंप दिया गया।

(ii) ग्रामर स्कूल- नेपोलियन ने मामों में ग्रामर स्कूल (Grammer School) खुलवाये। इन स्कूलों में विज्ञान, फ्रेंच और लैटिन की शिक्षा अनिवार्य रूप से दो जाती थी। इन स्कूलों पर सरकारी नियन्त्रण स्थापित किया गया और स्थानीय संस्थाओं को इन स्कूलों के प्रबन्ध तथा व्यय के लिए उत्तरदायी बना दिया गया।

(iii) हाई स्कूल देश के बड़े-बड़े नगरों में हाई स्कूल स्थापित किए गए। इनमें छात्रों को उच्च शिक्षी दी जाती थी। इनके शिक्षकों की नियुक्ति राज्य की ओर से की जाती थी।

(iv) विशेष स्कूल- नेपोलियन ने कुछ विशेष स्कूलों की भी स्थापना करवाई, इनमें सैनिक स्कूल, शिल्प स्कूल, सिविल सर्विस स्कूल आदि प्रमुख थे। इन स्कूलों में प्रयोगात्मक शिक्षा दी जाती थी। इन स्कूलों को जनता के नियन्त्रण में रखा गया था।

(v) नार्मल स्कूल- नेपोलियन ने पेरिस में एक नार्मल स्कूल स्थापित करवाया। इस स्कूल में शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता था।

(vi) फ्रांस का विश्वविद्यालय- सन् 1808 ई० में नेपोलियन ने पेरिस नगर में फ्रांस के विश्वविद्यालय की स्थापना करवाई। इस विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य देश में समान शिक्षा प्रणाली प्रचलित करना था। इस विश्वविद्यालय में फ्रेंच, लैटिन, सामान्य विज्ञान, गणित तथा विभिन्न भाषाओं एवं विषयों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की गई। देश की सभी शिक्षण संस्थाओं को इस विश्वविद्यालय के अधीन कर दिया गया। इस विश्वविद्यालय की अनुमति के बिना किसी को शिक्षा प्रदान करने का अधिकार न था। इस विश्वविद्यालय में देश-प्रेम और राष्ट्र-भक्ति सम्बन्धी शिक्षा अनिवार्य कर दी गई।

(vii) स्त्री शिक्षा- नेपोलियन स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विशेष जागरूक नहीं था। वह स्त्रियों को अल्प मात्रा में ही शिक्षा प्रदान आवश्यक समझता था। उसका यह विचार था कि स्त्रियों के स्कूलों में शिक्षिकाओं की ही नियुक्ति होनी चाहिए। वह महिला स्कूलों में पुरुषों का प्रवेश निषेध समझता था। उसका कथन था-

“No man must ever enter within its walls under any pretext what so ever. Even the gardening must be done by women.

नेपोलियन का मत् था कि धर्म लड़कियों के लिए समाज में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण तत्व है। वह लड़कियों के गुणों को प्रमुख स्थान देता था।

नेपोलियन स्वास्थ्य के लिए नृत्य को आवश्यक समझता था, किन्तु कामुक नृत्य से उसे घृणा थी। उसका कथन था-

“Dancing is necessary for the health of the pupils, but it must be cheerful sort of dancing, not the kind they indulge in at the opera.

इस प्रकार नेपोलियन एक महान् शिक्षा सुधारक भी था।

(3) पेरिस का पुनर्निर्माण-

फ्रांस में बेकारी को दूर करने के लिए नेपोलियन ने पेरिस का पुननिर्माण करके उसे यूरोप का सबसे भव्य नगर बनाने का निश्चय किया। उसने नगर के हजारों लोगों को काम देने के लिए अनेक आज्ञायें प्रसारित की, जिनमें पहली आज्ञा यह थी कि- “नगर में बहुत से जूते बनाने वाले, टोप बनाने वाले दर्जी तथा जीनसाज बेकार हैं अत: ऐसी व्यवस्था की जाये कि जूतों के पांच सौ जोड़ी प्रतिदिन बनते रहें।”

उसने दूसरी आज्ञा यह निकाली कि-“सैंतो स्वान के दो हजार कारीगर प्रतिदिन कुर्सियां व दराजदार सन्दूक आदि बनाकर भेजते रहें।”

नेपोलियन ने पेरिस में अनेक भव्य इमारतों, सड़कों तथा पार्को का निर्माण करवाया और पेरिस को यूरोप की विद्या और कलाकौशल का केन्द्र बनाने के लिए इटली की सर्वश्रेष्ठ कला-कृतियों को वहाँ एकत्रित करवा दिया। पेरिस को सुन्दरता को बढ़ाने के लिए उसने अनेक योजनाओं का निर्माण किया । उसने देश के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों कलाकारों, शिक्षाविदों, भवन निर्माणकर्ताओं एवं श्रेष्ठ व्यक्तियों की एक सूची निर्मित करवाई और सबको राजकीय संरक्षण प्रदान किया।

नेपोलियन ने वर्साय तथा पेरिस के राजप्रासाद को अत्यधिक सुन्दर एवं भव्य बनवा दिया। दलदली जमीन को भवन योग्य बनवाया, राजमार्गों पर वृक्ष लगवाये तूलों तथा शरवर्ग बन्दरगाहों की मरम्मत करवाई। उसने लूवेर (Louver) के अजायबघर में यूरोप की दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह करवाया। उसने अपर्ने समय के प्रसिद्ध लेखक शातोबिया और लेखिका मैडम स्टायेल (Madam be stael) (नेकर की पुत्री) को विशेष सम्मान दिया।

नेपोलियन के इन कार्यों से पेरिस विश्व का एक प्रथम श्रेणी का नगर बन गया और फ्रांस की जनता उसे अपना मसीहा समझने लगी।

(4) प्रतिष्ठित दल की स्थापना-

सन् 1802 ई० में नेपोलियन ने देश सेवा एवं राष्ट्र भक्ति के आधार पर योग्य व्यक्तियों को एक नवीन ‘लीजियन ऑफ ओनर (Legion of Honour) प्रदान की। इस उपाधि के आधार पर उसने फ्रांस में एक प्रतिष्ठा मण्डल का निर्माण किया, जिसमें लगभग 6 बजार सदस्य थे। ये सदस्य योग्यता के आधार पर नियुक्त किए जाते थे। इन सदस्यों को, जो राष्ट्र तथा समाज की सेवा के लिए तत्पर होते थे, ‘लीजियन ऑफ आनर’ की उपाधि दी जाती थी।

समकालीन समालोचकों और अधिकारियों ने नेपोलियन की इस संस्था को क्रान्ति के सिद्धान्तों के प्रतिकूल मानकर, इसकी कटु आलोचना की है। जिस दिन इस उपाधि का पहली वार वितरण किया गया, उस दिन जनरल मोरो ने अपने कुत्ते के गले में एक पट्टा डाल दिया था, जिसका अभिप्राय यह था कि नेपोलियन की उपाधि वितरण भी गुलामी का पट्टा है।

जब आलोचकों ने इन उपाधियों को ‘खिलौना’ कहकर इनकी आलोचना की, तब नेपोलियन ने उनकी आलोचना का उत्तर देते हुए कहा-

“आप इन उपाधियों को खिलौना कहते हैं, ठीक है, किन्तु मानव जाति पर खिलौने के द्वारा ही शासन किया जाता है।”

नेपोलियन का यह कार्य समानता के सिद्धान्त के विरुद्ध अवश्य था, किन्तु उसकी ख्याति इस कार्य से कम होने के स्थान पर अधिक बढ़ी थी।

(5) सामाजिक समानता की स्थापना-

नेपोलियन ने फ्रांस में सामाजिक समानता की स्थापना की। उसने एक ऐसे समाज का निर्माण किया, जिसमें सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त थे और सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। इस दृष्टि से नेपोलियन को क्रान्ति का उत्तराधिकारी माना जा सकता है।

नेपोलियन ने समाज से विशेषाधिकार वर्ग का अन्त कर दिया और योग्यता के अनुसार सभी व्यक्तियों के लिए उच्च पदों के द्वार खोल दिए। अब कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता के बल पर प्रशासन में उच्च पद प्राप्त कर सकता था।

क्रान्ति के युग में प्रवासी सामन्तों और पादरियों को जो कानून क्रान्तिकारियों ने बनाये थे, नेपोलियन ने उन सबको रद्द कर दिया और भागे हुए लोगों को पुनः फ्रांस में लौटने और बसने की अनुमति प्रदान कर दी। उसने क्रान्ति विरोधी व्यक्तियों के अपराधों को क्षमा कर दिया। उसकी अनुमति पाकर लगभग 40 हजार व्यक्ति पुनः फ्रांस लौट आए।

नेपोलियन किसी विशेष राजनीतिक दल से सम्बन्ध न रखता था। उसने देश के सभी राजनीतिक दलों और संस्थाओं को समान सुविधा प्रदान की।

(6) सार्वजनिक सुधार-

नेपोलियन ने सार्वजनिक हित के लिए अनेक महत्वपूर्ण सुधार किए। उसने बेकारी को दूर किया। आवागमन को सुगम बनाने के लिए उसने 229 पक्की सड़कों का निर्माण करवाया। उसने बन्दरगाहों की मरम्मत करवाई और देश में सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन किया।

(7) अन्य सुधार-

नेपोलियन ने फ्रांस की जनता को सामाजिक समानता और धार्मिक स्वतंत्रता अवश्य प्रदान को किन्तु उन्हें राजनीतिक स्वतंत्रता से पूर्णतया वंचित रखा। उसने समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, भाषण, प्रेस आदि पर कठोर नियंत्रण लगा दिया।

(8) औपनिवेशिक नीति-

प्रथम कान्सल के रूप में नेपोलियन ने फ्रांस का औपनिवेशिक विस्तार करने का भी प्रयत्न किया। 1800 ई० में उसने स्पेन से लूसियाना (Lousiana), का प्रदेश छीन लिया और ‘हेति’ प्रदेश पर भी अधिकार जमाने का प्रयत्न किया, किन्तु ये प्रयल विफल रहे।

(9) नेपोलियन के सुधारों का मूल्यांकन (Estimate of Nepoleon’s Reforms)-

उपर्युक्त सुधारों में स्पष्ट है कि नेपोलियन एक महान् विजेता होने के साथ ही साथ एक महान् संगठनकर्ता, एक कुशल प्रशासक भी था। प्रथम कान्सल के रूप में उसने फ्रांस को व्यवस्था, शान्ति एवं समृद्धि की और भ्रष्टाचार तथा कुशासन को दूर करके प्रशासक को सुदृढ़ बनाया। नेपोलियन का महान् साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया, किन्तु उसके सुधार आज भी उसकी अद्भुत प्रशासनिक प्रतिभा की याद दिलाते हैं। वास्तुव में नेपोलियन की गणना विश्व के महान् प्रशासकों और राजनीतिज्ञों में की जा सकती है। उसने अपने सुधारों में स्वयं को क्रान्ति का उत्तराधिकारी तथा क्रान्ति की प्रतिक्रिया का प्रतीत सिद्ध कर दिया। उसके सुधारों का मूल्यांकन करते हुए ‘हेजन’ (Hazen) ने लिखा है-

“नेपोलियन के हृदय व मस्तिष्क पर क्रान्ति के सिद्धान्तों और मान्यताओं की छाप अवश्य थी, किन्तु उसकी संकल्प शक्ति व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के अधीन थी। सैनिक होने के कारण अपनी सम्प्रभुता को स्थापित करने के लिए उसने स्वतंत्रता के सिद्धान्त की उपेक्षा की। उसके सुधारों से फ्रांस को सामाजिक लाभ भी हुआ, किन्तु फ्रांस की जनता स्वशासन एवं स्वतंत्रता के प्रोत्साहन को खोकर पुनः राजनीतिक दासता के गर्त में गिर गई।”

इतना होने पर भी नेपोलियन को फ्रांस का निर्माता महान् प्रशासक एवं महान् सुधारक निर्विवाद रूप से माना जा सकता है। उसने 4 वर्ष के अल्प समय में फ्रांस की काया पलट करके अपनी अद्भुत योग्यता का परिचय दिया। उसने अपने सुधारों से फ्रांस पर लगे हुए क्रान्ति के घावों को दूर करने का प्रयल किया। उसके सुधारों ने नेपोलियन का नाम विश्व में अमर कर दिया।

इतिहासकार ‘फिलनले’ ने नेपोलियन के सुधारों की प्रशंसा करते हुए लिखा है-

“नेपोलियन फ्रांस की राज्य क्रान्ति का ‘वरपुत्र एवं उत्तराधिकारी था, जिसने यदि स्वतंत्रता को नष्ट भी किया तो भी उसने समानता की रक्षा अपने बनाये हुए कानूनों में इसे निहित करके की।”

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Pankaja Singh

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