इतिहास

प्रागैतिहासिक काल | पुरा पाषाण युग | पूर्व पाषाण युग | मध्य पाषाण युग | नव पाषाण युग | उत्तर पाषाण काल

प्रागैतिहासिक काल | पुरा पाषाण युग | पूर्व पाषाण युग | मध्य पाषाण युग | नव पाषाण युग | उत्तर पाषाण काल

प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक शब्द प्राक् + इतिहास से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है- इतिहास के पूर्व का युग। विद्वानों ने प्रागैतिहासिक काल तथा ऐतिहासिक काल के बीच एक अन्य की भी कल्पना की है, जिसे आद्यैतिहासिक काल (प्रोटोहिस्ट्री काल) कहा गया है। यह काल प्रागैतिहासिक तथा ऐतिहासिक दोनों कालों को एक-दूसरे के समीप लाने में कड़ी के समान है। इस काल में दोनों कालों की विशेषताएँ पायी जाती हैं। प्रागैतिहासिक काल के समान इसमें लिखित सामग्री का तो अभाव है, किन्तु ऐतिहासिक काल की तरह मानव के व्यवस्थित जीवनयापन के आवश्यक प्रमाण मिलते हैं जिनके आधार पर उस काल की सभ्यता का एक संक्षिप्त किन्तु स्पष्ट चित्र उभर कर सामने आता है। भारत में सिन्धुघाटी की सभ्यता इसी प्रकार के काल का एक उपयुक्त उदाहरण है।

मानव जीवन की कहानी मानव के इस धरती पर लाखों वर्ष पूर्व उद्भव के साथ ही प्रारम्भ होती है। मानव जीवन के विकास की उस लम्बी कहानी को इतिहास कहते हैं जिसकी जानकारी के लिए लिखित सामग्री उपलब्ध है। किन्तु लेखन कला के विकास के पूर्व भी मानव लाखों वर्ष तक पृथ्वी पर विचरण कर चुका था। उस समय वह लिखने की कला से अनभिज्ञ था। यही कारण है कि मानव इतिहास की इस सामग्री का कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अतः यह विशाल अतीत जिसकी घटनाओं को मानव लिपिबद्ध करना नहीं जानता था, प्राक् इतिहास कहलाता है। इस युग को प्रागैतिहासिक काल भी कहते हैं।

पुरा पाषाण युग अथवा पूर्व पाषाण युग

लिखित प्रमाणों के अभाव में यह बताना कठिन है कि यह काल कब आरम्भ हुआ, किन्तु ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह काल मानव के आदिकाल से प्रारम्भ होकर लाखों वर्षों तक चलता रहा। खुदाई में इस काल के अधिकांश हथियार पत्थरों के ही बने हुए मिले हैं। इस काल के औजार भद्दे, बेडौल तथा खुरदुरे थे, किन्तु इन्हीं की सहायता से मानव अपनी रक्षा करने और जीवन निर्वाह करने में सफल हो सका। इस काल के औजारों में कुल्हाड़ी, गंडासा तथा शल्कल (रुखानी) प्रमुख थे। इस युग के अंतिम चरण में अन्य उपयोगी हथियार; जैसे-धनुष, भाला, मछली पकड़ने के हथियार, छेदनी, सुई आदि का निर्माण होने लगा। पत्थरों के औजारों के अतिरिक्त हड्डी, सींग तथा हाथीदाँत के भी औजार बनाए जाने लगे। धनुष-बाण तथा भाले की सहायता मानव दूर से ही पशुओं का शिकार करने लगा। इस काल के बने औजार, यूरोप, अफ्रीका तथा एशिया के विभिन्न स्थलों पर प्राप्त हुए हैं। इस युग में मानव पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर था। उसे कृषि एवं पशुपालन का कोई ज्ञान नहीं था। प्रारम्भ में मानव पशुओं के समान ही जंगलों में नग्न विचरण करता था। शीत एवं वर्षा से बचाव के लिए वह अपने शरीर को छाल तथा जानवरों की खालों से लपेट लेता था। पुरा पाषाण युग के आरम्भ में मानव खुले आकाश के नीचे, वृक्षों की शाखाओं तथा नदियों एवं झीलों के किनारों पर रहता था। प्रारम्भ में अग्नि का ज्ञान न होने के कारण वह कच्चा मांस ही भक्षण करता था, परन्तु आग की खोज के बाद मानव कच्चे मांस को भूनकर खाने लगा। यह बताना कठिन है कि अग्नि का आविष्कार किस प्रकार हुआ? ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि मानव ने पत्थरों की रगड़ से उत्पन्न चिंगारी से ही आग जलाना सीख लिया। आग की खोज इस युग के मानव की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है जिससे उसके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ। उसे आग के प्रयोग से जंगली पशुओं के डराने एवं दूर भगाने तथा अंधेरी गुफाओं को प्रकाशित करने में सहायता मिली। इस काल के अंतिम चरण में बड़े, सुन्दर तथा आकर्षक चित्रों के उदाहरण मिले हैं। इन चित्रों में अधिकांशतः पशुओं के चित्र हैं। फ्रांस, स्पेन तथा इटली में इस प्रकार की अनेक अलंकृत गुफाएँ मिली हैं।

पुरा पाषाण युग के मनुष्य अपने मृतकों के शवों को जमीन में दफनाते थे। वे उन शवों के साथ भोजन सामग्री, हथियार, आभूषण आदि भी रख देते थे ताकि मृतक व्यक्ति उनका उपयोग कर सके। दफनाने के पूर्व शवों को लाल रंग से रंगने की प्रथा भी प्रचलित थी। सम्भवतः उनका यह विश्वास था कि इस लाली से उनके जीवन की लालिमा पुनः लौट सकती है। इस प्रकार परलोक सम्बन्धी जीवन में उनका विश्वास था।

मध्य पाषाण युग

पुरा पाषाण काल में मानव पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर था। किन्तु नव पाषाण काल में वह कृषि तथा पशुपालन द्वारा अधिक भोजन सामग्री उत्पन्न करने लगा। इन दोनों कालों के बीच मध्य पाषाण युग था।

प्रागैतिहासिकविदों ने प्रातिनूतन कालोत्तर शिकार मत्स्य एवं संचय की पूर्ववर्ती आर्थिक स्थिति वाले शिकारियों को समायोजित करने के लिए मध्य पाषाण-काल के अस्तित्व को स्वीकार किया है। यूरोप की मध्य पाषाणिक संस्कृति जिसे पहले किचन-विपड़न कहा जाता था, की प्रमुख पहिचान लघु पाषाण-उपकरण हैं। यूरोप की प्रमुख मध्य पाषाणिक उपकरण- परम्पराओं में एजीसियन, मेलपोसियन, तरदेनायसियन, सोवटरियन एवं काम्पिनियन का नामोल्लेख किया जा सकता है। विश्व की मध्य पाषाणिक संस्कृति के बारे में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं। इस काल के साक्ष्य प्राप्य हैं कि मेसोलिथिक लोग अपने आवास के लिए समुद्रीय तटों, नदी किनारों एवं झीलों के सीमान्त का प्रायः चयन करते थे, उच्च पूर्व- पाषाण काल से मध्य पाषाण काल में जिस समय संक्रमण हो रहा था, उस समय विश्व की परिस्थिति की इस बदले में व्यापक परिवर्तन हो रहे थे। मध्य-पाषाण काल के लोगों को इस बदले हुए वातावरण के अनुरूप अपने आपको डालना पड़ा। मछली पकड़ने पर सम्भवतः विशेष बल दिया जा रहा था। मछली पकड़ने के तरीके से सम्बन्धित प्राचीन काल की वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में प्राप्य हैं। कलात्मक कृतियों के बारे में स्पष्ट हास परिलक्षित होता है।

इस काल के अवशेष दक्षिण पूर्वी एशिया, यूरोप तथा भारत में प्राप्त हुए हैं। किसी भी अन्य पूर्ववर्ती की तुलना में श्रेष्ठ पाषाणिक काल के बारे में अधिक जानकारी  प्राप्य है और पुरातत्ववेत्ताओं ने क्षेत्रीय संस्कृति अनुक्रमों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। इनमें से सबसे मशहूर (प्रसिद्ध) दक्षिण, पश्चिम फ्रांस का है-1. शैटल पिरानियन, 2. औरीनीशियन, 3. ग्रेयीशियन, 4. साल्यूत्रियन, 5. मैडालियन । स्पेन, इटली एवं पूर्वी यूरोप के क्षेत्रों के लिए इसी से मिलते-जुलते सांस्कृतिक अनुक्रम प्राप्य हैं।

विशिष्ट पाषाण-उपकरणों का निर्माण पतले आकार के समानान्तर पार्श्व वाले ब्लेड पर किया जाता था। उपकरणों में प्रायः कार्य-विशेष सम्बन्धित उपकरण होते थे, जिन्हें प्रायः ल्यूरिन या तक्षणी कहा जाता है और जिसका प्रयोग हड्डी, सींग, हाथी दाँत और यदा-कदा मुलायम पत्थर एवं निस्सन्देह रूप से लकड़ी को तराशने के लिए किया जाता था।

नव पाषाण युग अथवा उत्तर पाषाण काल

मानव ने सभ्यता के विकास में धीरे-धीरे प्रगति कर नव पाषाण युग में प्रवेश किया। अभी तक वह प्रकृति पर ही आश्रित था। अब मानव भोजन संग्रह करने वाले के स्थान पर कृषक एवं पशुपालक बन गया। धीरे-धीरे कुटुम्बों तथा ग्रामों का विकास हुआ। विद्वानों का ऐसा विचार है कि जिस समय मानव ने मध्य पाषाण काल में कृषि कार्य को अपना लिया उसी समय नव पाषाण युग का प्रारम्भ हो गया। कुछ विद्वानों ने इस काल की अवधि लगभग दस हजार ई० पू० से पाँच हजार ई० पू० तक स्वीकार की है। पश्चिमी एशिया, ईरान तथा उत्तरी अफ्रीका जलवायु परिवर्तन के कारण मरुभूमि में परिवर्तित हो गए। कुछ समय पश्चात् कृषि का आरम्भ हुआ। कृषि के आविष्कार के साथ मानव का खानाबदोशी जीवन समाप्त हो गया। वह एक ही स्थान पर बस्तियाँ बनाकर स्थायी रूप से निवास करने लगा। कृषि का प्रमाण सर्वप्रथम ईरान, मिस्त्र, सीरिया तथा थाईलैण्ड आदि देशों में मिला है, जहाँ पानी की बड़ी सुविधा थी। मानव कुछ पशुओं को पालने लगा, जिनमें भेड़, बकरी, गाय, सूअर, घोड़ा आदि प्रमुख थे। वह बैलों का प्रयोग हल में करने लगा। वह गेहूँ, जौ, मक्का, साग-सब्जी आदि की फसल तैयार कर उसे अपने भोजन में प्रयोग करने लगा। इसके अतिरिक्त वह अपने भोजन में मांस-मछली, फलों आदि का भी प्रयोग करने लगा। प्रारम्भ में तो सूखी चीजों के रखने के लिए सीकों तथा पेड़ों की टहनियों से डलिया बनायी जाने लगीं जिन पर मिट्टी का लेप लगा दिया जाता था। बाद में मिट्टी के बर्तन हाथ से बनाकर उसे आग में पका लेते थे। इन बर्तनों पर चित्रकारी भी की जाने लगी। इस काल में मनुष्य ने कताई-बुनाई की कला का आविष्कार किया। मिस्त्र तथा पश्चिमी एशिया में खुदायी में पराप्त चरखी एवं करघा आदि वस्तुओं से ज्ञात होता है कि इस युग में सूत कातने तथा कपड़ा बुनने की कला का आविष्कार हो चुका था। चमड़े के अतिरिक्त कपास, सन तथा ऊन से वस्त्र तैयार किये जाने लगे। इस युग के दैनिक जीवन के प्रयोग के उपकरणों में हल, हँसिया, तकली आदि थे। आखेट के हथियारों में हथौड़ा, धनुष-बाण, बरछी एवं कुल्हाड़ी प्रमुख थे। सम्भवतः इस युग पहिये का भी आविष्कार हुआ जो मानव की महान् उपलब्धि है। नव पाषाण युग के लोग प्रकृति की विभिन्न शक्तियों के उपासक थे, वे जल, वायु, सूर्य, चन्द्र, तारे आदि को आलौकिक शक्ति मानकर उनकी पूजा करने लगे। यहाँ के अनेक स्थानों पर मिट्टी की बनी स्त्री मूर्तियाँ मिली हैं जो मातृदेवी की मूर्तियाँ समझी जाती हैं। इस काल में शवों को जमीन में दफनाने की प्रथा थी। साथ ही अन्य उपयोगी वस्तुएं भी रख दी जाती थी। अनेक स्थानों पर शवों को जलाने की भी प्रथा थी।

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Pankaja Singh

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