व्यूहरचनात्मक प्रबंधन

व्यवसाय के पर्यावरण रणनीतिक प्रबन्ध का आशय | व्यवसाय के पर्यावरणीय रणीनति में प्रभाव | गहन व्यूह रचनाओं की अवधारणा | गहन व्यूह रचना के अवयव या तत्व

व्यवसाय के पर्यावरण रणनीतिक प्रबन्ध का आशय | व्यवसाय के पर्यावरणीय रणीनति में प्रभाव | गहन व्यूह रचनाओं की अवधारणा | गहन व्यूह रचना के अवयव या तत्व | Meaning of environmental strategic management of business in Hindi | Effects in the environmental strategy of business in Hindi | Concept of deep array compositions. elements of deep array in Hindi

व्यवसाय के पर्यावरण रणनीतिक प्रबन्ध का आशय

पियर्सन एवं रॉबिन्सन के शब्दों में- “रणनीतिक प्रबन्ध गतिविधियाँ सम्पूर्ण तंत्र से सम्बन्धित होती हैं अथवा इसका एक महत्वपूर्ण भाग होती हैं। ये गतिविधियाँ संगठनात्मक उद्देश्यों अथवा प्रबन्धकीय रणनीतियों जिनमें पूरे संगठन या व्यावसायिक इकाई में उलझने हो में परिर्वतन ला सकता है।”

उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार रणनीतिक प्रवन्ध में निम्न तत्व सम्मिलित हैं-

(1) रणनीति प्रबन्ध विश्लेषण एवं कुछ अन्य तत्वों से सम्बन्ध रखता है।

(2) रणनीतिक प्रबन्ध निर्देशात्मक निर्णयों का समाहित करता है जो तीन से पाँच या अधिक वर्षों के लिए हो सकते हैं।

(3) रणनीतिक प्रवन्ध परिवर्तनशील पर्यावरण के अन्तर्गत दुरूह संसाधनों, अवसरों का उपयोग करता है।

(4) यह एक सतत गत्यात्मक एवं सामाजिक प्रक्रिया है।

(5) यह सम्पूर्ण तंत्र से सम्बन्ध रखता है।

पर्यावरणीय रणीनति में प्रभाव-

व्यवसाय के पर्यावरण में परिर्वतन से प्रबन्ध व रणनीति पर निम्न प्रकार से  प्रभाव पड़े हैं-

(1) प्रबन्धकों ने इस प्रकार की रणनीति बनाई है कि व्यवसाय की प्रतियोगी क्षमता बढ़ी है।

(2) व्यवसाय द्वारा अपने आर्थिक आधार को सुदृढ़ बनाने के लिए लाभार्जन बढ़ाने हेतु विभिन्न प्रयास किये जाने लगे।

(3) व्यवसाय के उद्देश्य, योजनाएँ और नीतियाँ बदली हैं।

(4) नयीं सरकारी नीतियाँ, वैधानिक प्रावधान, शोध एवं विकास तकमीक, राजनीतिक व सामाजिक दशांए, सत्ता परिवर्तन, विदेशी दबाव आदि बाह्य घटकों ने व्यवसाय पर प्रभाव डाला है। इसका सामना करने के लिये व्यवसाय द्वारा अपनी रणनीतियों को परिवर्तित किया गया है।

(5) व्यवसायों के द्वारा ऐसी रणनीतियों का निर्माण किया जाने लगा है जिनसे कि भौतिक पर्यावरण में सुधार हो।

(6) आधिक प्रतियोगिता के कारण व्यवसाय ऐसी रणनीति बनाते हैं जिससे कि कीमतें न बढ़े।

(7) तकनीकी परिवर्तनों के कारण वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण शीघ्रता व सरलता से होने के कारण व्यवसायी वर्ग द्वारा तकनीकी वातावरण के परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनाता है।

गहन व्यूह रचनाओं की अवधारणा

गहन व्यूह रचनाओं से आशय वैकल्पिक उद्देश्यों, नीतियों, कार्यविधियों एवं कार्यक्रमों में से सर्वोत्तम चुनाव करने से लगाया जाता है। गहन व्यूह रचना के अन्तर्गत बाहरी व्यूह रचना (प्रतियोगितात्मक व्यूह रचना) तथा अन्तरिक व्यूह रचना (व्यावसायिक लक्ष्य एवं उद्देश्य) दोनों को सम्मिलित किया जाता है। प्रतियोगितात्मक व्यूह रचना के अन्तर्गत प्रबन्धक अपने प्रतियोगी से अधिक कुशल एवं नवीन ढंग से उत्पाद को बाजार में प्रस्तुत करता है और यह कार्य प्रतियोगी निर्माता से पहले करता है तभी सफलता प्राप्त की जा सकती है। दूसरे आन्तरिक व्यूह रचना के अन्तर्गत एक प्रबन्धक अपने कारखाने में कर्मचारियों के आने के समय में परिवर्तन करने या प्रेरणात्मक मजदूरी भुगतान को किसी नयी पद्धति को लागू करने से पूर्व ऐसे परिवर्तन करने के लिए पहले व्यूह रचना बना सकता है। इस प्रकार गहन व्यूह रचना उपक्रम से बाहर एवं अन्दर दोनों ही स्थानों पर पड़ती है।

गहन व्यूह रचना के अवयव या तत्व

गहन व्यूह रचना के प्रमुख अवयव निम्नलिखित हैं-

(1) निर्धारित उद्देश्य एवं लक्ष्य होनागहन व्यूह रचना का कार्य एक निर्धारित लक्ष्य एवं उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। नियोजक या व्यूह रचनाकर्ता इस बात की भविष्यवाणी कर सकता है कि इस अन्तिम उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए क्या क्रियाएँ की जानी चाहिए।

(2) पूर्वानुमान का होना- गहन व्यूह रचना का दूसरा महत्वपूर्ण अवयव भविष्य के बारे में देखना अर्थात् पूर्वानुमान है। विभिन्न प्रकार के पूर्वानुमानों का चाहे वे अलपकालीन हो अथवा दीर्घकालीन, सामान्य हो अथवा विशिष्ट संश्लेषण होता है। पूर्वानुमान एक वर्षीय एव दस वर्षीय हो सकते हैं। दस वर्षीय पूर्वानुमानों में कम से कम पाँच वर्ष के उपरान्त आवश्यक संशोधन कर लेना चाहिए।

(3) विभिन्न वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम का चयन- गहन व्यूह रचना के अन्तर्गत विभिन्न वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम क्रिया का चयन किया जाता है। प्रबन्धक के सामने  विभिन्न वैकल्पिक लक्ष्य, नीतियाँ, विधियाँ तथा कार्यक्रम होते हैं और इनमें से उसे सर्वोत्तम का चुनाव करना होता है उपक्रम की सफलता बहुत कुछ सीमा तक इस चयन के आधार पर ही निर्भर करती है।

(4) ऐक्यता- ऐक्ता भी गहन व्यूह रचना का एक आवश्यक अवयव है। एक समय में केवल एक व्यूह रचना की कार्यान्वित की जा सकती है क्योंकि दो विभिन्न व्यूहरचनाओं के होने पर दुविधा, भ्रान्ति एवं अव्यवस्था फैलेगी। किन्तु आवश्यकता पड़ने पर एक ही व्यूह रचना को कई हिस्सों में विभक्त किया जा सकता है। क्रियाओं में निरन्तरता स्थापित करने के लिए प्रथम, द्वितीय या तृतीय व्यूह रचना क्रियान्वित की जाती है।

(5) व्यूहरचना की सर्वाभौमिकता- गहन व्यूह रचना सार्वभौमिक होती है। संगठन के प्रत्येक स्तर पर व्यूहरचना की आवश्यकता होती है। संगठन का स्तर जितना अधिक ऊँचा होगा व्यूह रचना का क्षेत्र उतना ही अधिक विस्तृत एवं व्यापक होगा।

(6) बौद्धिक एवं मानसिक क्रिया- गहन व्यूह रचना एक बौद्धिक एवं मानसिक प्रक्रिया है, क्योंकि व्यूह रचना करने वालों को सम्भावित कार्यविधियों एवं विकल्पों में से सर्वोत्तम का चयन करना होता है और यह कार्य दूरदर्शिता, विवेक एवं चिन्तन पर निर्भर करता है जिसे हर कोई व्यक्ति नहीं कर सकता।

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Pankaja Singh

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