भारत सरकार की विदेशी पूँजी अन्तर्प्रवाह नीतियाँ | Indian Government’s Policies Towards Foreign Capital Inflow in Hindi
भारत सरकार की विदेशी पूँजी अन्तर्प्रवाह नीतियाँ
(Indian Government’s Policies Towards Foreign Capital Inflow)
भारत में औद्योगिक विकास के क्षेत्र में विदेशी पूँजी की भूमिका विशेष गौरवपूर्ण नहीं रही है। इस देश में पहले विदेशी पूंजी अंग्रेजी शासन काल में आई थी, जिसका प्रधान उद्देश्य उपनिवेश का शोषण करना था। ब्रिटिश पूंजी का आधारभूत निर्माण उद्योगों के विकास में विशेष योगदान नहीं रहा है। वास्तव में विदेशी पूँजी ने अनेक क्षेत्रों में भारतीय पूँजी के साथ अनुचित प्रतिस्पर्धा की। भारतीयों को न तो उद्योग सम्बन्धी तकनीकों में प्रशिक्षित किया गया और न ही उन्हें प्रबन्ध एवं व्यय व्यवस्था में कोई ऊंचा पद दिया गया।
अप्रैल 1948 में भारत सरकार ने औद्योगिक नीति प्रस्ताव में औद्योगीकरण के लिए विदेशी पूंजी की उपयोगिता को स्वीकार किया। परन्तु साथ ही प्रस्ताव में इस बात पर जोर दिया गया कि जिन इकाइयों में विदेशी पूँजी के निवेश की अनुमति दी जाए उनके स्वामित्व और प्रबन्ध में विदेशी हितों की प्रधानता नहीं रहनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जिन उद्योगों में विदेशी तकनीशियनों की सेवाएं प्राप्त की गई हों, उनमें भारतीयों को प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि बाद में भारतीय विशेषज्ञ विदेशी विशेषज्ञों का स्थान ले सकें। भारत सरकार के इस औद्योगिक नीति प्रस्ताव में विदेशी पूँजी पर प्रतिबन्धों के उल्लेख से विदेशी पूँजीपति असन्तुष्ट हो गये और इसके परिणाम- स्वरूप दूसरे देशों से पूँजी के आयात में गतिरोध उत्पन्न हो गया। अत: 6 अप्रैल, 1949 को भारत सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने संसद में भाषण करते हुए विदेशी पूँजी के सम्बन्ध में केवल भारत सरकार की नीति को स्पष्ट किया बल्कि उन्होंने विदेशी पूँजीपतियों को निम्नलिखित आश्वासन भी दिये-
(1) स्वदेशी और विदेशी पूँजी में भेदभाव न करना- भारत सरकार भारतीय और विदेशी पूँजी में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगी। तात्पर्य यह है कि विदेशी पूँजी पर कोई भी ऐसा प्रतिबन्ध नहीं लगाया जाएगा जो स्वदेशी पूँजी पर न लगाया गया हो। परन्तु इस आश्वासन के बदले में प्रधानमंत्री ने आशा व्यक्त की कि विदेशी पूँजी का आचरण भी भारत सरकार की औद्योगिक नीति के अनुकूल होगा।
(2) लाभ कमाने के पूरे अवसर देना- विदेशी हितों को लाभ कमाने के पूरे अवसर दिये जाएंगे और उन पर केवल वे ही प्रतिबन्ध लगाए जाएंगे जो भारतीय औद्योगिक हितों पर लगाए गए हैं। विदेशी निवेशकों को विदेशी विनिमय की स्थिति को ध्यान में रखते हुए लाभ और पूँजी वापस ले जाने की सुविधा प्रदान की जाएगी।
(3) हर्जाने का आश्वासन- यदि भारत सरकार किसी ऐसे उद्योग का राष्ट्रीयकरण करती है जिसमें विदेशी पूँजी का निवेश होता है तो निवेशकों को उचित हर्जाना दिया जाएगा।
हाल के वर्षों में विदेशी पूँजी तथा अनिवासी भारतीयों के निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार ने कई कर रियायतों, प्राथमिकता प्राप्त उद्योगों में निम्न कर दरों, कुछ अवधि तक नई स्थापित औद्योगिक इकाइयों के लाभों पर कर छूटों जैसी सुविधाओं की घोषणा की है। भारत में निवेश कर रहे अनिवासी भारतीयों को कई और रियायतें भी प्रदान की गई हैं जैसे उच्च निवेश सीमाएँ, कमी वाली मदों की आपूर्ति, भारतीय कम्पनियों के शेयर खरीदने की अनुमति, इत्यादि। परन्तु सबसे क्रांतिकारी परिवर्तन तो जुलाई 1991 में घोषित नई औद्योगिक नीति से आया जिससे विदेशी निवेश के प्रति पूरा रवैया ही बदल गया। इस नीति में विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कई कदम उठाये गये। बाद की अवधि में इस दिशा में कुछ और रियायतों व छूटों की घोषणा की गयी। जुलाई 1991 तथा उसके बाद विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए जो कदम उठाये गये उनमें मुख्य इस प्रकार से है-
- उच्च प्राथमिकता वाले उद्योगों में (जिनमें बड़े निवेश और जटिल प्रौद्योगिकी की आवश्यकता पड़ती है) विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए यह निर्णय लिया गया है कि इन उद्योगों में 51 प्रतिशत विदेशी इक्विटी की अनुमति दे दी जाएगी। (अभी तक यह सीमा 40 प्रतिशत थी)। 51 प्रतिशत विदेशी इक्विटी के अन्तर्गत आने वाले उच्च प्राथमिकता के उद्योगों की संख्या 34 रखी गयी है और इन्हें परिशिष्ट III में शामिल किया गया है। इनमें प्रमुख उद्योग समूह हैं-रसायन, परिवहन व संचार, कृषि और औद्योगिक मशीनरी, धातुकर्म, बिजली के उपकरण इत्यादि।
- 1991 से पूर्व सरकार होटलों के अलावा अन्य सेवा क्षेत्रों में विदेशी इक्विटी को हतोत्साहित करती थी। 1991 की नति में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक कंपनियों द्वारा 51 प्रतिशत तक” विदेशी इक्विटी को आमन्त्रित किया गया है। होटलों के साथ-साथ अब अन्य पर्यटन संबंधित क्षेत्रों में भी 51 प्रतिशत विदेशी इक्विटी को स्वीकार किया जाएगा।
- बड़ी अन्तर्राष्ट्रीय फर्मों के साथ बातचीत करने के लिए एक विशेषाधिकार प्राप्त बोर्ड का गठन किया गया है जो चुने हुए क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मूल्यांकन व अनुमोदन करेगा।
- 51 प्रतिशत विदेशी इक्विटी वाली कम्पनियों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाएगा कि वे व्यापार गृहों की तरह काम करें और उन्हें घरेलू व्यापार के समकक्ष दर्जा दिया जाएगा।
- अभी तक यह शर्त रही है कि विदेशी इक्विटी के प्रस्तावों में विदेशी प्रौद्योगिकी के हस्तान्तरण की व्यवस्था हो। इस शर्त को अब हटा लिया गया है। अर्थात् अब यह जरूरी नहीं है कि निवेश करने वाली विदेशी फर्म प्रौद्योगिकी को हस्तान्तरित करने का कोई आश्वासन दे।
- परिशिष्ट III में शामिल उद्योगों के लिए विदेशी प्रौद्योगिकी के समझौतों को स्वत: अनुमोदन दिया जाएगा। इस सम्बन्ध में अधिकतम एकमुश्त भुगतान 1 करोड़ रुपया तथा देश में बिक्री पर 5 प्रतिशत तथा निर्यातों पर 8 प्रतिशत रायल्टी हो सकता है।
- भारतीय कम्पनियों को इस बात की छूट होगी कि वे अपनी व्यापारिक सूझबूझ के अनुसार विदेशी कम्पनियों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की शर्तों का निर्धारण करे। आशा है कि इससे भारतीय उद्योगपतियों में अपनी सामर्थ्य पर विश्वास पैदा होगा और वे देश में विदेशी प्रौद्योगिकी का सही विलयन या समावेश न कर सकेंगे।
- अपने आपको प्रतिस्पर्धात्मक रूप में सक्षम बनाने के लिए हमारे उद्योगपतियों को अब शोध व विकास पर पहले की अपेक्षा कहीं अधिक निवेश करना पड़ेगा। इस प्रक्रिया में सहायता देने के उद्देश्य से नई नीति में यह प्रावधान रखा गया है कि विदेशी विशेषज्ञों की सेवाएं प्राप्त करने के लिए या देश में विकसित तकनीकों के अन्य देशों में परीक्षण के लिए किसी पूर्व अनुमति या अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।
- विद्युत् उत्पादन के क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए शत-प्रतिशत विदेशी इक्विटी की अनुमति दी गई है। इसलिए लाभों का विदेशों को सीधा अन्तरण संभव होगा तथा विदेशी निवेशक, बिना किसी बाधा के, विद्युत् संयंत्रों की जल्द ही स्थापना कर सकेंगे।
- अनिवासी भारतीयों तथा उनके अधिपत्याधीन समुद्रपारीय निगमित निकायों को 1992- 93 में यह छूट दी गई कि वे उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों मे शत-प्रतिशत इक्विटी तक निवेश कर सकते हैं। अनिवासी भारतीय निर्यात गृहों, व्यापार गृहों, स्टोर व्यापार गृहों, अस्पतालों, निर्यात- उन्मुख इकाइयों, अस्वस्थ औद्योगिक इकाइयों, होटलों, इत्यादि में भी शत-प्रतिशत इक्विटी तक निवेश कर सकते हैं। भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों को अब, रिजर्व बैंक से अनुमति लिए बिना, भारत में घर बनाने या मकान खरीदने की छूट होगी।
- भारत में अपनी बिक्री पर विदेशी कम्पनियों को 14 मई 1992 से अपना ट्रेड मार्क इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई है।
- अब विदेशी निवेशकों के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि इक्विटी का अपनिवेश रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित कीमतों पर ही करें। 15 सितम्बर, 1992 से उन्हें यह छूट दी गयी है कि वे अपनिवेश स्टाक एक्सचेंजों पर बाजार दरों पर कर सकते तथा इस पनिवे से प्राप्त राशि को विदेशों में भेज सकते हैं।
- 9 जनवरी, 1993 को जारी एक अध्यादेश के द्वारा विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम (FERA) को उदार बनाया गया है। अब 40 प्रतिशत से अधिक विदेशी इक्विटी वाली कम्पनियों को सम्पूर्ण भारतीय कम्पनियों के समकक्ष माना जाएगा।
- विदेशी संस्थात्मक निवेशकों (जिसमें पेंशन फंड,म्युचुअल फंड, परिसंपत्ति प्रबन्धन कंपनियां, निवेश ट्रस्ट इत्यादि शामिल हैं) को यह सुविधा दी गई है कि वे भारतीय पूंजी बाजार में निवेश कर सकते हैं बशर्ते वे सिक्यूरीटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड आफ इण्डिया के साथ अपना पंजीकरण कराएं तथा विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम (FERA) के अधीन रिजर्व बैंक से अनुमति प्राप्त करें।
अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
- भारत की आयात-निर्यात नीति | भारत की विदेशी व्यापार नीति की प्रमुख विशेषताएं
- 1949 में भारतीय रुपये का अवमूल्यन | अवमूल्यन के कारण | भारतीय रुपये के अवमूल्यन के परिणाम | 1966 में रुपये का पुनः अवमूल्यन | 1966 के अवमूल्यन के कारण | अवमूल्यन प्रभाव
- 1991 के अवमूल्यन के कारण | अवमूल्यन के सम्भावित परिणाम अथवा प्रभाव
- भारत को बहुपक्षीय सहायता | विदेशी सहायता का स्वरूप | विदेशी सहायता और पूँजी निर्माण | विदेशी सहायता का उपयोग
- विदेशी वाणिज्यिक ऋण | अनिवासी जमा राशि
Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com