इतिहास

शुंगों का इतिहास | गवंश के उदय के समय की राजनैतिक दशा | शुंगवंश का प्रादुर्भाव | शुंग कौन थे?

शुंगों का इतिहास | गवंश के उदय के समय की राजनैतिक दशा | शुंगवंश का प्रादुर्भाव | शुंग कौन थे?

शुंगों का इतिहास (इतिहास के साधन)

‘पुराण’ बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ पातंजलि द्वारा रचित ‘महाभाष्य’ कालिदास रचित ‘मालविकाग्निमित्रम्’, तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ के वृत्तान्त, चौदहवीं शती ई० के जैन ग्रन्थकार थेरावलि के उल्लेख, बौधायन श्रौतसूत्र, ‘मनुस्मृति’ तथा ‘दिव्यावदान’ आदि साहित्यिक एवं धार्मिक ग्रन्थों द्वारा शुंगवंश के इतिहास का पर्याप्त परिचय प्राप्त होता है। पुरातत्त्व सम्बन्धी सामग्री में अयोध्या के अभिलेख विशेष उल्लेखनीय हैं। इन साधनों, साक्ष्यों तथा प्रमाणों के आधार पर शुंग वंश के इतिहास का वर्णन निम्नलिखित है-

शुंगवंश के उदय के समय की राजनैतिक दशा-

मौर्य साम्राज्य दिनोंदिन पतन की ओर अग्रसर होता जा रहा था। साम्राज्य की दुर्बलता तथा अन्तिम मौर्य-शासकों की अयोग्यता का लाभ उठाकर अनेक राज्य अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा करते जा रहे थे। राजनैतिक परिस्थिति के इस अनेकतापूर्ण रूप के अतिरिक्त धार्मिक प्रतिक्रिया के रूप में ब्राह्मण भी कुछ-न-कुछ करने के लिए उद्यत थे। ब्राह्मण प्रतिक्रिया का कारण मौर्य वंश की धार्मिक नीति थी। अनेक ब्राह्मण ऐसे थे जो मौर्य-साम्राज्य के उच्चपदों पर स्थित तो थे परन्तु उनके हृदय में अपमान तथा अपने धर्म की उपेक्षा की याद भूलती नहीं थी। राजनीति तथा धर्म के इस मिले-जुले ़वातावरण ने मौर्यवंश पर ग्रहण लगा दिया तथा पुष्यमित्र ने अपनी सुनिश्चित योजना द्वारा अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर दी।

शुंगवंश का प्रादुर्भाव- पुराणों तथा ‘हर्षचरित’ द्वारा इस बात की प्रामाणिकता सिद्ध होती है कि आन्तरिक विकेन्द्रीकरण तथा बाह्य आक्रमणों की आशंका के क्षणों में पुष्यमित्र शुंग ने अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या करके शुंगवंश का प्रादुर्भाव किया। किसी लेखक ने शुंगवंश के प्रादुर्भाव का वर्णन करते हुए लिखा है-“मौर्य सेना के सेनापति के पद पर कर्मनिष्ठ ब्राह्मण पुष्यमित्र अवस्थित था। आश्चर्य नहीं कि मौर्य सेना में अन्य ब्राह्मण सैनिक तथा पदाधिकारी भी रहे होंगे। प्रतीत होता है कि पुष्यमित्र की योजना में उनका भी सक्रिय सहयोग रहा होगा। सेना के समक्ष सम्राट की हत्या एवं सैनिक वर्ग की क्षुब्धता का प्रमाण है। निश्चय ही मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या के पीछे ब्राह्मण-वर्ग की प्रतिक्रिया का हाथ था।”

शुंग कौन थे?

शुंगवंश की उत्पत्ति का प्रश्न अनिश्चितता एवं संदेहों से परिपूर्ण है। इस वंश की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न लोगों की भिन्न-भिन्न धारणाएँ हैं। पाणिनी से शुंगों को भारद्वाज ब्राह्मण गोत्र का बताया है। अनेक सूत्रों से पता चलता है कि वे ब्राह्मण थे और धार्मिक जगत में उनकी प्रभुता थी। अतः हमें इस विवादास्पद विषय के लिए उन सभी मतों एवं साक्ष्यों का विवेचन करना अनिवार्य है जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शुंगवंश की जातीयता एवं उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हैं। पुष्यमित्र शुंग की जाति के सम्बन्ध में निम्नलिखित चार प्रमुख मत हैं-

(1) क्या पुष्यमित्र पारसी था?- शुंगवंशीय शासकों के नाम में ‘मित्र’ शब्द जुड़ा है। मित्र शब्द का अर्थ है सूर्य । अतः कुछ विद्वानों ने मित्र शब्दार्थ को चरितार्थ करते हुए उन्हें सूर्य का उपासक बताया है। सूर्य की उपासना पारसी जाति द्वारा की जाती है; अतः पुष्यमित्र पारसी था। परन्तु यह मत सर्वमान्य नहीं, क्योंकि एक विदेशी पारसी मौर्य सेना का सेनापति नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त ‘मित्र’ शब्द के आधार पर ही शुंगवंश को पारसी कह देना उचित नहीं जान पड़ता। किसी भी साक्ष्य द्वारा पुष्यमित्र के पारसी होने का समर्थन प्राप्त नहीं होता है।

(2) क्या पुष्यमित्र मौर्य था?- ‘दिव्यावदान’ में पुष्यमित्र का नाम वंशावली में वर्णित किया गया है। इसके विपरीत अन्य सभी साक्ष्य पुष्यमित्र को एक नये वंश का संस्थापक बताते हैं। अतः ऐसा ज्ञात होता है कि ‘दिव्यावदान’ के लेखक ने भ्रमवंश अथवा अज्ञानवश पुष्यमित्र का नाम मौर्यवंशावली में जोड़ दिया है। यदि वह स्वयं मौर्यवंश का ही शासक था तो फिर उसके एक अन्य वंश की स्थापना क्यों की? अतः निश्चित ही वह मौर्यवंश से सम्बन्धित नहीं था।

(3) क्या पुष्यमित्र काश्यपगोत्रीय बैम्बिक ब्राह्मण वंश का था?- यह तो पूर्णतया निश्चित ही है कि पुष्यमित्र ब्राह्मण था; क्योंकि अधिकांश साक्ष्य शुंगों के ब्राह्मण होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। परन्तु ब्राह्मण जाति में उनका गोत्र कौन-सा है? यह एक विवादास्पद प्रश्न है। महाकवि कालिदास ने ‘मालविकाग्निमित्रम्’ में बताया है कि पुष्यमित्र का पुत्र अग्निमित्र बैम्बिक वंशीय ब्राह्मण था। ‘बैम्बिक’ शब्द को आधार मानकर कुछ विद्वानों ने पुष्यमित्र को बिम्बिसार से संबद्ध किया है। परन्तु इसका कोई प्रामाणिक साक्ष्य नहीं है। बौधायन श्रौतसूत्र के अनुसार भी शंग बैम्बिकगोत्रीय ब्राह्मण था। हरिवंश के अनुसार-

“औदिभज्जो भविता कश्चित् सेनानी काश्यपो द्विजः

अश्वमेधं कलियुगे पुनः प्रत्यहरिष्यति।।”

अतः हरिवंश के उपरोक्त कथनानुसार औदिभज्ज काश्यप ब्राह्मण सेनानी ने कलियुग में अश्वमेध यज्ञ किया था। ‘औदिभज्ज’ शब्द का तात्पर्य है-अनायास उदय होने वाला। पुष्यमित्र ने अचानक ही मौर्य सम्राट बृहद्रथ का वध करके सिंहासन प्राप्त किया था। अयोध्या से प्राप्त अभिलेख के अनुसार पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ भी किये थे। हरिवंश का वर्णन युक्तिसंगत एवं उचित जान पड़ता है। अतः इस आधार पर यह कहना उचित ही है कि पुष्यमित्र ब्राह्मण होने के साथ-साथ बैम्बिक गोत्र का था।

(4) क्या पुष्यमित्र भारद्वाज गोत्रीय शुंग ब्राह्मण था?- ‘वृहदारण्यक उपनिषद’ में एक आचार्य का नाम शौंगीयपुत्र था। इसी तरह ‘वंश ब्राह्मण’ में शौंगायनी भी एक आचार्य के रूप में सामने आते हैं। पुराणों के अनुसार पुष्यमित्र के अनुवर्ती राजा का नाम शुंग था। आश्वालायन श्रौतसूत्र के टीकाकार के अनुसार भी शुंग आचार्य थे। आचार्य केवल ब्राह्मण  राज्य सर्वोत्कृष्ट होता है। मनु ने, जो पुष्यमित्र के समकालीन थे, कहा है कि वेद-शास्त्र को जानने वाला ही सेनापतित्व, राजनीति तथा राज्य करने के योग्य होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त कथन मनु ने पुष्यमित्र को इंगित करते हुए कहा है। तिब्बती लेखक तारानाथ ने तो स्पष्ट रूप से कहा है कि पुष्यमित्र ब्राह्मण था। पाणिनी एवं आश्वालायन श्रौत सूत्र के अनुसार पुष्यमित्र शुंग भारद्वाजगोत्रीय था। ब्राह्मण महामुनि भारद्वाज अपने समय के प्रमुख वैज्ञानिक तथा अनुसंधानकर्ता थे। यह कथन भी पुष्यमित्र को ब्राह्मण सिद्ध करता है। इस मत के विरुद्ध कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया गया है।

निष्कर्ष-

अतः उपरोक्त विवेचित चारों मतों को दृष्टिगत करते हुए पुष्यमित्र को काश्यपगोत्रीय बैम्बिक ब्राह्मण या भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण ही स्वीकार किया जा सकता है। आधुनिक मान्यता के अनुसार पुष्यमित्र को भारद्वाजगोत्रीय शुंग ब्राह्मण स्वीकार किया जाना ही सत्य एवं प्रामाणिक प्रतीत होता है।

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Pankaja Singh

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