बाबर एक महान् विजेता | Babur a great conqueror in Hindi
बाबर मध्य एशिया का एक महान विजेता था, कहते हैं होनहार बिरवान के होत चिकने पात या जिस प्रकार से शेर का बच्चा मतवाले हाथी पर प्रहार करता है, ठीक उसी प्रकार बाबर ने वैभवशाली समरकन्द पर आक्रमण किया था। बाबर की आयु इस समय मात्र 14 वर्ष की थी। इस बात से स्पष्ट है कि बाबर में बचपन से ही कुछ करने कुछ पाने की तमन्ना थी। जैसे-जैसे बाबर का बचपना छूटता गया, बाबर के अन्दर एक गजब की स्फूर्ति, आत्मविश्वास और धैर्य आता गया, जिसने कालान्तर में बाबर को एक महान विजेता के रूप में उभारा। विजय प्राप्त करने की व राज्य के विस्तार की महत्वाकांक्षा बाबर में बचपन से ही थी। बाबर अपनी प्रतिभा, गुण तथा शौर्यपूर्ण कार्यों के कारण महान विजेता माना गया है। रणभूमि में, शत्रुपक्ष की अपेक्षाकृत अधिक सेना के समक्ष या कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी, जब भी युद्ध में विजय की कोई आशा नही दिखती थी, बाबर कभी हतोत्साहित नहीं हुआ। पानीपत, खानवा, घाघरा के युद्धों में बाबर ने अपनी असीम वीरता और अपूर्व साहस का परिचय दिया था। अपने से कई गुना अधिक सेना को पराजित कर उसने सिद्ध कर दिया था कि वह एक महान् विजेता है। बाबर भयंकर से भयंकर शत्रुओं का सामना करते हुए भी धैर्य, साहस और दृढ़सकंल्प नहीं छोड़ता था और पराजय से कभी भी निराश नहीं हुआ था, उसने स्वयं ही कहा था कि- “मेरे अन्दर आकांक्षा थी कि मै विजय प्राप्त करूँ, विस्तृत राज्य की स्थापना करूँ। इसलिए एक या दो पराजय से मैं निष्क्रिय होकर बैठने वाला नहीं था।” बाबर के अनुसार व्यक्ति में विजय के प्रति निश्चय हो तो वह किसी के समक्ष झुक ही नहीं सकता। बाबर अपने अफसरों तथा सिपाहियों को खूब अच्छी तरह जानता व समझता था। जो गुण एक सेनानायक में होने चाहिए, वह बाबर में कूट-कूट कर भरा था। वह शत्रु सेना की क्षमता व अक्षमता को भली-भाँति समझता था। बाबर यदि अपूर्व साहसी था तो दृढ़ता व महत्वाकांक्षा भी उसमें हद की सीमा तक थी। वह एक सफल सेनानायक भी था। इन्हीं विशिष्ट गुणों व प्रतिभा के कारण बाबर युद्धों में विजयी रहा और उसे महान विजेता माना गया। एक विजेता के रूप में बाबर ने केवल उत्तर भारत पर विजय पताका फहरायी, बल्कि दक्षिण भारत की तरफ भी कदम बढ़या। पानीपत के मैदान में 1526 ई० में इब्राहीम लोदी की विशाल सेना बाबर के सामने थी। बाबर ने टैकों का प्रयोग कुछ इस प्रकार से किया कि इब्राहीम लोदी की सेना के पाँव उखड़ गये और वह पराजित हुआ। पानीपत के युद्ध ने भारत के भाग्य का नहीं, अपितु बाबर के भाग्य का निर्णय अवश्य कर दिया। दूसरी बार खानवा के मैदान में 17 मार्च, 1527 ई. को बाबर ने हिन्दुओं के शक्तिशाली राजा राणा सांगा को हराया। एक बार फिर श्रेष्ठ सेनापतित्व, श्रेष्ठ युद्ध नीति, श्रेष्ठ सैन्य संचालन, अवसर के अनुकूल साहस और तोपखाने के कारण बाबर की जीत हुई । यह युद्ध महत्वपूर्ण व निर्णायक हुआ। सैनिक दृष्टिकोण से इस युद्ध ने मुगल हथियारों और युद्ध के तरीकों को श्रेष्ठ कर दिया। चन्देरी के युद्ध में दमीराय को परास्त करते हुए बाबर ने 1529 ई० में घाघरा के मैदान में अफगानों को धूल चटाया।
एक महान् विजेता के रूप में बाबर ने सिन्धु से लेकर बिहार तक हिमालय से लेकर ग्वालियर तक, अपना राज्य स्थापित कर लिया था। विशेषकर उत्तर भारत में मुगल शक्ति को चुनौती देने वाली दूसरी शक्ति बची ही नहीं थी। बाबर ने विजय की इच्छा व राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा से भारत पर आक्रमण किया था। उसके आक्रमण महमूद गजनवी, चंगेज खाँ या तैमूर के आक्रमण की भाँति विपुल धन की प्राप्ति और इस्लाम का प्रचार करने के लिए नही थे। बाबर ने भारत की सीमा पर सैनिक अभियान के तहत् जो आक्रमण किये, तब उसके सामने निश्चित उद्देश्य थे। बाबर भारत में साम्राज्य स्थापना के निश्चित उद्देश्य से आया था और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए संघर्षशील भी रहा। बाबर अपने इस उद्देश्य में सफल हुआ तथा भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना भी की। बाबर का यह राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर, दक्षिण में चन्देरी तक, पूर्व में बिहार से लेकर पश्चिम में पदपाशा तक फैला हुआ था। अपनी इन विजयों एवं राज्य विस्तार के आधार पर बाबर मुगल साम्राज्य के निर्माता के रूप में विशेष श्रेय का अधिकारी हुआ। तत्वों के प्रकाश में बाबर को मुगल साम्राज्य का निर्माता होने के श्रेय से पूर्णतया वंचित नहीं किया जा सकता। परन्तु साम्राज्य निर्माता के रूप में उसका अवलोकन करने पर उसमें निम्न कमजोरियाँ परिलक्षित होती हैं।
बाबर अपने विजित प्रदेशों को संगठित करने में असफल रहा, जबकि एक साम्राज्य निर्माता को एक-एक अंश को संगठित करना पड़ता है। बाबर एक विशाल साम्राज्य का स्वामी था । वह अफगानों एवं राजपूतों जैसे शक्तिशाली शत्रुओं को परास्त करके उनके राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया था। एक तरफ जहाँ बाबर विजय प्राप्त करता जा रहा था, वहीं पीछे के राजा द्रिोह कर स्वतंत्र होने का प्रयास शुरू कर देते। बाबर ने संगठन व व्यवस्था के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनायी थी। न ही प्रशसन को दृढ एवं स्थायी बनाया, परिणामस्वरूप बाबर की मृत्यु के बाद बंगाल व सिन्ध के प्रदेश उसके हाथ से निकल गया। राजपूत नरेशों ने भी बाबर के आधिपत्य को अधिक दिन तक स्वीकार नहीं किया। अन्य कई स्थानों पर भी स्वतंत्र सत्ता स्थापित हो गयी थी, अतः मृत्यु के समय बाबर अपने बेटे हुमायूँ के लिए ऐसा साम्राज्य छोड़ा जो युद्ध के परिस्थितियों में ही संगठित रखा जा सकता था। शान्तिकाल के लिए वह मात्र दुर्बल, अव्यवस्थित तथा आधारहीन था। उसकी विजय अस्थायी थी। इस प्रकार अस्थायी विजयों के कारण तथा अपने साम्राज्य को समुचित रूप से संगठित न कर पाने के कारण वाबर को साम्राज्य निर्माता का श्रेय प्रदान करना न्याय संगत नहीं प्रतीत होता।
बाबर ने जो साम्राजय निर्मित किया था, वह बाबर की मृत्यु के बाद ही समाप्त हो गया, क्योंकि वह शक्तिहीन और आधारहीन था। उसके पुत्र हुमायूँ को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हुमायूँ शेर खाँ द्वारा परास्त होने पर भारत से पलायन कर गया। इस प्रकार अत्यन्त अल्पकाल में ही बाबर का साम्राज्य घूल-धूसरित हो गया। इसके लिए बाबर ही उत्तरदायी था। बाबर एक महान विजेता था, किन्तु उसमें सफल शासक के गुणों का सर्वथा अभाव था। शासन व्यवस्था की ओर बाबर की तनिक भी रुचि न थी। इसलिए विजय प्राप्त करने के पश्चात् भारत में अपने राज्य को सुदृढ़ तथा स्थायी करने के लिए उसने ठोस प्रयास नहीं किया, उसने अपने साम्राज्य में उसी शासन व्यवस्था को बनाये रखा, जैसा कि जीतने के बाद पाया था। बाबर की मौत के बाद उसका राज्य अनुशासनहीन, अस्त-व्यस्त व अराजकतापूर्ण हो गया। हुमायूँ ठीक तरह से उसे सम्भाल नहीं सका। बाबर ने जो राज्य स्थापित किया था, हुमायूँ ने उसे खो दिया। लेकिन बाबर का यह सौभाग्य था कि उसे अकबर जैसा पौत्र मिला जिसने पुनः श्रेष्ठ प्रशासन, विभिन्न सुधारों के द्वारा राज्य को एक सूत्र में बाँध दिया।
बाबर के अन्दर जो कुशल शासक के गुणों का अभाव था, उसे कुछ इतिहासकारों ने इसे समय के अभाव के बल पर ढंकने का प्रयास किया है। इन इतिहासकारों का कहना है कि-बाबर भारत में केवल चार वर्ष ही रहा और इन चार वर्षों में बाबर युद्धों में संलग्न रहा। इस कारण वह अपने राज्य में उच्चकोटि की शासन-व्यवस्था स्थापित नहीं कर सका।
इतिहास में बाबर का स्थान भारत विजय कारण ही है। बाबर के समय साम्राज्य का कार्य तो चलता रहा, लेकिन उसके शहजादे हुमायूँ के समय राज्य को निरन्तर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
डा० आर० सी० मजूमदार ने लिखा है कि “हुमायू को बाबर की विरासत बहुत ही अस्थायी प्रकृति की थी।”
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि बाबर एक महान् विजेता था लेकिन उसमें साम्राज्य निर्माता के विशेष गुण का अभाव था।
इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक
- द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् यूरोप की दशा | द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् यूरोप की राजनैतिक दशा
- संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण | संयुक्त राष्ट्र संघ का संगठन | संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य | संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों का महत्व
- पानीपत के युद्ध के विजय के बाद बाबर की समस्याएं | खानवा का युद्ध
- बैरम खाँ | बैरम खाँ के पतन के कारण | बैरम खाँ के पतन का अध्ययन
- बाबर का चरित्र एवं व्यक्तित्व | विजेता और शासक के रूप में बाबर का मूल्यांकन
Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com