इतिहास

मगध का उत्कर्ष | ई०पू०छठी शताब्दी से चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण तक मगध के उत्कर्ष की विवेचना

मगध का उत्कर्ष | ई०पू०छठी शताब्दी से चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण तक मगध के उत्कर्ष की विवेचना

ई०पू०छठी शताब्दी से मगध का उत्कर्ष

ई०पू० छठी शताब्दी में मगध का राज्य महात्मा बुद्धकालीन चार प्रमुख राज्यों में से एक था। यह युग साम्राज्यवाद के उदय का काल था। सभी राज्य अपने-अपने राज्य की सीमा-विस्तार में संलग्न थे जिसके लिए उन्हें आपस में संघर्ष करना पड़ा था। अन्ततः मगध राज्य ने क्रमशः अन्य सभी राज्यों को जी अपने में मिलाकर एक साम्राज्य की स्थापना की। कुशल एवं प्रतापी राजवंशों के नेतृत्व में मगध राज्य के उत्तरोत्तर प्रगति की जिससे भारतवर्ष के अधिकांश प्रदेश उसके राज्य के अन्तर्गत आ गये। इस प्रकार लगभग 300 वर्षों के अथक प्रयासों के फलस्वरूप (लगभग 600 ई०पू० से लेकर 300 ई०पू० तक) मगध के छोटे से राज्य का इतिहास सम्पूर्ण भारत का इतिहास बन गया। इस राज्य का क्रमिक इतिहास निम्नवत् है-

हर्यक वंश-बिम्बिसार- बुद्ध के समकालीन इस वंश का प्रथम राजा बिम्बिसार था जो 15 वर्ष की अल्पायु में ही ई०पू० 504 के लगभग मगध के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। इसके पिता का नाम हेमजित क्षेमाजित, क्षत्रोजा अथवा भट्टिय बताया जाता है। बिम्बिसार अपने समय का एक महान् साम्राज्यवादी तथा कूटनीतिज्ञ शासक था। कोशल, वत्स तथा अवन्ती उसके पड़ोसी राज्य थे जिनसे उसे खतरा था। अपने राज्य की सुरक्षा हेतु उसने इन राज्यों से अनेक महत्वपूर्ण वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये। सर्वप्रथम उसने कोशल के राजा महाकोशल की पुत्री कोशला देवी से विवाह कर उस राज्य को अपने पक्ष में कर लिया। मैत्री सम्बन्ध हो जाने के साथ-साथ बिम्बिसार को काशी का प्रदेश कोशल राज्य से विवाह के अवसर पर दहेज स्वरूप मिला।

बिम्बिसार ने दूसरा राजनीतिक वैवाहिक सम्बन्ध वैशाली के लिच्छवि राज चेटक की पुत्री छलना से किया। लिच्छवि का गणराज्य इस समय एक शक्तिशाली और प्रख्यात राज्य समझा जाता था। विवाह सम्बन्ध सम्पन्न हो जाने से बिम्बिसार ने मगध राज्य को और भी अधिक सुरक्षा प्रदान की।

बिम्बिसार का तीसरा विवाह मद्र देश के राजा की पुत्री खेमा के साथ हुआ। सम्भवतः बिम्बिसार ने इसी तरह अन्य राजवंशों से भी महत्वपूर्ण वैवाहिक सम्बन्ध सम्पन्न किये। बौद्ध साहित्यकार से प्रगट होता है कि उसके 500 पलियां थीं। यह संख्या अतिरंजित भी हो सकता है. किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि उसके बहुत सी रानियाँ थीं जिनमें कुछ विवाह राजनीति से प्रेरित थे।

बिम्बिसार के समय से ही मगध राज्य का विस्तार प्रारम्भ हो गया था। विस्तार का प्रथम चरण कोशल-राज से प्राप्त काशी प्रदेश से शुरू हुआ जिसको महाकोशल ने अपनी पुत्री कोशलादेवी के लिए दिया था। इसके बाद बिम्बिसार ने अंग राज्य पर आक्रमण कर उसे अपने राज्य में मिला लिया था तथा अन्य छोटे-मोटे राज्यों की भी विजय की। बिम्बिसार के राज्य का विस्तार 300 योजन बताया जाता है जिसमें 80,000 गाँव थे। मगध की राजधानी पहले गिरिव्रज थी। किन्तु वज्जि संघ से खतरा होने के कारण बिम्बिसार ने इसके स्थान पर राजगृह को अपनी राजधानी बनाया। राजधानी का निर्माण महागोविन्द नामक प्रसिद्ध वास्तुकार ने एक सुन्दर योजना के आधार पर किया था। जीवक बिम्बिसार का राजवैद्य था जो उस समय का सुविख्यात चिकित्सक था। बौद्ध साहित्य के अनुसार बिम्बिसार ने 50 वर्षों तक राज्य किया। किन्तु पुराण उसका शासन काल 28 वर्ष तक ही सीमित करते हैं।

अजातशत्रु- अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। अपने पिता की ही भाँति वह भी एक प्रतापी तथा साम्राज्यवादी शासक था। बौद्ध साहित्य के अनुसार इसने अपने पिता को बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया था और इस प्रकार सिंहासन प्राप्त किया था। कारागार में ही बिम्बिसार की मृत्यु हो गयी थी। इस दुःख से दुखित होकर उसकी विधवा रानी कोशलादेवी भी कुछ समय पश्चात् मर गई। कोशलादेवी अजातशत्रु की विमाता थी। उसकी माता वैशाली की लिच्छवि राजकुमारी छलना थी।

अजातशत्रु का समकालीन कोशल-नरेश प्रसेनजित है। बिम्बिसार की विमाता कोशलादेवी उसकी बहन थी। बहन एवं बहनोई की मृत्यु का समाचार पाकर प्रसेनजित अजातशत्रु के दुर्व्यवहार से बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने कोशलादेवी के विवाह में दिये गये काशी प्रदेश को अजातशत्रु से छीन लिया। इसी कारण दोनों राजाओं में युद्ध छिड़ गया। जो कुछ समय तक चलता रहा। अन्त में दोनों राज्यों में सन्धि हो गयी तथा प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु के साथ कर उसे पुनः काशी का ग्राम दे दिया। इस प्रकार काशी-प्रदेश स्थायी रूप से मगध राज्य में मिला लिया गया।

अजातशत्रु के शासनकाल का दूसरा युद्ध वैशाली के साथ हुआ। मगध को प्रारम्भ से ही इस पड़ोसी राज्य से खतरा था। इसकी मित्रता प्राप्त करने के लिए ही बिम्बिसार ने इसके राजा चेटक की कन्या छलना से विवाह किया था। अजातशत्रु के समय में पुनः संघर्ष आरम्भ हो गया। दीर्घकाल तक युद्ध के पश्चात् भी जब अजातशत्रु उसे पराजित न कर सका तो उसने कूटनीति से काम लिया। उसने अपने गुप्तचर भेजकर वैशाली के संघ में फूट डलवा दी। इसके पश्चात् पुनः आक्रमण कर उसने वैशाली के राजा को पराजित कर उसका राज्य मगध में मिला लिया। अब मगध-राज्य के अन्तर्गत मगध, अंग, काशी और वैशाली के प्रदेश सम्मिलित हो गये थे। बौद्ध साहित्य के अनुसार अजातशत्रु ने 32 वर्षों तक राज्य किया किन्तु पुराण उसका शासन काल 25 वर्ष ही बताते हैं।

उदायी- उदायी अजातशत्रु का पुत्र था। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदायी ने अपने पिता अजातशत्रु की हत्या करके सिंहासन पर अधिकार कर लिया था। उदायी का दूसरा नाम उदयभद्र भी था। राजधानी परिवर्तन इसके काल की प्रमुख घटना है। इसने पाटलिपुत्र नामक एक नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। उदायी के शासनकाल में अवन्ती का राज्य बड़ा शक्तिशाली हो गया था। इस राज्य ने वत्स राज्य के ऊपर भी अपना अधिकार कर लिया था। ऐसे शक्तिशाली राज्य से मगध का युद्ध होना अवश्यम्भावी था किन्तु इसी बीच उदायी की मृत्यु हो गयी। उदायी ने 16 वर्ष तक राज्य किया किन्तु कुछ ऐतिहासिक स्त्रोत उसका शासन काल 33 वर्ष का बतलाते हैं।

उदायी के उत्तराधिकारी- उदायी के पश्चात् क्रमशः अनुरुद्ध, मुंड और नागदासक ने राज्य किया। इनमें से प्रत्येक ने अपने-अपने पिता को मारकर राज्य प्राप्त किया था।

शिशुनाग वंश- शिशुनाग नागदासक का मन्त्री था। जनता हर्यक वंशीय इन पितृघाती राजाओं से घृणा करती थी। उसने हत्यारे नागदासक को सिंहासन से उतार कर उसके मन्त्री शिशुनाग को राजा बनाया। इस प्रकार मगध में हर्यक वंश के पश्चात् शिशुनाग वंश का प्रादुर्भाव हुआ।

शिशुनाग के शासनकाल की प्रमुख घटना अवन्ती से युद्ध है। इस युद्ध में अवन्ती का राजा अवन्तिवर्धन पराजित हुआ और अवन्ती के ऊपर शिशुनाग का अधिकार हो गया। शिशुनाग का शासनकाल 18 वर्षों तक चला।

कालाशोक- शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र कालाशोक मगध के सिंहासन पर बैठा। इसे काकवर्ण भी कहा गया है। अपने पिता के शासन काल में यह काशी का गवर्नर रह चुका था। इसके शासनकाल की प्रमुख घटना दूसरी बौद्ध संगीति है जो उसके शासनकाल के दसवें वर्ष में हुई थी। कालाशोक ने 28 वर्ष तक राज्य किया।

कालाशोक के उत्तराधिकारी- कालाशोक की मृत्यु के पश्चात् उसके दस पुत्रों ने बाईस वर्षों तक राज्य किया। अन्त में उग्रसेन नामक एक व्यक्ति ने इनकी हत्या कर दी और शिशुनाग-वंश के स्थान पर अपने नन्दवंश की स्थापना की।

नन्दवंश- उग्रसेन इस वंश का संस्थापक था जिसे पुराणों में महापदा नन्द भी कहा गया है। यूनानी लेखों एवं पुराणों के संयुक्त साक्ष्य से ऐसा प्रतीत होता है कि यह शूद्र वंशीय था। सुन्दर होने के कारण यह सम्भवतः कालाशोक की रानी का विशेष कृपापात्र हो गया था। थोड़े दिनों के पश्चात् इसने धोखे से राजा एवं उसके पुत्रों को मारकर स्वयं सिंहासन हस्तगत कर लिया।

महापद्म एक प्रतापी राजा था। अपनी विशाल सेना की सहायता से इसने समस्त पड़ोसी राजवंशों को नष्ट करके एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। पुराणों में इसे एकराट और सर्वक्षत्रांतक कहा गया है। अवन्ती राज्य के पतन उत्तरी भारत में एकमात्र कोशल ही ऐसा शक्तिशाली राज्य था जो मगध राज्य का सामना कर सकता था। महापद्म ने सभवतः उस पर भी अधिकार कर लिया। हाथी गुम्फा अभिलेख के अनुसार महापद्म ने कलिंग पर भी आक्रमण करके उसे अपने अधीन कर लिया था। दक्षिणी भारत का कुछ भाग भी नन्द साम्राज्य के अन्तर्गत था। महापद्म नन्द ने लगभग 28 वर्षों तक राज्य किया। उसके बाद उसके आठ ने लगभग 12 वर्षों तक शासन किया। अन्तिम नन्दवंशीय राजा धननन्द था जिसके शासनकाल में सिकन्दर का आक्रमण हुआ। धननन्द की विशाल सेना का हाल सुनकर सिकन्दर के सिपाहियों ने मगध-साम्राज्य के ऊपर आक्रमण करने से इन्कार कर दिया था। अन्त में महाकूटनीतिज्ञ चाणक्य ने धननन्द का सपरिवार नाश कराकर उसके स्थान पर चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। इस प्रकार नन्दवंश के पतन के पश्चात् मौर्यवंश का उदय हुआ।

मौर्य वंश

चन्द्रगुप्त मौर्य-चन्द्रगुप्त मौर्य के सिंहासनारोहण की तिथि के विषय में बड़ा मतभेद है किन्तु प्रायः सभी साक्ष्यों से उसकी तिथि 322 ई०पू० मानी जाती है। महापंडित चाणक्य की सहायता से नन्दवंश को समूल नष्ट करके चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की स्थापना की थी। अपने शासनकाल में उसे अनेक युद्ध करने पड़े ।. नन्दराज के विरुद्ध विजयी होने के पश्चात् उसे सिकन्दर के सेनापति गेल्यूकस निकेटर मे युद्ध करना पड़ा तथा यूनानियों को देश से बाहर निकालना पड़ा। उसने साम्राज्य विस्तार की नीति का अनुसरण किया जिसके फलस्वरूप शेष भारत के अधिकांश भागों की विजय की। उसने अपनी इन विजयों को एक सुदृढ़ शासन प्रणाली के द्वारा स्थायी किया। पुराणों के अनुसार उसने लगभग 24 वर्षों तक राज्य किया। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र बिन्दुसार मगध का उत्तराधिकारी बना।

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Pankaja Singh

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