एस्किमो | एस्किमो द्वारा विकसित सांस्कृतिक भूदृश्य की मुख्य विशेषता | एस्किमो के निवास्य क्षेत्र, अर्थव्यवस्था एवं समाज का वर्णन
एस्किमो
एस्किमो उत्तरी अमेरिका के ध्रुवीय छोर तथा इसके पास के द्वीपों, ग्रीनलैंड के तटीय भागों एवं एशिया के सुदूर उत्तरी-पूर्वी छोर के निवासी हैं। चूँकि धरातल के जिस भाग पर ये लोग रहते हैं वहाँ साधन बहुत ही सीमित है। अतः इन लोगों का जीवन पूर्ण रूप से शिकार पर निर्भर होता है जिसके लिए ये समुद्रों की शरण लेते हैं। ग्रीनलैण्ड का विस्तार लगभग 82,73000 वर्ग मील है।
अधिकांश क्षेत्रों में इन लोगों के जीवन का ढंग मुख्य रूप से श्वेत लोगों के सम्पर्क के कारण परिवर्तित हो गया है। फलस्वरूप श्वेत लोगों के आग्नेयास्त्रों एवं अन्य औजारों की सुविधा के कारण ये लोग बहुत जल्दी ही प्रस्तर युग से लौह युग में पहुँच गये हैं। इनकी पोशाकें एवं भोजन परिवर्तित हो गये हैं। यही नहीं, बीमारियों, मादक पदार्थों आदि द्वारा इनकी बहुत हानि हुई है और अब तो इनकी शुद्ध जाति भी नहीं बची है। केवल सुदूर उत्तर में, ग्रीनलैण्ड के पश्चिमी तट पर 76°-79° उत्तरी अक्षांशों के बीच, उत्तरी ध्रुव से लगभग 3,600 किमी. दूर इनकी एक शुद्ध जाति बची है, जिन्हें ‘ध्रुवीय एस्किमो’ (Polar Fskimo) कहा जाता है।
एस्किमो लोगों का निवास-क्षेत्र खड़े ढालवाला चट्टानी तटीय भाग है जहाँ पर सागर के किनारे एक सँकरी एवं अक्रामक चौरस मैदानी पेटी हैं जिसमें इनकी बस्तियाँ पायी जाती हैं। धरातल के आन्तरिक भाग में बर्फ की बहुत मोटी पर्त्त हमेशा जमी रहती है। कहीं-कहीं बर्फ समुद्र के किनारे तक फैली रहती है जिसका कुछ भाग टूटकर समुद्र में (Iceberg) की भाँति बहते हुए पिघलता है। यहाँ शीतकाल अत्यन्त कठोर होता है और अंधेरा छाया रहता है। जनवरी मास का औसत तापमान 25°C रहता है, जबकि ग्रीष्म काल के लम्बे दिनों में भी तापतान 10°C से ऊपर नहीं होता है।
धरातल पर मिट्टी की परत बहुत ही पतली है। कहीं-कहीं पर तो नंगी चट्टानें ही धरातल पर दिखायी देती हैं। अतः ऐसी परिस्थितियों में वनस्पति स्वाभाविक रूप से नाममात्र को ही उगती है। वृक्ष उगते ही नहीं। मास (Masses) एवं ग्रीष्मकाल में कुछ फूल वाले पौधे उपयुक्त क्षेत्रों में उगते तथा इसी ऋतु में समाप्त भी हो जाते हैं।
शिकार एवं शरण (Hunting and Shelter)-
ऐसी सीमित संभावनाओं वाले क्षेत्रों में यहाँ के निवासियों के साधन जब कभी भी समाप्त होने लगते हैं तब इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान को घूमते रहना पड़ता है, फलस्वरूप अपनी सुविधा के लिए ये बहुत-सी वस्तुएं इकट्ठी नहीं कर सकते। ग्रीष्मकाल में एस्किमो चमड़े से बने तम्बुओं में निवास करते है जिसे 50-60 सील मछलियों के चमड़े को एक साथ सिलकर तैयार करते हैं तथा खम्भों से बने ढाँचे पर फैला देते हैं। इसे (Tupic) का नाम दिया जाता है। शीतकाल में ये लोग (Tupic) को छोड़करऔर भी गर्म निवास बनाते हैं जिसकी दीवालें प्रस्तर की छतें चूने के पत्थर अथवा स्लेट की होता है। इसके ऊपर घास-फूस बिछा देते हैं। इसके ऊपर ही ग्रीष्मकाल में प्रयुक्त होने वाले चमड़े के तम्बू को फैला देते हैं। इसके आन्तरिक भाग में भी सील के चमड़े को सिल देते हैं। इस पूरे निवास को ‘इग्लू’ (Igloo) कहा जाता है। बर्फ से बने मकान ‘इग्लूयाक’ (Iglooyak) को बहुत थोड़े समय तक ही उपयोग करते हैं।
ग्रीष्मकाल के आते ही एस्किमो अपने इगलू की छत को खोल देते हैं और पुनः ट्यूपिक में रहने लगते हैं। ग्रीष्मकाल एवं शीतकाल दोनों ऋतुओं में से लोग समुद्र के किनारे ही अपने निवास बनाते हैं क्योंकि अपने भोजन का अधिकांश ये समुद्रों से ही प्राप्त करते हैं। ये अपने निवास बनाते समय जल की सुविधा, तेज ठंडी हवाओं से सुरक्षा आदि का ध्यान रखते हैं। ग्रीष्म एवं शीतकाल में घरों को गर्म रखने के लिए मुलायम सोपस्टोन (Soapstone) से बनीं छिछली कटोरियों में समुद्री मछलियों की चर्बी जलाते हैं।
भोजन की पूर्ति (Food supply)-
ध्रुवीय एस्किमो ग्रीष्म एवं शीतकाल दोनों ऋतुओं में समान रूप से धरातल एवं समुद्र में शिकार करते हैं। शिकार की सफलता पर ही इनका जीवन निर्भर करता है। कुछ भोजन उबालकर पकाते हैं, जबकि अधिकांश कच्चा ही खाया जाता है। समुद्र से ये लोग सील, वौलरस, नारवाल एवं बेलूजा मछलियों का शिकार करते हैं। इनसे न केवल माँस ही वरन् चर्बी तथा चमड़ा भी प्राप्त करते हैं। धरातल पर शिकार द्वारा कौरिवाए एवं चिड़ियाँ प्राप्त करते हैं।
खुले सागर में शिकार के लिए ‘कयाक’ (Kayak) का उपयोग करते हैं जो कि लकड़ी के ढाँचे पर चमड़े से ढंका होने के कारण जल द्वारा सुरक्षित रहता है। इस कयाक द्वारा ये लोग वालरस एवं अन्य समुद्री जीवों का शिकार करते हैं।
वस्त्र एवं औजार (Clothing and Utensils) –
इनके वस्त्र चमड़े से बनते हैं। सूई एवं तागे भी मछलियों के चमड़े एवं उनकर हड्डियों से बनते हैं। चमड़े तैयार करने का कार्य स्त्रियाँ करती हैं। पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों के वस्त्र एक समान होते हैं जिनका उद्देश्य शरीर की ठंड से सुरक्षा है न कि दिखावा।
इसी प्रकार इनके हथियार भी पशुओं की हड्डियों तथा चमड़े से ही बनते हैं। इनके तीर एवं धनुष हड्डियों एवं चमड़े से ही बनाये जाते हैं। कुत्तों को हाँकने के लिए कोड़े तथा सामान ढोने वाली स्लेज में भी चमड़े एवं हड्डियों का ही उपयोग होता है।
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