हिंदी साहित्य का इतिहास

हिंदी के जीवनी साहित्य | हिंदी के जीवनी साहित्य के उद्भव और विकास

हिंदी के जीवनी साहित्य | हिंदी के जीवनी साहित्य के उद्भव और विकास

हिंदी के जीवनी साहित्य के उद्भव और विकास

जीवनी साहित्य सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, और साहित्यिक परिवेश को प्रभावित करने वाले किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की जीवन-कथा, जो परवर्ती या समवर्ती व्यक्ति लिखते हैं, जीवनी कहते हैं। नौरस तथ्य निरूपण या अत्यधिक कल्पना-प्रवणता जीवनीकार का धर्म नहीं बल्कि वह उस व्यक्ति से जुड़े हुए परिवेश के संदर्भों और उसके जीवनगत आयामों में से ‘वस्तु’ का चयन करता है। अपने क्षेत्र के प्रख्यात व्यक्तियों यथा, कालजयी सम्राट, शासक, योद्धा, नेता, समाज सुधारक, संत महात्मा, कवि, लेखक आदि की ही जीवनियाँ लिखी जाती हैं। यद्यपि इस प्रगतिशील युग में मानववादी दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप किसान और साधारण मजदूर की भी जीवनी लिखी जा रही है जिसके माध्यम से मानत-मूल्य का विश्लेषण किया जाता है। यद्यपि हिंदी में जीवनियाँ प्रचुर मात्रा में लिखी गयी हैं, फिर भी स्तर की दृष्टि से इन कृतियों ने सामान्यतः निराश ही किया है। अधिकांश कृतियाँ व्यक्ति पूजा की भावना और पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। उनमें चरित नायक के जीवन की विभिन्न परतों का विश्लेषण या उद्घाटन नहीं किया गया है बल्कि उनमें चरित नायक के जीवन की विभिन्न परतों का विश्लेषण या उद्घाटन नहीं किया गया है। फिर भी कुछ कृतियाँ महत्वपूर्ण और स्तरीय हैं। प्रेमचंद्र की ‘दुर्गादास भइन्त आनंद कौशल्यायन की ‘भगवान बुद्ध और जीवन लाल प्रेम की ‘गुरु गोविंद सिंह’ जैसी कड़ियाँ इस विधा की श्रेष्ठ रचनात्मक कृतियाँ हैं। संत महात्माओं की जीवनियों में मन्मथनाथ गुप्त कृत ‘गुरु नानक’ राम नारायण मिश्र कृत ‘महात्मा ईसा एवं पं० बलदेव उपाध्याय कृत ‘शंकराचार्य’ पठनीय रचनाएँ हैं। राजनैतिक पुरुषों की जीवनियों में अवनींद्र कुमार विद्यालंकार की ‘राजेंद्र प्रसाद’ और ‘डॉ0 राधाकृष्णन’ महावीर अधिकारी की ‘लाल बहादुर शास्त्री’ शिव कुमार गोयल की प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी’ द्रष्टव्य हैं रामवृक्ष बेनीपुरी कृत ‘जयप्रकाश नारायण’ भी इसी वर्ग की रचना है। इनमें से अंतिम को छोड़कर शेष कृतियां नीरस और बेकार लगती हैं तथा इनमें महापुरुषों की चरित्रगत विशेषतायें नहीं उभर पायी हैं। बेनीपुरी की रचना अपनी आत्मीय अंतरंगता और जीवन भाषा-शैली के कारण बेजोड़ हैं। साहित्यिक व्यक्तियों की जीवनियाँ सामान्यतः तीन रूपों में लिखी गयी हैं- शोध ग्रंथों के प्रारंभ में अभिनंदन ग्रंथों में एवं स्वतंत्र कृतियों के रूप में।

किसी कवि या लेखक के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध करने के बाद अपने शोधग्रंथों में अनेक शोधार्थियों ने अव्यक्तिगत खंड के अंतर्गत उस व्यक्ति का संक्षिप्त जीवन क्रम भी प्रस्तुत किया है। डॉ. कमलाकांत पाठक कृत ‘मैथिलीशरण गुप्त’, व्यक्ति और काव्य, डॉ. शुभाकर कपूर कृत ‘आ. चतुरसेन का कथा साहित्य, डॉ रत्नाकर पांडेय कृत ‘पांडेय बेचन शर्मा ‘उप्र’ और उनका साहित्य’ डॉ. रामेश्वर प्रसाद खंडेलवाल कृत ‘जयशंकर’, व्यक्ति और काव्य और डॉ. लक्ष्मी नारायण दुबे कृत बालकृष्ण शर्मा नवीन व्यक्तित्व और कृतित्व’ जैसे शोधग्रंथ प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किये जा सकते है, लेकिन सच्चे अर्थ में इन्हें जीवन ग्रंथ नहीं कहा जा सकता। वस्तुतः इनमें किसी विशिष्ट कवि या लेखक के साहित्यिक कृतित्व और जीवन वृत्त- विषयक प्रमाणिकता पर विशेष बल दिया जाता है इसलिए वे सिर्फ तथ्य संकलन बनकर रह जाते हैं।

इसी प्रकार किसी प्रसिद्ध कवि या लेखक को भेंट किये जाने वाले अभिनंदन ग्रंथ में ऋषि जेमिनी, कौशिक ‘वरूआ’ द्वारा लिखी गयी गुप्तजी की जीवनी इसी प्रकार की कृति है।

महादेवी वर्मा अभिनंदन ग्रंथ निराला अभिनंदन ग्रंथ में भी इसी प्रकार की जीवनियाँ दी गई हैं। इस तरह की जीवनियों की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें व्यक्ति के गुणों का ही विवेचन किया जाता है, उसकी कमियों का विवेचन नहीं होता।

रचनात्मक प्रतिभा के सर्वोत्तम जीवनी ग्रंथ के उदाहरण के रूप में निराला की साहित्य साधना’ (राम विलास शर्मा) और प्रेमचंद्र ‘कलम का सिपाही’ (अमृतराय) तथा ‘कलम का मजदूर: प्रेमचंद्र (मदन गोपाल) उल्लेख किया जा सकता है।

अमचंद्र के पुत्र अमृतराय ने प्रेमचंद्र कलम का सिपाही लिखने में एक उपन्यासकार की दृष्टि सामने रखी है। लेखक की तटस्थता इस कृति का सबसे बड़ा गुण है। लेखक का आग्रह सिर्फ यथार्थ घटनाओं के वर्णन का रहा है और इसलिए कहीं भी वह पूर्वाग्रह युक्त नहीं दिखलायी पड़ता। प्रेमचंद्र का बचपन, नौकरी जीवन संघर्ष, परिस्थितियों से जूझते हुए भी साहित्यिक प्रतिबद्धता, लेखन, संपादन, और महाप्रयाण का वर्णन करते समय लेखक कहीं भी अतिरिक्त आग्रह से ग्रस्त नहीं होता और इसीलिए सह कृति फिल्म की तरह आगे बढ़ती चली जाती है। इसमें जीवनी की प्रमाणिकता तो है ही, उपन्यास की सरसता और साहित्य की मार्मिकता भी

निराला की साहित्य साधना डॉ. राम विलास शर्मा के अथक परिश्रम का परिणाम है। यह निराला का प्रामाणिक जीवन चरित है। इसलिए इसमें निराला के माध्यम से लेखक ने पारिवारिक और सामाजिक परिवेश से उस युग की सांस्कृतिक परिस्थितियों और उनके बाह्य रूपों से उनके अंतर्जगत का विश्लेषण किया है। अपने विलक्षण और तेज तर्रार व्यक्तित्व के कारण महाप्राण निराला अपने जीवन काल में सिर्फ संघर्ष करते रहे। प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच अपनी राह  बनायी थी। लेखक ने निराला से संबंधित सभी स्थानों की यात्रा की, उनके ऊपर प्रकाशित सारे नये-पुराने साहित्य को देखा, उनके संपर्क में व्यक्तियों से इंटरव्यू लिया और तब जाकर उन्होंने यह प्रामाणिक जीवन चरित लिखा। स्पष्ट और साफगोई इसके विशिष्ट गुण हैं। यद्यपि कुछ प्रतिष्ठित साहित्यकारों की ‘इमेज’ इसमें खंडित हुयी है फिर भी अपनी सच्चायी के कारण यह अप्रीतिकर नहीं लगता संपूर्ण ग्रंथ तथ्यों पर आधारित एक उपन्यास है जिसके नायक निराला है निराला के विवाह की तैयारी का एक दृश्य देखिए-

“रामसहाय गाँव आये सूर्जकुमार के व्याह की तैयारी शुरू हो गई। सात सुहागनों ने एक साथ मूसल पकड़कर धान कूटे, एक साथ दरेती का खूंटा पकड़कर उड़द की दाल भिगोई गयी राम सहाय को बूढ़ी भौजायी के साथ चौका पर बिठाया गया। दोनों की गाँठ जोड़ी गई और दोनों ने दाल पीसने की रस्म पूरी की।”

रामविलास शर्मा की यह कृति हिंदी साहित्य में अब तक की सर्वश्रेष्ठ जीवनी है। जीवनी ने अत्यंत तटस्य होकर निराला के जीवन-संदर्भों को तरतीब से रखकर प्रस्तुत किया है। हिंदी में राजनीतिक पुरुषों की जीवनियाँ अधिक लिखी गयी है स्वाधीनता आंदोलन के कारण यह स्वाभाविक भी है सत्य का उद्घाटन, यथार्थ चित्रण, मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और लेखकीय तटस्थता जीवनीकार के लिए अत्यंत आवश्यक है। ‘कलम का सिपाही’ और ‘निराला की साहित्य साधना’ जैसी महत्वपूर्ण कृतियों को देखकर यह आशा बंधती है कि यह विधा एक अत्यंत महत्वपूर्ण रचनात्मक विधा बन रही है।

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Pankaja Singh

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