इतिहास

शेरशाह की आर्थिक उपलब्धियाँ | Economic achievements of Sher Shah in Hindi

शेरशाह की आर्थिक उपलब्धियाँ | Economic achievements of Sher Shah in Hindi

शेरशाह की आर्थिक उपलब्धियाँ

(1) राज्य की आय के साधन-

राज्य की आय का प्रमुख साधन लगान था। इसके अलावा लावारिस संपत्ति, जजिया, चुंगी, टकसाल, व्यापार, भेंट, नमक तथा खम्स से भी सरकार की पर्याप्त आय होती थी। अगर किसी व्यक्ति के मरने के बाद उसकी सम्पत्ति का कोई वारिस नहीं होता था तो उसकी सम्पत्ति को राज्य जब्त कर लेता था। हिन्दुओं पर जजिया कर भी लगता था। इन साधनों से राज्य की आय आवश्यकतानुसार हो जाया करती थी। वह गरीबों की अपेक्षा अमीरों से अधिक कर लेने का पक्षपाती था।

(2) लगान सम्बन्धी व्यवस्था-

शेरशाह का सबसे महत्वपूर्ण सुधार लगान सम्बन्धी था। जैसा कि हम पहले लिख चुके हैं कि सुल्तान अपने सेनापतियों को जागीरें बांट दिया करते थे और उनसे निश्चित वार्षिक कर वसूल करते थे। किसानों को इन जागीरदारों की दया पर छोड़ दिया जाता था। शेरशाह ने इस अराजकता का अन्त कर दिया। कर्मचारियों को नकद वेतन देने की व्यवस्था की और समस्त भूमि को ठीक तरह से नाप करवाकर उपज की एक तिहाई भाग लगान निश्चित कर दिया। उसने भूमि को तीन भागों में विभाजित कर दिया अच्छी, साधारण तथा खराब । इन तीनों प्रकार की भूमि की उपज का औसत उपज निकालकर सरकारी भाग निश्चित किया गया। लगान जिन्स अथवा नकद रूप में दिया जाता था। लेकिन नकद लगान ही अधिक पसन्द किया जाता था। बाजार के प्रचलित भाव के अनुसार नकद लगान देना होता था। इससे सिद्ध होता है कि लगान की दरें विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न रही होंगी। लगान निश्चित करने की तीन प्रकार की प्रणालियों का उसने प्रयोग किया-

(i) गल्ला बख्शी अथवा बटाई- बटाई प्रणाली सबसे अधिक प्राचीन प्रणाली रही है। बटाई तीन प्रकार की होती है- (1) खेत बटाई- खेत बटाई का तात्पर्य खड़ी फसल तथा बोने के बाद, खेत बाँटकर जमींदार का हिस्सा निश्चित करने से था। (2) लॉक बटाई- इसका अर्थ यह है कि किसान अपनी फसल को काटकर खलियान में लाता है और बिना अनाज और भूसा अलग किये जमींदार का हिस्सा-बॉट हो जाता है। (3) रास बटाई- इसका अर्थ यह है कि भूसा और अनाज को अलग करके जमींदार का हिस्सा निश्चित किया जाय। शेरशाह ने उपरोक्त तीनों प्रणालियों को अपनाया।

(ii) नश्क अथवा मुकताई या कनकूत- इस प्रणाली के अन्तर्गत सर्वप्रथम खड़ी फसल की उपज को आँक लिया जाता था और फिर उसके आधार पर सरकारी हिस्सा निश्चित किया जाता था। यह प्रणाली दोषपूर्ण थी और इससे किसानों को कोई लाभ नहीं था।

(iii) नकदी अथवा जब्ती या जमई- इस प्रणाली के अन्तर्गत किसान तथा जमींदार के बीच एक निश्चित समय के लिए समझौते द्वारा प्रति बीघा लगान निश्चित हो जाता था। इस प्रकार से निश्चित लगान में किसी भी व्यवस्था में कमी अथवा वृद्धि नहीं हो सकती। यदि सूखा पड़ने अथवा अधिक वर्षा होने के कारण फसल नष्ट हो जाय तब भी किसान को उतना ही लगान देना पड़ता था जितना समझौते द्वारा निश्चित किया गया था।

उपर्युक्त लगान के अतिरिक्त किसान को अपने सम्पूर्ण लगान पर 2 1/2 % कर और देना पड़ता था। कुछ विद्वानों का मत है कि इस कर से प्राप्त धनराशि को शेरशाह किसानों की भलाई पर खर्च करता था। किसानों को पट्टे पर भूमि दे दी जाती थी जिसका निर्धारित लगान किसान को देना पड़ता था। इसकी कबूलियत (स्वीकृति) किसान से लिखवा ली जाती थी। मुकदम लगान वसूल करते थे। किसानों को सीधे परगने के खजाने में भी लगान जमा करने की आशा थी। शेरशाह ने राजस्व अधिकारियों को यह स्पष्ट आदेश दे रखा था-“राजस्य निर्धारित करते समय कोमलता दिखाओ किन्तु वसूल करते समय किसी प्रकार की दया मत करो।” सपाट ने इस बात पर जोर दिया कि लगान समय पर वसूल किया जाय ।

(3) किसानों की भलाई के कार्य-

शेरशाह किसानों की भलाई का सदैव ध्यान रखता था। जो कि अधिकारी किसानों के साथ दुर्व्यवहार करता था, उसे कठोरतम दण्ड दिया जाता था। वह इस वास्तविकता को अच्छी प्रकार समझता था कि कृषकों की समृद्धि में ही राष्ट्र की समृद्धि निहित है। अतः उसने किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने का भरसक प्रयल किया। यदि सैनिक अभियानों में फसल को हानि पहुँचती थी तो किसानों को उसका पूरा हर्जाना दिया जाता था।

(4) मुद्रा सुधार-

शेरशाह का मुद्रा सुधार भी उसकी शासन सम्बन्धी योग्यता का प्रमाण थी। उस समय समस्त देश में एक सी मुद्रा प्रचलित न थी। दिल्ली के अन्तिम सुल्तानों के समय में सिक्कों का मूल्य बहुत गिर गया था। सिक्कों के मूल्य में आपस में कोई निश्चित अनुपात नहीं था। उसने सोना, चाँदी तथा ताँबे के अनुपातों को ठीक करके समस्त राज्य में एक नयी सरल मुद्रा प्रणाली चालू की। उसने चाँदी का एक नया सिक्का चलाया जो ‘दाम’ कहलाता था। इस पर शेरशाह का नाम अंकित था। कुछ सिक्कों पर खलीफा का नाम भी अंकित था। शेरशाह की मुद्रा प्रणाली को आगे के शासकों ने भी अपनाया इतिहासकार बी० ए० स्मिथ का मत है कि शेरशाह की मुद्रा प्रणाली ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली की आधारशिला थी। इस मुद्रा प्रणाली से व्यापार को बहुत प्रोत्साहन मिला।

(5) वाणिज्य तथा व्यापार-

व्यापार की उन्नति के लिए उसने जगह-जगह पर वसूल की जाने वाली चुंगियों को हटा दिया। केवल राज्य की सीमाओं तथा बिक्री के स्थानों पर चुंगी लगायी गयी । शेरशाह ने अपने अधिकारियों को स्पष्ट आदेश दे दिया था कि वे बाजार भाव पर ही वस्तुएँ खरीदें। अपने पद का अनुचित लाभ उठाते हुए व्यापारियों को हानि न पहुंचाएँ और व्यापारियों के साथ अच्छा व्यवहार करें। उसने व्यापारियों की सुरक्षा की भी व्यवस्था की। साथ ही उसने व्यापारियों को भी यह आदेश दिया कि वे ईमानदारी के साथ कार्य करें। आने-जाने तथा ठहरने की सुविधा व्यापारियों को सड़कों तथा सरायों से प्राप्त हो गयी । परिणामस्वरूप शेरशाह के शासनकाल में व्यापार की बहुत उन्नति हुई।

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Pankaja Singh

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