अर्थशास्त्र

विदेशी वाणिज्यिक ऋण | अनिवासी जमा राशि

विदेशी वाणिज्यिक ऋण | अनिवासी जमा राशि

(I) विदेशी वाणिज्यिक ऋण

घाटों की पूर्ति के लिए भारत सरकार को नौवें दशक में विदेशी वाणिज्यिक उधार और अनिवासी भारतीयों की जमाराशियों पर काफी हद तक निर्भर होना पड़ा क्योंकि रियायती दरों पर विदेशी सहायता मिलनी काफी कम हो गई थी। क्योंकि विदेशी वाणिज्यिक उधार और अनिवासी भारतीयों की जमाराशियों पर उच्च ब्याज दरें देनी पड़ती हैं और शर्ते भी कठोर होती हैं, इसलिए यह कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की घाटे को पूरा करने के ‘उच्च लागत तरीकों पर निर्भरता’ बढ़ गई। जहाँ तक विदेशी वाणिज्यिक उधार का प्रश्न है, नौंवें दशक उत्तरार्द्ध में इनका प्रयोग चालू खाते पर घाटे को पूरा करने के लिए व्यापक पैमाने पर किया गया। वस्तुतः कुल पूंजी अन्तर्प्रवाह में इनका हिस्सा लगभग एक चौथाई रहा। 1986-87 में तो कुल पूंजी अन्तर्प्रवाह में इनका हिस्सा लगभग आधा हो गया। भारत ने सर्वप्रथम अमरीकी, यूरोपीय तथा जापानी बैंकों से परम्परागत सिंडीकेट ऋण लिए और तत्पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय बांड बाजार से ऋण लेना प्रारम्भ किया। विदेशी वाणिज्यिक उधारों की स्वीकृति राशि में लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा वित्तीय संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों का था। अब सरकार विदेशी वाणिज्यिक उधारों की अत्यधिक उच्च लागत को स्वीकार करती है और चालू खाते पर घाटे को पूरा करने के लिए इन उधारों पर निर्भरता कम करने के प्रयास कर रही है। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, कुल निवल पूंजी अन्तर्ग्रवाहों में विदेशी वाणिज्यिक उधारों का हिस्सा 1993-94 में कम होकर 9.1 प्रतिशत रह गया है। आने वाले वर्षों में इसका लाभ कम ऋण सेवा अनुपातों के रूप में देश को प्राप्त होगा।

1980-81 से पूर्व विदेशी वाणिज्यिक उधार बहुत कम थे। 1980-81 में इनकी राशि मात्र 1,038 करोड़ रुपये थी। पूरी छठी पंचवर्षीय योजना के दौरान (1980-81 से 1984-85 के बीच) कुल विदेशी वाणिज्यिक उधार 7,259 करोड़ रुपये थे। परन्तु सातवीं योजना में इनमें तेज वृद्धि हुई। यह इस बात से स्पष्ट है कि इस योजना में विदेशी वाणिज्यिक ऋणों की स्वीकृति राशि 10,800 मिलियन डालर थी तथा संवितरण 10,480 मिलियन डालर था। परन्तु निवल अन्तरण मात्र 3,580 मिलियन डालर था क्योंकि काफी बड़ी राशि ऋण-सेवा भुगतानों के रूप में लौटानी पड़ी केवल ब्याज-भुगतान ही 3,490 मिलियन डालर था। सातवीं योजना के अन्तिम वर्ष 1989- 90 में 3,290 मिलियन डालर (5,479 करोड़ रुपये) का विदेशी वाणिज्यिक उधार स्वीकृत हुआ परन्तु अगले ही वर्ष 1990-91 में इसमें तेज गिरावट आई।

1992-93 में भी यही स्थिति बनी रही। इस वर्ष कुल संवितरण 1,200 मिलियन डालर था जो भुगतान राशि से कम था। इस प्रकार 358 मिलियन डालर का निवल पूंजी बहिर्ग्रवाह हुआ। परन्तु 1993-94 में स्थिति में काफी बदलाव आया। इस वर्ष विदेशी वाणिज्यिक उधारों का कुल संवितरण तेजी से बढ़कर 2,900 मिलियन डालर हो गया। भुगतानों को घटाने के बाद, निवल विदेशी वाणिज्यिक उधार 839 मिलियन डालर रहा। परन्तु 1994-95 के पूर्वार्द्ध में, विदेशी वाणिज्यिक उधारों पर निर्भरता कम रखी गई जिसके परिणामस्वरूप 254 मिलियन डालर का ही निवल अन्तप्रवाह हुआ जबकि निवल बहिप्रवाह 302 मिलियन डालर था। 1994-95 के उत्तरार्द्ध में अन्तर्प्रवाह बढ़ जाने की उम्मीद है क्योंकि निजी क्षेत्र की विद्युत् और पेट्रोलियम क्षेत्र की कुछ परियोजनाओं के वित्तीय पक्षों को अब अन्तिम रूप दिया जा रहा है।

इस विवेचन से यह बात स्पष्ट होती है कि विदेशी वाणिज्यिक उधार पर अत्यधिक निर्भरता न केवल संसाधन एकत्रित करने का महंगा तरीका है अपितु इससे गंभीर खतरा भी पैदा हो सकता है। यह बात विशेष तौर पर अल्पकालीन वाणिज्यिक ऋणों के सम्बन्ध में सही है। जैसा कि जालान ने कहा है, “बैंक किसी भी क्षेत्र की प्रतिकूल परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं और किसी अप्रत्याशित घटना की आशंका से ही कई बार अपना समर्थन वापस ले लेते हैं। अच्छे वक्त में तो सभी बैंक एक-दूसरे के साथ खूब प्रतिस्पर्धा करते हैं परन्तु बुरा वक्त आने पर सब इकट्ठा हो जाते हैं (अर्थात् एक जैसी नीति अपनाते हैं)। एक भी बैंक यदि अपना समर्थन वापस ले लेता है तो अन्य बैंक भी उसका अनुसरण करने लगते हैं जिससे संकट की स्थिति पैदा हो सकती है।” इसलिए यह बात भारत के हित में होगी कि वह भविष्य में अल्पकालीन ऋणों पर अपनी निर्भरता को कम करे। भारत सरकार अब इस दिशा में प्रयास कर रही है। यह तथ्य इसी बात से स्पष्ट है कि कुल विदेशी ऋण में अल्पकालीन ऋणों का हिस्सा जो 1990-91 में 10.2 प्रतिशत था, कम होकर सितम्बर 1994 के अन्त तक मात्र 3.1 प्रतिशत रह गया।

(II) अनिवासी जमा राशि

विदेशी वाणिज्यिक उधारों के साथ-साथ, दूसरी लागत विदेशी साधन एकत्रण की विधि जिस पर भारत की निर्भरता नौंवें दशक के उत्तरार्द्ध में काफी बढ़ गई थी, वह थी अनिवासी जमा राशि । जहाँ 1980-81 में कुल पूंजी प्रवाह (निवल) में अनिवासी जमा राशि का हिस्सा मात्र 9.7 प्रतिशत था वहाँ 1985-86 में बढ़कर 38.2 प्रतिशत हो गया। अगले तीन वर्षों में यह हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत रहा। सातवीं योजना के अन्तिम वर्ष में 1989-90 में कुल पूंजी प्रवाह (निवल) में अनिवासी जमा राशि का हिस्सा 26.2 प्रतिशत था । इस अवधि में विदेशी विनिमय भंडारों को बढ़ाने के प्रयास में सरकार ने अनिवासी जमा राशियों को आकर्षित करने के लिए कई प्रोत्साहन दिये। उदाहरण के लिए सरकार ने अनिवासी जमा राशियों पर ब्याज की दर को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध दर से अधिक रखा। परन्तु अब अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी बाजार में भारत आसानी से ऋण ले सकता है। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में भारत में विदेशी निवेश भी बढ़ा है। इन सब कारणों से अब अनिवासी जमा राशियों पर अधिक ब्याज दर देने की जरूरत नहीं रही है। यही कारण है कि भारत सरकार ने अनिवासी जमा राशियों पर ब्याज की दर धीरे-धीरे कम की है। इसके परिणामस्वरूप, कुल पूंजी प्रवाह (निवल) में अनिवार्य जमा राशियों का हिस्सा जो 1989-90 में 26.2 प्रतिशत था, कम होते होते 1993-94 में मात्र 10.2 प्रतिशत रह गया। 1992-93 का वर्ष अपवाद है क्योंकि इस वर्ष यह हिस्सा बढ़कर 47 प्रतिशत तक पहुँच गया था।

अनिवासी बैंक खातों/जमा योजनाओं के अधीन, भारतीय नागरिक और विदेशों में भारतीय मूल के निवासी भारत में स्वतन्त्र रूप से विदेशों से प्रेषित निधियों अथवा विदेशों से लाई गई विदेशी मुद्रा या भारत में उन्हें वैध रूप से देय निधियों में से बैंक खाता खोल सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने उन बैंकों को जो विदेशी मुद्राओं में लेन देन करने के लिए अधिकृत डीलर हैं, ‘मुक्त रूप से’ ऐसे खाते खोलने के लिए सामान्य अनुमति दे दी है। प्राधिकृत डीलर निम्न छह प्रकार के अनिवासी खाते खोल सकते हैं-(1) विदेशी मुद्रा के अनिवासी; (2) अनिवासी विदेशी रुपया खाता; (3) विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) खाता; (4) अनिवासी (अप्रत्यावर्तनीय) रुपया जमाराशि; (5) विदेशी मुद्रा सामान्य अप्रत्यावर्तनीय तथा (6) विदेशी मुद्रा (बैंक एवं अन्य) जमाराशि। सबसे पहली योजना अनिवासी विदेशी रुपया खाता था जिसे फरवरी 1970 में शुरु किया गया। अनिवासी जमा राशियों को आकर्षित करने के लिए इस योजना में आकर्षक ब्याज दरें दी गईं। कई वर्षों तक इस योजना के अधीन मांग खातों पर ब्याज की दर घरेलू ब्याज की दर से 2 प्रतिशत अधिक रही। 9 अक्टूबर 1992 को इस ब्याज दर को घरेलू दर के बराबर कर दिया गया। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि सावधिक खातों (Term deposis) पर ब्याज की दर अनिवासियों के लिए अधिक से अधिक 13 प्रतिशत होगी (जो अधिकतम घरेलू ब्याज दर से 1 प्रतिशत अधिक थी) 1 अक्टूबर 1994 में और महत्वपूर्ण परिवर्तन किया गया और अनिवासी विदेशी रुपया खातों पर ब्याज की दर को घरेलू जमा राशि पर ब्याज की दर से भी कम कर दिया गया। बचत खातों पर ब्याज की दर 5 प्रतिशत से घटा कर 4.5 प्रतिशत तथा अलग-अलग अवधियों की सर्वाधिक जमा योजनाओं पर अधिकतम 10 प्रतिशत से अधिकतम 8 प्रतिशत के बीच निर्धारित कर दी गई।

विभिन्न अनिवासी योजनाओं के अधीन बकाया स्टाक

(मार्च के अन्त तक की स्थिति)

(मिलियन अमरीकी डालर)

योजना 1991 1992 1993 1994 20 जनवरी 1995
विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता 10,103 9,792 10,617 9,300 7,266
निवासी विदेशी रुपया खाता 3,588 2,527 2,863 3,590 4,726
विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) खाता 1,075 2,921
अनिवासी (अप्रत्यावर्तनीय) जमा राशि 610 1,797 2,299
विदेशी मुद्रा सामान्य अप्रत्यवर्तनी 1 18 7
कुल 13,953 12,926 15,135 16,313 17,219

टिप्पणी : सभी आंकड़ों में प्राप्त ब्याज शामिल है। Economic servey 1994-95

दूसरी योजना विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता योजना थी जिसे नवम्बर 1975 में शुरू किया गया। इस योजना के अधीन ब्याज दरों को अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी बाजारों में विद्यमान ब्याज दरों के अनुरूप रखा गया। योजना में विनिमय दर परिवर्तन की जोखिम का भार भारत सरकार और रिजर्व बैंक ने उठाया। यह योजना अगस्त 1994 में समाप्त कर दी गई और अब इसके अधीन नई जमाराशि स्वीकार नहीं की जाती। तीसरी योजना विदेशी मुद्रा (बैंक एवं अन्य) जमाराशि थी जिसे दिसम्बर 1990 में शुरू किया गया। विदेशी मुद्रा भंडारों में वृद्धि होने के कारण इस योजना को जुलाई 1992 में बन्द कर दिया गया। यह योजना विदेशी नागरिकों, बैंकों व अन्य संस्थाओं के लिए थी परन्तु समय पूरा होने से पहले धन वापस निकाल लेने की सुविधा इस योजना में नहीं थी( जबकि अनिवासी भारतीय जमाराशियों में यह सुविधा थी)। जून 1991 में चौथी योजना ‘विदेशी मुद्रा सामान्य अप्रत्यावर्तनीय’ शुरू की गई जिसे अगस्त 1994 में बन्द कर दिया गया। इस योजना के अधीन अमरीकी डालरों में आदान-प्रदान होता था और बैंकों को विभिन्न सावधिक योजनाओं पर अलग अलग ब्याज दर निर्धारित करने का अधिकार था। ‘अनिवासी (अप्रत्यावर्तनीय) रुपया जमाराशि’ योजना जून 1992 में शुरू की गई थी और यह अभी तक चालू है। यह योजना ‘भारतीय रुपए’ में है और बैंकों को इसके अधीन विभिन्न सावधिक योजनाओं पर अलग-अलग ब्याज दर देने का अधिकार है। छठी योजना ‘विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) खाता’ है जिसे मई 1993 में शुरू किया गया। यह योजना भी अभी तक चालू है। विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता योजना की तरह ही इस योजना में भी अमरीकी डालर, इंग्लैंड के पौंड, जापान के येन और जर्मनी के मार्क में आदान-प्रदान हो सकता है। इसके अलावा, विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता योजना की तरह ही इस योजना में भी ब्याज की दर रिजर्व बैंक निर्धारित करता है।

जैसा कि सारणी 24.3 से ज्ञात किया जा सकता है, विदशी मुद्रा अनिवासी खाता से 1991- 92 में निवल बहिप्रवाह 311 मिलियन डालर था (10.103 मिलियन डालर-9,792 मिलियन डालर)। परन्तु 1992-93 में 825 मिलियन डालर का निवल अन्तर्प्रवाह था। 1993-94 में एक बार फिर 1.317 मिलियन डालर का निवल बहिप्रवाह हुआ। जहाँ तक विदेशी मुद्रा (बैंक एवं अन्य) जमाराशि का संबंध है, 1992-93 में इसके अन्तर्गत 437 मिलियन डालर का अन्तर्ग्रवाह और 1993-94 में 511 मिलियन डालर का बहिप्रवाह हुआ। 20 जनवरी 1995 को इस योजना के अन्तर्गत बकाया स्टाक शून्य थे। अनिवासी विदेशी रुपया खाता योजना के अधीन 1992-93 में 336 मिलियन डालर तथा 1993-94 में 727 मिलियन डालर का अन्तर्प्रवाह हुआ। इसके परिणामस्वरूप इसके अधीन बकाया स्टाक की राशि मार्च 1994 के अन्त तक 3,590 मिलियन डालर तथा 20 जनवरी 1995 को 4,726 मिलियन डालर तक पहुंच गई। अनिवासी (अप्रत्यावर्तनीय) रुपया जमाराशि और विदेशी मुद्रा अनिवासी (बैंक) खाता जैसी योजनाओं की शुरुआत अनिवासी खातों की पुनःसंरचना करने के लिए की गई थी। इन योजनाओं के अधीन 1993-94 तथा 1994-95 के पूर्वार्द्ध में काफी पूँजी प्राप्त हुई। उदाहरण के लिए, 1993-94 में इन दो योजनाओं के अधीन 2,262 मिलियन डालर की पूँजी अन्तप्रवाह हुआ (1,187 मिलियन डालर अनिवासी (अप्रत्यावर्तनीय) रुपया जमाराशि के अन्तर्गत तथा 1,075 मिलियन डालर विदेशी मुद्रा अनिवासी (बँक) खाता के अन्तर्गत यह अन्तर्ग्रवाह, विदेशी मुद्रा अनिवासी खाता के अंतर्गत 1993-94 में होने वाले बहिप्रवाह से अधिक था।

सारिणी से यह बात भी स्पष्ट होती है कि अनिवासी योजनाओं के अधीन बकाया स्टाक की राशि में मार्च 1991 से लेकर जनवरी 1995 तक काफी वृद्धि हुई है। (1991-92) के वर्ष को छोड़कर (जब बकाया स्टाक में 1,027 मिलियन डालर की कमी हुई)। मार्च 1994 के अन्त में अनिवासी योजनाओं के अधीन बकाया स्टाक की राशि 16,313 मिलियन डालर थी जो 20 जनवरी 1995 के दिन 17,219 मिलियन डालर हो गई। परन्तु, विदेशी वाणिज्यिक उधारों की तरह ही, अनिवासी जमाराशि भी विदेशी साधन जुटाने की ‘उच्च लागत’ विधि है। इसके अलावा, विदेशी वाणिज्यिक उधारों की तरह ही, अनिवासी जमाराशियाँ भी ‘अच्छे मौसम की साथी’ है। अगर हालात देश के प्रतिकूल हुए तो अनिवासी जल्दी-जल्दी अपना पैसा देश से निकाल कर बाहर ले जाने का प्रयास करते हैं जिससे हालात और बिगड़ जाते हैं। यह स्थिति हमारे देश में भी आई जब अर्थव्यवस्था पर से अन्तर्राष्ट्रीय विश्वास उठने लगा। अक्टूबर 1990 से अनिवासी भारतीय खातों से बड़ी मात्रा में पैसा निकाला जाने लगा और 1991 की दूसरी तिमाही तक आते- आते ही स्थिति काफी गंभीर हो चुकी थी। Economic Survey, 1992-93, के अनुसार इस अवधि में अनिवासी खातों से प्रतिमास 300 मिलियन डालर निकाले जाने लगे। हाल ही में अरुण घोष ने यह तर्क दिया है कि जून 1991 में भारत के समक्ष जो भुगतान की समस्या खड़ी हो गई थी उसका मूल कारण यही था। इस प्रकार जून 1991 की चिन्ताजनक स्थिति “विदेशी व्यापार से जुड़ी न होकर, पूँजी के व्यापक बहिर्पवाह से जुड़ी हुई थी।” इससे यह सबक मिलता है कि अनिवासी भारतीयों के जमा खातों पर अत्यधिक निर्भरता कोई अच्छी नीति नहीं है।

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Pankaja Singh

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