इतिहास

एक राष्ट्र-निर्माता के रूप में अकबर का मूल्यांकन | अकबर को भारतीय राष्ट्रीयता का पिता कहा जा सकता है?

एक राष्ट्र-निर्माता के रूप में अकबर का मूल्यांकन | अकबर को भारतीय राष्ट्रीयता का पिता कहा जा सकता है?

एक राष्ट्र-निर्माता के रूप में अकबर का मूल्यांकन

अकबर एक महान राष्ट्र-निर्माता था। उसने भारत को एक प्रबल राष्ट्र बनाने के लिए निरन्तर प्रयत्न किया। सर्वप्रथम मेलेसन ने उसे राष्ट्रीय शासक के नाम से पुकारा । “वह भारत का पहला ऐसा मुसलमान शासक था जिसने हिन्दुओं और मुसलमानों में एकता स्थापित करने और राष्ट्रीयता की भावना को, विकसित करने का प्रयास किया।” पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उसके विषय में लिखा है, “अकबर को भारतीय राष्ट्रीयता का पिता कहा जा सकता है, जिस समय देश में राष्ट्रीयता का अल्पमात्र भी अंश नहीं था और धर्म विघटन का एक कारण था, “अकबर ने जानबूझ करके एक सामान्य भारतीय राष्ट्रवाद के आदर्श को विघटनकारी धर्म के ऊपर रखा। वह अपने प्रयल में पूर्ण रूप से सफल नहीं हुआ। किन्तु यह एक आश्चर्यजनक बात यह है कि वह दूर तक गया और अपने प्रयलों में किसी सीमा तक सफल रहा।” राय चौधरी और मजूमदार ने स्पष्ट कहा है-

“In fact Akbar chalked out a rational path for any one who would aspire the position of national ruler of India.”-

– R.Chaudhary & Majumdar.

(अ) राजनीतिक एकता का संस्थापक-

अकबर प्रथम मुसलमान शासक था जिसने सम्पूर्ण भारत में राजनीतिक एकता स्थापित करने का प्रयास किया। उसने साम्राज्य की एकरूपता का स्वप्न देखा और उस स्वज को साकार करने में वह सफल हुआ। इस एकरूपता की स्थापना उसने अपनी कूटनीति, अपनी विजयों और अपनी शासन व्यवस्था द्वारा की। भारतवर्ष की समस्त जनता ने राजनीतिक दृष्टि से अपने को एक समझा। समस्त देश के लिए एक से कानून थे और समस्त सरकारी कार्यों में भी एकरूपता थी। यद्यपि अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक के काल में भारत के विभिन्न प्रान्त एक में बंधे हुए थे, परन्तु उनमें एकता का मुख्य कारण सम्राट के प्रति उनकी भक्ति थी। दूसरी ओर अकबर ने सभी प्रान्तों में एक प्रकार का शासन प्रबन्ध किया। प्रत्येक प्रान्त में एक ही तरह के अधिकारी थे, एक ही प्रकार के कायदे कानून और एक ही प्रकार के सिक्के प्रचलित थे। राज्याधिकारियों को एक ही प्रकार की पदवियां दी जाती थीं और उनका एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में स्थानान्तरण होता था। राबिन्सन ने स्पष्ट किया, वह पुनः लिखता है, “वह अपनी जाति का प्रथम पुरुष था, भारत की एकता के स्वप्न से अभिभूत था। उसके अखण्ड भारत में मुसलमान, ब्राह्मण, जैन ईसाई तथा पारसी कन्धे से कन्धा मिलाकर कानून की दृष्टि से बराबरी के आधार पर रह सकते थे।” इस प्रकार राजनीतिक और प्रशासकीय एकता स्थापित करने में वह सफल हुआ था। उसके सम्बन्ध में मेलेसन ने ठीक ही लिखा है।

“Akbar’s great idea was the union of India under one head…..His code was the grandest of codes for a ruler, for the founder of an empire. There were the principles by accepting which his western successors maintain it at the present day.”

-Malleson.

(ब) सामाजिक एकता का संस्थापक-

अकबर ने भारत में सामाजिक एकता स्थापित करने का घोर प्रयत्न किया। उसके पूर्व हिन्दुओं और मुसलमानों में गहरी खाई थी। वह एक-दूसरे को डाह की निगाह से देखते थे। अकबर ने इस भावना को दूर करने का प्रयास किया। उसने हिन्दू और मुस्लिम समाज में प्रचलित कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। सर्वप्रथम उसने कन्या वध को बन्द करवा दिया और सती-प्रथा का भी निषेध कर दिया। बाल-विवाह को समाप्त कर विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया। बलपूर्वक धर्म परिवर्तन की प्रथा को बन्द करवा दिया। शराब पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। वेश्यावृत्ति को भी कम करने का प्रबन्ध किया गया। युद्ध के बंदियों को दास बनाने की प्रथा को समाप्त कर दिया।

हिन्दू और मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए हिन्दू मुसलमानों दोनों के त्यौहारों को मनाने के लिए प्रोत्साहन दिया। मुसलमान दीपावली, होली, बसन्त और दशहरा आदि त्यौहार मनाने थे। नवरोज का त्यौहार हिन्दू और मुसलमान दोनों द्वारा मनाया जाता था। एक निश्चित स्थान पर हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों के लिए उत्सवों का आयोजन किया जाता था। इस सबका परिणाम यह हुआ कि हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के निकट आए और देश में सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन हुआ और समाज की बहुमुखी उन्नति हुई।

(स) आर्थिक एकरूपता का संस्थापक-

आर्थिक एकरूपता की दृष्टि से भी अकबर को ‘राष्ट्रीय एकरूपता का संस्थापक’ के नाम से पुकारा जा सकता है। उसने देश को सुखी एवं समृद्ध बनाया। व्यापार और उद्योग-धन्धों को अत्यधिक प्रोत्साहन दिया। उसके समय में बहुत अधिक कारखाने खोले गये । राजकीय व्यापार की उन्नति के साथ ही जनता के सामान्य स्तर में भी परिवर्तन हुआ। विदेश में भारतीय व्यापार फलीभूत होने लगा। खेती की अपार उन्नति हुई जिसके फलस्वरूप देश धन-धान्य से पूर्ण हो गया। अकबर के समय में आर्थिक दृष्टि से भारत इतना सम्पन था कि यहां की धन-दौलत को देखकर विदेशी आश्चर्यचकित हो जाते थे। आर्थिक सम्पन्नता के फलस्वरूप लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ और विभिन्न वर्गों के लोग एक-दूसरे के निकट आने लगे । खुशहाली के फलस्वरूप वर्ग-भेद की भावना दूर होती गयी। अकबर ने समस्त राज्य में एक समान कर लगाये और सारे राज्य की आर्थिक व्यवस्था एक प्रकार की रखी। हिन्दू और मुसलमान में भेद उत्पन्न करने वाले जजिया और तीर्थयात्रा कर को समाप्त कर दिया गया। इसके अतिरिक्त हिन्दुओं पर लगे हुए अन्य करों को भी समाप्त कर दिया गया। सभी को धनोपार्जन और व्यापार को पूर्ण स्वतन्त्रता दे दी गयी। इस प्रकार देश में आर्थिक एकरूपता लाने का घोर प्रयास अकबर ने किया।

(द) धार्मिक एकता का संस्थापक-

धार्मिक नीति के कारण निस्सन्देह अकबर को एक राष्ट्रीय शासक पुकारा जा सकता है। धार्मिक दृष्टि से वह अत्यन्त सहिष्णु था। दिल्ली सल्तनत के अन्य सुल्तानों की भांति उसने दूसरे के धर्म में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं किया। उसने राजनीति और धर्म को अलग कर दिया। हिन्दुओं को पूर्णरूप से धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की। उसने किसी धर्म विशेष का पक्षपात नहीं किया। सभी मतों के अनुयायियों को अपने धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी। यहां तक कि युद्ध में बन्दी भी अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतन्त्र थे। अकबर की धार्मिक उदारता की नीति राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने में सफल हुई। यदि इस नीति का आगे भी अनुसरण किया जाता तो देश का बहुत हित होता । डा० ईश्वरी प्रसाद ने बड़े स्पष्ट शब्दों में लिखा है, “अकबर की धार्मिक उदारता ने हिन्दू और मुसलमान को एक किया और एक ऐसा आदर्श सामने रखा जिसका यदि बाद को अनुसरण किया गया होता तो सहानुभूति तथा भ्रातृत्व में बंधे हुए राष्ट्र भारत का जन्म होता।”

अकबर ने “दीन-इलाही” नामक एक राष्ट्रीय धर्म को भी जन्म दिया। इस धर्म में विभिन्न धर्मों की अच्छी बातों का समन्वय था। धर्म का उद्देश्य विभिन्न धर्मों के मतानुयायियों के मध्य ऐक्य उत्पन्न करना था। लेनपूल ने लिखा है, “दीन-इलाही ने हिन्दू और मुसलमान में मेल उत्पन्न कर एक राष्ट्र का निर्माण किया।” दीन-इलाही धर्म में धार्मिक रूढ़ियों को नष्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। यद्यपि ‘दीन-इलाही’ अधिक प्रचलित नहीं हुआ परन्तु इस धर्म के प्रचलन के लिए अकबर प्रशंसा का पात्र है। एक विद्वान ने ठीक ही लिखा है, “दीन-इलाही अकबर की राष्ट्रीयता का एक ज्वलन्त प्रमाण था। यदि ‘दीन-इलाही’ सफल हो जाता तो भारत से धार्मिक भेदभाव सदैव के लिए समाप्त हो जाता।”

अतएव धार्मिक एकता की स्थापना की दृष्टि से भी अकबर एक राष्ट्रीय शासक था।

(च) सांस्कृतिक एकता का नियामक-

अकबर को साहित्य और कला से विशेष प्रेम था। उसने शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये। इसके पूर्व जितने भी मुसलमान शासक हुए उन्होंने मुसलमानों की शिक्षा पर ही अधिक ध्यान दिया। मध्य-काल में अकबर ही एक ऐसा मुसलमान शासक था, जिसने हिन्दुओं के बच्चों की शिक्षा के लिये भी विद्यालय खुलवाये और उनकी शिक्षा का उचित प्रबन्ध किया। उसके काल में हिन्दू और मुसलमान दोनों सम्प्रदायों के लोगों के बच्चों ने एक साथ शिक्षा ग्रहण की। उसके काल में जहां एक ओर फारसी-साहित्य का विकास हुआ, वहीं दूसरी ओर हिन्दी-साहित्य उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच गया। स्थापत्यकला, चित्रकला और संगीत-कला के क्षेत्र में भी अपार उन्नति हुई। स्थापत्यकला के क्षेत्र में अकबर ने एक नवीन शैली को जन्म दिया, जिसमें हिन्दू-कला और मुस्लिम-कला का समन्वय है । उस काल के हिन्दू और मुसलमान कलाकारों ने कन्धे से कन्धा मिलाकर कार्य किया। यही कारण है कि अकबर के काल की कला न तो शुद्ध रूप से मुस्लिम-कला है और न शुद्ध रूप से हिन्दू-कला । यह दोनों का सम्मिश्रण है। आगरा, फतेहपुर सीकरी और दिल्ली की इमारतों में हिन्दू कला अधिक स्पष्ट है। अकबर ने हिन्दू और मुसलमान दोनों ही सम्प्रदायों के चित्रकारों के लिये एक ही राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना करवाई। उसके दरवार में अनेक हिन्दू गवैये थे। जिन्होंने सांस्कृतिक एकता स्थापित करने में महान् योगदान दिया।

अन्त में हम कह सकते हैं कि अकबर एक महान् राष्ट्र-निर्माता था और इस दृष्टि से मध्य-काल का कोई सम्राट उसकी बराबरी नहीं कर सकता। मैलेसन ने ठीक ही लिखा है, “जहां हम इस बात पर विचार करते हैं कि उसने (अकबर ने) क्या किया, किस युग में किया, किस ढंग से किया तो हम इस बात को स्वीकार करने के लिए बाध्य हो जाते हैं कि सम्राट उन विभूतियों में से था, जिसे परमात्मा राष्ट्रीय आपत्ति के समय शान्ति तथा सहिष्णुता के मार्ग पर चलने के लिए भेजता है जिससे लाखों व्यक्तियों को सुख मिल सके।”

सर वूल्जे हेग ने इसी कारण लिखा है-

“Akbar was unquestionably the greatest of all rulers of India of the Muslim period.”

– Sir Woolsey Haig.

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Pankaja Singh

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