इतिहास

उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र की मध्य पाषाण कालीन संस्कृति | उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र | मध्य पाषाण काल का उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र

उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र की मध्य पाषाण कालीन संस्कृति | उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र | मध्य पाषाण काल का उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र

उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र की मध्य पाषाण कालीन संस्कृति

उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र

उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का दक्षिणी पठारी भाग सम्मिलित है। वाराणसी जिले की चकिया तहसील, सोनभद्र, मिर्जापुर जिलों के क्षेत्र, इलाहाबाद जिले की मेजा, करछना तथा बारा तहसीलें, बाँदा, हमीरपुर, जालौन, झाँसी और ललितपुर जनपदों का समस्त क्षेत्र सम्मिलित है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के द्वारा किये गए अनुसंधान के फलस्वरूप मध्य पाषाण काल के बहुसंख्यक पुरास्थल इस क्षेत्र में प्रकाश में आये हैं। इनमें से चकिया तहसील में चन्द्रप्रभा नदी की घाटी में स्थित बैरा- दोमुँहवाँ, कपिसहा, सोनवर्षा, पँचपेडिया, राजा बाबा की पहाड़ी, भैंसहवा, कुसुम्भार और कर्मनाशा नदी की घाटी में स्थित लतीफशाह एवं कौड़िहार का उल्लेख किया जा सकता है। मिर्जापुर जिले में पचास से अधिक मध्य पाषाण के पुरास्थल ज्ञात हैं जिनमें से मोरहना पहाड़, बघहीखोर तथा लेखहिया का उत्खनन हुआ है। चोपनी-माण्डों, कुण्डीडीह, लोनामाटी, कपासीकलाँ, भदउवाँकलाँ, मझगवाँ, महुली आदि इलाहाबाद की मेजा तहसील के अंतर्गत बेलन नदी की घाटी में स्थित हैं। बाँदा जनपद में लालापुर, भौंरी, सिद्धपुर, ऐंचवारा, पहरा आदि से लघु पाषाण उपकरण प्रतिवेदित हैं। हमीरपुर, झाँसी तथा ललितपुर जनपदों से भी मध्य पाषाण काल के उपकरण मिले हैं। जालौन जिले से अभी तक मध्य पाषाण काल के उपकरण नहीं मिले हैं।

उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र में मध्य पाषाण काल के उपकरणों का निर्माण चर्ट तथा चाल्सेडनी पर मुख्यतः किया गया है। इनके अतिरिक्त कार्नेलियन, अगेट, जैस्पर, फ्लिन्ट, क्वार्ट्ज तथा क्वार्ट्जाइट का प्रयोग लघु पाषाण उपकरणों के निर्माण के लिए किया गया है। लघु पाषाण उपकरण नलिकाकार क्रोडों से बनाये गए हैं। प्रमुख उपकरणों में कुण्ठित तथा वक्र ब्लेड, छिद्रक, चान्द्रिक, स्क्रेपर, त्रिभुज एवं समलम्ब चतुर्भुज, बेधक आदि मिलते हैं।

मोरहना पहाड़, बघहीखोर तथा लेखहिया शिलाश्रय मिर्जापुर जिले में भैंसोर गाँव से लगभग 5 किमी की दूरी पर मिर्जापुर से दक्षिण की ओर जाने वाली ग्रेट दकन रोड पर स्थित हैं।

मोरहना पहाड़ की खोज ए० सी० एल० कार्लाइल ने उन्नीसवीं शताब्दी ईसवी के अन्तिम चरण में किया था। कार्लाइल ने यहाँ से बहुत अधिक संख्या में लघु पाषाण उपकरण एकत्र किये थे किन्तु उसने अपनी खोज का विवरण प्रकाशित नही किया था। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की ओर से सन् 1962-63 तथा 1963-64 के बीच मोरहना पहाड़, बघहीखोर और लेखहिया का उत्खनन कराया गया।

मोरहना पहाड़ के शिलाश्रय संख्या 4 के अन्दर तथा शिलाश्रय संख्या 1 के बाहर स्थित खुले क्षेत्र में एक-एक खन्तियाँ आर० के० वर्मा द्वारा डाली गयीं। शिलाश्रय संख्या 4 के अन्दर कुल 55 सेमी मोटा मध्य पाषाणिक काल प्रकाश में आया जिसे चार स्तरों (Layers) में विभाजित किया गया है। मोरहना शिलाश्र संख्या 1 के बाहर जो खन्ती डाली गई थी उसमें 1.15 मीटर मोटा निक्षेप मिला है जिसे छः विभिन्न स्तरों में बाँटा गया है। इनमें से पाँच स्तरों से मध्य पाषाणिक लघु पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं। छठवाँ स्तर अपघटित आधार- शिला का ही भाग है। इसस्तर से किसी प्रकार के कोई पुरावशेष नहीं मिले हैं। पाँचवाँ स्तर बालू एवं बलुअर पत्थर के टुकड़ों से निर्मित हैं। इस स्तर से अज्यामितीय लघु पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं। प्रमुख उपकरणों में कुण्ठित ब्लेड, चान्द्रिक, बेधक, स्क्रेपर आदि हैं। चौथे तथा तीसरे स्तरों से ज्यामितीय लघु पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं। द्वितीय तथा प्रथम स्तरों से हस्त-निर्मित मृद्भाण्डों के टुकड़ों के साथ-साथ लघुतर आकार के मध्य पाषाणिक उपकरण प्राप्त हुए हैं।

बघहीखोर शिलाश्रय (अक्षांश 241, 48′, 30″ उ०, देशान्तर 85′, 5 पू०) मोरहना पहाड़ के पूर्व में लगभग 1 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका उत्खनन आर० के० वर्मा ने कराया था। इस शिलाश्रय के उत्खनन के फलस्वरूप 55 सेमी मोटा मध्य पाषाणिक जमाव प्रकाश में आया है जिसे चार स्तरों में विभाजित किया गया है। मोरहना पहाड़ के उत्खनन से प्राप्त परिणामों से मिलता-जुलता लघु पाषाण उपकरणों का विकासात्मक क्रम बघहीखोर के उत्खनन से भी ज्ञात हुआ है। नीची से ऊपर की ओर बघहीखोर के विभिन्न स्तरों का विवरण इस प्रकार है-सबसे निचला चतुर्थ स्तर प्रस्तर के छोटे-छोटे टुकड़ों (Chips), राख तथा राख मिश्रित मिट्टी से निर्मित 8.75 सेमी मोटा जमाव है। चर्ट के ब्लेड पर बने लघु पाषाण उपकरण थोड़ी संख्या में मिले हैं। फलक पर बने हुए उपकरणों की संख्या अधिक है। ब्लेड, फलक, बेधक, चान्द्रिक तथा क्रोड प्रमुख पुरावशेष हैं। मिट्टी के बर्तनों का अभाव है। तीसरा स्तर महीन बालू युक्त मिट्टी से निर्मित 7.50 सेमी मोटी पीले रंग का जमाव है। इस स्तर से समानान्तर पार्श्व वाले तथा कुण्ठित ब्लेड, चान्द्रिक, बेधक और क्रोड आदि मध्य पाषाणिक पुरावशेष मिले हैं। इस स्तर से मद्भाण्ड के टुकड़े नही मिले हैं। दूसरे स्तर से ज्यामितीय तथा अज्यामितीय लघु पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं। प्रथम स्तर से जो लघु पाषाण उपकरण मिले हैं वे आकार में बहुत छेटे हैं। इस स्तर से प्राप्त अधिकांश लघु पाषाण उपकरण चाल्सेडनी पर निर्मित हैं। मिट्टी के बर्तनों के नमूनों की संख्या भी इस स्तर में बढ़ जाती है। सबसे ऊपरी प्रथम स्तर से लोहे के बने हुए दो बाण तथा लोहे का एक टुकड़ा भी मिला है।

बघहीखोर के द्वितीय स्तर से एक विस्तीर्ण मानव शवाधान मिला है जिसके लिए तीसरे तथा चौथे स्तरों को काटते हुए एक कब्र का निर्माण किया गया था। कब्र में मानव-कंकाल पश्चिम की ओर सिर तथा पूर्व दिशा की ओर पैर करके दफनाया हुआ मिला है। कंकाल पत्थर के छोटे टुकड़ों से ढंका हुआ था। कंकाल के साथ लघु पाषाण उपकरण बहुत अधिक संख्या में मिले हैं। भारतीय नृतत्त्व सर्वेक्षण के आर० एन० गुप्त के अनुसार इस कंकाल की लम्बाई 152.68 सेमी है। यह 20-21 वर्षीया युवती का कंकाल है।

लेखहिया (अक्षांश 20°,47′, 30″ उ०, देशान्तर 82°, 8′, 7″ पू०) नामक पुरास्थल पर पाँच शिलाश्रय हैं जिनमें से चार चित्रकारी से युक्त हैं। शिलाश्रय संख्या 1 एवं 2 का चयन उत्खनन के लिए किया गया था। जी० आर० शर्मा के निर्देशन में वी०डी० मिश्र ने लेखहिया का उत्खनन कराया था। शिलाश्रय संख्या 1 में 6.20×3.10 मीटर आकार की एक खन्ती डाली गई थी जिसमें 48 सेमी मोटा मध्य पाषाणिक जमाव प्राप्त हुआ जिसे चार स्तरों में विभाजित किया गया। लेखहिया शिलाश्रय संख्या 2 के बाहर स्थित खुले हुए क्षेत्र में 7×3 मीटर आकार की तीन खन्तियाँ डाली गयी थीं। उत्खनन के फलस्वरूप 1.10 मीटर मोटा जो जमाव मिला है उसकी 9 विभिन्न स्तरों में जमाव की संरचना तथा रंग के आधार पर विभाजित किया गया है। इसमें से ऊपरी 8 स्तरों से लघु पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं जिन्हें अज्यामितीय अथवा ज्यामितीय उपकरणों की चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

  1. अज्यामितीय मृद्भाण्ड-रहित लघु पाषाण उपकरण (Non-geometric pre- pottery Microliths).
  2. ज्यामितीय सद्भाण्ड-रहित लघु पाषाण उपकरण (Geometric tools without pottery)
  3. ज्यामितीय मृद्भाण्ड-सहित लघु पाषाण उपकरण (Geometric tools with pottery),
  4. लघुतर ज्यामितीय मृद्भाण्ड-सहित लघु पाषाण उपकरण (Dimi Gemetric tools with pottery)।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र में लघु पाषाण उपकरणों में एक विकासात्मक-क्रम परिलक्षित होता है। उपकरण उत्तरोत्तर छोटे होते जाते हैं। प्रथम दो चरणों में मिट्टी के बर्तनों के उपयोग के साक्ष्य नहीं मिलते हैं। कालान्तर में उत्तरी विन्ध्य क्षेत्र की नव पाषाणिक संस्कृति के लोगों के सम्पर्क के फलस्वरूप मध्य पाषाणिक लोगों ने हाथ से बने हुए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करना प्रारम्भ कर दिया था।

इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!