अर्थशास्त्र

व्यापारवादियों एवं निर्बाधावादियों के विचारों से तुलना | स्मिथ एवं व्यापारवादी | स्मिथ एवं निर्बाधावाद | एडम स्मिथ-अर्थशास्त्र का जनक | स्मिथ के विचारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन

व्यापारवादियों एवं निर्बाधावादियों के विचारों से तुलना | स्मिथ एवं व्यापारवादी | स्मिथ एवं निर्बाधावाद | एडम स्मिथ-अर्थशास्त्र का जनक | स्मिथ के विचारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन

व्यापारवादियों एवं निर्बाधावादियों के विचारों से तुलना

(Comparison with Mercantilist & Physiocratic Thoughts)

स्मिथ एवं व्यापारवादी

स्मिथ के अर्थशास्त्र की सम्पूर्ण विषय सामग्री व्यापारवादी सिद्धान्तों का खण्डन है। यह बात निम्नांकित विवेचन से स्पष्ट हो जायेगी-

  1. स्वतंत्र बनाम प्रतिबन्धात्मक व्यापार- स्वतन्त्र व्यापार के लिए उसका समर्थन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर व्यापारवादियों द्वारा लगाये गये प्रतिबन्धों के प्रत्यक्षत: विरुद्ध है।
  2. वास्तविक सम्पत्ति सम्बन्धी विचार- स्मिथ मुद्रा विनिमय का केवल एक साधन मानते थे, अर्थात उनकी राय में मुद्रा केवल विनिमय मूल्य होता है, कोई दूसरा मूल्य नहीं । व्यापारवादियों की भाँति वह सोना-चाँदी को राष्ट्र की वास्तविक सम्पत्ति नहीं समझता था, वरन् राष्ट्र की भूमियों और सब प्रकार के उपभोग पदार्थों को, जिन्हें समाज का श्रम एवं भूमि मिलकर प्रतिवर्ष उत्पन्न करते हैं, वास्तविक सम्पत्ति मानता था।
  3. मुद्रा का प्रवाह- मुद्रा के उक्त स्वभाव को दृष्टिगत रखते हुए इसे देश में ही रखने का प्रयास व्यर्थ था। आवागमन की स्वतन्त्रता होने पर, मुद्रा स्वभावत: उन स्थानों को प्रवाहित होगी जहाँ उसकी आवश्यकता है। अतः मुद्रा को देश में रखने के लिए व्यापारवादियों की समस्त युक्तियाँ निरर्थक हैं।
  4. व्यापाराधिक्य- व्यापारवादियों के संरक्षण सम्बन्धी विचारों का खण्डन भी इस विशेष दृष्टिकोण का ही परिणाम है। चूंकि मुद्रा का कोई आन्तरिक मूल्य नहीं है, इसलिए व्यापाराधिक्य के सिद्धान्त का महत्त्व नहीं रहता है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार करने वाले दोनों ही देशों में व्यापार से उपभोग वस्तुओं की मात्रा बढ़ जाती है। अत: वास्तविक सम्पत्ति को बढ़ाने की दृष्टि से विदेशी व्यापार पर न्यूनतम प्रतिबन्ध लगाने चाहिए।

इन बातों से स्पष्ट है कि स्मिथ के आर्थिक विचार व्यापारवादियों के आर्थिक विचारों से बिलकुल भिन्न एवं प्रतिकूल थे।

स्मिथ एवं निर्बाधावाद

समानतायें- स्मिथ एवं निर्बाधावादियों के विचारों में निम्न समानतायें पाई जाती हैं-

  1. प्रकृतिवाद में विश्वास यद्यपि विभिन्न दृष्टिकोणों से- दोनों ही प्रकृतिवाद में विश्वास रखते थे, यद्यपि उनके दृष्टिकोण अलग-अलग थे। निर्बाधावादियों के लिये प्राकृतिक व्यवस्था एक आदर्श अवस्था थी, जिसको केवल अनुभव किया जा सकता था, किन्तु स्मिथ के मतानुसार प्रकृति का कार्य संचालन (operation) आर्थिक संस्थाओं के मिकेनिज्म के रूप में देखा जा सकता था।
  2. आर्थिक उदारतावाद- निर्बाधावादियों एवं एडम स्मिथ दोनों का आर्थिक उदारतावाद प्रकृति को लाभदायकता में उनके विश्वास का फल था, जिसे एक स्वतन्त्र व्यवस्था में ही अधिकतम किया जा सकता था। दोनों ही स्वतन्त्र व्यापारी थे, किन्तु विभिन्न कारणों से-स्मिथ अन्तराष्ट्रीय व्यापार से अनेक लाभ होने की वजह से इसका समर्थन करता था, जबकि निर्बाधावादी अपने इस विश्वास के कारण समर्थन करते थे कि व्यापार को स्वतन्त्र छोड़ देने से वह स्वाभाविक मृत्यु मर जायेगा।
  3. वितरण की समस्या पर विचार- निर्बाधावादियों ने स्मिथ को वितरण की समस्या सुझाई, यद्यपि दोनों ने अलग-अलग तरह से उस पर विचार किया। निर्बाधावादियों ने वितरण की जो योजना प्रस्तुत की थी वह धन के प्राकृतिक प्रवाह के रूप में थी, जिसमें विभिन्न वर्गों के हितों को संघर्ष के लिए अवसर नहीं था। स्मिथ का वितरण-सिद्धान्त यह बताता है कि श्रमिकों, भूमिपतियों एवं पूँजीपतियों के हित एक-दूसरे से टकराते हैं।

भिन्नतायें- किन्तु, स्मिथ का अर्थशास्त्र निर्बाधावाद से अनेक बातों में भिन्न भी है। इसकी प्रमुख भिन्नतायें निम्न हैं-

  1. सम्पत्ति का स्रोत- निर्बाधावादियों की यह धारणा थी कि केवल कृषि ही सम्पत्ति का एकमात्र स्रोत है। किन्तु इसके विपरीत स्मिथ ने बताया कि सबके सहकारिक प्रयत्नों के फलस्वरूप ही सम्पत्ति का उत्पादन होता है।
  2. एकाकी कर या बहु कर- निर्बाधावादियों ने कृषि पर एकाको कर लगाने का सुझाव दिया था, किन्तु स्मिथ बहु कर प्रणाली के पक्ष में थे, जो सभी वर्गों पर विस्तृत हो, क्योंकि सभी वर्ग उत्पादक हैं।
  3. दृष्टिकोण की व्यापकता- जैसा कि जीड एवं रिस्ट ने कहा है, निर्बाधावादी एक संकुचित दृष्टिकोण से आर्थिक घटनाओं को देखते थे, पर स्मिथ ने एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया था।

किन्तु निर्बाधावादियों के पक्षपात से स्मिथ पूर्णत: मुक्त न था। उसने भी कृषि को सबसे अधिक उत्पादक माना। ऐसी धारणा स्वयं उसके श्रम विभाजन सम्बन्धी विचारों से असंगत थी। स्मिथ ने जो आर्थिक विचार दिये उनके महत्त्व से वह सम्भवतः अनभिज्ञ था। तब ही तो अपनी पुस्तक ‘वेल्थ ऑफ नेशन्स’ के अन्त में निर्बाधावाद की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि यह अब तक प्रकाशित सबसे अधिक सत्य है।

एडम स्मिथ-अर्थशास्त्र का जनक

(Adam Smith as Father’s of Economics)

स्मिथ को ‘अर्थशास्त्र का जनक’ कहलाने का अधिकार है। उसके पूर्ववर्ती विद्वानों ने एकाकी सिद्धान्तों का पता लगाया था, लेकिन वे इन्हें एक समन्वित प्रणाली का रूप न दे सके थे। स्मिथ ने फ्रेंच एवं आंग्ल विचारधाराओं की अच्छी बातों को स्वीकार किया और विभिन्न सिद्धान्तों को एक दूसरे से समन्वित (Coordinate) करके एक रोचक प्रणाली का रूप दिया। उसने इन सिद्धान्तों की सत्यता, सीमा व व्यावहारिक महत्त्व को दर्शाया। इससे राजनैतिक अर्थशास्त्र को अपनी परिभाषा एवं वास्तविक विषय सामग्री प्राप्त हुई, जो कि अब तक इसे उपलब्ध न थी। उसने ‘उत्पादन’ से चलकर मूल्य द्वारा ‘वितरण’ तक पहुँच कर अर्थशास्त्र का क्षेत्र परिभाषित किया।

स्मिथ ने अर्थशास्त्र को नया आधार प्रदान किया। उसने ‘मूल्य प्रणाली’ या ‘मूल्य अर्थशास्त्र’ (Price System or Value Economics) का विकास किया। उसने विनिमय मूल्य को समस्त आर्थिक क्रियाओं का केन्द्र बनाया और बताया कि सम्पत्ति का उत्पादन प्राकृतिक रूप से नहीं वरन् बाजार की माँग द्वारा निर्धारित होता है। वितरण पर भी उत्पत्ति-साधनों के मूल्य सम्बन्धी विचारों का प्रभाव पड़ता है। अर्थशास्त्र की प्रमुख समस्या ‘मूल्य निर्धारण’ है, जिसे प्रतिष्ठित शाखा ने भी माना है और मार्क्सवादी लेखकों ने भी।

स्मिथ के विचारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन

(Critical Evaluation of Smith’s Thoughts)

यद्यपि स्मिथ की पुस्तक ‘वेल्थ ऑफ नेशन्स’ को बहुत सराहा गया है, तथापि हिल्डेब्रान्ड, लिस्ट, मुलर एवं स्पान ने निम्न त्रुटियों के लिए इसकी बड़ी आलोचना की है-

  1. आदर्शवाद का अभाव- स्मिथ एक भौतिकवादी विचारक था। इससे उसमें आदर्शवाद का अभाव झलकता है। आर्थिक सिद्धान्तों का विवेचन करते समय उसने नैतिक बातों को ध्यान में नहीं रखा।
  2. व्यक्तिवाद पर बहुत अधिक जोर- उसने व्यक्तिवाद पर बहुत बल दिया तथा सरकार के कार्य-क्षेत्र को बहुत सीमित कर दिया।
  3. सम्पत्ति सम्बन्धी संकुचित दृष्टिकोण- उसका सम्पत्ति सम्बन्धी दृष्टिकोण बहुत संकुचित था, क्योंकि उसने इसे विनिमय मूल्य से सम्बन्धित कर दिया।
  4. मूल्य-सिद्धान्त में भ्रामकता- उसने मूल्य के स्पष्टीकरण में काफी प्रगति की, फिर भी उसका मूल्य-सिद्धान्त अस्पष्ट, असंगत एवं भ्रामक है।
  5. श्रम विभाजन का विचार मौलिक न होना- उसने श्रम विभाजन पर बल तो दिया लेकिन यह उसका मौलिक विचार नहीं था। उसने पैटी आदि के विचारों को ही बढ़ाया।
  6. मजदूरी और जनसंख्या के सम्बन्ध को स्पष्ट न करना- उसने जनसंख्या के सिद्धान्त का उल्लेख किया तथा मजदूरी पर जनसंख्या की वृद्धि के प्रभावों की चर्चा भी की, लेकिन इन्हें स्पष्ट नहीं किया।
  7. लगान, ब्याज एवं लाभ सिद्धान्त संतोषजनक न होना- उसके लगान, ब्याज एवं लाभ सम्बन्धी सिद्धान्त असन्तोषजनक और असंगत हैं।

उपयुक्त आलोचनाओं के होते हुए भी यह मानना पड़ेगा कि ‘वेल्थ ऑफ नेशन्स’ सभी अर्थशास्त्रियों का प्रारम्भ बिन्दु है। एलेकजेन्डर ग्रे के शब्दों में उसकी महानता जीवन की एक ऐसी व्याख्या प्रस्तुत करने में निहित है, जो वास्तविकता से कुछ सादृश्य रखती है। उसमें सभी व्यक्तियों के लिए कुछ-न-कुछ है। यह इस बात का प्रमाण है कि वह अपने इर्द-गिर्द के सब विचारकों में महान् था।”

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Pankaja Singh

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