इतिहास

इटली के एकीकरण में मैजिनी का योगदान | इटली के एकीकरण में कावूर का योगदान | इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का योगदान

इटली के एकीकरण में मैजिनी का योगदान | इटली के एकीकरण में कावूर का योगदान | इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का योगदान

इटली के एकीकरण में मैजिनी, कावूर तथा गैरीबाल्डी का योगदान

Contribution of Mazzini, Cavour and Garibaldi in the Unification of Italy

इटली के एकीकरण के लिए जिन नेताओं ने प्राणपणु से प्रयल किया, उनमें मैजिनी, कावूर तथा गैरीबाल्डी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनके विषय में, प्रो० कैटलवी ने लिखा है, “मैजिनी एक अव्यावहारिक आदर्शवादी था गैरीबाल्डी एक महान योद्धा था, किन्तु कावूर के बिना मजिनी का आदर्शवाद, गैरीबाल्डी की वीरता निष्फल युद्ध तथा निराशा के इतिहास में एक अध्याय की वृद्धि कर देती। वस्तुतः कावूर के द्वारा इटली का एकीकरण पूर्ण हुआ। उसने मैजिनी की शक्ति को राजनयिक शक्ति के रूप में बदल दिया।”

मैजनी की सेवाएँ

(i) उच्चकोटि का विचारक मैजिनी एक भावुक कवि, उच्चकोटि का विचारक तथा अच्छा लेखक था। वह बचपन में काले वस्त्र धारण करता था ताकि जो लोग उसे देखें, वे अनुमान लगाएँ कि इटली की दुर्दशा क्या है ? प्रो० हेजेन के शब्दों में, “मेजिनी ने इटली की जनता की गहरी से गहरी आकांक्षाओं को स्पष्ट निर्भीक, उत्तेजक तथा रोमांचकारी स्वर से मुखरित किया था।” शुरू में उसकी इच्छा एवं उच्चकोटि का लेखक बनने की थी। परन्तु देश की दुशा देखकर वह राजनीति में कूद पड़ा और उसने देश को स्वाधीन कराने के लिए पर्याप्त योगदान किया।

उसने लिखा है, “देश को स्वतन्न कराने के लिए हजारों रवन मेरी आँखों के सामने रहते थे जिनोआ के गवर्नर ने भी उसके पिता से शिकायत की थी, मेजिनी एक बुद्धिमान लड़का है। रात्रि में वह एकान्त में जाने क्या विचारता रहता है। हम उसके एकान्त जीवन में इस प्रकार कार्य करने की शक्ति को नापसंद करते हैं।”

(2) कार्बोनारी की सदस्यता- सबसे पहले उसने गुप्त क्रान्तिकारी संस्था कार्बोनारी (Carbonarj) की सदस्यता ग्रहण की। सन् 1830 में उसे पकड़ लिया गया तथा सावोना के किले में कैद कर दिया गया। उसने जनता से कहा था, “नवयुवकों में एक गुप्त शक्ति है और वे ही देश-भक्ति के कर्तव्यों को चरितार्थ करने की क्षमता रखते हैं। सरकार नहीं चाहती थी कि लोग उसके विचारों के अनुसार देश के बारे में कुछ विचार करें। 6 माह बाद उसे छोड़ दिया गया। उसने अपना अधिकांश समय ब्रिटेन, फ्रांस तथा स्विटजरलैंड में बिताया।

(3) तरूण इटली का निर्माण- सन् 1831 में ‘तरुण इटली’ नामक एक संस्था की स्थापना की। उसका उद्देश्य सम्पूर्ण इटली को स्वाधीन कराने का था। वह रोमन गणराज्य की स्थापना करना चाहता था। इस संस्था का बहुत प्रचार हुआ। दो वर्ष में ही लगभग साठ हजार सदस्यों ने तरुण इटली की सदस्यता ग्रहण की। मेजिनी को अपने देश से बाहर रहकर अपने देश को स्वाधीन करने का कार्य करना पड़ रहा था। वह जनता से सीधा तथा निकट का सम्पर्क स्थापित करने में असमर्थ रहा।

(4) धर्म के उत्साह से प्रेरणा- मंजिनि मान्व-धर्म के विपरीत कोई कार्य नहीं करना चाहता था। वह इटली की मुक्ति तथा एकीकरण के कार्य को सचमुच एक नया धर्म मानता था। इटली की स्वाधीनता में उसने अपने विश्वास को पिरोकर रख दिया था। वह दूसरों में भी आशा तथा विश्वास के तव भरने की क्षमता रखता था। प्रो० हेजेन के शब्दों में, “इससे पूर्व कभी ऐसा आदर्श नहीं हुआ, जिसका नेता मेजिनी से अधिक निर्भीक, चरित्रवान, कल्पनाशील, कवित्व-सम्पन्न, दुर्धषु तथा प्रतिभावान रहा हो और जिसकी वाणी में इतना आश्चर्यजनक प्रभाव और हृदय में ऐसा चलन्त उत्साह रहा हो।”

आगे चलकर मेजिनी की प्रशंसा करते हुए हेजेन ने लिखा है, “मैजिनी इटली की क्रान्ति का अधिभौतिक बल था।” उसे इटली के राष्ट्रीय इतिहास का देवदूत कहा जाता है।

मेजिनी की इटली को देन

मेजिनी ने सबसे पहले इस बात को सष्ट किया कि इटली का एकीकरण किया जा सकता है। उसने इटली के एकीकरण के प्रति अपने अटूटू विश्वासु को दूसरों तक पहुंचाया। अपनी निर्भीकता, सूझ-बूझ और विलक्षण वक्तृत्व तथा लेखन शैली द्वारा उसने इटली के संगठन में निर्णायक योग दिया। उसके कार्यों से इटली के युवकों में उत्साह और राष्ट्रीयता की भावनाएं बलवती हुई। मेजिनी ने विश्वास दिलाया किआस्ट्रिया को हम शीघ्र से शीघ्र देश से खदेड़ सकते हैं, जबकि हम सब एक मत से कार्य करें।” वह इस कार्य के लिए अपने पांवों पर खड़े होकर कार्य करना चाहता था, उसकी धारणा थी कि इटली के दो करोड़ लोगों को अपनी मुक्ति के लिए अपनी ही शक्ति तथा विश्वास की आवश्यकता है। लिप्पन ने लिखा है, “यदि मजिनी ने अपना प्रचार-कार्य न किया होता तो शायद इटली के लोग बीच में ही साहस खो बैठते। उसके प्रवार इटलीवासियों के राजनीतिक क्षितिज को विस्तृत किया और राष्ट्रीय स्वाधीनता के पक्ष में प्रवल जनमत तैयार कर दिया।”

उसके कार्यों की पुष्टि में साउथ गेट के शब्दों को भी नहीं भुलाया जा सकता, “यह मेजिनी ही था जिसने अपने देशवासियों को स्वतन्त्र (स्वाधीन) कराने के लिए काफी समय तक कार्य किया। यद्यपि वह कावूर के समान एक सुलेखक, गैरीबाल्डी के सामने एक सेनानी नहीं था तथापि वह एक कवि था, एक आदर्शवादी तथा आन्दोलन का प्राण था।” आधुनिक इटली के निर्माताओं में उसका नाम अमर है।

कावूर का योगदान

(1) शासन-सुधार- कावूर ने इटली के राजनैतिक क्षितिज पर उस समय अपने दर्शन दिए जब स्वाधीनता संपाम अपने दूसरे दौर में था। सन् 1852 ई० में वह सार्डिनिया तथा पीडमौण्ट के राज्य का प्रधानमन्त्री बना और कुछ सप्ताह की अवधि को छोड़कर सन् 1860 तक वह इसी पद पर रहा। उसने अपने राज्य में भी अनेक सुधार किए-उदाहरण के लिए रेलें बनावाई, वाणिज्य पर शुल्क घटाए, वित्त व्यवस्था को सुधारा, सेना को शक्तिशाली बनाया तथा खेती में सुधार किए। वह देश के निवासियों को समृद्ध देखना चाहता था।

(2) विदेशी सहायता के लिए प्रयास- कावूर इटली का सबसे बड़ा शत्रु आस्ट्रिया को मानता था। उसका कहना था कि आस्ट्रिया को परास्त किए बिना इटली को स्वाधीनता नहीं दिलायी जा सकती। वह विदेशी सहायता के पक्ष में भी था। उसे यह सहायता दो ही देशों से मिलने की आशा थी- फ्रांस और ब्रिटेन से । वह फ्रांस से अधिक सहायता की आशा क्रता था। परन्तु फ्रांस की स्थिति भी अच्छी नहीं थी, नेपोलियन बोनापार्ट की विजयों ने यूरोप के देशों को अभी तक संदेह से निरापद नहीं किया था। इसलिए नेपोलियन तृतीय एक ब एक किसी को भी सहायता के पक्ष में नहीं था। यही कारण था कि वह इटली के एकीकरण के विरुद्ध था।

ब्रिटेन तथा फ्रांस की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए कावूर ने क्रीमिया के युद्ध में विना शर्त अपनी अठारह हजार सेना भेज दी। इस सेना से इन दोनों देशों को पर्याप्त सहायता मिली। सन् 1856 के पेरिस संधि सम्मेलन में इटली की स्वाधीनता का प्रश्न उठाया गया। उसने नेपोलियन तृतीय से बातचीत करके आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के लिए तैयार किया। यद्यपि नेपोलियन तृतीय ने अपने वचनों का पालन नहीं किया परन्तु फिर भी इस प्रयास के परिणामस्वरूप आस्ट्रिया को माङन्ता और सोल्फेरिनों में परास्त किया गया।

(3) कावूर का क्रोध- नेपोलियन तृतीय ने कावूर से परामर्श किए बिना युद्ध को बीच में ही रोक दिया। इससे कावूर क्रुद्ध हो उठा। उसने राजा विक्टर इमैनुअल से कहा कि वह फ्रांस के विरुद्ध युद्ध छेड़ दे। जब राजा इस कार्य के लिए तैयार नहीं हुआ तो कावूर ने त्याग-पत्र दे दिया। प्रो० हेजेन ने इस पर टिप्पणी करते हुए लिखा है, “कावूर की बात न मानकर राजा ने दिखा दिया कि वह अपने प्रतिभाशाली मंत्री से बुद्धिमान था……. क्रोध के उन्माद में आकर सब कुछ जोखिम में डालने से अच्छा यही कि जो कुछ मिल गया है उसे ले लिया जाए और भविष्य की प्रतीक्षा की जाए।”

हेजेन ने इसी टिप्पणी को कुछ सुधारकर लिखा है, उसमें क्रियात्मक तथा उच्च बुद्धि, स्पष्टवादिता, दूरदर्शिता, कूटनीतिज्ञता, उच्चकोटी की कल्पना तथा अपूर्व साहस था।”

(4) पोप के राज्य पर अधिकार- जब अगस्त 1860 ई० में गैरीबाल्डी, सिसली तथा नेपल्स को जीतने के पश्चात् पोप के राज्य रोम पर धावा मारने की तैयारी करने लगा, तब कावूर ने उसे ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि रोम की रक्षा के लिए फ्रांस की सेना पड़ी थी। उससे लड़ने का अर्थ था-फ्रांस से सीधा युद्ध । परन्तु कावूर ने अपनी कूटनीति से नेपोलियन तृतीय को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वह विक्टर इमैनुअल द्वितीय को रोम के अतिरिक्त पोप के अन्य देशों पर अधिकार कर लेने दे ।

सन् 1861 में 51 वर्ष की आयु में कावूर की मृत्यु हो गयी।

(5) महान राजनीतिज्ञ- प्रो० हेजेन ने अपनी पुस्तक ‘आधुनिक यूरोप के इतिहास में लिखा है कि कावूर की गणना 19वीं शताब्दी के महातम् राजनीतिज्ञों और राजनयिकों में की जाती है। कावूर के मानसिक गुण मेजिनी के ठीक विपरीत थे। मेजिन का मस्तिष्क काव्यात्मक और कल्पनाशील था, जबकि कावूर का व्यावहारिक तथा दूदू संकल्पयुक्त था। वह आस्ट्रिया की शक्ति का पूर्ण जायजा लेकर अपने देशवासियों की शक्ति की वृद्धि करना चाहता था।

शेपिरो ने उसकी प्रशंसा करते हुए लिखा है, “शायद ही यूरोप में कोई ऐसा राजनयिक हुआ हो जो इसकी तुलना करता हो। उसने शत्रु को समझने तथा इटली को स्वतन्त्र कराने में पूर्ण योगदान दिया।”

(6) अवसरानुकूल कार्य- एक राष्ट्र के रूप में कावूर ने इटली के लिए बहुत कुछ किया। मेजिनी और गैरीबाल्डी के प्रयत्नों की तुलना में कावूर की विशेषता यह थी कि वह समय के अनुकूल कार्य करता था। उसने अन्तर्राष्ट्रीय कठिनाइयों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया तथा जुहाँ जैसा ठीक समझा, वैसा ही कार्य किया। वह अपने को स्वतन्त्रता का पुत्र मानता था और उस स्थिति पर परदा डालना अपने लिए उपयुक्त नहीं समझता था।

गैरीबाल्डी का योगदान

(1) निर्भीक योद्धा- इटली के एकीकरण में गैरौबाल्डी ने अत्यन्त महत्वपूर्ण योग दिया। वह तलवार की शक्ति में विश्वास करता था तथा वार के बल पर ही इटली का एकीकरण चाहता था। सन् 1807 ई० इटली के नीस नगर में उसका जन्म हुआ था। प्रारम्भ से ही उसमें स्वदेश-प्रेम की भावना थी। शुरू में वह मैजिनी से प्रभावित होकर युवा इटली’ (Icung Italy) का सदस्य बन गयो । सन् 1833 में मेजिनी के सहयोग से इटली में गणतन्त्र स्थापित करने का उसने असफल प्रयल किया। वह पकड़ा गया और उसे मृत्यु-दण्ड की सजा सुनाई गई। परन्तु वह जेल से भाग निकला और अमेरिका चला गया। उसके साथी लाल शर्ट पहनते थे, अत: उसका दल ‘लाल कुर्ती दल’ कहलाया।

(2) आस्ट्रिया के विरुद्ध संघर्ष-मेटर्निख के भाग जाने के गाद गैरीबाल्डो पुनः 1848 ई. में इटली लौट आया। उस समय आस्ट्रिया तथा सा.निय के विरुद्ध युद्ध चल रहा था। गैरीबाल्डी ने लगभग तीन हजार स्वयं सेवकों की सेना के साथ चार्ल्स एल्बर्ट की सहायता की। उसका इरादा वैनेशिया में आस्ट्रिया की सेना पर आक्रमण करने का था। परन्तु फ्रांस तथा आस्ट्रिया को सेनाओं के पीछा करने के कारण उसे आक्रमण करने का अवसर नहीं मिला। उसे अपने शत्रुओं से छिप-छिपकर कार्य करना पड़ा। सन 1859 में जब फ्रांस की सहायता से सानिया-पीडमौण्ट ने आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ा तब गैरीवाल्डी भी स्वयं सेवकों के एक दल को लेकर युद्ध में उतर पड़ा उसे भारी सफलता मिली और वह इटली के लोगों का हृदय-सम्राट बन गया।

(3) सिसली की विजय- सन् 1860 में सिसली की जनता ने अपने नेपल्स के राजा के विरुद्ध विद्रोह का झण्डा गाड़ दिया । गैरीबाल्डी 5 मई 1860 को अपने स्वयंसेवकों के साथ सिसली जा पहुंचा। प्रो० हेजेन के शब्दों में, गैरीबाल्डी ने जो इटली का सबसे प्रतापी योद्धा था और जिसके नाम में एक सेना के समान शक्ति थी, अपने बलबूते पर सिसली के विद्रोहियों की सहायता का निश्चय किया।” सिसली में राजा की सेना लगभग 24,000 थी। गैरीबाल्डी ने उस सेना को कुछ ही सप्ताह में पाजय का सेहरा पहना दिया। 5 अगस्त 1860 की सिसली पर उसने अधिकार कर लिया।

(4) नेपल्स पर विजय- यह गैरीबाल्डो की सबसे बड़ी विजय थी। उसके पास नियमित सेना न होकर स्वयंसेवक थे। नेपल्स के राजा के पास बहुत बड़ी सेना थी, फिर भी वह सेना बिना युद्ध किए ही हार गई। राजा फ्रांसिस द्वितीय शहर छोड़कर भाग गया। यह गैरीबाल्डी को अद्भुत सफलता थी।

(5) रोम् पर आक्रमण- गैरीबाल्डी वीर सेनापति था। अपने आवेश में भर उसने पोप के राज्य रोम पर भी आक्रमण कर दिया। रोम की रक्षा के लिए फ्रांस की सेना पड़ी थी, अत: गैरीबाल्डी को कुछ सैनिक गंवाकर पीछे हटना पड़ा, तब कावूर ने स्थित को सम्भाल लिया।

(6) वीर तथा नि:स्वार्थी नेता- गैरीबाल्डी में यह सबसे बड़ा गुण था कि वह अपने साथियों में वीरता का संचार कर देता था। वह बड़े से बड़े संकट का सामना करने के लिए सदा तैयार रहता था। यदि वह चाहता तो दूस समय स्वयं भी उसका अधिनायक बन सकता था, परन्तु उसने ऐसा कभी नहीं सोचा और सारा राज्य विक्टर इमैनुअल को सौंप दिया। अपनी इन सेवाओं के बदले उसने किसी भी प्रकार के पुरस्कार की इच्छा अकर नहीं की। युद्ध समाप्त होने पर वह थोड़ा सा धन तथा खेत में बोने के लिए एक थैला सेम के बीच लेकर का पीरा द्वीप में अपने खेत पर वापस लौट गया। उसकी निस्वार्थ सेवाओं ने इटली को स्वाधीन बनाया।

निष्कर्ष (Conclusion)

इस प्रकार इटली के एकीकारण के सापानों में मेजिनी, कावूर तथा गैरीबाल्डी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। एक विद्वान ने लिखा है, “मेजिनी के नैतिक बल ने, गैरीबाल्डी की तलवार ने, कावूर की कूटनीति ने तथा असंख्य देशभक्तों के बलिदान ने इटली का एकीकरण किया।”

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Pankaja Singh

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