व्यूहरचनात्मक प्रबंधन

बाजार खंडीयकरण से आशय एवं परिभाषा | बाजार खण्डीयकरण के उद्देश्य | बाजार खण्डीयकरण का महत्व | विपणन रीति-नीति

बाजार खंडीयकरण से आशय एवं परिभाषा | बाजार खण्डीयकरण के उद्देश्य | बाजार खण्डीयकरण का महत्व | विपणन रीति-नीति | Meaning and definition of market segmentation in Hindi | Objectives of Market Segmentation in Hindi | Importance of Market Segmentation in Hindi | marketing practices in Hindi

बाजार खंडीयकरण या विभक्ति करण से आशय एवं परिभाषा-

बाजार विभक्तिकरण से आशय किसी वस्तु अथवा ब्राण्ड के ग्राहकों को उनकी समान रुचियों, प्रकृति गुणों और के अनुसार एक ही प्रकार के वर्गों में विभाजित करना है ताकि प्रत्येक प्रकार के वर्ग के ग्राहकों की विशेषताओं की दृष्टिगत रखकर विपणन कार्यक्रम लागू किये जा सकें।

उक्त वर्गीकरण का आधार आयु, लिंग, शिक्षा, रहन-सहन का स्तर आदि हो सकता है। कुछ विभिन्न विद्वानों द्वारा बाजार विभक्तीकरण की परिभाषाएँ इस प्रकार दी गयी हैं-

कोटलर के अनुसार, “एक बाजार को समान प्रकार के ग्राहकों की उपजातियों में विभाजन करने को बाजार विभक्तीकरण कहते हैं जिससे कि किसी भी उपजाति को चुना जा सके और विशिष्ट विपणन मिश्रण के साथ बाजार लक्ष्य बना कर उस तक पहुँचा जा सके।”

स्टिल एवं कण्डिक के अनुसार, “उपभोक्ताओं को उनकी विशेषताओं जैसे आय, आयु, नगरीकरण की स्थिति, जाति या नीति, वर्गीकरण, भौगोलिक स्थिति या शिक्षा के अनुसार समुदाय में बनाने को बाजार विभक्तीकरण कहते हैं।”

बाजार खण्डीयकरण के उद्देश्य

बाजार विभक्तीकरण का प्रमुख उद्देश्य विभिन्न क्रेताओं के मध्य जो अन्तर होते हैं उनका पता लगाना होता है। ये अन्तर वस्तुओं के चयन को प्रभावित करते हैं। बाजार विभक्तीकरण के उद्देश्य निम्नानुसार हैं-

(i) ग्राहकों को उनकी समान प्रकृति, स्वभाव व गुणों के आधार पर समजातीय वर्गों में विभक्त करना जिससे हर वर्ग के लिए उपयुक्त विपणन कार्यक्रम बनाया जा सके।

(ii) ग्राहकों की क्रय आदतों, रुचि, फैशन, आवश्यकताएँ तथा वस्तु वरीयताओं को ज्ञात करना।

(iii) उन क्षेत्रों का पता लगाना जहाँ नये ग्राहक बनाये जा सकते हैं।

(iv) विपणन लक्ष्यों के निर्धारण हेतु विभिन्न ग्राहक समूहों की क्रय संभाव्यता का पता लगाना।

(v) संस्था को प्राहक अभिमुखी बनाना जिससे ग्राहकों को सन्तुष्ट कर अधिक लाभ अर्जित किया जा सके।

बाजार खण्डीयकरण या बाजार विभक्तीकरण का महत्व-

(Importance of market Segmentation)

बाजारों का विभाजन करना अथवा बाजार विभक्तीकरण एक महत्वपूर्ण अथवा उपयोगी प्रक्रिया है। इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) सुदृढ़ एवं प्रभावी विपणन कार्यक्रम के निर्माण में सहायक- बाजार विभक्तीकरण का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इसकी सहायता से सुदृढ़ एवं प्रभावी विपणन कार्यक्रम बनाया जा सकता है।

(2) साधनों का समुचित उपयोग- बाजार विभक्तीकरण का दूसरा महत्वपूर्ण लाभ यह है कि उपक्रम अपने साधनों का समुचित एवं अधिकतम उपयोग करने में सफल हो सकता है क्योंकि बाजार के विभिन्न उपखण्डों की आवश्यकता की जानकारी होने के कारण प्रबन्धक अपने वित्तीय एवं अन्य साधनों का उपयोग इस प्रकार करता है कि साधनों का अधिकतम उपयोग करके लाभ की मात्रा की वृद्धि की जा सके।

(3) विपणन अवसरों की खोज- बाजार विभक्तीकरण का विश्लेषण करके विपणन अवसरों की खोज की जा सकती है। बाजार विभक्तिकरण के परिणामस्वरूप प्रत्येक बाजार खण्ड की स्थिति ज्ञात हो जाती है तथा जिन बाजार खण्डों में बिक्री की मात्रा कम है वहाँ पर अधिकतम एवं श्रेष्ठ विपणन सुविधाएँ प्रदान करके बिक्री की मात्रा में वृद्धि की जा सकती है।

(4) प्रतिस्पर्द्धा में सहायक- बाजार विभक्तीकरण से उपक्रम की प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता में वृद्धि होती है। उपक्रम बाजार विभक्तीकरण के द्वारा विभिन्न बाजार खण्डों में स्थप की विपणन नीतियों का अध्ययन करके उन्हें मात देने हेतु प्रभावी विपणन नीतियाँ तैयार कर सकता है।

(5) विपणन क्रियाओं के मूल्यांकन में सहायक- प्रत्येक बाजार खण्ड के लिए पृथक् विपणन कार्यक्रम बनाना बाजार विभक्तीकरण द्वारा ही सम्भव है। प्रत्येक खण्ड के लिए अलग-अलग विपणन कार्यक्रम बनाने के पश्चात् उसकी प्रभावशीलता का आसानी के साथ मूल्यांकन भी किया जा सकता है।

बाजार खण्डीयकरण एवं विपणन रीति-नीति

प्रत्येक बाजार को उपभोक्ता में व्याप्त भिन्नताओं के कारण किसी न किसी आधार पर विभाजित किया जा सकता है, परन्तु किसी संस्था के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह इन भिन्नताओं के आधार पर ही अपनी विपणन नीतियाँ निर्धारित करें, अपितु वह बाजार विभक्तीकरण के सम्बन्ध में निम्नांकित वैकल्पिक विपणन रीति-नीतियों में से किसी भी रीति के द्वारा बाजार विभक्तीकरण कर सकती है-

(1) भेदभावहीन विपणन रीति-नीति- बाजार विभक्तीकरण की इस रीति में एक ही वस्तु को समस्त उपभोक्तओं पर बिना किसी भेदभाव के लागू किया जाता है। इस विपणन नीत के अन्तर्गत उपक्रम द्वारा एक ही किस्म की वस्तु का उत्पादन किया जाता है तथा एक ही विपणन कार्यक्रम के अन्तर्गत सभी उपभोक्तओं पर लागू किया जाता है। उदाहरण के लिए-लिम्का, सिगरेट, खाद्य तेल, पेट्रोल आदि अनेक ऐसी वस्तुएँ हैं जिनके बाजार विभक्तीकरण हेतु अविभेदक विपणन नीति को अपनाया जा सकता है।

(2) भेदभावपूर्ण विपणन रीति-नीति- बाजार विभक्तीकरण की इस रीति-नीति के अन्तर्गत सम्पूर्ण बाजार के प्रत्येक खण्ड के लिए अलग-अलग वस्तु प्रस्तुत की जा सकती है। दूसरे शब्दों में इस विधि के अन्तर्गत सम्पूर्ण बाजार को विभिन्न खण्डों में विभक्त किया जाता है तथा उसके पश्चात् सभी खण्डों के लिए पृथक्-पृथक् वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। बाजार विभक्तीकरण की इस रीति-नीति का प्रमुख उद्देश्य उपभोक्ताओं के सभी वर्गों को सन्तुष्ट करके अधिक लाभ अर्जित करना होता है। इस रीति में प्रत्येक बाजार खण्डों के लिए विशिष्ट विपणन कार्यक्रम लागू किया जाता है। यह नीति बड़ी औद्योगिक इकाइयों के लिए ही उपयोगी है तथा इसका उपयोग सामान्यतया प्रचलित वस्तुओं के लिए ही किया जाना चाहिए।

(3) केन्द्रित विपणन रीति-नीति- इस नीति के अन्तर्गत समग्र बाजार पर ध्यान न देकर बाजार के किसी खण्ड विशेष को लक्ष्य बनाकर उस खण्ड विशेष की आवश्यकताओं को पूर्णतया संतुष्ट करके उसे प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। एक बाजार खण्ड को प्राप्त कर लेने के पश्चात् दूसरे बाजार खण्ड को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। केन्द्रित विपणन नीति के अनेक लाभ हैं जैसे- इस नीति को अपनाने से संस्था की ख्याति में वृद्धि हो जाती है तथा अपनी इस ख्याति का लाभ उठाकर समग्र बाजार पर अपना अधिकार जमा लेती है। इसके अलावा इस नीति में संस्था एक ही प्रकार की वस्तुओं का बड़े पैमाने पर उत्पादन करती है। परिणामस्वरूप उत्पदन लागत में कमी आ जाती है, विपणन लागत में कमी आ जाती है और इन सबके संयुक्त परिणाम के रूप में संस्था की लाभार्जन क्षमता बढ़ जाती है।

संकेन्द्रित विपणन नीति उपयोगी होने के साथ-साथ जोखिमपूर्ण भी है क्योंकि बाजार खण्ड में गलत चयन हो जाने की स्थिति में संस्था का भविष्य अंधकारमय हो सकता है।

कौन-सी रीति-नीति उपयुक्त ?

प्रत्येक विपणन रीति-नीति के अपने-अपने गुण-दोष हैं। जो रीति-नीति एक संस्था के लिए सर्वोत्तम है वह दूसरी संस्था के लिए निःकृष्ट भी हो सकती है। किस संस्था के लिए कौन-सी विपणन नीति सर्वोत्तम रहेगी। या किस संस्था को कौन सी विपणन नीति अपनाना चाहिए यह संस्था विशेष की परिस्थिति, साधन, प्रतिस्पर्द्धियों द्वारा अपनायी गयी रीति-नीति, वस्तु के स्वभाव, उपयोगिता आदि अनेक बातों पर निर्भर करता है।

व्यूहरचनात्मक प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!