इतिहास

मुसलमानों के आन्दोलन | वहावी आन्दोलन | अलीगढ़ आन्दोलन | अहमदिया आन्दोलन | मुसलमानों के धर्मसुधार आन्दोलन की आलोचना

मुसलमानों के आन्दोलन | वहावी आन्दोलन | अलीगढ़ आन्दोलन | अहमदिया आन्दोलन | मुसलमानों के धर्मसुधार आन्दोलन की आलोचना

मुसलमानों के आन्दोलन

मुसलमानों ने पाश्चात्य शिक्षा काफी देर में ग्रहण की और बहुत समय तक तो वे इस शिक्षा को सन्देह की दृष्टि से देखते रहे । पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव से उनके अन्दर भी चेतना उत्पन्न हुई और उन्होंने अपने धर्म के प्रचलित स्वरूप में सुधार का अनुभव किया। मुसलमानों में धर्म- सुधार के जो आन्दोलन शुरू हुए उनमें सर सैयद अहमद खाँ का अलीगढ़ बहुत प्रसिद्ध था किन्तु इसके पहले मुसलमानों के वहावी आन्दोलन के बारे में जानता आवश्यक है।

वहावी आन्दोलन-

सैयद अहमद बरेलवी प्रथम मुस्लिम विचारक थे जिनका ध्यान इस्लाम धर्म तथा मुसलमान समाज की ओर आकर्षित हुआ। इस पर अरब के वहावी आन्दोलन का व्यापक प्रभाव पड़ा और इसी कारण उनका आन्दोलन भी वहाबी आन्दोलन के नाम से विख्यात हुआ। उन्होंने जन-साधारण की सुविधा के लिये कुरान का फारसी भाषा में अनुवाद किया। उन्होंने ईश्वर की एकता पर जोर दिया और कुरान की व्याख्या करने का अधिकार प्रत्येक मुसलमान को दिया। वहावी आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य तो उन कुरीतियों का निराकरण करना था जो इस्लाम में प्रविष्ट हो गयी थीं किन्तु शीघ्र ही उनका रूप उग्र और इसका लक्ष्य राजनीतिक हो गया। इस आन्दोलन के कारण बंगाल में बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने इस्लाम को स्वीकार कर लिया था। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह आन्दोलन मूलतः हिन्दू-विरोधी नहीं था। इसकी राजनीतिक लड़ाई अंग्रेज सरकार के विरुद्ध थी जिसने इसका दृढ़ता के साथ दमन किया।

अलीगढ़ आन्दोलन-

अलीगढ़ आन्दोलन के साथ सर सैयद अहमद खाँ का नाम संयुक्त है। उनके सम्बन्ध में एक आधुनिक इतिहासकार ने लिखा, “सर सैयद अहमद खाँ एक उत्साही सुधारक थे। वे चाहते थे कि इस्लामी सिद्धांतों की व्याख्या इस रूप में की जाये कि ये आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा से जरा भी दूर नहीं दिखाई दें। इसकी व्याख्या करने में इन्होंने इस्लाम के मूल सिद्धांतों की आलोचना की तथा उनकी बुद्धिवादी व्याख्या प्रस्तुत करते हुए इस्लाम और ईसाई मतों में सादृश्य इंगित किया। उन्होंने इस बात का अनुभव किया कि मुसलमानों को पश्चिमी शिक्षा का विरोध न करके इसे उत्साह के साथ अपनाना चाहिए। उन्होंने मुसलमानों में इसका प्रचार करने के उद्देश्य से 1875 में अलीगढ़ में मुस्लिम एंग्लो ओरियन्ट कालेज की स्थापना की।” उन्होंने मुसलमानों को समझाया कि स्वयं पैगम्बर मुहम्मद साहब ने कहा था कि ज्ञान के लिये चीन की दीवार तक चले जाओ। उन्होंने लोगों को समझाया कि यदि भोजन त्याज्य नहीं है तो ईसाइयों के साथ बैठकर खाने में कोई हानि नहीं है। उन्होंने स्वयं पश्चिमी रहन-सहन अपनाया। वह विदेशियों को अपने घर आमन्त्रित करते और स्वयं भी उनसे मिलते-जुलते थे। इन विचारों के कारण उनकी बड़ी आलोचना हुई, किन्तु विजय अन्त में उन्हीं की हुई। जीवन के अन्तिम वर्षों में वे मुस्लिम विचारधारा को प्रमाणित करने में सफल हुए। वे पर्दाप्रथा के विरोधी और स्त्री-शिक्षा के समर्थक थे।

अहमदिया आन्दोलन-

अहमदिया आन्दोलन का प्रारम्भ मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में किया था। मिर्जा मुहम्मद पाश्चात्य विचारधारा थियोसोफी दर्शन तथा हिन्दुओं के सुधार आन्दोलन से बहुत प्रभावित थे। अतः वे इस्लाम को सरल बनाने के लिये इस्लाम से उन सभी बातों को हटाना चाहते थे जो मुहम्मद साहब के समय में नहीं थी। इस आन्दोलन के सिद्धान्तों में ‘जेहाद’ अर्थात् गैर-मुस्लिम के विरुद्ध धर्म-युद्ध की भावना का विरोध किया गया था।

मुसलमानों के धर्मसुधार आन्दोलन की आलोचना-

मुसलमानों के सुधार आन्दोलन का प्रभाव प्रारम्भ में विशेष संतोषजनक नहीं था क्योंकि उनमें अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार हिन्दुओं के मुकाबले में कम था। सर सैयद ने पर्दा-प्रथा का विरोध किया था किन्तु इसमें उन्हें अधिक सफलता प्राप्त न हो सकी। आज भी नगरों में अधिकांश भद्र मुस्लिम परिवारों की महिलायें पर्दा करती हैं। अंग्रेजी शिक्षा की ओर धीरे-धीरे मुसलमान लोग आकृष्ट होने लगे और अब उन्हें इसके प्रति कोई विरोध नहीं रह गया है।

निष्कर्ष

इस प्रकार हिन्दुओं और मुसलमानों के धार्मिक आन्दोलन का विवेचन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि वैसे तो ये आन्दोलन प्रमुख रूप से धार्मिक थे किन्तु इनका उद्देश्य हिन्दुओं और मुसलमानों में समाज-सुधार तथा राष्ट्रीय जागरण के विचार फैलाना था। इन उद्देश्यों में इन आन्दोलनों को काफी सफलता प्राप्त हुई और इन्होंने भारत में राजनैतिक जागरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

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Pankaja Singh

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