अर्थशास्त्र

मिल के समाजवादी विचार | मिल का व्यक्तिवादी-समाजवादी कार्यक्रम | मिल का मूल्यांकन | मिल की समझौतापरक प्रवृत्ति

मिल के समाजवादी विचार | मिल का व्यक्तिवादी-समाजवादी कार्यक्रम | मिल का मूल्यांकन | मिल की समझौतापरक प्रवृत्ति

(C) मिल के समाजवादी विचार

(Mill’s Views on Socialism)

मिल प्रतिष्ठित विचारधारा में पला था, अत: प्रारम्भ में उसके विचार प्रतिष्ठित शाखा से बहुत साम्य रखते हैं। इसी कारण Cossa ने उसकी पुस्तक प्रथम संस्करण (1848) के विषय में लिखा है कि वह प्रतिष्ठित विचारधारा पर लिखी गई सबसे अच्छी, पूर्ण और सबसे ठीक पुस्तक है। लेकिन मिल की उसी पुस्तक के अगले संस्करणों में यह बात दिखाई नहीं देती, क्योंकि तब तक उस पर फ्रांसीसी विचारधारा का बहुत प्रभाव पड़ चुका था और उसने समाजवादियों के लेखों का भी गम्भीरता से.अध्ययन कर लिया था। तदनुसार उसने विचारों में परिवर्तन किये।

यद्यपि मिल के पिछले और अगले विचारों में हमें बहुत भेद दिखाई देता है, तथापि उनमें उपयोगिता की भावना निरन्तर देखी जा सकती है। वास्तव में मिल समाजवादी न होकर एक उपयोगितावादी (Utilitarian) था। उसके सामने एक ही ध्येय था और वह था मानव-सुख के कुल योग बढ़ाना। यह सुख चाहे भौतिक हो या नैतिक, मानसिक हो या शारीरिक। उसने अपने सामने किसी एक श्रेणी के नहीं वरन् सारे समाज के सुख की कल्पना रखी। वही वर्तमान सुख की ही नहीं, वरन् भविष्य के सुख की कल्पना को भी सामने रखता था। सुख की प्राप्ति के लिए वह कम-से-कम नष्ट होने के पक्ष में था। उसका मत था कि यदि प्राइवेट सम्पत्ति से मानव- सुख बढ़ता है, तो उसे अवश्य रखना चाहिए और यदि प्राइवेट सम्पत्ति के बिना सम्प्रदाय मानव कल्याण को अधिक बढ़ा सकता है, तो हमको साम्यवाद ही ग्रहण करना चाहिए। उसने अपनी पुस्तक के द्वितीय संस्करण में कहा है कि प्राइवेट सम्पत्ति पर उस समय तक प्रहार होते रहेंगे, जब तक प्राइवेट सम्पत्ति के कानूनों में से अन्यायपूर्ण अंशों को न निकाल दिया जायेगा।

उसका कहना था कि एक फैक्टरी मजदूर की अपेक्षा एक साम्यवादी संस्था का सदस्य अपने काम में दिलचस्पी लेता है, क्योंकि वह जानता है कि वह उस साझेदारी के लिए कार्य कर रहा है, जिसका सदस्य वह स्वयं है। जब मिल आर्थिक प्रश्नों की चर्चा करता है, तो उसकी सहानुभूति दुर्बल व्यक्तियों के साथ दिखाई पड़ती है। व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का पक्षपाती होते हुए भी वह मिल मजदूर संघों के विरुद्ध न था। मिल को बढ़ते हुए मजदूर संगठन से बड़ी सहानुभूति थी। वह कहता था कि समाज में काम देने वाले और काम करने वाले दो वर्ग अधिक समय तक नहीं रह सकेंगे। मालिक और मजदूर के सम्बन्ध पहले उनके बीच साझेदारी स्थापित होने से समाप्त हो जायेंगे और आगे चल कर मजदूरों के संगठन इनको समाप्त कर देंगे।

मिल ने आर्थिक नियमों को बदलने वाला बताकर सुधार का मार्ग खोल दिया। जीड और रिस्ट के शब्दों में, “मिल ने न केवल सामाजिक सुधारों का मार्ग ही खोला, वरन् उसमें प्रवेश भी कर गया है।

मिल का व्यक्तिवादी-समाजवादी कार्यक्रम

(Individualistic-Socialistic Programme of Mill)

उसने निम्न सुधारों का प्रस्ताव किया था-

  1. मजदूरी पद्धति को समाप्त करके उत्पादकों की सहकारी संस्थाएँ स्थापित करना- मिल का कहना था कि जो मजदूरी-पद्धति मजदूर के नैतिक स्तर को गिराती है और कार्य के प्रति निरुत्साही बनाती है, उसे अविलम्ब समाप्त कर देना चाहिए और इसके स्थान में श्रमिकों का ऐसा संगठन स्थापित करना चाहिए, जिसमें समानता का व्यवहार हो, कार्यशील पूंजी पर सामूहिक स्वामित्व हो, और दैनिक कार्यों का संचालन इच्छा पर हटाये जा सकने वाले चुने हुए प्रबन्धकों के हाथों में हो। इस प्रकार वे पूँजीपतियों द्वारा श्रमिकों का शोषण रोकने के लिए उत्पादक सहकारी समितियों का संगठन करने के लिये परामर्श देते हैं।

मिल के इन विचारों पर आश्चर्य होता है, क्योंकि जिस मिल ने प्रतिष्ठित शाखा के व्यक्तिवादी ढाँचे को मजबूत बनाया था वही अब उत्पादन की सहकारी प्रणाली को पूर्णतः अपनाने के पक्ष में राय दे रहा है। कोई भी समाजवादी इनसे अधिक प्रभावशाली शब्दों में सहकारिता का पक्ष नहीं ले सकता। स्पष्ट है कि इंग्लैण्ड और फ्रांस के सहकारी आन्दोलनों का मिल पर गहरा असर पड़ा।

  1. लगान का समाजीकरण- मजदूरी-पद्धति की भाँति मिल लगान को भी व्यक्तिवाद के लिये हानिकारक समझता था लगान के रूप में व्यक्तियों को ऐसा लाभ प्राप्त होता है, जिसके लिये उन्होंने कोई कार्य नहीं किया। इस प्रकार लगान की व्यवस्था द्वारा समाज का एक वर्ग (भूमिपति वर्ग) दूसरे वर्ग (किसान) के परिश्रम का फल स्वयं खा जाता है। सर्वोत्तम सिद्धान्त यह होना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने परित्रम के अनुसार आय मिले। अत: जो वस्तु मनुष्य के प्रत्यक्ष प्रयत्नों का परिणाम नहीं है उसे समाज को, जिसको प्रतिनिधि सरकार है, लौटा देना चाहिये, और किसो वर्ग विशेष को नहीं मिलनी चाहिये। लगान का समाजीकरण (socialisation) करने के पक्ष में मिल द्वारा दिया गया यह तर्क भविष्य के समाज-सुधारकों का नारा बन गया। जब तक लगान का समाजीकरण हो उस समय तक के लिये मिल ने ‘किसान खेती’ (Peasant Proprietorship) का प्रस्ताव रखा। मिल का विचार था कि किसान खेती के कारण लाभ अनेक व्यक्तियों में बंट जायेगा, किसान को स्वतन्त्रता बढ़ेगी, उसे कार्य में रुचि पैदा होगी, वृद्धि का विकास होगा तथा जनसंख्या कम हो जायेगी। सहकारी विचार के समान यह विचार भी मिल ने फ्रांसीसी अर्थशास्त्रियों से लिया था।
  2. उत्तराधिकारी के नियमों में संशोधन कर धन के असमान वितरण को कम करना- मिल उत्तराधिकार के पुराने नियमों से भी कम भयभीत न था। उन्हें यथाशक्ति जल्द ही समाप्त करना चाहता था, क्योंकि इसके द्वारा उन लोगों को सम्पत्ति प्राप्त होती है जो कि उसके उत्पन्न करने में कभी भी सहायता नहीं करते। मिल का विचार था कि उत्तराधिकार का नियम. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के विरुद्ध ही नहीं, वरन् स्वतन्त्र प्रतियोगिता के लिये भी खतरा है, क्योंकि इसके कारण प्रतियोगी एक-सी स्थिति में नहीं रहते। यहाँ हम मिल को सेन्ट साइमोनियम के प्रभाव में पाते हैं।

चूंकि मरने के पश्चात् भी सम्पत्ति बेचने का अधिकार को छीनना व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को कम करने के बराबर है, इसलिये उन्होंने यह सुझाव दिया कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सम्पत्ति के निपटारे का अधिकार होना चाहिये, किन्तु किसी एक व्यक्ति को एक अधिकतम सीमा से अधिक सम्पन्न बनाने में प्रयोग करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। वह एक ऐसो कानून अवस्था करने के पक्ष में था जो एक सीमा बाँध दे जिससे अधिक कोई व्यक्ति उत्तराधिकार में न पा सके। शेष रकम (सीमा के ऊपर की सम्पत्ति) राज्य को मिलनी चाहिये। अतः मिल मृत्यु- कर सम्बन्धी नियम बनाने का परामर्श देते हैं। यहाँ मिल के विचार समाजवादियों से बहुत मिलतेहै।

किन्तु, जैसा कि हम ऊपर संकेत कर चुके हैं, मिल समाजवादी विचार न रखते हुए भी एक समाजवादी थे। वे तो प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों की भाँति व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के मानने वाले थे। सेन्ट साइमोनियन (Saint Simonion) या मार्क्स जैसे समाजवादियों के विपरीत, मिल के समाजवादी विचार व्यक्तिवाद एवं उपयोगितावाद का सुखद मिश्रण थे। भले ही विरोधाभास जंचे, किन्तु यह एक तथ्य है कि मिल में समाजवादी विचारों का उदय व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के प्रति उसकी प्रगाढ़ आत्मा के कारण हुआ।

मिल का मूल्यांकन

(Evaluation of Mill)

आर्थिक विचारों के इतिहास में मिल की स्थिति एक संक्रान्तिकालीन लेखक (transi- tional writer) के समान है, जिसने भूतकाल में जो कुछ हुआ था, उसे संक्षेप में बताया और भावी विकास के लिए एक व्यवस्थित रूप में रखा। अर्थात् उसने समाजवादियों एवं जर्मन ऐतिहासिक सम्प्रदाय के अर्थशास्त्रियों की आलोचनाओं के पश्चात् राजनैतिक अर्थशास्त्री के सिद्धान्तों का पुनर्कथन किया। मिल ने स्वहित, प्रतियोगिता, लगान और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के मौलिक नियमों का समर्थन किया, उन्हें बढ़ावा तथा मूल्य सिद्धान्त में ‘सीमान्त’ (Margin) को धारणा प्रचलित की। उसने आर्थिक नियमों के स्वभाव, क्षेत्र, सरकारी हस्तक्षेप के सम्बन्ध में कुछ थोड़ी भिन्न राय प्रकट की थी। उसने यथार्थवादी एवं आदर्शवादी दोनों पहलुओं को सम्मिलित करके अर्थशास्त्र का क्षेत्र व्यापक बनाया, उत्पत्ति एवं वितरण ने नियमों में भेद किया तथा सार्वजनिक हित के कार्यों में सरकारी हस्तक्षेप को स्वीकार किया। इस प्रकार, जीड एवं रिस्ट का यह कथन सही है कि मिल के समय प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र अपनी पूर्णता पर पहुँचा और इसी के समय से इसका पतन भी प्रारम्भ हुआ। किन्तु, जहाँ राजनैतिक अर्थशास्त्र का चरम सीमा तक विकास स्वयं उसके ही परिश्रम का फल था, वहाँ उसका पतन बाद के अर्थशास्त्रियों के कारण हुआ, जिन्होंने विशुद्ध रिकार्डियन परम्परा का अनुगमन किया। उसने मानवीय तत्त्व के आर्थिक महत्त्व पर बल देकर अर्थविज्ञान को काफी बदल दिया।

मिल की समझौतापरक प्रवृत्ति

मिल की समझौतावादी प्रवृत्ति उस नये विचारों को स्वीकार करने के लिए, जबकि ये विश्वस्त प्रतीत हों, विवश कर देती थी। हैने (Haney) ने उसे दो पक्षीय व्यक्तित्व का लेखक बताया, जो यह नहीं जानता कि उसे परम्परावाद की सड़क पर चलना चाहिए या समाजवाद की ओर । यदि रिकार्डियन विचारधारा में उसको गहरा विश्वास न होता, तो वह एक पूर्णरूपेण समाजवादी बन जाता। लेकिन उसकी हिचकिचाहट इस बात का प्रमाण है कि उसने ईमानदारी से आर्थिक प्रश्नों पर विचार किया।

कुछ बातों में मिल स्पष्टतः असफल रहा

(1) वह उपभोग एवं उत्पादन के क्षेत्र में सीमान्त विश्लेषण को विकसित नहीं कर सका और उपयोगिता को भी पूर्णत: नहीं समझ पाया।

(2) वह मूल्य द्वारा उत्पादन एवं वितरण के नियमों को सह-सम्बन्धित करने में भी असफल रहा और यह समझता रहा कि उसने मूल्य सिद्धान्त को सबसे सन्तोषजनक रूप दे दिया।

(3) प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र और समाजवादी आदर्श में समझौते की खोज करते हुए उसने कई तार्किक असंगतियाँ उत्पन्न कर दी। उदाहरण के लिए, वह व्यक्तिवादी आत्मा का अवतार था लेकिन उत्तराधिकार के अधिकार पर उसने प्रतिबन्ध लगाने का जो प्रस्ताव किया उससे अनेक प्रसिद्ध व्यक्तिवादियों को आलोचना का मौका मिला।

(4) वह राजनैतिक अर्थशास्त्र को सामाजिक अर्थशास्त्र में बदलना चाहता था, किन्तु इसमें उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

मिल ने कोई प्रत्यक्ष अनुयायी नहीं छोड़ा क्योंकि उसके बाद के अंग्रेज प्रतिष्ठित अर्थ- शास्त्रियों ने उसकी शिक्षा के समाजवादी भाग की उपेक्षा करते हुए रिकार्डियन परम्परा का अनुगमन किया था। उसने प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र को नया योगदान नहीं दिया, क्योंकि उसका नाम किसी भी आर्थिक नियम से सम्बद्ध नहीं है। उसकी वास्तविक महत्ता उसके विचारों की मौलिकता में नहीं, वरन् विज्ञान के दार्शनिक आधार को विस्तृत करने तथा अन्य सामाजिक विज्ञान एवं समाजिक नीति के साथ इसे सम्पर्क में लाकर इस क्षेत्र को व्यापक करने में निहित है।

अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!