राजनीति विज्ञान

लोक-प्रशासन का अर्थ | लोक-प्रशासन के कार्य | नौकरशाही के कार्य

लोक-प्रशासन का अर्थ | लोक-प्रशासन के कार्य | नौकरशाही के कार्य

लोक-प्रशासन का अर्थ

सार्वजनिक कार्यों के सुचारु प्रबन्ध और संचालन से है। विभिन्न प्रशासनिक विभाग जो विभिन्न कार्यों का सम्पादन करते हैं वे इसी के अन्तर्गत आते हैं। लोक- तांत्रिक व्यवस्था में जनता द्वारा जो प्रतिनिधि चुने जाते हैं वे केवल सार्वजनिक नीतियों का निर्धारणमात्र ही करते हैं जबकि इन नीतियों को व्यवहार में क्रियान्वित लोक-प्रशासन करता है। राज्य के कार्यों के बढ़ने के साथ-साथ प्रशासन का महत्त्व भी बढ़ा है। लोक-प्रशासन एवं सरकारी प्रशासन एक है। सरकारी क्रियाओं को लोक-प्रशासन में समाहित किया जाता है। परन्तु इस पर मतभेद है कि कौन-सी सरकारी क्रियाएँ लोक-प्रशासन के अन्तर्गत आनी चाहिये और कौन सी नहीं। शासन की तीन शाखाएँ होती हैं—कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्याय- पालिका | परन्तु यह निर्णय करना एक कठिन कार्य है कि लोक-प्रशासन का सम्बन्ध इन तीनों में से किससे माना जाय तथा किससे न माना जाय। कुछ विद्वान् लोक-प्रशासन का सम्बन्ध केवल कार्यपालिका से मानते हैं। वास्तव में व्यापक रूप में ही इसको लेना चाहिये। लोक प्रशासन के क्षेत्र में प्रशासन सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों ही पहलू में लिये जाने चाहिए।

लोक प्रशासन एक विकासशील संगठन है और जैसे-जैसे सरकार के ढाँचे और उसके ‘दायित्वों में परिवर्तन होता है वैसे-वैसे इसके क्षेत्र में भी परिवर्तन होता रहता है।

नौकरशाही और लोक-प्रशासन एक-दूसरे के पूरक हैं। लोक-प्रशासन की सफलता नौकरशाही की कुशलता पर निर्भर करती है।

लोक-प्रशासन अथवा नौकरशाही के कार्य

नौकरशाही लोक प्रशासन के क्षेत्रों में अनेक कार्य करती है। जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं:-

(1) सामाजिक परिवर्तन को कार्यन्वित करना- प्रत्येक लोकतांत्रिक सरकार के लिए आवश्यक है कि वह सामाजिक आवश्यकताओं को पहचाने और उनके अनुसार कार्य करे। इस प्रकार नौकरशाही सामाजिक परिवर्तन को कार्यान्वित करने का कार्य सम्पन्न करती है। व्यवस्थापिका के निर्णयों को क्रियान्वित करने का भार नौकरशाही पर होता है।

(2) नीति-निर्धारण का कार्य- शासन की नीति-निर्धारण कार्य भी यह करती है। व्यवस्थापिका की नीति- निर्धारण में तकनीकी जटिलतायें आ जाती हैं जिनका समाधान विशेष दक्षताप्राप्त व्यक्ति ही करते हैं; अतः लोकसेवकों की सहायता लेनी होती है

(3) व्यवस्थापन करना- प्रायः यह देखा जाता है कि कार्यपालिका ही व्यवस्थापन का कार्य करती है। लोकसेवक इस सम्बन्ध में सब कुछ तैयार करके रख देती है और मन्त्रीगण केवल उसे व्यवस्थापिका सभा में प्रस्तुत कर देते हैं।

(4) व्यवस्थापिका को प्रभावित करना- व्यवस्थापिका में विचार-विमर्श के समय लोक- सेवक ही अपने विभागसम्बन्धी आँकड़े इत्यादि तथा मन्त्रियों के वक्तव्य तैयार करता है।

(5) प्रतिद्वन्द्वी हितों के मध्य समायोजन- लोकसेवकों से अपेक्षित है कि वे प्रतिद्वन्द्वी हितों के बीच समायोजन करें। नौकरशाही लोकहित के विरोधी तत्त्वों, सेवित व्यक्तियों की माँग , संगठनात्मक आवश्यकताओं और व्यक्तिगत मूल्य की प्राथमिकताओं के मध्य संतुलन स्थापित करती है।

(6) व्यवस्थापन को कार्यान्वित करना- व्यवस्थापिका केवल कानून या नियम बनाती है। उनको कार्यान्वित करने का काम लोक प्रशासन पर होता है। वे मूल कानून की व्याख्या करने के लिए नियम निर्धारित करते हैं।

(7) व्यवस्थापिका और नैतिक मूल्यों के बीच संतुलन स्थापित करना- प्राय: नौकरशाही के कार्यों में व्यावसायिक और नैतिक मूल्यों के बीच विरोध उत्पन्न हो जाता है। इस सम्बन्ध में निर्णय लेते समय व्यक्तिगत नैतिकता एवं व्यावसायिक मापदण्ड दोनों का ध्यान अधिकारी को रखना होता है।

(8) सरकार के कार्यों को सम्पन्न करना- वस्तुतः नौकरशाही सरकार के साधारण से साधारण कार्य सम्पन्न करती है। यदि ये न हों तो सरकार का कार्य चलना कठिन हो जाये।

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Pankaja Singh

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