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जनसंख्या का विश्व वितरण प्रतिरूप | जनसंख्या समस्या का समाधान | विश्व में जनसंख्या घनत्व एवं वितरण का प्रभावित करने वाले कारक

जनसंख्या का विश्व वितरण प्रतिरूप | जनसंख्या समस्या का समाधान | विश्व में जनसंख्या घनत्व एवं वितरण का प्रभावित करने वाले कारक

जनसंख्या का विश्व वितरण प्रतिरूप

(World Distribution Pattern of Population)

सन् 1991 में विश्व की कुल जनसंख्या 538,6 करोड़ तथा जनसंख्या का औसत घनत्व 39 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. था। इस जनसंख्या का स्थल के 13.6 करोड़ वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर  अति-असमान वितरण देखने को मिलता है। जनसंख्या घनत्व के वितरण की असमानताओं के आधार पर विश्व की जनसंख्या को निम्नलिखित चार वर्गों में रखा गया है-

(1) उच्च जनसंख्या घनत्व के क्षेत्र या विश्व के प्रमुख सघन जनसमूह (Ares of High Density of Major Human Agglomerations);

(2) मध्यम जनसंख्या घनत्व के क्षेत्र (Areas of Medium Population Density).

(3) कम जनसंख्या घनत्व के क्षेत्र (Areas of Low Population Density);

(4) प्रायः बिना बसे क्षेत्र (Almost Uninhabited Areas)

(1) उच्च जनसंख्या घनत्व के क्षेत्र या विश्व के प्रमुख सघन जनसमूह क्षेत्र

इस वर्ग में सम्मिलित विश्व के भू-भागों पर जनसंख्या का सघन जमाव मिलता है। इन भू-भागों में जनसंख्या का घनता 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. से अधिक मिलता है तथा यहाँ विश्व की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इस प्रमुख सघन जनसमूह में विश्व के निम्नलिखित तीन क्षेत्र सम्मिलित हैं-

(i) दक्षिणी, दक्षिण-पूर्वी एवं पूर्वी एशिया;

(ii) मध्यवर्ती एवं उत्तर-पश्चिमी यूरोप तथा यूरोपियन रूस के दक्षिण-पश्चिमी भाग;

(2) दक्षिणी, उक्षिण-पूर्वी एवं पूर्वी एशिया में विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या निवास करती है। सन् 1991 में विश्व की लगभग 48 प्रतिशत जनसंख्या एशिया के इन्हीं भागों में स्थित देशों-चीन, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इण्डोनेशिया व जापान में निवास करती थीं, जबकि यहाँ विश्व के कुछ क्षेत्रफल का लगभग 10 प्रतिशत भाग स्थित है। चीन विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है, जिसकी सन् 1991 में जनसंख्या लगभग 116 करोड़ तथा औसत जनसंख्या घनत्व 120 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. था। चीन के पूर्वी तटीय भागों तथा नदी घाटियों में जनसंख्या का घनत्व 500 से 800 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. तक मिलता है।

अत्यनत कठोर परिस्थितियों पर मानवीय विजय की सम्भावना नहीं के बराबर है। वस्तुतः विज्ञान और तकनीकि ज्ञान के प्रयोग से वसे हुए भागों की सीमा को कुछ ही आगे बढ़ाया जा सकता है।

(3) प्राकृतिक और मानवीय प्रतिबन्ध- जब किसी प्रदेश की जनसंख्या का भार वहाँ के प्राकृतिक संसाधन वहन नहीं कर पाते तो उस प्रदेश में भुखमरी फैल जाती है। दरिद्रता के कारण रहन-सहन इतना गिर जाता है कि बीमारी और महामारी से मृत्यु दर बढ़ जाती है और जनसंख्या धीरे-धीरे कम होने लगती है। गृह और बाह्य युद्ध से ही जनसंख्या कम हो जाती है।

(4) जनसंख्या भार का भावी भय और राजनैतिक प्रतिबन्ध-नये वसे देशों में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, कनाडा, दक्षिणी अफ्रीका और साइबेरिया में जनसंख्या अभी कम है। इन देशों के आर्थिक विकास का स्तर ऊंचा है। साथ ही आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधनों की भी कमी है। संसार के अधिक सघन बसे भागों की जनसंख्या इन देशों में जाकर रह सकती है। अकेले ऑस्ट्रेलिया में ही 45 करोड़ अतिरिक्त जनसंख्या को अच्छी प्रकार भरण-पोषण प्राप्त हो सकता है, लेकिन इन नये देशों ने जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों को देखकर अपने देशों में एशियाई तथा अफ्रीकी देशों के लोगों पर आवसीय प्रतिबन्ध लगा दिया है। यही नहीं, इन नये प्रदेशों को सघन जनसंख्या वाले देशों के आक्रमण का भी भय हैं।

जनसंख्या समस्या का समाधान

(Solution of Population Problem)

वर्तमान समय में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या से उत्पन्न समस्या का समाधान ढूंढ़ना अति आवश्यक हो गया है। संयुक्त राज्य संघ ने जनसंख्या विशेषज्ञों की एक संस्था बनाई हुई है। जिसमें जनसंख्या सम्बन्धी विविध पक्षों का अध्ययन होता है। जनसंख्या वृद्धि के समाधान के लिए निम्नलिखित सात बातें बतायी जाती हैं ताकि किसी प्रदेश की जनसंख्या और संसाधनों में सन्तुलन कायम रहे और वहाँ आदर्श जनसंख्या रहे-

(1) उत्पादन वृद्धि- विश्व के कई देशों में कृषि उत्पादन में तभी अधिक वृद्धि की जा सकती है, जबकि उन देशों में उत्तम बीज, उपयुक्त खाद, सिंचाई एवं वैज्ञानिक सुविधाएँ प्रदान की जायें। भारत में यूरोपीय देशों की अपेक्षा प्रति एकड़ उत्पादन बहुत कम है जिसको बढ़ाया जाना चाहिए। अधिक उत्पादन वृद्धि के उद्देश्य को मस्तिष्क में रखकर कृषि-भूमि, नदियों, वनों और खनिजों का समुचित उपयोग करना चाहिये।

(2) औद्योगिक विकास- किसी देश में औद्योगिक विकास के होने पर बढ़ती हुई जनसंख्या को रोजगार हिमल जाता है तथा देश की आर्थिक स्थिति भी सुधर जाती है। इसके साथ- साथ परिवहन, संचार और व्यापार का भी विकास हो जाता है। कृषि योग्य भूमि पर खाद्यान्नों के अलावा व्यापारिक फसलों का उत्पादन बढ़ाकर उन पर आधारित उद्योग-धन्धे स्थापित करने मेंचाहिए। इससे फसलों का मूल्य बढ़ जाता है।

(3) नगरीकरण- नगरीय क्षेत्रों के विस्तार से जनसंख्या समस्या का हल कुछ सीमा तक हो जाता है। ऐसा पाया जाता है कि बड़े-बड़े नगरों में जनसंख्या की वृद्धि दर कम होती है। जापान ने अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या को हल करने के लिए बड़े-बड़े औद्योगिक नगरों का विकास किया है जिससे वृद्धि दर कम हो गई है। भारत में लगभग 25 प्रतिशत जनसंख्या ही नगरों में रहती है, यही कारण है कि यहाँ वृद्धि दर अधिक है।

(4) शिक्षा का प्रचार- अशिक्षा समाज में अन्धविश्वास एवं रूढ़िवादी प्रवृत्तियों को जन्म देती है। अतः अशिक्षित समाज में जनसंख्या अधिक तेजी के साथ बढ़ती है। शिक्षित मानव नियन्त्रित परिवार के महत्त्व को समझता है। साथ ही शिक्षा के द्वारा विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में प्रगति से मनुष्य अपने जीवन-स्तर को ऊंचा उठाता है। इससे देश की आर्थिक और राजनैतिक स्थिति भी सुदृढ़ होती है।

(5) अधिक उम्र में विवाह- वाल-विवाह से सन्तानोत्पत्ति अधिक होती है जबकि अधिक उम्र में विवाह होने पर कम सन्तानें पैदा होती हैं। अतः जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि लड़के-लड़कियों की शादियाँ अधिक उम्र में की जायें। भारत में 50 प्रतिशत लड़कियाँ 16 से 18 वर्ष की उम्र में माँ बन जाती थीं, अतः भारत सरकार ने ‘शारदा एक्ट’ पारित करके लड़की की निम्नतम विवाह योग्य आयु 18 वर्ष और लड़के की विवाह योग्य आयु 21 वर्ष कर दी है।

(6) स्थानान्तरण- यूरोप के अधिकांश देशों ने अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या का हल स्थानान्तरण द्वारा ही किया है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, ब्राजील, अर्जेण्टाइना आदि देशों में जाकर यूरोपवासियों ने वहाँ के संसाधनों को विकसित कर उन्हें आबाद किया है। यदि यह स्थानान्तरण न हुआ होता तो

भारत की सन् 1991 की जनसंख्या लगभग 84.4 करोड़ थी। चीन के बाद यह विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला देश है। सन् 2011 में यहाँ जनसंख्या का औसत घनत्व 382 व्यक्ति प्रति  वर्ग किमी० रहा। भारत की 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या का जमाव उत्तर के वृहद् मैदानी भागों में मिलता है। समुद्रतटीय मैदानी भाग तथा प्रायद्वीपीय भारत के नदी घाटी क्षेत्र भी भारत के सघन बसे भू-भागों में सम्मिलित हैं।

पाकिस्तान (सन् 1991 में लगभग 11.5 करोड़ जनसंख्या) की अधिकांश जनसंख्या सिन्धु नदी की निचली घाटी तथा उसके डेल्टाई भागों एवं सतलज-सिन्धु नदी दो अरब में निवास करती है। बांग्लादेश (सन् 1991 में लगभग 12 करोड़ जनसंख्या) एक सघन बसा हुआ देश है जिसकी अधिकांश जनसंख्या गंगा-ब्रह्मपुत्र घाटी तथा उसके डेल्टाई प्रदेश में रहती है। इस देश के कुछ डेल्टाई भागों में जनसंख्या का घनत्व 1.000 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. तक भी मिलता है।

इण्डोनेशिया (सन् 1991 में लगभग 19 करोड़ जनसंख्या) में जनसंख्या का जमाव प्रमुख रूप से जावा द्वीप में मिलता है। इस द्वीप में इण्डोनेशिया की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या रहती है, जबकि इसमें इण्डोनेशिया के कुल क्षेत्रफल का 7 प्रतिशत भाग ही स्थित है। जावा द्वीप के कुछ भागों में जनसंख्या का घनत्व 800 से 1,000 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. तक मिलता है।

जापान (सन् 1991 में 12.3 करोड़ जनसंख्या) एशिया का एक उद्योग-प्रधान विकसित राष्ट्र है जिसके समुद्रतटीय भागों पर 33° उत्तरी अक्षांश के मध्य जनसंख्या का जमाव प्रमुख रूप से देखने को मिलता है।

इसके अलावा बर्मा में इरावदी नदी की घाटी तथा डेल्टाई भाग; थाईलैण्ड में मीनम- मीकांग नदी की निचली घाटी, मलेशिया का पश्चिमी तटीय भाग; उत्तरी वियतनाम में टोंकिन का मैदानी भाग तथा फिलीपाइन्स में लूजोन द्वीप सघन जनसंख्या जमाव के अन्य क्षेत्र हैं।

एशिया महाद्वीप के उक्त सघन बसे भू-भागों में जनसंख्या के सघन, जमाव का कारण (जापान को छोड़कर) मुख्य रूप से सर्वरक जलाढ़ मिट्टी तथा कृषि के लिए उपयुक्त जलवायु दशाओं का पाया जाना है। इसी कारण इस क्षेत्र की भूमि इतने अधिक लागों का भरण-पोषण करने में सक्षम है।

(2) यूरोप महाद्वीप में सघन जनसंख्या के क्षेत्र मध्यवर्ती एवं उत्तर-पश्चिमी यूरोप तथा पूर्व यूरोपियन रूस के दक्षिणी-पश्चिमी भागों में विस्तृत हैं। इस महाद्वीप में सघन जनसंख्या जमाव की मुख्य पेटी 45° उत्तरी अक्षांश से 550 उत्तरी अक्षांश के मध्य लम्बाई में विस्तृत है। यह पेटी पश्चिम में चौड़ी तथा पूर्व में क्रमशः संकरी होती गयी है। यूरोप में पूर्व यूरोपियन रूस सर्वाधिक जनसंख्या वाला क्षेत्र है जिसमें मास्को-तूला क्षेत्र तथा रूक्रेन क्षेत्र सघन जनसंख्या जमाव के स्पष्ट क्षेत्र हैं।

जर्मनी (8.0 करोड़), इटली (5.7 करोड़), ग्रेट ब्रिटेन (5.7 करोड़) तथा फ्रांस (5.7 करोड़) यूरोप के जनसंख्या की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण देश हैं, जबकि स्पेन, पोलैण्ड, रूमानिया, यूगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया, हॉलैण्ड, बेल्जियम, हंगरी तथा पुर्तगाल अन्य उल्लेखनीय राष्ट्र है। यूरोप के सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में निम्नलिखित छह क्षेत्र उल्लेखनीय हैं-

(i) ग्रेट ब्रिटेन में लन्दन बेसिन तथा सभी कोयला उत्पादक क्षेत्र;

(ii) फ्रांस में पेरिस बेसिन तथा फ्रांस का उत्तर-पूर्वी भाग;

(iii) बेल्जियम व हालैण्ड के अधिकांश भाग;

(iv) जर्मनी के पश्चिमी भाग में स्थित रूर-राइन प्रदेश;

एशिया के अधिकांश जनसंख्या जमाव क्षेत्र जहाँ कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता पर निर्भर हैं, वहीं यूरोप के सभी सघन जनसंख्या जमावों के लिए औद्योगिकी विकास को मुख्य रूप से उत्तरदायी माना जाता है।

(3) संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा के पूर्वी भागों में लगभग 25 करोड़ जनसंख्या 100″ पश्चिमी देशान्तर के पूर्वी भागों में स्थित है। इस क्षेत्र के सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में निम्नलिखित तीन क्षेत्र उल्लेखनीय हैं-

(i) संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य तक विस्तृत है;

(ii) संयुक्त राज्य अमेरिका में बृहत् झील क्षेत्र तथा दक्षिण-पूर्व में ऊपरी ओहियो नदी घाटी प्रदेश में स्थित पिट्सबर्ग-यंग्सटाउन क्षेत्र;

संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा के उक्त क्षेत्रों में सघन जनसंख्या जमाव के लिए औद्योगिकी विकास खनिज संसाधनों की उपलब्धता तथा व्यापार सम्बन्धी क्रिया-कलाप मुख्य रूप में उत्तरदायी हैं।

(2) मध्यम जनसंख्या घनत्व के क्षेत्र

इस श्रेणी के क्षेत्रों में वर्तमान में विश्व की लगभग 23 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इस श्रेणी में विश्व के ऐसे क्षेत्र सम्मिलित हैं जिनमें जनसंख्या का घनत्व 30 से 140 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी, मिलता है। मध्यम जनसंख्या घनत्व पेटी मुख्य रूप से एशिया, यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका महाद्वीपों की सघन जनसंख्या पेटी के चारों ओर मिलती हैं। इसमें भारत में दक्षिणी पठार के अधिकांश भाग, चीन के दक्षिणी पूर्वी भाग तथा उत्तरी आन्तरिक भाग, यूरोप में. मध्यवर्ती यूरोप तथा दक्षिणी रूस के अधिकांश भाग, सोवियत रूस में ट्रांस-साइबेरियन लाइन के सहारे सहारे, संयुक्त राज्य अमेरिका का पूर्वी मध्यवर्ती भाग तथा दक्षिणी महाद्वीपों के कुछ तटीय व आन्तरिक भाग भी सम्मिलित हैं।

दक्षिण अमेरिका में मध्य जनसंख्या घनत्व के निम्नलिखित चार क्षेत्र हैं-

(i) उत्तर-पश्चिमी वेनेजुएला से कोलम्बिया के अर्द्ध-पश्चिमी इक्वेडोर तथा पीरू होते हुए बोलबिया के मध्यवर्ती भागों तक का क्षेत्र,

(ii) मध्य चिली क्षेत्र,

(iii) ब्राजील की तटीय पेटी,

(iv) अर्जेण्टाइना का पम्पास क्षेत्र।

अफ्रीका महाद्वीप में मध्यम जनसंख्या घनत्व के निम्नलिखित चार क्षेत्र उल्लेखनीय हैं-

(i) उत्तर-पश्चिमी भूमध्यसागरीय तटीय पेटी;

(ii) इथोपियन उच्च भूमि व विक्टोरिया झील का समीपवर्ती उच्च प्रदेश;

ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में ऑस्ट्रेलिया का दक्षिण-पूर्वी तटीय भाग मध्यम जनसंख्या घनत्व वाला है जिसमें क्वीन्सलैण्ड प्रान्त का दक्षिण-पूर्वी भाग, न्यूसाउथवेल्स प्रान्त का पूर्वी तटीय भाग, विक्टोरिया राज्य का अधिकांश भाग तथा दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया प्रान्त का दक्षिण-पूर्वी भाग सम्मिलित हैं। इसके अलावा पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया प्रान्त के दक्षिण-पश्चिम में पर्थ महानगर का समीपवर्ती भाग भी इसी श्रेणी में सम्मिलित है। न्यूजीलैण्ड देश का अधिकांश भाग भी 10 से 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. जनसंख्या घनत्व रखता है।

(3) कम जनसंख्या घनत्व के क्षेत्र या विरल बसे भू-भाग

इस श्रेणी में विश्व के वे भू-भाग सम्मिलित हैं जिनमें जनसंख्या का घनत्व 1 से 10 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी० मिलता है। इसमें अफ्रीका के मध्यवर्ती एवं दक्षिणी भाग (मध्यम जनसंख्या वाले  भागों को छोड़कर), सहारा रेगिस्तान के मरुद्यान, दक्षिणी अमेरिका में अमेजन बेसिन, उत्तरी अर्जेण्टाइना, ब्राजील का पूर्वी पठारी तथा एन्डीज पर्वतय एशिया में बोर्नियों द्वीप, पश्चिमी साइबेरिया, पश्चिमी चीन के अधिकांश भाग, भारत व बर्मा के उच्च पर्वतीय भाग तथा दक्षिण- पश्चिमी एशिया के मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तरी अमेरिका में कनाडा के दक्षिणी भाग तथा संयुक्त राज्य अमेरिका का पश्चिमी पर्वतीय (रॉकी) भाग तथा यूरेशिया के उत्तर में स्थित टैगा वनों के भाग इसी श्रेणी में सम्मिलित भू-भाग हैं। इन क्षेत्रों में मिलने वाली विरल जनसंख्या पशुचारण, स्थानान्तरित कृषि, वन-संग्रह व आखेट तथा मरुद्यान कृषि जैसे व्यवसायों पर प्रमुख रूप से निर्भर मिलती है।

(4) जनशून्य क्षेत्र या प्रायः बिना बसे क्षेत्र

इस श्रेणी में विश्व के वे क्षेत्र सम्मिलित हैं जिनमें जनसंख्या प्रायः बहुत कम या अति विरल अथवा पूर्णतया अपुपस्थित होती है। भू-पटल पर इस प्रकार के क्षेत्र निम्नलिखित वर्गों में मिलते हैं-

(i) अत्यधिक ठण्डे मरुस्थलीय प्रदेश (Extremes Cold Lands);

(ii) अत्यधिक गर्म एवं शुष्क मरुस्थलीय प्रदेश (Extreme Hot and Dry Lands);

(iii) उच्च पर्वतीय भाग (High Mountains);

(iv) विषुवत रेखीय आर्द्र वन (Equatorial Wet Forests) ।

(1) अत्यधिक ठण्डे मरुस्थलीय प्रदेश- इनमें अन्टार्कटिका महाद्वीप, ग्रीनलैण्ड, कनाडा का उत्तरी भाग तथा एशिया में साइबेरिया के उत्तरी टुण्डा प्रदेश सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों में वर्ष के अधिकांश समय तापमान शून्य डिग्री सेग्रे. से कम रहते हैं, जिसके कारण न तो यहाँ किसी प्रकार का कृषि उत्पादन सम्भव हो पाता है और न ही यहाँ की अतिशीज प्रधान जलवायु मेंमानवीय आवास के लिए अनुकूल दशाएँ प्रदान करती हैं। यहाँ मिलने वाली अति विरल जनसंख्या आखेट की तलाश में यत्र-तत्र भ्रमण करती रहती है। ये प्रदेश विश्व के कुल भूमि क्षेत्रफल के लगभग 20 प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं।

(2) अत्यधिक गर्म एवं शुष्क मरुस्थलीय प्रदेश- अफ्रीका का सहारा व कालाहारी मरुस्थल एशिया का अरब व थार मरुस्थल, दक्षिणी अमेरिका का अटाकामा मरुस्थल तथा ऑस्ट्रेलिया का पश्चिमी मरुस्थलीय भाग इसी प्रकार के गर्म व शुष्क मरुस्थलीय भाग हैं, जहां पीने योग्य पानी की कमी तथा उच्च तापमानों ने जनसंख्या के बसाव को अति-सीमित कर दिया। है तथा इनके लाखों वर्ग किमी. क्षेत्र में प्रकृति का एकछत्र राज्य है।

(3) उच्च पर्वतीय भाग- इसमें पृथ्वी के वे भाग सम्मिलित हैं जो समुद्री सतह से पर्याप्त ऊँचाई पर स्थित हैं। इनके अधिकांश क्षेत्रों में जलवायु व धरातल की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण मानवीय जनसंख्या बहुत कम मिलती है। इस प्रकार के क्षेत्रों में एशिया में मध्यवर्ती पर्वत श्रृंखला, मंगोलिया पठार, दक्षिणी अमेरिका में एण्डीज पर्वतों के अधिकांश भाग तथा उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वतमाला के कुछ भाग सम्मिलित हैं जो विश्व के कुल भूमि ऊक्षेत्रफल के लगभग 20 प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं।

(4) विषुवत रेखीय आर्द्र वन- इसमें भू-पटली के वे भाग सम्मिलित हैं जो अति उष्ण व आर्द्र हैं, जिसके फलस्वरूप इन क्षेत्रों के अधिकांश भाग में अति सघन वनस्पति व उच्च आर्दता व वर्षपर्यन्त रहने वाले उच्च तापमान मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इन भू-भागों की जलवायु अनेक प्रकार के मक्खी, मच्छरों तथा कीड़ों की वृद्धि के लिए अनुकूल  होती है। मानवीय क्रियाओं के लिए प्रतिकूल दशाएँ मिलने के कारण विषुवत रेखीय आर्द वनों में जनसंख्या बहुत कम मिलता है। इस प्रकार के क्षेत्रों में दक्षिणी अमेरका में अमेजन बेसिन तथा अफ्रीका में कांगों बेसिन सर्वप्रमुख हैं जहाँ जनसंख्या अति विरल व अति पिछड़ी दशा में मिलती है। विषुवत रेखीय आर्द वन भू-पटल के लगभग 10 प्रतिशत भाग पर विस्तृत है।

वर्तमान में विस्तृत रूप से विना बसे क्षेत्र या बहुत कम बसे भू-भागों का विसतार भू- पटल के लगभग 65 प्रतिशत भाग पर मिलता है, जिसमें विश्व की केवल 5 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। विश्व में जनसंख्या के तेजी से बढ़ते दबाव के कारण इन बिना बसे क्षेत्रों या नकारात्मक क्षेत्रों में मानव विकसित तकनीक के बल पर अपनी स्थायी बस्तियाँ स्थापित करने का प्रयास कर रहा है, जिसके कारण इन विना वसे क्षेत्रों के क्षेत्रफल में सतत रूप से कमी आती जा रही है।

विश्व में जनसंख्या घनत्व एवं वितरण का प्रभावित करने वाले कारक

(Factors Affecting the Population Density and Distribution in the World)

विश्व में जनसंख्या के वर्तमान वितरण की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि विभिन्न भू- भागों जनसंख्या का वितरण असमान है। संस की प्रतिशत जनसंख्या स्थल के केवल 5 प्रतिशत भाग में रहती है, जबकि स्थल खण्ड का 65 प्रतिशत भाग ऐसा है जिस पर केवल विश्व की 15 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। अतः यह स्पष्ट है कि भू-तल के सभी भाग जनसंख्या को समान रूप से आकर्षित नहीं करते हैं। वस्तुतः ऐसे कई भौगोलिक कारक है जो जनसंख्या को किसी क्षेत्र विशेष में एकत्रित करते हैं अथवा एकत्रित होने से रोकते हैं। इनका प्रभाव स्वतन्त्र रूप से भी पड़ सकता है और सम्मिलित रूप में भी जनसंख्या के वितरण तथा घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों में निम्नलिखित कारक प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं-

(i) भौगोलिक स्थिति; (ii) जलवायु; (iii) धरातल की बनावट, (iv) जल की उपलब्धता; (v) मिट्टी की उर्वरा-शक्ति; (vi) खनिज पदार्थों की उपलब्धता; (vii) आर्थिक विकास की अवस्थाः (viii) सामाजिक एवं धार्मिक कारण;(ix) राजनैतिक कारण।

(1) भौगोलिक स्थिति- विश्व की लगभग 74 प्रतिशत जनसंख्या महासागरों तथा समुद्रों की तट-समीपस्थ पेटियों में निवास करती है। इसका मुख्य कारण थ्सिति ही है क्योंकि समुद्रतटीय पेटी में मछली प्राप्ति तथा समुद्री परिवहन की सुविधाएँ प्राप्त हो जाती हैं। साथ ही इन क्षेत्रों की जलवायु सम होती है तथा भूमि प्रायः मैदानी एवं कृषि की दृष्टि से उपजाऊ होती है।

(2) जलवायु- जलवायु जनसंख्या के वितरण एवं घनत्व को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है। किसी क्षेत्र में उत्तम जलवायु का होना मानवीय बसाव की पूर्व शर्त होती है। विश्व के अधिक गर्म तथा अधिक ठण्डे भू-भाग मानवीय बसाव के लिए उपयुक्त नहीं है। विश्व की अधिकांश जनसंख्या मृदुल जलवायु वाले क्षेत्रों में निवास करती है। संसार में सबसे अधिक जनसंख्या के भाग मानसूनी जलवायु समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्र हैं। चीन, भारत, बांग्लादेश तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के अधिकांश देश मानसूनी जलवायु के क्षेत्र हैं, जबकि पश्चिमी यूरोप तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की जलवायु समशीतोष्ण है। उपर्युक्त क्षेत्र विश्व के सर्वाधिक घने बसे क्षेत्र हैं। दूसरी ओर सहारा, थार, अरब, कालाहारी, अटाकामा और ऑस्ट्रेलिया के गर्म मरुस्थलीय भागों में जनसंख्या का वितरण अत्यन्त विरल है। इसी तरह अति उष्ण और अति आर्द वनों में भी जनसंख्या कम हैं, जैसे-कांगों एवं अमेजन के वन। टुण्ड्रा प्रदेशों की जलवायु शीत प्रधान होने के कारण वहाँ जनसंख्या अत्यन्त बिरल वसी हुई है।

(3) धरातल की बनावट- धरातल की बनावट का भी जनसंख्या के वितरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मैदानी भागों में भूमि समतल होती है और वहाँ खेती करने के लिए विस्तृत भूमि, सिंचाई की सुविधाएँ, परिवहन एवं व्यापार की सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। पर्वतीय भागों पर भूमि के असमतल होने के कारण कृषि करने योग्य भूमि छोटी-छोटी होती है, जिन पर विस्तृत पैमाने पर कृषि करना असम्भव होता है। साथ ही आवास एवं परिवहन की दृष्टि से पर्वतीय भाग सुविधाजनक नहीं होते हैं। विश्व के तीन मासमूह-(अ) दक्षिणी-पूर्वी एशिया, (ब) पश्चिमी यूरोप, (स) पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका मैदानों में ही केन्द्रित हैं। ये मैदान नदियों के बेसिन अथवा समुद्रतटीय मैदान के रूप में हैं। चीन में ह्रांगहों, सीक्यांग व सांगटिसीक्यांग नदियों के मैदान, जापान के समुद्रतटीय मैदानी भाग, भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश में सिन्धु, गंगा एवं बह्मपुत्र के मैदान, यूरोप में राइन एवं डेन्यूब के मैदान, उत्तरी अमेरिका में मिसीसिपी का मैदान, दक्षिणी अमेरिका का पराना-पैराग्वे बेसिन, अफ्रीका की नील नदी का डेल्टाई भाग तथा ऑस्ट्रेलिया का मुरे-डार्लिंग बेसिन विश्व के सघन बसे हुए भाग हैं।

(4) जल की उपलब्धता-‌ मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं में जल का स्थान भोजन से पहले है। पीने के लिए कृषि में सिंचाई के लिए, पशुओं के लिए तथा औद्योगिक कार्यों के लिए जल की आवश्यकता होती है। शुष्क प्रदेशों में जल जनसंख्या को आकर्षिक करने वाला प्रमुख तथ्य होता है। प्राचीन नगरों की स्थापना जल की उपलब्धता के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर नदियों के किनारों पर की जाती थी। उत्पादन के दृष्टिकोण से एक ओर जल स्त्रोत सिंचाई की सुविधा प्रदान करते हैं तो दूसरी ओर मछलियों के रूप में भोजन प्रदान करते हैं। साथ ही सततवाहिनी नदियों को सस्ते परिवहन मार्ग के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। विश्व के प्रमुख मैदानी भागों में जनसंख्या की सघनता वहाँ जल की उपलब्धता के साथ-साथ मिलती है।

(5) मिट्टी की उर्वरा- शक्ति-कृषि का आधार मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनाती है। कृषि एक ऐसा कार्य है जो मनुष्य को स्थायित्व एवं वास्तविक भोज्य पदार्थ प्रदान करता है। इस प्राकर संसार के अधिकांश मनुष्यों का भोजन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी में ही उत्पन्न होता है। यही कारण है कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति जनसंख्या घनत्व के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। अन्य कारकों के अनुकूल होने पर यदि किसी प्रदेश में मिट्टी, उच्च उर्वरा शक्ति रखती है तो उसे प्रदेश में जनसंख्या का उच्च घनतव मिलता है।

(6) खनिज पदार्थों की उपलब्धता- जिन प्रदेशों में खनिज सम्पदा प्रचुर मात्रा में होती है वहाँ औद्योगिक विकास एवं खनन क्रिया के कारण जनसंख्या सघन हो जाती है। पश्चिमी यूरोप के सघन बसे होने का कारण वहयँ कोयला, लोहा, ताँबा, जस्ता आदि का मिलना है जिससे वहाँ बड़े स्तर पर औद्येगिक विकास हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका के अप्लेशियन क्षेत्र तथा भारत के छोटा नागपुर क्षेत्र में जनसंख्या की सघनता का कारण वहाँ पायी वाली प्रचुर खनिज सम्पदा है।

(7) आर्थिक विकास की अवस्था- जिस प्रदेश में मानव के व्यवसाय जितने उन्नत एवं स्थायित्व लिये हुए होने लगते हैं वहाँ जनसंख्या का बसाव भी उतना ही अधिक होने लगता है। किसी प्रदेश की आर्थिक उन्नति होने पर क्षेत्र की जनसंख्या पोषण क्षमता भी बढ़ जाती है। यदि उस प्रदेश में भोजना-सामग्री कम उत्पन्न होती है तो खाद्य पदार्थ दूसरे देशों से आयात कर लिये जाते हैं और उनके बदले में निर्माणी उद्योगों द्वारा बने सामान दूसरे प्रदेशों को निर्यात कर दिये जाते हैं। इस प्रकार कम भोजन उत्पन्न करने वाला देश भी आर्थिक उन्नति के बल पर सघन जनसंख्या वाला देश बन जाता है। ब्रिअन, जर्मनी, स्विट्जरलैण्ड तथा हॉलैण्ड देश इसके  उदाहरण हैं, लेकिन विकसित राष्ट्रों में जन्म-दर कम होने के कारण जनसंख्या में धीमी वृद्धि होती तथा विश्व के कई राष्ट्र ऐसे भी हैं जिनमें जनसंख्या वृद्धि ऋणात्मक है। दूसरी ओर अविकसित राष्ट्रों में जन्म-दर अधिक होने के कारण जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है जिससे जनसंख्या का घनत्व क्रमशः बढ़ता जाता है।

(8) सामाजिक एवं धार्मिक कारण- कृषि प्रधान देशों में (विशेषकर भारत में) संयुक्त परिवार, बाल विवाह, संतानोत्पत्ति की धार्मिक आवश्यकता, पैतृक भूमि के प्रति अतिशय प्रेम, जनसंख्या को केन्द्रित कर बढ़ाने में सहायक होते हैं। इस्लाम मजहब पुरुष को एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करने की अनुमति देता है जिससे जनसंख्या का केन्द्रीकरण एवं वृद्धि होती है।

(9) राजनैतिक कारक- राजनीतिक नियमों का जनसंख्या पर सीधा प्रभाव होता है। ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल भारत की अपेक्षा लगभग तीन गुना है, परन्तु ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या भारत की जनसंख्या का 1/40 भाग है। इसका कारण ऑस्ट्रेलिया सरकार की श्वेत नीति है जो गोरी जातियों के अलावा दूसरे लोगों को वहाँ नहीं बसने देती है। जिन भागों में दूसरे देशों के आक्रमणों का खतरा रहता है वहाँ भी जनसंख्या असुरक्षा के कारण कम रहती है।

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Pankaja Singh

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