अर्थशास्त्र

भारत को बहुपक्षीय सहायता | विदेशी सहायता का स्वरूप | विदेशी सहायता और पूँजी निर्माण | विदेशी सहायता का उपयोग

भारत को बहुपक्षीय सहायता | विदेशी सहायता का स्वरूप | विदेशी सहायता और पूँजी निर्माण | विदेशी सहायता का उपयोग

भारत को बहुपक्षीय सहायता

(Multilateral Assistance to India)

विकास कार्यों के लिए भारत को प्राप्त होने वाली विदेशी सहायता संसार के किसी भी विकासशील देश को मिलने वाली सहायता से अधिक है, लेकिन प्रति व्यक्ति विदेशी सहायता की दृष्टि से भारत का स्थान विदेशी पूंजी प्राप्त करने वाले देशों में सबसे ऊपर नहीं है। पहली योजनावधि में भारत को मिलने वाली कुल विदेशी सहायता औसतन 40 करोड़ रुपये वार्षिक थी। दूसरी और तीसरी पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत विदेशी सहायता पर निर्भरता में लगातार वृद्धि हुई। तीसरी योजना काल में प्रति वर्ष औसतन 573.3 करोड़ रुपये की विदेशी सहायता प्राप्त हुई जो राष्ट्रीय आय की 3.2 प्रतिशत थी। 1966-67 और 1968-69 में विदेशी सहायता में और अधिक वृद्धि हुई। इसके बाद इस प्रवृत्ति में स्पष्ट परिवर्तन हुआ है। 1968-69 से 1974-75 के बीच कुल विदेशी सहायता पर निर्भरता में कमी हुई है। इस परिवर्तन के मुख्य रूप से दो कारण है। प्रथम, भारत की विदेश नीति से असन्तुष्ट होकर अमेरिका द्वारा विदेशी सहायता में कमी करना और द्वितीय, विदेशी सहायता के मिलने में अनिश्चित और विदेशी ऋणों के सेवा प्रभार (Debt servicing charge) में लगातार वृद्धि से चिन्तित होकर भारत सरकार द्वारा स्वयं आत्मनिर्भरता की ओर झुकना। छठी योजना में कुल 9,929 करोड़ रुपये के विदेशी साधन प्राप्त होने की संभावना व्यक्त की गई (5,585 करोड़ रुपये शुद्ध सहायता के रूप में तथा 4,040 करोड़ रुपये अन्य साधनों द्वारा)। यह कुल योजना परिव्यय का 10.2 प्रतिशत था। सातवीं योजना में 18,000 करोड़ रुपये के विदेशी साधन प्राप्त होने की आशा थी जो कुल योजना परिव्यय 1,80,000 करोड़ रुपये का 10 प्रतिशत है। सारणी में भारत को विदेशी सहायता की कुल स्वीकृति तथा उपयोग के आंकड़े दिये गये हैं।

भारत को विदेशी सहायता-स्वीकृति तथा उद्योग

(करोड़ रुपये)

चौथी योजना के अंत तक पांचवी योजना (1974-75) से (1979-80) 1979- 80

 

छठी योजना (1980-81) से (1984-85) सातर्वी योजना (1985-86) से (1989-90) 1990-91 से (1993-94)
  (1) (2) (3) (4) (5) (6)
स्वीकृति 13;056 9.844 1,859 16,407 44,971 48,959
उपयोग 11.922 7,259 1,354 10,903 22,700 41,082

स्रोत : Government of India Economic survey 1991-92.

इन आंकड़ों से यह बात स्पष्ट होती है कि भारत में विदेशी सहायता का उपयोग स्वीकृति से काफी कम रहा है। उदाहरण के लिए-चौथी योजना के अन्त तक विदेशी सहायता की कुल स्वीकृति 13,056 करोड़ रुपये थी जबकि उपयोग मात्र 11,922 करोड़ रुपये थी। छठी और सातवीं योजना में तो उपयोग, स्वीकृति से बहुत कम रहा है। सारणी से दूसरी बात यह उभर कर आती है कि सातवीं योजना में विदेशी सहायता की स्वीकृति में तेज वृद्धि हुई थी। वस्तुत: सातवीं योजना में विदेशी सहायता की स्वीकृति छठी योजना की तुलना में ढाई गुना से भी अधिक थी।

स्वीकृति की तुलना में उपयोग में वृद्धि अपेक्षाकृत कम गति से हुई। छठी योजना में उपयोग 10,903 करोड़ रुपये था जो कुल स्वीकृत सहायता 16.761 करोड़ रुपये का 65 प्रतिशत था। सातवीं योजना में उपयोग 22,700 करोड़ रुपये था जो स्वीकृत सहायता 44,971 करोड़ रुपये का केवल 50.5 प्रतिशत था परन्तु 1990-91 से 1993-94 के बीच उपयोग, स्वीकृत सहायता का 84 प्रतिशत रहा।

विदेशी सहायता का स्वरूप

भारत को मिलने वाली विदेशी सहायता तीन प्रकार की है-ऋण अनुदान (grant) और पी० एल0 480/665 इत्यादि के अन्तर्गत रुपये में वापस की जाने वाली अमेरिकी सहायता। विदेशी ऋण जहां अल्पकाल में विकास योजनाओं को पूरा करने में सहायक होते हैं। वहां दीर्घकाल में यदि विदेशी पूंजी का ठीक इस्तेमाल न हुआ तो वे अपने सेवा प्रभार के कारण अर्थव्यवस्था पर बोझ बन जाते हैं। अनुदान के रूप में मिलने वाली सहायता इस दृष्टि से अच्छी होती है। 1967-68 तक पी० एल० 480 के अन्तर्गत मिलने वाली अमेरिका से सहायता का अधिकांश रुपये में वापस करना था। लेकिन इसके बाद इन ऋणों में लगातार कमी हुई। 1967-68 के बाद पी० एल० 480 की व्यवस्था के अन्तर्गत अमेरिका ने परिवर्तनशील मुद्राओं में अदा किये जाने वाले ऋण दिये। 1977- 78 के बाद इस प्रकार के ऋण मिलने भी बन्द हो गये। ऊपर व्यक्त तीन रूपों में भारत को कुल मिलने वाली सहायता की जानकारी सारणी 24.2 में दी गई है।

जैसाकि स्पष्ट है, चौथी योजना के अन्त तक कुल 13,056 करोड़ रुपये की विदेशी सहायता स्वीकृत हुई थी। इसमें ऋणों का हिस्सा 9,665 करोड़ रुपये (अर्थात् 74 प्रतिशत), अनुदान का हिस्सा 753 करोड़ रुपये (अर्थात् 6 प्रतिशत) तथा PL480/665 के अधीन सहायता का हिस्सा 2,638 करोड़ रुपये (अर्थात् 20 प्रतिशत) था। पांचवीं पंचवर्षीय योजना में कुल स्वीकृत विदेशी सहायता 9.844 करोड़ रुपये थी जिसमें ऋणों का हिस्सा 7.913 करोड़ रुपये (84 प्रतिशत) तथा अनुदान का हिस्सा 1,795 करोड़ रुपये (18 प्रतिशत) था। PL480/665 के अधीन मात्र 136 करोड़ रुपये की सहायता प्राप्त हुई। छठी योजना के दौरान विदेशी ऋणों और अनुदान का हिस्सा क्रमश: 90 प्रतिशत और 10 प्रतिशत था। सातवीं योजना के दौरान ऋणों का हिस्सा और बढ़कर 93.9 प्रतिशत हो गया। संपूर्ण योजनावधि को देखें तो भारत को विदेशी सहायता की कुल स्वीकृति 1,35,096 करोड़ रुपये थी जिसमें ऋणों का हिस्सा 1,20,055 करोड़ रुपये (90 प्रतिशत)रुपये तथा अनुदान का हिस्सा 12,267 करोड़ रुपये (9 प्रतिशत) था। बाकी के 2,744 करोड़ (20 प्रतिशत) PL480/655 के अधीन प्राप्त महायता दी।

विदेशी सहायता और पूँजी निर्माण

योजना काल में पूंजी निर्माण में विदेशी पूंजी की भूमिका निर्धारित करने के लिए विदेशी सहायता और निवेश के बीच अनुमान पर गौर करना आवश्यक है। दूसरी और तीसरी योजनाओं के अन्तर्गत कुल निवेश में विदेशी पूंजी का योगदान 25 प्रतिशत था, जो 1966 67 और 1967-68 में बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया था। इसके बाद के वर्षों में पूंजी निर्माण की दृधि से विदेशी सहायता के महत्व में कमी हो गई है। आयात आधिक्य के साथ विदेशी सहायता का अनुपात भी 1955-56 से 1967-68 तक बहुत ऊंचा हो रहा है। यह स्पष्ट है कि भारत में पहली योजना के बाद 12 वर्षों में व्यापार संतुलन में भारी घाटे के कारण विदेशी सहायता लेना बहुत आवश्यक हुआ था। 1868-69 के बाद देश में औद्योगिक क्षेत्र में मन्दी के कारण आयात का स्तर तेजी के साथ ऊपर नहीं उठा जिससे व्यापार सन्तुलन में घाटा कम हो गया। मन्दी के फलस्वरूप निवेश क्रिया भी शिथिल रही और इसलिए विदेशी सहायता की उस स्तर पर आवश्यकता नहीं पड़ी जितनी कि दूसरी और तीसरी योजनावधि में आवश्यक थी। इसके अलावा, इस अवधि में प्राप्त सहायता का एक बड़ा अंश आयातों के वित्तयन के लिए आवश्यक था इसलिए घरेल पूंजी निर्माण में उसका योगदान नगण्य था। पांचवीं योजना में विदेशी सहायता प्रतिशत के रूप में तो नहीं बढ़ी परन्तु उसकी कुल मात्रा में वृद्धि अवश्य हुई। छठी योजना में यह आशा व्यक्त की गई थी कि कुल आवश्यक साधनों का लगभग दसवां हिस्सा विदेशी सहायता के रूप में आवश्यक होगा। परन्तु वास्तव में विदेशी सहायता से कुल योजना व्यय का केवल 77 प्रतिशत प्राप्त हुआ। सातवीं योजना में भी विदेशी सहायता से 10 प्रतिशत साधन जुटाने की बात की गई थी। वास्तव में विदेशी सहायता से सातवीं योजना में 9.1 प्रतिशत साधन जुटाये गये। आठवीं योजना में विदेशी सहायता से केवल 6.6 प्रतिशत साधन जुटाने की बात की गई है।

विदेशी सहायता का उपयोग

विदेशी सहायता के उपयोग सम्बन्धी आंकड़े सरकारी क्षेत्रों से उपलब्ध हैं। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि आयोजन काल में लगभग आधी विदेशी सहायता का उपयोग औद्योगिक विकास के लिए किया गया। दूसरी पंचवर्षीय योजना की अवधि से लोहा व इस्पात उद्योग को औद्योगिक क्षेत्र को मिलने वाली कुल विदेशी सहायता का 50 प्रतिशत भार प्राप्त हुआ परन्तु बाद में उसके अंश में पर्याप्त कमी हो गई है। विदेशी सहायता से जिन अन्य क्षेत्रों को काफी लाभ हुआ उनमें उल्लेखनीय हैं-परिवहन एवं संचार, ऊर्जा परियोजनाएं तथा कृषि विकास। छठी योजना में, विदेशी ऋणों के कुल उपयोग में कृषि विकास का हिस्सा 36.3 प्रतिशत, औद्योगिक विकास का 27 प्रतिशत तथा ऊर्जा परियोजनाओं का 19.7 प्रतिशत था। सातवीं योजना में कुल ऋण उपयोग में विभिन्न क्षेत्रों का हिस्सा इस प्रकार था-कृषि विकास का 20.6 प्रतिशत, ऊर्जा परियोजनाओं का 23.5 प्रतिशत तथा औद्योगिक विकास का 23.9 प्रतिशत।

सरकारी सूत्रों द्वारा उपलब्ध आंकड़ों की एक महत्वपूर्ण सीमा यह है कि परियोजना सहायता’ (Project aid) और ‘गैर-परियोजना सहायता’ में भेद नहीं करते। परियोजना सहायता विशिष्ट निर्माण अथवा विकास योजना से जुड़ी हुई होती है। जबकि गैर-परियोजना सहायता का उपयोग ऋणी देश किसी भी उद्देश्य को पूरा करने के लिए कर सकता है। अतः पूँजी निर्माण और विकास की दृष्टि से विदेशी सहायता की उपयोगिता को समझने के लिए परियोजना सहायता और गैर-परियोजना सहायता में भेद करना आवश्यक है। जगदीश भगवती और पद्मा देसाई ने इस सम्बन्ध में कुछ अनुमान लगाए हैं। इनके अनुसार पी० एल०480 और दूसरी सहायता को छोड़कर स्वीकृत ऋणों में गैर-परियोजना सहायता जहां पहली योजना के लिए शून्य थी, वहां यह दूसरी और तीसरी पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत क्रमश: 19.3 और 21.2 प्रतिशत थी। निर्मलचन्द्र के अनुसार 1967-68 से 1970-71 तक गैर-परियोजना सहायता 21.4 प्रतिशत थी। बाद की योजनावधि के लिए इस प्रकार के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। परन्तु जो भी अप्रत्यक्ष जानकारी उपलब्ध है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि समय के साथ गैर-परियोजना सहायता में वृद्धि हुई है।

सहायता के उपयोग के संबंध में एक और बात महत्वपूर्ण है जैसा कि सारणी 1 व 2 से स्पष्ट है, सहायता का उपयोग, स्वीकृति की तुलना में बहुत कम है और प्रतिशत के रूप में योजनावधि में इसमें लगातार गिरावट हुई है। उदाहरण के लिए जहाँ चौथी योजना के अन्त तक, स्वीकृत सहायता का 91.3 प्रतिशत उपयोग किया गया था, वहां पांचवीं व छठी योजना में क्रमश: 73.7 प्रतिशत और 65.4 प्रतिशत स्वीकृत सहायता का उपयोग किया गया। सातवीं योजना में स्वीकृत सहायता का केवल आधा ही उपयोग में आ पाया। जैसाकि आर्थिक समीक्षा1989-90 में कहा गया है सहायता उपयोग कम होने के कारण कई हैं जैसे “सहायता स्वीकृति और विशिष्ट ऋण/साख समझौतों में समय अन्तराल, वस्तुओं और उपकरणों की खरीदारी में विलम्ब, लम्बी क्रियाविधि, भूमि अधिग्रहण व निर्माण कार्यों में देरी तथा घरेलू बजट में कठिनाइयों के कारण प्रतिरूप निधियां उपलब्ध कराने की अक्षमता है।”

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Pankaja Singh

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