इतिहास

अशोक के धम्म का स्वरूप | अशोक के ‘धम्म’ का प्रभाव | अशोक के धम्म के मूल तत्त्व के प्रभाव

अशोक के धम्म का स्वरूप | अशोक के ‘धम्म’ का प्रभाव | अशोक के धम्म के मूल तत्त्व के प्रभाव

अशोक के धम्म का स्वरूप

अशोक के धम्म के विषय में विद्वानों में इस सम्बन्ध में मतभेद है कि अशोक के धम्म का स्वरूप ‘राजधर्म’ का था या सार्वभौम का था या उपासक बौद्ध धर्म का था। इस सम्बन्ध में इसके तीनों स्वरूपों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-

(1) राजधर्म- फ्लीट का मत है कि अभिलेखों में अशोक ने जिस धर्म का प्रतिपादन किया, वह वस्तुतः राजधर्म था, जिसके आधार पर ही राजा को अपना शासन-संचालन करना चाहिए। अशोक के अभिलेखों का धम्म, महाभारत के राजधर्म से मेल खाते हैं। अतः इसे भी राजधर्म समझना चाहिए।

इस मत के सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि यद्यपि अशोक का धम्म बहुत अंशों में भारतवर्ष के पुरातन राजधर्म से मिलता-जुलता है तथापि यह राजधर्म नहीं हो सकता। राजधर्म राजा के लिए होता है, प्रजा के लिए नहीं। परन्तु अशोक अभिलेखों में अपने धर्म के सिद्धान्तों को उत्कीर्ण करवाकर अपनी प्रजा से उसका पालन करवाना चाहता था।

(2) सार्वभौम धर्म- डॉ० स्मिथ और डॉ० राधाकुमुद मुकर्जी के अनुसार, “अशोक का धर्म सार्वभौमिक धर्म था, जिसमें ऐसे सिद्धान्तों का संकलन हुआ था, जो सभी धर्मों की समान सम्पत्ति हैं”।

इस मत में बहुत कुछ सत्यता है। परन्तु यदि हम अभिलेखों में व्याख्यात धम्म का सूक्ष्म अध्ययन करें तो इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि यह धर्म अनेक स्थलों पर बौद्ध धर्म से प्रभावित था।

(3) उपासक बौद्ध धर्म- उपासक बौद्ध धर्म उसे कहते हैं, जिसमें उन्हीं बौद्ध धर्म सिद्धान्तों को ग्रहण किया गया हो, जो गृहस्थ उपासकों के लिए व्यावहारिक हो। इस रूप में यह धर्म भिक्षु बौद्ध धर्म से भिन्न था। अशोक का धम्म इसी प्रकार का था।

सेनार्ट, हुल्स, भण्डारकर आदि विद्वानों का मत है कि अशोक का धम्म उपासक बौद्ध धर्म था, क्योंकि अशोक ने अपने धम्म में बौद्ध धर्म के उन्हीं सिद्धान्तों को ग्रहण किया था, जो गृहस्थ उपासकों के लिए व्यावहारिक हों। अशोक स्वयं गृहस्थ था और उसकी प्रजा भी अधिकांशतः गृहस्थ थी। अतः उसने उपासक बौद्ध धर्म के प्रचार को ही उपयुक्त समझा। यदि वह भिक्षु बौद्ध धर्म का प्रचार करता, तो यह स्वयं उसके तथा प्रजा दोनों के लिए अशोभनीय और अव्यावहारिक होता। इसके अतिरिक्त भिक्षु बौद्ध धर्म नितान्त साम्प्रदायिक बन जाता। उपासक बौद्ध धर्म में अशोक ने अधिकांशतः उन्हीं सिद्धान्तों का समावेश किया था, जो उसके साम्राज्य के विभिन्न सम्प्रदायों को भी मान्य हों।

अशोक के ‘धम्म’ का प्रभाव

अशोक ने निश्चित ही भारत के वौद्ध धर्म को विदेशों में प्रचारित करके उसे लगभग एक विश्व धर्म बना दिया। ऐसे महत्व पूर्ण धर्म का प्रभाव धर्म के क्षेत्र के अतिरिक्त राजनीति, सार्वजनिक नीति आदि क्षेत्रों पर भी पड़ा, जिसके काफी दूरगामी परिणाम निकले। अशोक बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों के प्रचार के लिए अति उत्साही था। उसने अपने प्रचारकों को ही नहीं बल्कि अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा तक को बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए श्रीलंका भेजा। यथा-

(1) समाज में नैतिक एवं आध्यात्मिक चेतना- अशोक के पूर्ववर्ती मौर्य राजाओं एवं स्वयं अशोक ने कलिंग युद्ध तक अपने साम्राज्य की सीमाओं के विस्तार पर अधिक ध्यान दिया। निश्चित है कि बिना नैतिक पतन और आध्यात्मिक गिरावट का सहारा लिये वे ऐसा नहीं कर सकते थे, क्योंकि साम्राज्य प्रसार में हिंसा का तत्त्व सन्निहित होता है। धन-जन हानि के बिना साम्राज्य विस्तार हो ही नहीं सकता। सम्राट अशोक ने यह सब छोड़कर धार्मिक यात्राएँ करना प्रारम्भ कर दिया। उसने बौद्ध धार्मिक स्थानों पर लगने वाले कर को समाप्त कर दिया, अन्य करों को भी घटाकर उसने काफी कम कर दिया। अशोक ने अपने अधिकारियों तथा प्रजा को भी ऐसी धार्मिक यात्राएँ करने का परामर्श दिया। इससे प्रजा के सामाजिक जीवन में सामान्य रूप से परिवर्तन आया। प्रजा का नैतिक उत्थान हुआ और उसकी आध्यात्मिक चेतना जागृत हुई।

(2) अशोक का सार्वभौम धर्म- अशोक अपने ‘धम्म’ में सभी धर्मों के अच्छे-अच्छे गुण सम्मिलित कर देता है। उसका धर्म इतना व्यापक हो जाता है कि वह किसी धर्म विशेष का अनुयायी नहीं रह जाता। इस प्रकार वह एक नये धर्म का संस्थापक हो जाता है, जो अशोक के ‘धम्म’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अशोक का धर्म एक सर्वमंगलकारी धर्म है। उसका धर्म अत्यन्त सरल एवं व्यावहारिक है तथा उसका उद्देश्य प्राणीमात्र का उद्धार करना है। दान देना, सभी पर दया करना, सत्य बोलना, सभी के कल्याण की बात सोचना, अपनी आत्मा तथा विचारों को शुद्ध रखना तथा किसी प्रकार का पापकर्म नहीं करना ही अशोक के ‘धम्म’ के मुख्य लक्षण हैं। इन बातों से अशोक की प्रजा के आचार-विचार एवं व्यवहार पर काफी अनुकूल प्रभाव पड़ा।

(3) अशोक के ‘धम्म’ का सार्वजनिक नीति पर प्रभाव- अशोक के धर्म के प्रभावानुसार उसकी सार्वजनिक नीतियों में नैतिकता तथा आध्यात्मिकता की प्रमुखता स्पष्ट दिखाई देने लगी। अपनी प्रजा की नैतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति करना ही अशोक की सार्वजनिक नीतियों का मुख्य उद्देश्य हो गया। सम्राट अशोक के साथ-साथ उसके अधिकारियों तथा प्रजा के दृष्टिकोण में भी तथानुकूल परिवर्तन हुए।

(4) अशोक के ‘धम्म’ का राजनीति पर प्रभाव- अशोक ने अपने धर्म को राजधर्म बना दिया। उसका धर्म केवल व्यक्तिगत जीवन का ही धर्म नहीं था, वरन् वह उसके सम्पूर्ण शासन का धर्म बन गया। अपने धार्मिक आदर्शों को व्यवहार स्वरूप देने के लिए उसने राज्य को साधन बना लिया। राज्य की सम्पूर्ण शक्ति एवं प्रचुर साधनों को उसने धर्म प्रचार के लिए जुटा दिया। अशोक ने एक प्रकार से धर्म और राजनीति दोनों का समन्वय कर दिया। अपने शासन में उसने एक धर्म विभाग की स्थापना की तथा इस विभाग की विशेष देखभाल के लिए धर्म महामात्र नामक नवीन पदाधिकारी की नियुक्ति की।

(5) अशोक के ‘धम्म’ का उसकी साम्राज्य शक्ति पर प्रभाव- डॉ० हेमचन्द्र राय चौधरी के अनुसार, “अशोक की अहिंसा व शक्ति की नीति ने मौर्य साम्राज्य की प्रबल शक्ति को ही कमजोर कर दिया। सम्राट अशोक की युद्ध न करने की नीति से उसकी सैनिक शक्ति ही कमजोर हो गई।” लोगों तथा सैनिकों के आचार में नैतिक व आध्यात्मिक गुणों की प्रधानता आने से वे शक्ति प्राप्त करने के मनोविज्ञान से दूर हट गये। सैनिक में अपनी सैनिक योग्यता बढ़ाने के प्रति कोई उत्साह नहीं रह गया। शोक की सैनिक शक्ति कमजोर होते देखकर दूरस्थ प्रान्त स्वतन्त्र होने लगे तथा अशोक के साम्राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों पर विदेशी आक्रमण शुरू हो गये। अशोक के उत्तराधिकारी सैनिक शक्ति के कमजोर हो जाने के कारण न तो अपने साम्राज्य में होने वाले विद्रोहों को दबाने में सफल हो सके और न ही विदेशी आक्रमणों का सामना करके उनको असफल कर सके। इस प्रकार अशोक के साम्राज्य का विघटन शुरू हो गया और अन्ततः मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया। अशोक के ‘धम्म’ के प्रभाव में अपनाई सार्वजनिक नीतियाँ एवं उसकी राजनीति मौर्य साम्राज्य के पतन के मुख्य कारणों में से एक थी।

निष्कर्ष-

इस प्रकार हम देखते हैं कि अशोक एक कुशल और उदार शासक ही नहीं था, बल्कि जनता के भौतिक सुखों के साथ-साथ उसकी नैतिक उन्नति की ओर भी ध्यान देता था। उसने स्वयं को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे जनता अत्यधिक प्रभावित हुई। अशोक के प्रयत्नों से ही बौद्ध धर्म अन्तर्राष्ट्रीय धर्म बन गया, जिससे विदेशों में भारतीय संस्कृति का प्रसार भी हुआ।

अशोक ने जिस धम्म का प्रचार किया, उसको उसने स्वयं अपने जीवन में लागू भी किया। धम्म उसके जीवन में घुल-मिल गया था। वह उसके सम्पूर्ण शासन की आधार पीठिका था। उसने उत्तराधिकारियों को भी इसी धम्म का अनुसरण करने की सम्मति दी थी। उसने अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णुता की नीति अपनाई और राज्य-शक्ति का अनुचित लाभ उठाते हुए अन्य धर्मों के अनुयायियों पर उसे थोपने का कभी प्रयल नहीं किया।

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Pankaja Singh

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