इतिहास

कावूर और इटली का एकीकरण | Cavour and Unification of Italy in Hindi

कावूर और इटली का एकीकरण | Cavour and Unification of Italy in Hindi

कावूर और इटली का एकीकरण

(Cavour and Unification of Italy)

काउंट कावूर (Count Camillo Benso Cavour) पीडमौंट का निवासी था और पेशे से इंजीनियर था। आरंभ में वह सेना में भरती हुआ, लेकिन शीघ्र ही अपने उदार विचार के कारण उसे सेना को नौकरी छोड़नी पड़ी। वह वैध राजतंत्र में विश्वास करता था। कुछ दिनों के बाद वह पीडमोंट के प्रथम संसद के चुनाव में खड़ा हुआ और विजयी हुआ। 1850 ई० में वह मंत्रिमंडल में शामिल हुआ और 1825 ई० में प्रधानमंत्री बना। प्रधानमंत्री बनते ही उसने अपने राज्य की शक्ति बढ़ाने का प्रयल किया और एक महान राजनीतिज्ञ तथा अद्वितीय राजनयिक का परिचय दिया। राजा विक्टर इमैनुएल की कृपा भी उसे प्राप्त थी। अतः, पीडमौंट- सार्डिनिया में कावूर ने संसदीय शासन प्रणाली का विकास किया और स्वायत संस्थाओं का निर्माण कर जनता को स्थानीय संस्था से अवगत कराया। उसने चर्च के विशेषाधिकारों को भी समाप्त किया और मठों को नष्ट कर धार्मिक भ्रष्टाचार दूर करने का प्रयास किया। शिक्षा की उन्नति के लिए उसने शिक्षण संस्थानों की भी स्थापना की।

राज्य को आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए कावूर ने मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित किया। व्यापार को बढ़ावा देने के लिए उसने विदेशी राज्यों से संधियों की। वस्तुओं के मूल्य में भारी कमी कर दी गई। व्यापारिक सामग्री के उत्पादन के लिए उसने सार्डिनिया में अनेक कल कारखाने खोले और आवागमन को आसान बनाने के लिए तत्संबंधी साधनों का निर्माण किया। रेलवे लाइने बनाई गई और नहरों का विस्तार किया गया। बंजर एवं दलदली भूमि को सुधार कर उसे कृषि के लायक बनाया गया। किसानों की सुख-सुविधा के लिए अनेक समितियों का गठन कर लिया गया। इस तरह पीडमौट आधुनिक राष्ट्र की श्रेणी में आ गया।

प्रथम चरण (First Stage)

कावूर आस्टिया से युद्ध का बहाना ढूंढ रहा था। उधर आस्ट्रिया को भी सार्डिनिया एवं फ्रांस के समझौते का ज्ञान हो चुका था, जिसके कारण वह नाराज था। वह शुरू में ही सीर्डिनिया को कुचल देना चाहता था, अतः 19 अप्रैल, 1859 को आस्ट्रिया ने पीडमौंट के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। यूरोप की नजरों में आस्ट्रिया आक्रामक देश बन गया। पीडमौंट से आस्ट्रिया की लड़ाई शुरू होने के दस दिनों के बाद फ्रांस ने दो लाख सेना के साथ आस्ट्रिया पर आक्रमण कर दिया।

इस युद्ध में आस्ट्रिया की सेना बुरी तरह पराजित होने लगी। आस्ट्रिया की सेना लोम्बाडों से खदेड दी गई। ऐसा प्रतीत होने लगा कि कुछ ही दिनों इटली पर आस्ट्रिया के प्रभाव और आधिपत्य का अंत हो जाएगा। पूरे इटली की जनता ने अपने शासकों के विरूद्ध बगावत कर दी और राष्ट्रीय एकता की बात हर जबान पर आ गई। उधर यूरोप की कूटनीतिक स्थिति भी फ्रांस के विरुद्ध होती जा रही थी। प्रशा धमकी देने लगा कि वह आस्ट्रिया का पक्ष लेकर युद्ध में शामिल हो जाएगा। फ्रांस की सेनाओं को काफी हानि उठानी पड़ रही थी, जिससे फ्रांसीसियों में असंतोष फैल रहा था। नेपोलियन तृतीय कभी सोच भी नहीं पाया था कि सार्डिनिया की सेना इतनी आसानी से विजय प्राप्त कर सकेगी। वह संगठित इटली को फ्रांस के लिए खतरा मानता था, फलतः कावूर के विजयोल्लास के दौरान ही उसने आस्ट्रिया से संधि करने की बात सोची।

विलाफ्रैंका और ज्यूरिख की संधि उपर्युक्त परिस्थिति में नेपोलियन तुतीय विलाफ्रैंका (Villafranca) नामक जगह पर आस्ट्रिया के सम्राट फ्रांसिस जोसेफ से भेंट की और एक संधि कर ली। इस संधि के मुताबिक उसने अपनी सेना इटली से हटा ली। फ्रांसीसी सेना के युद्ध से हट जाने के बाद सार्डिनिया सैनिक रूप से कमजोर हो गया। कावूर यूद्ध बंद करने के पक्ष नहीं था: क्योंकि आस्ट्रिया का आधिपत्य अब भी वेनेशिया पर थी। लेकिन, युद्ध चालू रखने के कावूर के प्रस्ताव का सम्राट विक्टर इमैनुएल द्वितीय ने अस्वीकार कर दिया। इसके विरोध में कावूर ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। ज्यूरिख (Zurich) की संधि (7 नवंबर, 1859) के अनुसार लोम्बार्डी का प्रदेश पीड्मौंट को प्राप्त हुआ था तथा बेनेशिया पर आस्ट्रिया का आधिपत्य कायम रहा। चूंकि नेपोलियन ने अंतिम समय तक आस्ट्रिया को इटली से बाहर निकालने में सार्डिनिया का साथ नहीं दिया था, अत: उसे सेवाय और नीस नहीं मिले।

इटली को एकीकरण का पहला चरण नेपोलियन तृतीय की मदद से संपन्न हुआ जिसमें उसे केवल लोम्बार्डी मिला। इस प्रयास ने यह साबित कर दिया कि इटली का एकीकरण सार्डिनिया के नेतृत्व में ही हो सकता था।

द्वितीय चरण (Second Stage)

ज्यूरिख की संधि ने पीडमौंट पर कुछ दिनों के लिए सैन्य-बल के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया थी, लेकिन जन-आंदोलन पर इस संधि की शर्ते नहीं लागू हो सकी। जिन दिनों आस्ट्रिया से इटली का युद्ध चल रहा था, उन्हीं दिनों मध्य इटली के परमा, मोडेना, टस्कनी

 और पोप के राज्यों बोलेगना और रोमेगना में जनता ने विद्रोह कर दिया जिससे वहाँ के शासकों को अपना राज्य छोड़कर भागना पड़ा। इन राज्यों में निरंकुश शासन के बदले सामयिक सरकारों का संग्टन कर लिया गया था। इसी समय कापूर भी पुनः मंत्रिमंडल में शामिल हो गया। इन प्रदेशों की जनता ने सपाट से आमह किया कि उनके प्रदेशों को पीडमौंट के साथ मिला दिया जाए। लेकिन, नेपोलियन तृतीय से अनुमति लिए बिना विक्टर इमैनुएल के लिए यह करना संभव था। कावूर ने नेपोलियन को सेवाय और नीस का लालच देकर जनमत-संपह कर उपर्युक्त राज्यों को पीडमौंट सार्डिनिया में मिलाने के लिए राजी कर लिया। जनमत संग्रह (Plebiscite) हुआ, जिसके आधार पर 1860 ई० में परमा, मोडेना, टस्कनी, रोमेगना एवं बोलेगना पीडमौंट के साथ मिल गए। वेनेशिया को छोड़कर उत्तरी तथा मध्य इटली के डचियों के मिलने से एक शक्तिशाली इटली राज्य का निर्माण हो गया। अप्रैल, 1860 में विक्टर इमैनुएल ने ट्यूरिन में एक नई संयुक्त इटली की पार्लियामेंट का उद्घाटन किया। इस उद्घाटन के साथ ही इटली के एकीकरण का द्वितीय चरण समाप्त हुआ।

तृतीय चरण (Third Stage)

इटली के एकीकरण का तृतीय चरण गैरीबाल्डी (Guiseppe Garibaldi) के उत्साह और त्याग एवं कावूर की नीति से संभव हो सका। गैरीबाल्डी (1807-82) एक महान देशभक्त था, और उसके साथ ही एकीकरण के कार्य को उसने एक कदम आगे बढ़ाया। इटली के एकीकरण में उसने जिस महान त्याग, निः स्वार्थ भावना तथा उत्कट देशभक्ति का परिचय दिया, वैसा उदाहरण विश्व में बहुत कम मिलता है। उसी के प्रयास के परिणामस्वरूप सिसली और नेपल्स इटली के अंग बन सके।

1807 ई० में गैरीबाल्डी का जन्म नौस में हुआ था। आरंभ में गैरीबाल्डी अपना जीवन एक नाविक के रूप में व्यतीत करना चाहता था। वह पढ़ा-लिखा नहीं था और उसका मानसिक दर्जा भी बहुत ऊंचा नहीं था। वह इटली को उतना ही प्यार करता था जितना, कोई धार्मिक व्यक्ति ईश्वर से प्यार करता है। एक दिन मेजिनी से उसकी भेंट हो गई और उसकी शिक्षाओं ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह ‘युवा इटली’ का सदस्य बन गया।

‘युवा इटली’ का सदस्य बनते ही गैरीबाल्डी ने इटली की एकता के लिए प्रयास करना प्रारंभ किया। मेजिनी के परामर्श से ही उसने पीडमौंट के नाविकों को विद्रोह के लिए उकसाया। पीडमौंट के राजा ने उसे गिरफ्तार कर लिया, लेकिन वह जेल से भागकर अमेरिका चला गया। जब फ्रांस में 1848 ई० की क्रांति हुई और मेटरनिख का पतन हुआ, तब गैरीबाल्डी स्वदेश लौट आया। उस समय पीडमौंट का आस्ट्रिया से युद्ध चल रहा था। गैरीबाल्डी ने स्वयंसेवकों का संगठन किया और 3,000 स्वयं सेवकों को लेकर संग्राम में चार्ल्स एल्बर्ट की खुलकर सहायता की। एल्बर्ट ने युद्ध में पराजित होकर आस्ट्रिया से संधि कर ली, लेकिन गैरीबाल्डी युद्ध करता रहा। उसी समय रोम में विद्रोह हो गया और मेजिनी के नेतृत्व में गणराज्य की स्थापना हुई। इस नव गणराज्य की रक्षा करने का भार गैरीवाल्डी को दिया गया। गैरीबाल्डी ने जमकर युद्ध किया। जब नगर का पतन निकट दिखाई दिया तो वह अपने सैनिकों के साथ भाग गया और वेनेशिया से आस्ट्रिया को भगाने का प्रयास करने लगा। लेकिन, वहां आस्ट्रिया और फ्रांस की संयुक्त सेना का सामना करना उसके लिए संभव नहीं था। अतः, उसे एड्रियाटिक के तट पर भागना पड़ा जहाँ उसने शत्रुओं का जमकर मुकाबला किया। लेकिन, इसी समय उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई जिससे वह टूट गया और अमेरिका चला गया।

अमेरिका की इस दूसरी यात्रा में गैरीबाल्डी को काफी धन अर्जित करने का अवसर मिला। 1854 ई० में वह पुनः इटली लौट आया और पीडमौंट के नजदीक केप्रेरा (Cuprera) नामक द्वीप खरीदकर खेती करने लगा। फिर भी इटली की दुर्दशा पर उसे शांति नहीं मिली और देश की स्वतंत्रता और एकता के लिए वह प्रयलशील रहा। 1856 ई० में गैरीबाल्डी की मुलाकात कावूर से हुई जिससे वह काफी प्रभावित हुआ। इसी समय से गणतंत्रवादी गैरीबाल्डी वैधानिक राजसत्ता में विश्वास करने लगा। इटली के इन दो महान नेताओं की यह भेंट इटली के लिए काफी लाभप्रद साबित हुई। अगर इन दोनों नेताओं का मिलन नहीं होता तो गणतंत्रवाद और राजसत्तावाद के बीच पारस्परिक गठबंधन नहीं हो पाता और इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी के साहस का उपयोग नहीं हो पाता।

सिसली की विजय- गैरीबाल्डी ने कावूर से मंत्रणा कर 1860 ई. में जिनोआ से दक्षिण सिसली की ओर 1072 सैनिकों को लेकर प्रस्थान किया। ये स्वयं सेवक लाल कुरता पहना करते थे। गैरवाल्डी ने उनकी सहयता से सिसली की राजधानी पर आक्रमण कर दिया और विजयी हुआ। 5 अगस्त, 1860 को उसने विक्टर इमैनुएल द्वितीय के नाम पर अपने को सिसूली का अधिनायक घोषित कर दिया। इसके बाद उसने नेपल्स पर आक्रमण किया जहाँ का राजा भग खड़ा हुआ और नेपल्स भी गैरीबाल्डी के कब्जे में आ गया।

अब गैरीबाल्डी रोम पर आक्रमण करने की योजना बनाने लगा। रोम में पोप की रक्षा के लिए फ्रांसीसी सेना मौजूद थी और फ्रांसीसी जनता भी पोप की बेइज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। इसके अलावा कावूर को गैरीबाल्डी की बढ़ती लोकप्रियता और उसके पुराने गणतंत्रवादी विचार से भी भय था कि कहीं गैरीबाल्डी अपने को उन मुक्त इलाकों का शासक न घोषित कर दे। ऐसी परिस्थिति में फ्रांस की सेना को हस्तक्षेप करने का मौका प्रदान करने के बजाय कावूर ने स्वयं हस्तक्षेप कर गैरीबाल्डी को रोकना उचित समझा। उसने नेपोलियन तृतीय को विश्वास में लेकर विक्टर इमैनुएल द्वितीय को एक सेना के साथ की ओर भेजा, जहां उसने पोप के राज्य पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया। इसके बाद वह आगे बढ़ा, जहाँ गैरीबाल्डी से उसकी भेंट हो गई। गैरीबाल्डी ने भक्ति-भाव से अपने सारे जीते हुए इलाकों को विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया। उसने इटली के एकीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर दक्षिी इटली को जीतकर इटली के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त किया।

1861 ई. तक इटली के पक्ष में विक्टर इमैनुएल द्वितीय ने कापुआ और गेटा को भी जीत लिया। रोम तथा वेनेशिया को छोड़कर संपूर्ण इटली के प्रदेशों पर विक्टर का अधिकार हो चुका था। 18 फरवरी, 1801 के दिन तूरिन में एक नई संसद का उद्घाटन हुआ और 1 मार्च को पीडमौंट-सार्डिनिया का नाम बदलकर इटली का राज्य कर दिया गया। विक्टर इमैनुएल द्वितीय ‘ईश्वर की अनुकंपा और राष्ट्र की इच्छा से इटली का राजा’ घोषित किया गया। इस अवसर पर गैरीबाल्डी भी उपस्थित था। उसने जनता से आग्रह किया कि इटलीवासी विक्टर के प्रति अपनी श्रद्धा एवं भक्ति दिखाएँ और इस तरह इटली के एकीकरण का तृतीय चरण पूरा हुआ।

गैरीबाल्डी एक महान योद्धा एवं देशभक्त था। यह सच है कि सिसली और नेपल्स को कोई गैरीबाल्डी ही जीत सकता था; क्योंकि इस समय कोई विदेशी सहायता मिलने की संभावना नहीं थी। गैरीवाल्डी के सैनिक राष्ट्रीय जीवन जीने के लिए उतावले, थे और उसके लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार थे। जब गैरीबाल्डी को राजा ने पुरस्कृत करना चाहा तो गैरीबाल्डी ने कहा कि देशसेवा अपने में स्यवं एक पुरस्कार है और उसने अपने लिए थोड़ा-सा बीज मांगा जो उसके द्वीप केप्रेरा में कृषि के लिए आवश्यक था। राष्ट्र के प्रति इस तरह को देशभक्ति और त्याग का उदाहरण विश्व में बहुत कम मिलता है। ।

चुतर्थ चरण (Fourth Stage)

वेनेशिया और रोम पर अभी भी क्रमशः आस्ट्रिया और पोप का शासन था। विक्टर इमैनुएल इन दोनों इलाकों को इटली में मिलाने की ताक में था। जर्मनी के एकीकरण के दौरान प्रशा और आस्ट्रिया की लड़ाई अवश्यंभावी हो गई। प्रशा लड़ाई के लिए कूटनीतिक तैयार करने लगा। प्रशा के चांसलर बिस्मार्क ने इटली से भी संपर्क स्थापित किया और तय किया कि प्रशा और आस्ट्रिया की लड़ाई के समय इटली वेनेशिया पर आक्रमण कर दे। बिस्मार्क ने आश्वासन दिया कि प्रशा आस्ट्रिया से तभी संधि करेगा, जब वह वेनशिया कोइटली को सौंपने के लिए राजी हो जाएगा। 1866 ई० में प्रशा और आस्ट्रिया में युद्ध शुरू हुआ। इटली ने वेनिशिया पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में आस्ट्रिया पराजित हुआ और संधि के समय बिस्मार्क ने आस्ट्रिया को बाध्य किया कि वह वेनेशिया इटली को दे  दे। इस तरह 1866 ई० में वेनेशिया इटली का अंग बन गया और इटली के एकीकरण का चतुर्थ चरण समाप्त हुआ।

अंतिम चरण (Last Stage)

रोम अब भी संयुक्त इटली का अंग न होकर पोप के अधीन था। सम्राट नेपोलियन तृतीय और विक्टर इमैनुएल द्वितीय में एक समझौता हुआ था जिसके अनुसार इटली के राजा ने पोप के राज्य पर आक्रामण नहीं करने का वचन दिया था । फ्रांस की एक सेना पोप के राज्य के रक्षार्थ रोम् में रहा करती थी। ऐसी स्थिति में रोम आक्रमण करने का अर्थ था फ्रांस से युद्ध, जिसके लिए इटली तैयार नहीं था।

रोम् पर इटली को अधिकार जमाने का सुअवसर 1870 ई० में प्राप्त हुआ। प्रशा ने जर्मनी के एकीकरण के लिए अतिम लड़ाई सि से 1870 ई० में लड़ी। इस लड़ाई के लिए प्रशा के चांसलर, विस्मार्क, ने कूटनीतिक तैयारी करते समय विक्टर इमैनुएल द्वितीय को बताया कि युद्ध के दौरान फ्रांस अपनी सेना रोम से हटाएगा। जैसे ही फ्रांसीसी सेना हटे वैसे ही इटली को रोम पर आक्रमण कर अपने अधीन कर लेना था। 1870 ई. में प्रशा और फ्रांस में युद्ध शुरू हुआ और फ्रांस को अपनी सेना रोम से हटानी पड़ी। स्थिति का लाभ उठाकर 1870 ई० में विक्टर इमैनुएल ने रोम पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में कर लिया। जनता की इच्छा जानने के लिए जनमत संग्रह किया गया, जिसमें पोप को मात्र 46 मत प्राप्त हुए। अतः, रोम इटली में शामिल हो गया। 1871 ई० में रोम संयुक्त इटली की राजधानी बना । 2 जून, 1871 को विक्टर इमैनुएल द्वितीय अपने परिवार, राजदरबार और संसद के साथ रोम चला आया। जनता को संबोधित करते हुए उसने कहा, “हम रोम में आ गए हैं और अब यहीं रहेंगे।” इटली के एकीकरण का पंचम और अंतिम चरण अब पूरा हुआ और इस प्रकार विश्व के मानचित्र पर संयुक्त इटली का उद्भव हुआ।

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Pankaja Singh

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