इतिहास

फ्रांसीसी क्रान्ति के स्थायी प्रभाव | फ्रांस की राज्य-क्रान्ति के स्थायी परिणामों की सविस्तार समीक्षा

फ्रांसीसी क्रान्ति के स्थायी प्रभाव | फ्रांस की राज्य-क्रान्ति के स्थायी परिणामों की सविस्तार समीक्षा

फ्रांसीसी क्रान्ति के स्थायी प्रभाव

(Permanent Effects of the French Revolution)

फ्रांस की राज्य-क्रान्ति 1789 में आरम्भ हुई थी और 1814 तक अपना प्रभाव डालती रही। परन्तु उसका स्थायी प्रभाव न केवल फ्रांस में, वरनु सम्पूर्ण यूरोप में व्याप्त रहा। धीरे-धीरे इसने सम्पूर्ण विश्व में अपनी शक्ति को फैलाया। इतिहासकार क्रोपाटिन (Kropotikin) ने फ्रांस की क्रान्ति के प्रभाव के सम्बन्ध में लिखा है, “फ्रांसीसियों ने न केवल अपने देश के कल्याण के लिए रक्त बहाया, वरन् उन्होंने सारी मानव जाति के लिए कष्टों को सह्न किया। उनका संघर्ष एवं संसार में उनके द्वारा फैलायी गयी विचारधारा तथा विचारधारा से उत्पन्न आघात को मानवता को विरासत के रूप में ग्रहण कर लिया गया है। वे सभी समानता तथा बंधुत्व के भाव को लेकर चमकते रहेंगे।”

फ्रांसीसी क्रान्ति के स्थायी प्रभावों को हम निम्नलिखित संकेतों के आधार पर समझने का प्रयत्न करेंगे-

(1) समानता का सिद्धान्त-

क्रान्ति ने विश्व में समानता के सिद्धान्त को स्थायी रूप दिया। इसकी स्थापना फ्रांस के कुलीनतंत्र तथा विशेषाधिकार वर्ग के विरुद्ध हुई थी। विशेषाधिकार वर्ग के समस्त अधिकार समाप्त कर दिए गए थे तथा सामंतों, उच्च पादरियों और चर्च की भूमि किसानों के हाथ बेच दी गयी थी। किसानों को अपनी भूमि क्रय-विक्रय करने के अधिकार दे दिए गए थे। समाज में सभी व्यक्तियों को समान दर्जा दिया गया था। समानता के इस महत्वपूर्ण सिद्धान्त ने यूरोप के अन्य राज्यों को भी प्रभावित किया और उन देशों में भी फ्रांस का ही अनुकरण किया गया। छोटे-बड़े सभी को इच्छानुसार स्वतंत्रतापूर्वक किसी से भी व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया गया। इससे यूरोप के देशों में व्यापार के लिए प्रतिस्पर्धा की भावना जागी तथा नई-नई फैक्ट्रियाँ और कार्यशालाएँ खोली गई।

(2) स्वतंत्रता के सिद्धान्त की स्थापना-

फ्रांस में निरंकुश शासन को समाप्त करके गणतंत्र की स्थापना की गई। इस प्रकार स्वतंत्रता के सिद्धान्त का प्रचार किया गया। इस सिद्धान्त को यूरोप के सभी देशों ने अपनाया। फ्रांस में क्रान्तिकारियों ने प्रसुप्त मानव अधिकारों को उजागर किया । अतः लोगों को अपने अधिकारों का ज्ञान हो गया, वे समझने लगे कि अच्छा जीवन जीने के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता कितनी आवश्यक है। स्वतंत्रता का वातावरण व्याप्त होने से किसानों को सामंतों तथा जागीरदारों की दास्ता से मुक्ति मिल गई, वे देश में स्वतंत्र नागरिक की हैसियत से रहने लगे। फ्रांस में लोगों को योग्यता के आधार पर पद दिए जाने लगे। नेपालियन ने जिस विधान की रचना की उसके अनुसार सभी व्यक्तियों को एक समान समझा जाने लगा। फ्रांस में किए गए इन सुधारों का प्रभाव यूरोप के अन्य देशों पर भी पड़ा जिससे जनता को काफी लाभ हुए।

(3) समाजवाद की प्रगति-

फ्रांस की राज्य क्रान्ति ने संसार में समाजवाद की भावना को प्रगतिशील बनाया। यूरोप के अनेक राज्यों ने अपने यहाँ की लोक सभा, व्यवस्थापिका आदि सभाओं में समाजवादी दृष्टिकोण के अनुसार परिवर्तन किए। स्वतंत्र भारत में भी समाजवाद के प्रभाव पर नया बल दिया गया। श्रीमती गांधी ने समाजवाद के स्वरूप को शक्तिशाली बनाकर भारत के शासन में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए।

(4) निरंकुश शासन का अंत-

फ्रांस की क्रान्ति ने निरंकुश शासन को समाप्त कर एक लोकप्रिय कल्याणकारी शासन की स्थापना की। उस समय फ्रांस में निरंकुश राजाओं के शासन का बोलबाला था। इस प्रकार सर्वप्रथम फ्रांस ने निरंकुशता पर अंकुश लगाने का खेल खेला, जिसका प्रभाव शीघ्र ही यूरोप के अन्य देशों पर भी पड़ा। क्रान्तिकारी नेताओं ने अन्य यूरोपीय राज्यों में भी फ्रांस की क्रान्तिकारी सेनाओं को भेजकर गणतंत्र की स्थापना की। नेपोलियन ने यूरोप में अपने साम्राज्य का विस्तार किया। नेपोलियन के पश्चात् यूरोप के देशों में प्रजातंत्र की भावना बड़ी तेजी से फैलने लगी। धीरे-धीरे इस भावना से प्रेरित होकर यूरोप तथा एशिया के अनेक देशों में गणतंत्रात्मक शासन-प्रणाली की स्थापना की गई।

(5) राष्ट्रीयता का प्रसार-

आरम्भ में तो यूरोप के प्रत्येक भाग में राष्ट्रीयता की भावना इसलिए फैली कि नेपोलियन वहाँ अत्याचार के मुक्तिदाता के रूप में पहुंचा। परन्तु बाद में लोगों में उसके शासन के विरुद्ध विद्रोह की भावना जागने के कारण भी राष्ट्रीयता का विकास हुआ। स्पेन, प्रशिया, आस्ट्रिया, इटली आदि सभी देशों के लोग राष्ट्रीयता की भावना से जाग उठे । जब नेपोलियन का साम्राज्य समाप्त हो गया तो उसके बाद भी राष्ट्रीयता की भावना बढ़ती ही गई। एक राष्ट्र ने दूसरे राष्ट्र के अधीन रहना अस्वीकार कर दिया। जर्मनी तथा इटली जैसे देश स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में संगठित हो गए। इटली और जर्मनी के एकीकरण का आरम्भ क्रान्ति के स्थायी प्रभाव का ज्वलंत उदाहरण है।

(6) धर्म निरपेक्षता का प्रचार-

क्रांतिकारियों ने इस सिद्धान्तु को जन्म दिया कि धर्म व्यक्ति को निजी वस्तु है और राज्य का केवल गौण-सा सम्बन्ध है । क्रान्ति से पहले यूरोप के प्रत्येक राज्य में धर्म शासन के साथ किसी न किसी रूप में चिपटा हुआ था। धर्म संगठन् शासन के शिक्षा, न्याय, कर आदि कार्यों में महत्वपूर्ण भाग लेता था। क्रान्ति ने धर्म को इन अधिकारों से दूर रखा, उसने धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार किया। इस धर्म-निरपेक्षता की भावना को स्थायी बनाने का श्रेय नेपोलियन को ही दिया जा सकता है।

(7) राष्ट्रीय शिक्षा-पद्धति-

क्रान्ति से पूर्व चर्च द्वारा शिक्षा दी जाती थी। चर्च द्वारा दी गयी शिक्षा धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार होती थी। अतः क्रान्तिकारियों ने चर्च के हाथ से शिक्षा का कार्य ले लिया। क्रान्तिकारियों ने पेरिस में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसके अतिरिक्त देश में राष्ट्रीय शिक्षा-पद्धति के अनुरूप बहुत से स्कूल तथा कालेज खोले गए। फ्रांस का अनुकरण करके यूरोप के अन्य देशों में भी विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई।

निष्कर्ष (Conclusion)

उपरोक्त दृष्टव्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि फ्रांस की राज्य-क्रान्ति का प्रभाव संसार पर किसी न किसी रूप में अवश्य पड़ा है। यूरोप में तो उस स्थायी प्रभाव के दर्शन आज भी शासन के अंगों तथा विभागों में किए जा सकते हैं। अतः फ्रांस की क्रान्ति ने फ्रांस को ही नहीं वरन् सम्पूर्ण यूरोप को प्रभावित किया।

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Pankaja Singh

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