व्यूहरचनात्मक प्रबंधन

व्यूह रचनात्मक नियंत्रण मूल्यांकन तकनीक | बाजार खण्डीकरण से आशय | वित्तीय नीति निर्णयों से सम्बन्धित प्रमुख मुद्दे | बैंक वित्त के प्रमुख लाभ

व्यूह रचनात्मक नियंत्रण मूल्यांकन तकनीक | बाजार खण्डीकरण से आशय | वित्तीय नीति निर्णयों से सम्बन्धित प्रमुख मुद्दे | बैंक वित्त के प्रमुख लाभ | Array Constructive Control Evaluation Techniques in Hindi | Meaning of market segmentation in Hindi | Major issues related to financial policy decisions in Hindi | Major Advantages of Bank Finance in Hindi

व्यूह रचनात्मक नियंत्रण मूल्यांकन तकनीक

Evaluation Techniques for Strategic control

व्यूह रचनात्मक प्रबन्ध सदैव चलने वाली प्रक्रिया है। इसके द्वारा किसी एक घटक में परिवर्तन से अन्य घटकों में भी परिवर्तन करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, किसी अर्थव्यवस्था में परिवर्तन कम्पनी के दीर्घकालीन उद्देश्यों एवं व्यह रचनात्मक परिदृश्य में भी परिवर्तन करना आवश्यक हो जाता है। अतः कार्यनीति बनाना उसको लागू करना एवं मूल्यांकन करना मुख्य उद्देश्य है जोकि अनवरत किया जाता है कि केवल 12 माह के अन्त में व्यूह रचनात्मक प्रक्रिया नियन्त्रण के 5 माडल निम्नलिखित है-

(1) विषय माप निश्चित करना (Determine what to measure)- इसके अन्तर्गत सर्वप्रथम नियन्त्रण के विषयों का चुनाव करना होता है, इसके बाद माप की इकाइयों को निश्चित करना होता है। उच्च प्रबन्धक एवं क्रियात्मक प्रबन्धक द्वारा उद्देश्यपूर्ण मूल्यांकन प्रक्रिया को अपनाया जाता है। उनके द्वारा महत्वपूर्ण तत्वों जैसे- उच्चतर व्यय एवं महत्वपूर्ण व्यावसायिक समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। विषय माप सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए होना चाहिए। चाहे मूल्यांकन जितनी भी कठिनइयां या समस्याएं हो

(2) लक्ष्यों एवं प्रमापों का निर्धारण करनाः (Establishment of goals and standards) – व्यूहरचनात्मक प्रबन्ध मूल्यांकन तकनीक के अन्तर्गत उठाया जाने वाला दूसरा कदम लक्ष्यों, प्रमाणों, नीतियों योजनाओं, मान्यताओं अथवा किन्हीं ऐसे प्रमापों का निर्धारण करना है जिनके आधार पर किसी कर्मचारी के कार्य का मापन किया जा सके। ये प्रमाप किसी कार्यकलापों के ऐसे पैमाने का स्तर होते हैं, जिनमें वास्तविक कार्य की तुलना की जाती है। कोई भी कार्य सही ढंग से हो रहा है या नहीं, इस बात की जानकारी उस समय तक नहीं हो सकती जब तक कि प्रमापों को निर्धारित नहीं कर दिया जाता है। इस प्रकार प्रमाप वास्तविक निष्पादन के मापन के साधन होते हैं। जहाँ तक सम्भव हो, प्रमाप परिमाणात्मक रूप में होने चाहिए ताकि उन्हें सफलता पूर्वक समझा जा सके। प्रमापों का निर्धारण उपक्रम के कार्य स्थिति तथा क्षमता आदि को ध्यान में रखकार ही किया जाना चाहिए। ये प्रमाप ऐसे हों जिन्हें एक सामान्य व्यक्ति अपने प्रयासों से प्राप्त कर सके। उदाहरण के लिए प्रमाप, अन्तिम उत्पादन के लिए ही निश्चित नहीं किये जाने चाहिए अपितु मध्यप्रक्रिया उत्पादन हेतु भी निश्चित किये जाने चाहिए।

(3) वास्तविक निष्पादनों का मापन करना – (Measurement of Actual Performance) : व्यूहरचनात्मक नियन्त्रण मूल्यांकन तकनीक के अन्तर्गत उठाया जाने वाला तीसरा कदम। वास्तविक निष्पादनों का मापन करना है। वास्तविक निष्पादनों के मापन का कार्य निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है।

(i) प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अवलोकन एवं निरीक्षण द्वारा (ii) नियमित प्रतिवेदनों द्वारा (iii) सर्वेक्षण द्वारा (iv) सांख्यिकीय एवं गणितीय विधियों द्वारा।

वास्तविक निष्पादनों का मापन एक निश्चित समय पर करना चाहिए।

(4) वास्तविक निष्पादनों को निर्धारित प्रमापों से तुलना (Compare Actual Performance with Standard)- नियन्त्रण की इस प्रक्रिया के अन्तर्गत वास्तविक निष्पादनों की निर्धारित प्रमापों से तुलना करके विचलनों को ज्ञात करना होता है। देखने की आवश्यकता यह है कि यह विचलन या अन्तर कितना है। यदि विचलन स्वीकृत सीमा के बाहर है तो उसके कारणों की खोज करनी चाहिए तथा सुधारात्मक कार्यवाही करनी चाहिए। मूल्यांकन कर्ता को इस सम्बन्ध में निम्न बातों की ओर ध्यान देना चाहिए- (i) विचलन का कारण स्थायी है या अस्थायी ? (ii) विचलन का प्रभाव क्या है? (iii) विचलन का आकार क्या है। (iv) मूल्यांकन के द्वारा प्रभावों में सुधार किस प्रकार किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि यह बिचलन महत्वहीन है यदि यह स्वीकृत सीमा के अन्दर है।

(5) सुधारात्मक कार्य (Corrective Action) : यदि विचलन स्वीकृति सीमा के बाहर है तो सुधारात्मक कार्यवाही के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देना चाहिए :

(i) क्या विचलन अन्तर एक संयोग है?

(ii) क्या उत्पादन प्रक्रिया सही ढंग से नहीं हुआ है ?

(iii) क्या उत्पादन प्रक्रिया सही ढंग से हुआ है?

सुधारात्मक कार्यवाही के अन्तर्गत विचलनों को समाप्त करना एवं पुनः विचलन न होने पाये इस बात को ध्यान में रखना चाहिए।

(iv) विचलन को सुधारने के लिए कौन सा व्यक्ति सर्वोत्तम है? सुधारात्मक कार्य ऐसा हो जिसे सम्पूर्ण उपक्रम को प्रभावित किये बिना ही सम्पन्न किया जा सके अथवा सुधारा जा सके किन्तु यदि वह नियोजन, संगठन, समन्वय, तथा अभिप्रेरण आदि प्रबन्ध के कार्यों को प्रभावित करता है तो ऐसी स्थिति में आपसी विचार-विमर्श के पश्चात ही सुधारात्मक कार्य किया जाना चाहिए।

बाजार खण्डीकरण से आशय-

बाजार को विभिन्न खण्डों में बाँटने की क्रिया को बाजार खण्डीकरण कहते हैं। बाजार का खण्ड एक रूप से नहीं होता है इसे विभिन्न खण्डों और उपखण्डों में विभाजित किया जाता है। यह विपणन व्यूह रचना की एक नवीनतम अवधारणा है। यह अवधारणा उपभोक्ता समूहों तथा उनकी आवश्यकताओं से प्ररम्भ होती है तथा यह बतलाती है कि सफल विजातीय बाजार कई लघु सजातीय इकाइयों से निर्मित होती है।

बाजार खण्डीकरण एक ऐसी व्यूह रचना है जिसके माध्यम से उन क्षेत्रों का पता लगाया जाता है जिनमें प्रयास कर रहे ग्राहक बनाये जा सकते हैं और विपणन क्षेत्र का विस्तार किया जा सकता है।

फर्म, द्वारा उत्पाद स्थितिकरण का प्रयोग या खण्डीकरण की रणनीतियाँ- उत्पाद स्थितिकरण व्यूह रचना का प्रयोग एक फर्म द्वारा निम्न प्रकार किया जाता है-

(1) संतुलित व्यूह रचना- संतुलित व्यूह रचना एक परिपक्व व्यूह रचना है। इसमें वांछित व्यय तथा माँग लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये आयु लागत प्रवाह का संतुलन प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।

(2) वृद्धि व्यूह रचना- वृद्धि व्यूह रचना के अन्तर्गत बाजार में नये उत्पाद बाजार में लाये जाते हैं और उन्हें उत्पाद पंक्ति में नये उत्पादों को जोड़ा जाता है।

(3) बाजार धारण व्यूह रचना- बाजार माँग को बनाये रखने के लिये बाजार में पहले से ही मौजूद उत्पाद पंक्ति में नये उत्पाद जोड़ने का कार्य इस व्यूह रचना के अन्तर्गत किया जाता है।

(4) नव साहस व्यूह रचना- इस प्रकार की रचना में किसी अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर संयुक्त साहस के रूप में कोई नया उत्पाद शुरू करना होता है जिससे बाजार माँग को बनाये रखा जाये। इससे नये उत्पाद सरलता से बिक सकते हैं और बाजार में भी वृद्धि होती है।

(5) बाजार विकास व्यूह रचना- इस व्यूह रचना के अन्तर्गत अपने पुराने उत्पादों में कुछ नये उत्पादों की श्रृंखला जोड़ी जाती है। जिससे बाजार का विस्तार होता है।

वित्तीय नीति निर्णयों से सम्बन्धित प्रमुख मुद्दे

वित्तीय नीति निर्णयों से सम्बन्धित प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं-

  1. स्त्रोत एवं पूँजी संरचना निर्णय- एक संस्था को वित्त के लिये स्वामित्व पूँजी तथा ऋण पूँजी के दो स्रोत उपलब्ध हो सकते हैं जिससे संस्था अपना कार्य आसानी से चला सकती है। किसी संस्था के लिये वित्त की व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती होती है और कोषों की व्यवस्था करना प्रबन्ध तंत्र का प्रमुख कार्य होता है। वित्त के स्रोत एवं पूँजी संरचना निर्णय के अन्तर्गत व्यूह रचना के सफल क्रियान्वयन के लिये पर्याप्त कोषों की उपलब्धता की व्यवस्था की जाती है।
  2. विनियोग निर्णय का प्रयोग- इसके अन्तर्गत कोई भी संस्था अपनी आवश्यकता के अनुसार विभिन्न कोषों में अपना धन विनियोजित करता है। प्रत्येक संगठन के प्रबन्ध तंत्र के लाभ से पूँजी विनियोग की समस्या होती है। पूँजी विनियोग से तात्पर्य ऐसी परियोजना में धन के विनियोजन से है जिससे शीघतिशीघ्र परिणामों की आशा की जा सके।
  3. वित्तीय नीति एवं लाभांश नीति- वित्तीय नीति के अन्तर्गत संस्था प्रबन्ध अपनी वित्त सम्बन्धी योजनाएँ बनाता है और उन्हें लागू करता है, वित्तीय व्यूह रचनाओं में सरल सम्पत्तियों की प्राप्ति एवं उनके प्रबन्ध तथा विनियोग से सम्बन्धित कार्य शामिल हैं।

लाभांश नीति का निर्धारण भी वित्तीय प्रबन्धक का ही महत्वपूर्ण कार्य है। इसमें यह तय किया गया है कि कम्पनी द्वारा कमाये गये शुद्ध लाभ में से अंशधारियों को कितना भाग दिया जाये।

बैंक वित्त के प्रमुख लाभ

बैंक वित्त के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) व्यापारी या संस्था बैंक से अपनी आवश्यकतानुसार ऋण ले सकता है और सुविधानुसार उसका किस्तों में भुगतान कर सकता है। इससे यह लाभ होता है कि केवल अदत्त राशि पर ही ब्याज देना होता है।

(2) बैंकों से ऋण लेने वाली संस्थाओं को बैंक अधिविकर्ष आदि की सुविधाएँ भी प्रदान करती है जिससे संस्था की ख्याति बाजार में अच्छी होती है।

(3) बैंक की ब्याज दर कम्पनी द्वारा घोषित लाभांश दर से कम होती है। अतः बैंक से ऋण लेना एक सस्ती वित्त व्यवस्था है।

(4) बैंक अपने ग्राहकों की सभी बैंक सम्बन्धित सूचनाएँ गुप्त रखता है। अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति के सम्बन्ध में बैंक अन्य किसी को जानकारी नहीं देता है, अतः गोपनीयता बनी रहती है।

(5) बैंक अपने ग्राहकों को विशेष परिस्थितियों में आर्थिक सहायता भी पहुंचाती हैं। यदि ग्राहक का पिछला रिकार्ड अच्छा रहा है तो संकट के समय अपने ग्राहकों को बैंक आर्थिक सहायता उपलब्ध कराती है।

व्यूहरचनात्मक प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

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Pankaja Singh

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