अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के कारण | अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के परिणाम | विश्व में जनसंख्या के प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण व्याख्या

अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के कारण | अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के परिणाम | विश्व में जनसंख्या के प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण व्याख्या

अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के कारण

(Causes of International Migration)

अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं जिनमें समय, स्थान व परिस्थितियों के अनुसार कभी कोई तत्त्व प्रभावशाली रहता है तो कभी कोई दूसरा अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास को प्रभावित करने वाले कारकों को निम्न दो श्रेणियों में रखा जाता है-

(अ) आकर्षक कारक- अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के आकर्षक कारकों में निम्नलिखित नौ कारक सम्मिलित हैं-(1) अपेक्षाकृत रोजगार के अधिक अवसर,

(2) अधिक वेतन व आय-वृद्धि के अवसर,

(3) स्वास्थ्य, आवास तथा तकनीक प्रशिक्षण की उत्तम सुविधाएं,

(4) उन्नत जीवन-स्तर

(5) उच्च शिक्षा व आधुनिक शिक्षा के अधिक अवसर,

(6) धार्मिक व राजनैतिक अलगाव का न होना तथा अपेक्षाकृत राजनैतिक स्थिरता का होना,

(7) वैज्ञानिक व आधुनिक सांस्कृतिक परम्पराओं का होना,

(8) अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षा व न्याय का होना,

(9) अपेक्षाकृत अधिक उत्तम रोजगार, दशाओं का मिलना।

(ब) प्रत्याकर्षक कारक- किसी देश में खाद्य आपूर्ति की कमी, प्राकृतिक संसाधनों की समाप्ति तथा अत्यधिक जनसंख्या उस देश की जनसंख्या को अन्य देशों में स्थानान्तरित होने को बाध्य करती है। इस संदर्भ में ब्लांश महोदय लिखते हैं, “जब मक्खियों का छत्ता पूरी तरह भर जाता है तो मक्खियाँ उसे छोड़कर दूसरे स्थानों पर चली जाती हैं। सभी कालों में ऐसा ही इतिहास रहा है।”

जनसंख्या स्थानान्तरण के प्रत्याकर्षक कारकों में वे सभी कारक सम्मिलित किये जाते हैं जो किसी व्यक्ति को अपना देश या मूल निवास स्थान छोड़ने के लिए बाध्य करते हैं या प्रोत्साहित करते हैं। इनमें निम्नलिखित कारकों का समावेश किया जा सकता है-

(1) उत्तम रोजगार के अवसरों का अभाव,

(2) कम वेतन व आय वृद्धि के कम अवसर,

(3) स्वास्थ्य, आवास व तकनीकि प्रशिक्षण की सुविधाओं का अभाव,

(4) निम्नस्तरीय जीवन,

(5) उच्च शिक्षा व आधुनिक शिक्षा के अवसरों का अभाव,

(6) धार्मिक व राजनैतिक अलगाववाद का प्रभाव तथा राजनैतिक अस्थिरता का होना,

(7) परम्परावादी व रूढ़िवादी सांस्कृतिक परम्पराओं का प्रभाव,

(8) सुरक्षा व न्याय की कम सुविधाएँ,

(9) रोजगार दशाओं का अधिक कठोर होना।

अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास को प्रभावित करने वाले कारकों को निम्नलिखित पाँच वर्गों में रखा जा सकता है-

(1) प्राकृतिक कारक- प्रवास को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक कारकों में जलवायु की कठोरता, विनाशकारी प्राकृतिक शक्तियों, जैसे-भूकम्प, ज्वालामुखी, बाढ़, सूखा, तूफान, भू-स्खलन आदि को सम्मिलित किया जाता है। विश्व के विभिन्न भागों में पाया जाने वाला मौसमी प्रवास मानवीय समूहों द्वारा जलवायु की कठोरता से बचने के लिए ही किया जाता है। समुद्रतटीय भागों में तूफान-प्रभावी क्षेत्रों तथा नदियों के वाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग समीपवर्ती देशों को प्रवास कर जाते हैं, भूकम्प, ज्वालामुखी तथा भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्रों के लोग भी जान-माल की सुरक्षा की दृष्टि से शीघ्र ही अन्य समीपवर्ती देशों को पलायन कर जाते हैं।

(2) आर्थिक कारक- प्रवास को प्रभावित करने वाले आर्थिक कारकों में नवीन कृषि क्षेत्रों का विकास, नवीन खनिज क्षेत्रों का विकास, रोजगार के अवसरों, आवागमन एवं दूर-संचार सुविधाओं की उपलब्धता तथा उद्योग व व्यापार के विकास की सुविधाएँ जैसे कारक सम्मिलित किये जाते हैं। विश्व के समस्त प्रवासों में उक्त आर्थिक कारकों का योगदान सर्वाधिक रहा है। ISवीं, 19वीं, 20वीं शताब्दी में यूरोपियन लोगों का बड़ी संख्या में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका तथा न्यूजीलैण्ड में सथायी रूप से बस जाना आर्थिक कारकों के कारण ही था।

(3) सामाजिक कारक- अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास को प्रभावित करने वाले सामाजिक कारकों में सामाजिकत रीति-रिवाज, धार्मिक व सामाजिक स्वतन्त्रता, व सांस्कृति सम्पर्क, धर्म प्रचार आदि सम्मिलित किये जाते हैं। सन् 1947 में हुए भारत-पाक विभाजन के दौरान लाखों व्यक्ति भारत से पाकिस्तान तथा लाखों व्यक्ति पाकिस्तान से भारत आकर बस गये। सन् 1948 में यहूदी राष्ट्र इजरायल की स्थापना के बाद से प्रति वर्ष हजारों यहूदी विश्व के विभिन्न भागों से आकर इजरायल में वस जाते हैं। बौद्ध धर्म तथा ईसाई धर्म के प्रचार हेतु भी विश्व के विभिन्न भागों में प्रवास के उदाहरण देखने को मिलते हैं।

(4) राजनैतिक कारक- अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास को प्रभावित करने वाले राजनैतिक कारकों में दूसरे देशों के आक्रमण, नये देशों में उपनिवेशों की स्थापना, बलपूर्वक किये गये जन- स्थानान्तरण, दूसरे देशों पर विजय तथा राजनैतिक अस्थिरता आदि कारकों का समावेश किया जाता है।

(5) जनांकिकी कारक- अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास को प्रभावित करने वाले जनांकिी कारकों में उच्च मानव-भूमि अनुपात (High Man-Land Ratio), जनसंख्या दबाव में अन्तर, रोजगार के कम अवसर, जनसंख्या की वृद्धि दर में विभिन्नताएँ जैसे कारकों का समावेश किया जाता है। उच्च जनसंख्या घनत्व वाले देशों से कम जनसंख्या घनत्व वाले देशों की ओर प्रवास को प्रायः प्रोत्साहन मिलता है। 18वीं व 19वीं शताब्दी में यूरोप से विश्व के विभिन्न भागों में जन- स्थानान्तरण का एक प्रमुख कारण यह भी रहा कि यूरोप में उस समय जनसंख्या का सघन घनत्व था। सामान्यतया सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में रोजगार के अवसर तो कम हो ही जाते हैं, साथ ही प्रति व्यक्ति प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता में भारी कमी आने लगती है, जिसके फलस्वरूप प्रवास को प्रोत्साहन मिलता है।

जन्म-दर तथा मृत्यु-दर की भिन्नताएँ भी प्रवास को प्रभावित करती हैं। यदि किसी देश में पुरुष विशिष्ट जन्म-दर कम है तो उस देश में अन्य देशों से पुरुषों का अन्तर्गमन होगा, दूसरी ओर यदि किसी देश में महिला विशिष्ट जन्म-दर अधिक है तो उस देश से अन्य देशों में महिलाओं का बहिगर्मन होगा।

यदि किसी क्षेत्र में मृत्यु-दर अपेक्षाकृत अधिक मिलती है तो उस क्षेत्र में बहिर्गमन अधिक होगा तथा अन्तर्गमन कम होगा। इसी प्रकार जिन क्षेत्रों में जन्म-दर व मृत्यु दर दोनों बहुत कम हैं उन क्षेत्रों में अन्तर्गमन को प्रोत्साहन मिलेगा।

प्रवास को प्रभावित करने वाले कारकों के सन्दर्भ में थॉम्पसन एवं लुईस महोदय ने अपना मत व्यक्त करते हुए लिखा है-

“प्रवास के लिए उत्तरदायी कारक आर्थिक एवं गैर-आर्थिक दोनों ही हो सकते हैं। सामान्यतया आर्थिक प्रवास स्वैच्छिक होते हैं, जबकि गैर-आर्थिक प्रवास अनैच्छिक होने के साथ- साथ अनिवार्य होते हैं। जब कभी भी व्यक्तियों को धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक अथवा किसी अन्य आधार पर परेशान किया जाता है तो वे व्यक्ति इन यातनाओं से बचने के लिए उस स्थान को छोड़ना ही श्रेयस्कर समझते हैं, लेकिन इन दोनों कारकों में आर्थिक कारक ही प्रवास के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण रहे हैं।”

अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास के परिणाम

(Consequences of International Migration)

विश्व के जिस भाग से जनसंख्या का स्थानान्तरण (बहिर्प्रवास) होता है तथा जिस भाग में वह स्थानान्तरित होकर बसती (अन्तर्प्रवास) है, उन दोनों ही भागों में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण प्रभाव देखने को मिलते हैं-

(1) जनांकिकी परिवर्तन- बहिर्प्रवास तथा अन्तर्प्रवास वाले क्षेत्रों में जनसंख्या में जनांकिकी परिवर्तन (Demographic Changes) होने लगते हैं। स्थानान्तरित होने वाले व्यक्तियों में अधिकांश संख्या युवा वर्ग के पुरुषों की होती है। अतः जिन क्षेत्रों से जनसंख्या का बहिर्प्रवास होता है, उस क्षेत्रों की जनसंख्या में युवा-वर्ग का प्रतिशत घट जाता है तथा बाल आयु वर्ग तथा वृद्ध आयु वर्ग के प्रतिशत में वृद्धि हो जाती है, साथ ही पुरुष-महिला अनुपात में महिलाओं का प्रतिशत भी बढ़ जाता है। दूसरी ओर अन्तर्प्रवास वाले क्षेत्रों की जनसंख्या में युवा वर्ग का प्रतिशत तथा पुरुषों का प्रतिशत बढ़ जाता है। यही नहीं, जनसंख्या स्थानान्तरण से प्रभावित क्षेत्रों में जन्म-दर, मृत्यु-दर, प्रत्याशित आयु, साक्षरता, नगरीकरण तथा साक्षरता के स्तर में भी परिवर्तन होते हैं।

(2) जनसंख्या के आकार में परिवर्तन- जब किसी क्षेत्र या देश में दूसरे क्षेत्र या देश से जनसंख्या स्थानान्तरित होकर बसती है तो एक ओर बहिर्रवास वाले क्षेत्र या देश की जनसंख्या के आकार में कमी आ जाती है, जबकि अन्तर्प्रवास वाले क्षेत्र या देश की जनसंख्या के आकार में वृद्धि हो जाती है। यदि बहिर्प्रवास वाले क्षेत्र में जीविकोपार्जन के साधनों की कमी है तो उस क्षेत्र से जनसंख्या का स्थानान्तरण जीवकोपार्जन साधनों पर जनसंख्या दबाव को कम करने में सहायक होता है। अन्तर्प्रवास वाले क्षेत्रों में यदि जीविकोपार्जन साधनों की बहुलता है तो प्रवासी जनसंख्या उस क्षेत्र के विकास में उपयोगी सिद्ध होती है।

(3) सांस्कृतिक प्रभाव- वृहद् स्तर या बड़े समूहों में प्रवासी जब किसी नवीन क्षेत्र में जाकर बसते हैं तो ये प्रवासी अपनी संस्कृति का प्रभाव स्थानीय जनसंख्या पर अल्प या अधिक मात्रा में अवश्य डालते हैं। यदि प्रवासी समूह राजनैतिक दृष्टि से अधिक शक्तिाली होते हैं तो वे अपनी संस्कृति का प्रचार व प्रसार आसानी से कर लेते हैं। यूरोपियन राष्ट्रों में हुई औद्योगिकी क्रान्ति के बाद इन राष्ट्रों ने विश्व के विभिन्न देशों में अपने-अपने उपनिवेश स्थापित किये तथा बाद में इन उपनिवेशों में यूरोपियन संस्कृति व सभ्यता का प्रचार प्रसार किया। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, लैटिन अमेरिकी देश, दक्षिणी अफ्रीका संघ, भारत, वर्मा आदि देश इस तथ्य के स्पष्ट उदाहरण हैं।

(4) आर्थिक विकास- अल्पविकसित देशों में विशिष्ट योग्यता प्राप्त व्यक्तियों का अभाव होता है। ऐसे देशों में विकसित राष्ट्रों के विशिष्ट योग्यता प्राप्त व्यक्तियों का प्रवास होता है। ऐसे व्यक्ति अल्पविकसित देश के अप्रयुक्त संसाधनों का उपयोग कर देश के आर्थिक विकास को गति प्रदान करते हैं। यूरोपियन देशों के लोगों द्वारा वैज्ञानिक एवं तकनीकि ज्ञान का उपयोग कर उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के विभिन्न भागों को आर्थिक रूप से विकसित किया गया। वर्तमान यूरोपीय प्रवासियों द्वारा विकसित संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया विश्व के सर्वाधिक विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में हैं।

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