संसाधन आधारित संगठनात्मक विश्लेषण | मूल्य शृंखला विश्लेषण के कार्य | Resource Based Organizational Analysis in Hindi | Functions of Value Chain Analysis in Hindi
संसाधन आधारित संगठनात्मक विश्लेषण
(Resources based organisational Analysis)
बाह्य पर्यावरण के सम्बन्ध में संगठन के लिए अवसर एवं चुनौतियों की जांच हेतु जांच एवं विश्लेषण पद्धति अपनायी जाती है जिसके फलस्वरूप संगठनात्मक प्रतियोगी लाभ का पता चलता है। परन्तु यह विश्लेषण पर्याप्त नहीं है। संगठन के लिए विश्लेषण इस प्रकार का होना चाहिए जिसके द्वारा आन्तरिक व्यूह रचना के कारकों- शक्तियों एवं कमजोरियों का अध्ययन हो सके। इसके द्वारा यह आवश्यक है कि फर्म प्रतियोगितात्मक लाभ प्राप्त कर सके। यह आन्तरिक विश्लेषण या जाँच। प्रायः संगठनात्मक विश्लेषण के नाम से जाना जाता है जिसका सम्बन्ध संगठन के संसाधनों का पता लगाना एवं उनका विकास करना है।
सार क्षमता (care competency) से आशय ऐसे विशिष्ट क्षमता से है जो कि फर्म को प्रतियोगितात्मक लाभ को प्राप्त करने में कायम (Sustainable) रखती है। सार क्षमता एक निश्चित समय के बाद होती है तथा फर्म के लिए विभिन्न संसाधनों को प्राप्त करने की क्षमता को बताती है। यह क्षमता फर्म को विभिन्न लाभों एवं प्रतियोगी लाभों को प्राप्त करने में सहायक होती है।
एक संगठन विभिन्न प्रकार के संसाधनों (Resources) का प्रयोग करता है तथा संगठनात्मक योग्यता का निर्माण करता है जिसके परिणामस्वरूप फर्म/ संस्था को प्रतियोगी फर्मों की अपेक्षा बेहतर लाभ प्राप्त होता है।
अतः उन संसाधनों का पता लगाना चाहिए जिनसे प्रतियोगितात्मक लाभ की प्राप्ति नहीं होती है। उन संसाधनों में मूल्यांकित कार्यों का पावेश करना चाहिए इस हेतु विभिन्न संसाधनों का अलौकिक (Unique) सम्मिश्रण बनाना चाहिए। इसे चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है। चित्र की व्याख्या निम्नलिखित है-
(i) क्षमता (competence) से आशय है संगठन का कार्य अच्छा होता है।
(ii) सार क्षमता से आशय है कम्पनी / संगठन अपने आन्तरिक कार्यों को अच्छे ढंग से कर रही है।
(iii) विशिष्ट क्षमता से आशय उस कार्य सम्पादन से है जो कि एक संगठन अपने प्रतिद्वन्द्वी संगठन से अच्छा प्रदर्शन कर रही है।
(iv) विशिष्ट क्षमता प्रतियोगितात्मक लाभ को प्राप्त करने में सहायक होती है।
मूल्य शृंखला विश्लेषण के कार्य
मूल्य श्रृंखला विश्लेषण के कार्यों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जाता है-
(1) प्राथमिक कार्य (Primary Activates):- प्राथमिक कार्य वे हैं जो कि उत्है- (Product) के भौतिक निर्माण एवं सेवाओं में सहायक होता है। इसके अन्तर्गत क्रेता को विक्रय एवं ब्रिकी सेवाए भी प्रदान की जाती है।
प्राथमिक कार्यों के अतिरिक्त निम्नलिखित कार्यों को सम्मिलित किया जाता है-
(i) आन्तरिक संभार-तंत्र (Inbound logistics)- ये क्रियाएँ संसाधन (Inputs) पर पर केन्द्रित रहती हैं। इसके अन्तर्गत सामग्री रखरखाव, स्टोरेज, स्कन्ध नियन्त्रण, मोटरगाड़ी अनुसूची, लेनदारों को इनपुट की वापसी तथा कच्ची सामग्री को सम्मिलित किया जाता है।
(ii) क्रियाएँ (Operations)- इसके अन्तर्गत वे क्रियाएँ सम्मिलित की जाती हैं जिसके अन्तर्गत इनपुट को अन्तिम उत्पाद में परिवर्तन किया जता है। उदाहरण के लिए उत्पादन, मशीनीकरण, पैकेजिंग, एकत्रीकरण, टेस्टिंग मशीनरी का रखरखाव आदि क्रियाएं सम्पन्न की जाती है।
(iii) बाह्य संभार तन्त्र (Out bound Logistics)- इसके अन्तर्गत सामान्यता निम्न लिखित क्रियाएं सम्मिलित की जाती है- (a) धन संग्रह (b) स्टोर्स (c) अन्तिम उत्पाद का भौतिक रूप में विवरण। ये क्रियाएँ निम्न रूपों में है- (a) अन्तिम वस्तुएं, गोदाम से वस्तुओं की डिलिवरी, मोटर गाड़ी क्रियाएँ, आदेश प्रक्रिया एवं अनुसूची आदि।
(iv) विपणन एवं विक्रय (Marketing and sales) – विपणन एवं विक्रय के अन्तर्गत निर्मित वस्तुओं को महक को विक्रय किया जाता है तथा कम्पनी के उत्पाद को क्रय करने के लिए उन्हें प्रेरित करना होता है। इस हेतु निम्नलिखित विधियाँ अपनायी जाती है विज्ञापन, प्रवर्तन, विक्रय बल, माध्यम चयन तथा मूल्यनिर्धारण आदि।
(v) सेवाएँ (Services) – सेवाओं के अन्तर्गत उत्पाद की गुणवत्ता में वृद्धि करना शामिल है। इसके अन्तर्गत मरम्मत, प्रशिक्षण, स्थापना (Installation) सामग्री पूर्ति तथा उत्पाद समायोजन को सम्मिलित किया जाता है।
(2) सहायक क्रियाएँ (Support Activities) – मूल्य शृंखला विश्लेषण की सहायक क्रियाएं निम्नलिखित है-
(i) प्रबन्ध करना (Procurement)- प्रबन्धकों से आशय कच्ची सामग्री को क्रय करना तथा पूर्ति करना, उपभोक्ता वस्तुएं एवं मशीनरी तथा लैबोरेटरी संयन्त्र, कार्यालय संयन्त्र आदि की व्यवस्था करने से है। पोर्टर प्रबन्ध करने को सहायक क्रिया के अन्तर्गत मानते हैं जबकि अन्य क्रय गुरु Purchasing Guru इस क्रिया को अंशतः प्राथमिक कार्य मानते हैं जिसके अन्तर्गत निम्नलिखित सम्मिलित है- कच्ची साम्रगी का क्रय, सर्विसिंग पूर्ति, पूर्तिकर्ता के साथ संविदा समझौता, पट्टे पर भवन की प्राप्ति आदि।
(ii) तकनीकी विकास (Technology Development) – तकनीकी विकास के अन्तर्गत उत्पाद से सम्बन्धित शोध एवं विकास कार्यक्रम, प्रक्रिया शोध एवं विकास कार्यक्रम, प्रक्रिया डिजाइन सुधार, संयन्त्र डिजाइन, कम्प्यूटर साफ्टवेयर विकास कार्यक्रम आदि को सम्मिलित किया जाता है।
(iii) मानव संसाधन प्रबन्ध (Human Resources management) – मानव संसाधन प्रबन्ध के अन्तर्गत कार्मिक नियुक्ति, प्रशिक्षण कार्यक्रम, क्षतिपूर्ति, श्रमिक सम्बन्ध आदि सेवाओं को उनकी शामिल किया जाता है।
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