जनसंख्या विस्फोट क्या है? | जनसंख्या विस्फोट के कारण | जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्या

जनसंख्या विस्फोट क्या है? | जनसंख्या विस्फोट के कारण | जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्या

जनसंख्या विस्फोट क्या है

जनसंख्या में होने वाली तीव्र वृद्धि जिसके कारण खाद्य पदार्थों तथा जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं एवं साधनों की कमी हो जाती है और जीवन स्तर नीचे गिरने लगता है, इसी को जनसंख्या विस्फोट की संज्ञा दी जाती है। विगत 50 वर्षों में विश्व के अनेक विकासशील देशों में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति है। किसी देश या प्रदेश की जनसंख्या जब उसके पोषणीय क्षमता से अधिक हो जाती है और सामान्य जीवन स्तर में गिरावट आरंभ हो जाती है, तब अति जनसंख्या की समस्या उत्पन्न होती है। इस स्थिति में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप जनसंख्या का घनत्व भी तीव्रता से बढ़ता जाता है जिससे उपलब्ध भूमि और संसाधनों पर जनसंख्या का भार भी बढ़ता जाता जिससे उपलब्ध भूमि और संसाधनों पर जनसंख्या का भार भी बढ़ता है और प्रति व्यक्ति खाद्यान्न तथा अन्य जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है।

जनसंख्या विस्फोट के दो मूल कारण होते हैं-

(1) तीव्र जनसंख्या और (2) आवश्यक संसाधनों में मन्द गति से वृद्धि । इसकी विवेचना माल्थस ने भी अपने सिद्धान्त में की। उनके अनुसार जनसंख्या में वृद्धि ज्यामितीय दर अर्थात् 1 : 2 : 4 : 8 : 16 आदि. है किन्तु खाद्य आपूर्ति में वृद्धि अंकगणितीय दर अर्थात् 1 : 2 : 3 : 4 : 5 आदि अनुपात में होती है, इसलिए सामान्य स्थिति में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति पैदा होना सहज है।

जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्या

जनसंख्या वृद्धि एक विश्वव्यापी समस्या है। भारत की जनसंख्या वृद्धि आर्थिक प्रगति में बाधक सिद्ध हो रही है क्योंकि द्वारा बहुत-सी समस्याएँ पैदा कर दी गयी हैं जो कि निम्नलिखित हैं-

(1) खाद्यान्न पूर्ति की समस्या- खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने के बावजूद भी खाद्यान्नों में कमी दिखायी देती है जिसकी पूर्ति करने के लिए अरबों रुपयों का खाद्यान्न आयात करना पड़ता है और इस प्रकार वह विदेशी मुद्रा जो पूँजीगत माल क्रय करने के काम में आनी चाहिए थी जिससे हजारों व्यक्तियों को रोजगार मिल सकता था वह खाद्यान्न पूर्ति करने में लगानी पड़ती थी।

(2) आय, बचत व विनियोग की दरों में कमी- एक देश की जनसंख्या वृद्धि उस देश की आय, बचत व विनियोग पर प्रभाव डालती है। आर्थिक विकास के फलस्वरूप जिस आय का सृजन होता है उसकी बढ़ी हुई जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए व्यय कर देना पड़ता

(3) जनोपयोगी सेवाओं के भार में वृद्धि- जब जनसंख्या में वृद्धि हो जाती हैं। तो उसका दबाव जनोपयोगी संस्थाओं जैसे अस्पताल, रेलें, परिवहन साधन, विद्युत, जल, मकान आदि पर पड़ता है तथा सरकार को कानून व व्यवस्था तथा सुरक्षा पर अधिक व्यय करना पड़ता है। इस प्रकार सरकारी आय का बहुत बड़ा अंश इन्हीं कार्यों में लग जाता है जिंससे विकास कार्यों के लिए धन नहीं बचता है।

 (4) श्रम-शक्ति में वृद्धि – जनसंख्या वृद्धि कार्यशील जनसंख्या में वृद्धि करती है, लेकिन रोजगार साधन उस गति से नहीं बढ़ पाते हैं और इस प्रकार देश में रोजगार की समस्या जो कि पहले से ही होती है, और जटिल हो जाती है।

(5) आश्रितता के भार में वृद्धि- तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या देश के आश्रितता के भार में वृद्धि करती है। 1961 की जनगणना के अनुसार भारत में 57.3 प्रतिशत जनसंख्या आश्रित जनसंख्या थी। इसमें भी वृद्धि हो गयी और यह बढ़कर 63.2 प्रतिशत हो गयी है।

(6) भूमि पर अधिक दबाव।।

(7) उपभोग व्यय में वृद्धि।

(৪) बेरोजगारी में वृद्धि।

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