जनसंख्या की वृद्धि के कारण | उचित उदाहरणों द्वारा विश्व के विभिन्न भागों में जनाधिक्य के कारण
जनसंख्या की वृद्धि के कारण
(Causes of Population Growth)
जनसंख्या की वृद्धि के लिए कई कारण उत्तरदायी हैं। सामान्यतः किसी देश की जनसंख्या की वृद्धि पर प्रजनन शक्ति (Fertility), मृत्यु दर (Mortality Rate), प्रवास (Emigration), राष्ट्रीय नीति, धर्म आदि का प्रभाव पड़ता है। लिंग भेद, परिवार की सीमा, सामाजिक रीति- रिवाज तथा निवासियों का रहन-सहन और उनकी आर्थिक स्थिति भी जनसंख्या की वृद्धि को प्रभावित करते हैं। चूँकि किसी देश में विदेशियों का आवास राजनीतिक कारणों से अधिक नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप जनसंख्या की वृद्धि में दो कारण ही अधिक महत्त्वपूर्ण माने गये हैं- जनम-दर एवं मृत्यु-दर। इन दोनों का अन्तर ही वृद्धि दर की ओर संकेत करता है।
जन्म-दर (Birth Rate)-
प्रति 1,000 व्यक्तियों के पीछे वर्ष में जितने बच्चे पैदा होते हैं, उस संख्या को ‘जन्म-दर’ कहा जाता है। यह जन्म-दर विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न होती हैं, इस भिन्नता का मुख्य कारण सामाजिक दशाओं में अन्तर होता है। कहीं बाल-विवाह होते हैं तो कहीं इन पर सामाजिक प्रतिबन्ध पाया जाता है। कहीं विवाह हुई दृष्टिगोचर होती है। अस्तु, जो देश जितना अधिक दरिद्र होता है, वहां के निवासियों के रहन-सहन का स्तर उतना ही निम्न होता है, उनमें शिक्षा का अभाव मिलता है, बहु-विवाह अथवा बाल-विवाह का विशेष प्रचलन पाया जाता है। रोगों अथवा अपौष्टिक भोजन के कारण मृत्यु अधिक होती है। अतः परिवार संचालन के लिए अथवा वृद्धावस्था में माता-पिता को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए अधिक सन्तानों की आवश्यकता पड़ती है। कृषि प्रधान देशों में कृषि कार्य के लिए भी अधिक श्रम आवश्यक होता है। अतः वहाँ संयुक्त परिवार प्रणाली पायी जाती है। अतः अधिक बच्चों की संख्या पर कोई विचार नहीं होता। उपर्युक्त देशों में सामान्यतः जन्म-दर बहुत ऊँची पायी जाती है।
अधिक जन्म-दर वाले देश मुख्यतः कृषि प्रधान और ग्रामीण हैं, जहाँ अन्य उद्योगों का विकास पूर्णरूप से नहीं हो पाया है। अनेक देशों में (संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा पश्चिमी यूरोपीय देश) अन्य कारणों से गत वर्षों में जन्म-दर हुई हैं, किन्तु यह वृद्धि अस्थायी है। इन देशों में जीविकोपार्जन के साधनों में वृद्धि होने से लोगों के रहन- सहन का स्तर काफी ऊंचा उठा है तथा सांस्कृतिक जीवन इतना व्ययसाध्य हो गया है कि व्यक्ति अधिक बच्चों के लालन-पालन का भार उठाने में अपने आपको असमर्थ पाता है। व्यक्तिगत और छोटे परिवार की भावना एवं उच्च शिक्षा में वृद्धि होने, स्त्रियों का आर्थिक दृष्टि से अधिक स्वतन्त्र होने तथा उनके राजकीय टैक्सों के बढ़ जाने के कारण अधिक सन्तानोत्पत्ति की ओर रुचि कम होने लगी है। शिक्षित दम्पत्ति एक नयी सन्तान की अपेक्षा एक कार या टेलीविजन अधिक पसन्द करते हैं। परिणामस्वरूप उच्च वर्ग में जन्म-दर, निम्न वर्ग की अपेक्षा काफी कम पायी जाती है।
मृत्यु दर (Death Rate)-
जन्म-दर की भाँति मृत्यु दर में भी विभिन्न देशों में अन्तर पाया जाता है। विश्व में ऐसे कई देश हैं, जिनकी मृत्यु दर अधिक है। ऐसे देशों में रहन-सहन का सतर निम्न तो है ही, इसके अतिरिक्त अस्वास्थ्यकर जीवन, अपौष्टिक भोजन, महामारियों, प्रदूषण, रोगों की अधिकता, स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाओं का अभाव आदि के कारण अधिक मृत्यु- दर को प्रोत्साहन मिलता भी है। स्पष्टतः तकनीकी दृष्टि से उन्नत देशों में (जहाँ रोगों पर कठोर नियन्त्रण कर लिया गया है और जहाँ लोगों को पुष्टिकर एवं सन्तुलित भोजन प्राप्त होता है) मृत्यु दर कम पायी जाती है। सन् 1920 के बाद से ही स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाओं मतें पर्याप्त प्रगति हुई जिसके कारण न केवल सामान्य मृत्यु वरन् मातृत्व काल में होने वाली मृत्यु में असाधारण रूप से कमी हो गयी है। अब एक औसत स्त्री अपने प्रजनन काल में अधिक अवधि तक जीवित रहती है, जबकि पहले अधिकांश की मृत्यु हो जाती थी। बाल-मृत्यु में भी पर्याप्त कमी हो गयी है जिससे बच्चों की जीवनावधि बढ़ गयी है। उन सभी संहारक रोगों और बीमारियों पर अंशतः या पूर्णतः नियन्त्रण कर लिया गया है जो अधिक जनसंख्या में मृत्यु के लिए उत्तरदायी होती थीं। उष्ण कटिबन्धीय व्याधियों (मलेरिश, पीला बुखार, प्लेग, हैजा, पेचिश, मोतीझरा तथा कुछ अन्य रोग) और शीतोष्ण कटिबन्धीय रोगों (यक्ष्मा, डिप्थीरिया, निमोनिया तथा मूत्र सम्बन्धी रोगों) पर पूर्णतः नियन्त्रण पा लिया गया है। श्वास, हृदय रोग तथा वृद्धावस्था की अनेक बीमारियाँ भी कम हो गयी हैं, फलतः अनेक देशों की मृत्यु दर में कमी हो गयी है। चूँकि जन्म-दर अभी भी ऊँची बनी हुई है और मृत्यु-दर निरन्तर नीचे आ रही है, अतः ऐसे प्रदेशों में जनसंख्या में वृद्धि अधिक हो रही है।
अन्य कारण (Other Causes) –
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कुछ अन्यस कारण निम्नलिखित हैं-
(1) प्रथम तीन शताब्दियों तक (महायुद्धों से पूर्व) विभिन्न देशों में शान्ति और सुरक्षा थी, जिससे मानव प्रगति कर सकता था।
(2) गहन खेती और कृषि क्रानित के फलस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में अधिकांश देशों में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। इससे जनसंख्या को मिलने वाली भोजन की वांछित मात्रा प्रायः निश्चित हो गयी है।
(3) औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप खनिज पदार्थों के उत्तरोत्तर मात्रा में उत्पादन व औद्योगिकीकरण, ताप विद्युत का विकास, यातायात के साधनों में प्रगति और व्यापारिक क्षेत्र में अधिक कार्यकुशलता के कारण अनेक उद्योगों व नवीन तकनीक का विकास हुआ है, जिससे बढ़ती हुई जनसंख्या को सुविधाएँ मिली हैं।
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