इतिहास

अशोक के अभिलेख | अशोक के अभिलेखों का वर्गीकरण | अशोक के अभिलेखों की विवेचना

अशोक के अभिलेख | अशोक के अभिलेखों का वर्गीकरण | अशोक के अभिलेखों की विवेचना

अशोक के अभिलेख

परिचय- भारतीय इतिहास में अशोक के अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उससे उनके शासनकाल की लगभग समस्त बातों का पता चलता है। अभिलेखों की प्राप्ति स्थानों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि सुदूर दक्षिण के पाण्ड्य, चोल, सत्यपुत्र, केरलपुत्र आदि को छोड़कर सम्पूर्ण भारत अशोक के अधीन था। इन्हीं अभिलेखों के आधार पर अशोक को बौद्ध धर्म का अनुयायी कहा जाता है। इस अभिलेखों से हमें अशोक के आदर्शों, दान, दया, सेवा आदि का ज्ञान प्राप्त होता है। शिलालेखों, से हमें यह जानकारी भी प्राप्त होती है कि अशोक ने अपने धर्म प्रचारक कौन-कौन से देशों में भेजे तथा किन-किन देशों के साथ उसके मित्रतापूर्ण सम्बन्ध थे। इस शिलालेखों से अशोक के राज्य प्रबन्ध, उसके राजस्व का सिद्धांत, प्रजा के साथ उसका व्यवहार तथा उसके द्वारा किए गए लोकहित के कार्यों का भी पर्याप्त ज्ञान प्राप्त होता है।

अशोक के बनवाये गए स्तूप व स्तम्भ बहुत कलात्मक ढंग से बने हुए हैं। उन्हें देखकर आज का मानव आश्चर्यचकित रह जाता है। इससे सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अशोक के समय में कला के क्षेत्र में भारी उन्नति हुई थी। ये शिलालेख यह भी सिद्ध करते हैं कि उस समय शिक्षा का काफी प्रसार हुआ था और लोग पढ़े-लिखे थे।

अशोक के अभिलेखों का वर्गीकरण-

अशोक के अभिलेखों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है-

(i) शिलालेख, (ii) स्तम्भ-लेख तथा (iii) गुफा-लेख।

इन तीनों में सबसे प्राचीन शिलालेख है। शिलालेखों के बाद स्तम्भ-लेख तैयार किए गये थे। ये शिलालेख भारत के लगभग सभी भागों में मिलते हैं। उनसे साम्राज्य विस्तार, शासन-प्रबन्ध तथा धार्मिक सिद्धान्तों के विषय में काफी जानकारी मिलती है। उनकी भाषा उस समय की प्रचलित प्राकृत भाषा है। केवल दो लेख खरोष्ठी में हैं।

डॉ० वी० ए० स्मिथ ने इन अभिलेखों को अनलिखित 8 भागों में विभक्त किया है-.

  1. दो लघु शिलालेख, 2. भाबू शिलालेख, 3. चतुर्दश शिलालेख, 4. कलिंग शिलालेख, 5. गुफा शिलालेख, 6. सप्त स्तम्भ शिलालेख, 7. लघु स्तम्भ शिलालेख तथा 8. तराई स्तम्भ शिलालेख।

उपर्युक्त शिलालेखों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. दो लघु शिलालेख-

इनको लघु शिलालेख प्रथम तथा लघु शिलालेख द्वितीय कहा गया है। सम्भवतः इन दोनों को 258 ई०पू० तथा 250 ई०पू० में खुदवाया गया था। पहले लेख में अशोक के व्यक्तिगत जीवन पर कुछ प्रकाश डाला गया है तथा दूसरे लेख में धर्म का सारांश दिया गया है। लघु शिलालेख प्रथम कर्नाटक में चितल दुर्गा जिले के ब्रह्मगिरी, सिद्धपुर, रामेश्वर तथा जातिग स्थानों में, बिहार के शाहाबाद जिले सहसराम नामक स्थान में, मध्य प्रदेश के बैराठ तथा मास्की, गवीमठ, पल्की गुंजू, चेरागुड़ी में पाया गया है। दूसरा लेख सिद्धपुर तथा ब्रह्मगिरि में पाया गया है। मास्की (रायपुर जिला) के लेख का विशेष महत्त्व है। केवल इसी लेख में अशोक का नाम आता है। अन्य लेखों में केवल देवानाम प्रिय, प्रियदर्शी आदि शब्दों का ही प्रयोग हुआ है।

  1. भाब्रू शिलालेख-

यह शिलालेख जयपुर राज्य में था। इस लेख में अशोक के बौद्ध धर्मावलम्बी होने का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। इस लेख में अशोक ने बौद्ध धर्म तथा संघ के प्रति अपनी भक्ति प्रकट की है। इसमें बौद्ध ग्रन्थों के कुछ उदाहरण भी दिये गए हैं तथा भिक्षुओं व उपासकों दोनों से ही कहा गया है कि वे इनका पाठ तथा मनन करें।

  1. चतुर्दश शिलालेख-

इन शिलालेखों की संख्या 14 है। इनमें अशोक की नीति तथा शासन सम्बन्धी सिद्धान्तों की विवेचना है। इसमें तेरहवें शिलालेख का बड़ा महत्त्व है, क्योंकि उसमें कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक के हृदय-परिवर्तन का उल्लेख किया गया है। ये 257 ई०पू० तथा 256 ई०पू० में बनवाये गये थे। इनकी प्रतियाँ निम्नलिखित स्थानों में मिली हैं

(i) शाहवाजगढ़ी (जिला पेशावर, पाकिस्तान)

(ii) मसेहरा (जिला हजारा, पाकिस्तान)

(iii) जूनागढ़ (जिला गिरनार, सौराष्ट्र)

(iv) सोपारा (जिला थाना, महाराष्ट्र)

(v) धौली (जिला पुरी, उड़ीसा)

(vi) कालसी (जिला देहरादून, उत्तर प्रदेश)

(vii) जोगदा (जिला गंजाम, आन्ध्र प्रदेश) तथा

(viii) इरागुढ़ी (जिला हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश) ।

  1. कलिंग शिलालेख-

इसकी संख्या दो है तथा ये उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में धौली- नामक स्थान और आन्ध्र प्रदेश के जिला गंजाम में योगदा नाम स्थान पर पाये गये हैं। इनकी निर्माण तिथि 255 ई०पू० है। इनमें उन नियमों व सिद्धान्तों को अंकित किया गया है, जिनके आधार पर सम्राट अशोक ने विजय किये हुए कलिंग राज्य तथा साम्राज्य की सीमा से लगे- हुए अविजित क्षेत्रों के निवासियों के साथ उचित व्यवहार किये जाने की आज्ञा अपने कर्मचारियों को दी थी।

  1. गुफा शिलालेख-

गया से लगभग उन्नीस मील की दूरी पर बाराबार पहाड़ियों में चार गुफाएँ हैं। उनमें से तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख हैं, जिनमें कहा गया है कि ये गुफाएँ आजीविक सम्प्रदाय के भिक्षुओं को समर्पित की गई थीं। गुफा लेख सम्भवतः 257 ई०पू० से 250 ई०पू० के बीच उत्कीर्ण किये गये हैं।

  1. सप्त स्तम्भ शिलालेख-

इन स्तम्भ लेखों का निर्माण सम्भवतः 272 ई०पू० में हुआ था। वे लेख उत्तर भारत के 6 स्थानों में स्तम्भों पर उत्कीर्ण पाये गये हैं।

(i) दिल्ली-टोपरा स्तम्भ पहले खिज्राबाद जिले के टोपरा नामक गाँव में स्थिति था, जो दिल्ली से लगभग 12 मील दूर है। दिल्ली का सुल्तान फिरोज तुगलक इसे दिल्ली से ले आया था। इस स्तम्भ पर सातों लेख खुदे हुए हैं, जबकि अन्य स्तम्भों पर छः लेख ही उत्कीर्ण हैं।

(ii) मेरठ-दिल्ली स्तम्भ पहले मेरठ में था। यह भी फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली लाया गया था।

(iii) तीसरा स्तम्भ इलाहाबाद में है। मूलतः यह कौशाम्बी में था। इसको सम्राट अकबर इलाहाबाद ले आया था। इस स्तम्भ पर अशोक के दो लघु लेख भी खुदे हैं, एक कौशाम्बी लेख दूसरा रानी लेख कहलाता है। समुद्रगुप्त ने भी बाद में अपना लेख इसी स्तम्भ पर खुदवा दिया था।

(iv) लौरिया-अरारराज स्तम्भ (चम्पारण, जिला बिहार)

(v) लौरिया-नन्दगढ़ स्तम्भ (चम्पारण, जिला बिहार) तथा

(vi) रामपुरवा स्तम्भ (चम्पारण, जिला बिहार) ।

  1. लघु स्तम्भ-लेख-

ये लेख इलाहाबाद, सांची और सारनाथ के स्तम्भों पर पाये गये हैं। ये शिलालेख मठ-सम्बन्धी फूट से होने वाली हानि की भी जानकारी देते हैं।

  1. तराई स्तम्भ शिलालेख-

ये लेख सम्मनदेई तथा निग्लीबा में पाये गये हैं, जो नेपाल की तराई में स्थित हैं। इसलिए इन्हें तराई लेख कहा गया है। इन लेखों से प्रामाणिक रूप से पता चलता है कि अशोक ने महात्मा बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित पवित्र स्थानों की यात्रा की थी। इन शिलालेखों से यह भी पता चलता है कि बुद्ध का जन्म मिरू नामक स्थान पर हुआ था। ये शिलालेख लगभग 249 ई०पू० में उत्कीर्ण किये गये थे।

अशोक के शिल्प निर्माण कार्य-

कला की दृष्टि से अशोक के शिलाखण्ड बहुत उच्चकोटि के माने जाते हैं। इन लेखों को अंकित करने के लिए अनेक स्तम्भ शिलाएँ और गुफाएँ बनाई गई थीं, जिनके निर्माण से वास्तुकला के विकास को बहुत प्रोत्साहन मिला। स्तम्भों के आधार में मोरों की तथा शीर्ष पर सिंहों, बैलों आदि की आकृतियाँ बनाई गईं। ये आआकृतियाँ बहुत ही सुन्दर हैं और उनके सच्चे होने का भ्रम होता है। इनकी पॉलिश, सजीवता आदि देखकर कला के पाश्चात्य विशारदों ने इन्हें ईरानी नमूनों से अनुप्राणित कहा है। इसके फलस्वरूप मूर्तिकला और चित्रकला की उन्नति हुई।

ये पाषाण-स्तम्भ 50 फीट ऊँचे तथा लगभग 50 टन भारी हैं। इनको प्रायः एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना पड़ता था और कभी-कभी पहाड़ियों के ऊपर भी चढ़ाना पड़ता था। इससे सिद्ध होता है कि उस समय इन्जीनियरिंग का भी आश्चर्यजनक विकास हो गया था। स्तम्भों के शीर्ष पर बनी हुई आकृतियाँ वास्तुकला का विस्मयकारी नमूना प्रस्तुत करती हैं। ये इतनी सुन्दर, चिकनी और चमकदार हैं कि उनके धातु से बने होने का भ्रम होने लगता है। इस सम्बन्ध में डॉ० वी० ए० स्मिथ ने ठीक ही कहा है, “संसार के किसी भी देश में प्राचीन वास्तुकला का ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण अथवा कला के ऐसे अनुपम नमूने पाना अत्यन्त दुष्कर है।”

निष्कर्ष-

अशोक के अभिलेखों को इतिहास में असाधारण स्थान प्राप्त है। ऐतिहासिक ज्ञान प्राप्त होने की दृष्टि से भी ये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। ये लेख पत्थर के स्तम्भों और पर्वत की शिलाओं पर हिमालय से मैसूर तथा उड़ीसा से सौराष्ट्र तक खुदे मिलते हैं। ये जनसाधारण की भाषा पालि में हैं तथा सम्राट के शब्दों में, “ये लेख उसके उपदेशों को साधारण जनता तक पहुँचाते हैं।” अशोक ने इस बात को पूरी तरह समझ लिया था कि बीच के भाष्यकार मूल उपदेशों को निर्थरक कर देते हैं। इसलिए अभिलेखों द्वारा उसने अपनी प्रजा तक स्वयं इन्हें पहुँचाने का प्रयत्न किया था।

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Pankaja Singh

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