हिंदी साहित्य का इतिहास

आधुनिक हिंदी गद्य की नवीन विधा | आधुनिक हिंदी गद्य की नवीन विधाओं का परिचय

आधुनिक हिंदी गद्य की नवीन विधा | आधुनिक हिंदी गद्य की नवीन विधाओं का परिचय

आधुनिक हिंदी गद्य की नवीन विधाएँ निम्नलिखित हैं-

आत्मकथा एवं जीवनी-

हिंदी में आत्मकथा और जीवनी लेखन को उपेक्षित दृष्टि से देखा गया है। हिंदी में इस विधा का वास्तविक शुभारंभ हरिवंशराय बच्च की आत्मकथा से स्वीकार किया जाता है जो आज चार खंडों में उपलब्ध है। क्या भूलूँ क्या याद करूं, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’, ‘दश द्वार से सोपान तक’ आदि यह चार खंड उनकी आत्मकथा से प्रकाशित अंश है। यह विधा पाश्चात्य साहित्य में अत्यधिक समृद्ध है। बच्चन के अतिरिक्त रामविलास शर्मा ने ‘निराला की आत्मकथा’ लिखी है। इसके अतिरिक्त अमृतराय की ‘कलम का सिपाही’ (प्रेमचंद्र संबद्ध), विष्णु प्रभाकर का ‘आवारा मसीहा’ (शब्द की आत्मकथा), सुधा चौहान की ‘मिला लो तेज से तेज (सुभद्राकुमारी चौहान की आत्मकथा) तथा अमृता प्रीतम की ‘रसीदी टिकट’ (आत्मकथा) आदि प्रमुख जीवनियाँ हैं। जीवनी साहित्य नितांत नयी विधा (विदेशों में कई उदाहरण ऐसे मिलते हैं जिससे इस जीवनीपरक साहित्य द्वारा ही किसी के लेखन को समझाया गया है है।

आत्मकथा-

आत्मकथा का संक्षिप्त रूपांतर है। इस नवीन विधा के प्रवर्तक हैं ‘सारिका’ के संपादक एवं कथाकार कमलेश्वर जिन्होंने अनेक हिंदी तथा अहिंदी भाषी कथाकारों से अनेक आत्मकथ्य आमंत्रित किये तथा उन्हें ‘गर्दिश के दिन’ शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किया। अब तक चालिस से अधिक कथाकारों के आत्मकथ्य प्रकाश में आ चुके हैं। इन कथाकारों में राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, शिव प्रसाद सिंह, गुलशेर खान ‘शानी, हरिशंकर परसाई राही मासूम रजा, शैलेश मटियानी, हृदयेश, सतीश जमाली, मधुकर सिंह आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।

ललित निबंध-

ललित निबंध का पूर्ण उन्मेष स्वतंत्रतयोत्तर युग में हुआ है। ललित निबंध के लालित्य और रोचकता के समावेश पर बल दिया जाता है। निबंधकार जिस समय को चुनता है उसमें वैयक्तिक अभिरुचि के साथ बीच-बीच में पौराणिक, प्रतीकों राष्ट्रीय संदर्भों और लोक संस्कृत के प्रसंग भी प्रस्तुत करता चलता है हिंदी में यह विधा सर्वप्रथम आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के माध्यम से प्रारंभ हुई। उनके निबंध सूक्ष्म एवं गम्भीर चिंतन पर आभृत होने के बाद भी पाठक को लालित्य का आस्वादन कराते हैं। ‘अशोक के फूल, ‘कुटज’, ‘कल्पलता’ आदि उनके चुने हुए ललित निबंध संग्रह हैं। द्विवेदी जी के अतिरिक्त ललित निबंध की यह परंपरा विद्यानिवास मित्र, कुबेरनाथ राय, धर्मवीर भारती और विवेकीराय आदि के निबंधों में दिखाई देते हैं। इन ललित निबंधकारों ने लालित्य की सृष्टि को बनाये रखने के लिए जो निबंध संग्रहों के शीर्षकों का चयन किया है वह भी उनकी उर्वर कल्पनाओं और नवीन उद्भावनाओं पर आधारित है। विद्या निवास मिश्र के ‘परंपरा बंधन नहीं’, ‘बसंत आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं’, ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’, ‘तुम चंदन हम पानी’, ‘आंगन का पक्षी और बनजारा मन’ आदि उल्लेखनीय निबंध संग्रह है। इसी प्रकार ‘निषाद बांसुरी’, ‘प्रिया नीलकंठी’ रस आखेटक’ और ‘गंध मादन’ आदि कुबेरनाथ राय के ललित निबंध संग्रह है। इसी प्रकार डॉ० शिवदयाल सिंह रचित ‘चतुर्दिक निबंध संग्रह में ललित निबंध विधा का अनुभव स्वरूप दिखाई देता है।

व्यंग्य-

व्यंग्य आज की सर्वाधिक सशक्त एवं प्रभावकारी विधा है। व्यंग्य लेखन के लिए लेखन में एक सूक्ष्म निरीक्षण, दृष्टि, स्थिति परिस्थितियों के विश्लेषण की शक्ति तथा सजग विवेक आदि का होना अनिवार्य माना जाता है। व्यंग्य मार्ग अत्यन्त जोखिम भरा होता है। हिन्दी में निराला प्रथम व्यंग्यकार हैं स्वतन्त्र्योत्तर युग में इस विधा को पर्याप्त महत्व मिला है।

स्वतन्त्रता के बाद पूँजीवादी एवं राजनीतिक शक्तियों के संघर्ष के लिए व्यंग्य को अधिक महत्व दिया है। हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्र नाथ त्यागी, नरेन्द्र कोहली, श्रीलाल शुक्ल, आबिद सुरती, के०पी० सक्सेना आदि विशिष्ट व्यंग्यकार हैं। इन सभी व्यंगकारों के संग्रह प्रकाश में आ चुके हैं। जिनमें इन सभी ने राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा सामाजिक एवं राजनीतिक विद्रूपताओं के प्रति अपने विचार व्यक्त किये हैं। हरिशंकर परसाई का ‘कबिरा खड़ा बाजार में’, ‘सारिका’ काअत्यन्त चर्चित व्यंग्य-स्तम्भ रहा है।

रिपोर्ताज-

इस विधा का विकास रिपोर्टिंग के आधार पर हुआ है। परन्तु रिपोर्टिंग और रिपोर्ताज में एक सूक्ष्म अन्तर है। रिपोर्टिंग में केवल घटनाओं का सूचनात्मक विवरण होता है जबकि रिपोर्ताज में इन्हीं घटनाओं को चित्रात्मकता और कलात्मकता के साथ एक व्यापक भूमि पर निरूपित किया जाता है। इस विधा का आरम्भ पत्रकारिता से हुआ है। हिन्दी के प्रारम्भिक रिपोर्ताज लेखक कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हैं जो इस विधा को भारत में स्वतन्त्र रूप से पल्लवित विधा मानते हैं। स्वतन्त्रता से पहले आप विभिन्न पत्रों में रिपोर्ताज लिखते है। हिन्दी में रिपोर्ताज को अब विशिष्ट महत्व दिया जाने लगा है। क्योंकि इस विधा से पाठक एक कहानी का आनन्द भी लेता है, तथा उस कहानी की घटनाओं में स्वयं को दर्शक के रूप में पाता हैं रिपोर्ताज पढ़ने के बाद पाठक स्वयं को प्रेक्षक महसूस करने लगे यही रिपोर्ताज की चरम सफलता का द्योतक है। हिन्दी में रिपोर्ताज लेखकों में कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर का ‘क्षण बोले क्षण मुस्काये’ विष्णुकान्त शास्त्री का ‘बांगला देश के सन्दर्भ में विवेकराय का ‘जुलुस रुका है’ आदि उल्लेखनीय रिपोर्ताज संग्रह है। इसके अतिरिक्त अन्य रिपोर्ताज लेखकों में कुबेरनाथ राय और धर्मवीर भारती भी प्रमुख हैं।

यात्रा वृतान्त-

यात्रा वृतान्त गद्य साहित्य की नवीनतम विधा है। यात्रा के क्षणों में बीते हुए अनुभवों को कलात्मक रंग देना और उसमें पाठक को पूरी तरह से तल्लीनकर देना ही इस विधार का मुख्य उद्देश्य है। यह देखा गया है कि यायावरी प्रवृत्ति के लेखक यात्रा वृतान्त लिखने में अधिक सफल होते हैं। हिन्दी में इस विधा को सर्वप्रथम प्रश्श्रय देने वाले राहुल सांकृत्यायन हैं, जो आजीवन यायावर रहे। राहुल जी के पश्चात् हिन्दी के लेखकों ने भी इस विधा को संवर्द्धित करने में अपना विशेष योगदान किया। अज्ञोय का ‘अरे यायावर रहेगा याद’ मोहन राकेश का ‘आखिरी चट्टान तक’ प्रभाकर माचवे का ‘रूस में’ तथा प्रभाकर द्विवेदी का ‘धूप में सोयी नदी’ आदि प्रमुख पात्र वृतान्त हैं।

संस्मरण-

संस्मरण के अन्तर्गत लेख अपने जीवन के कोमल कठोर अनुभवों को ललित रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें उस व्यक्ति या वस्तु से सम्बन्धित स्थितियों का विवरण दिया जाता है। जिसके साथ उसका सान्निध्य रहता है इसमें लेखक अवचेतन में संचित घटनाओं को स्मृति के बल पर उभारता है घनश्यामदास बिड़ला कृत ‘बापू राहुल सांकृत्यायन कृत ‘तिब्बत में तीन वर्ष’ महादेवी कृत ‘अतीत के चलचित्र तथा रामनाथ सुमन कृत ‘मैने स्मृति के दीय जलायें, प्रमुख संस्मरण हैं।

रेखाचित्र-

रेखाचित्र और संस्मरण में एक विशिष्ट अन्तर होता है। रेखाचित्र में किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान बाह्य के माध्यम से उसकी आन्तरिक विशेषता की अभिव्यक्ति करने का प्रयत्न किया जाता है इसमें स्थिर और गत्यात्मक दोनों प्रकार के चित्र होते हैं किन्तु दोनों ही रूपों में भावों की गहराई और संवेदनशीलता विद्यमान रहती है। संस्मरण में संस्मरणकार व्यक्ति या वस्तु के बाह्य रूप तथा तथातथ्य विवरण को अधिक महत्व देता है। उसमें कल्पना के रंग कम भरता है लेकिन रेखाचित्र में इसके चित्रांकन के लिए सूक्ष्म दृष्टि तथा विश्लेषण बुद्धि का होना अनिवार्य है। बनारसी दास चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा और धर्मवीर भारती के रेखाचित्र साहित्य की स्थाई निधि है। महादेवी जी ने  मानवेतर जीवों पर भी ‘मेरा परिवार’ संग्रह में बड़े ही मार्मिक प्रसंग प्रस्तुत किये हैं जो पाठक को आत्मविभोर कर देने की क्षमता रखते हैं।

पत्र- साहित्य-

पत्र-साहित्य नव्यतम विधा है। विदेशों के लेखक की रचनाओं से अधिक उसके पत्रों और दस्तावेजों को महत्व दिया जाता है। हिन्दी में जवाहरलाल नेहरू की ‘ग्लिसंपसेज आफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ एक पत्र संकल्प ही है। हिन्दी में बच्चन के पत्र निरांकार देव सेवक, निराला के पत्र ‘जानकी वल्लभ शास्त्री’ प्रसाद के पत्र ‘रत्नशंकर प्रसार’ और प्रेमचन्द की ‘चिट्ठी-पत्री’ इस विधा की उपलब्धि हैं।

समग्र विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि हिन्दी गद्य का विकास ज्ञान विकास के विभिन्न क्षेत्रों के साथ ही साहित्य में बहुविध रूप में हुआ है। इस प्रकार राष्ट्रभाषा के हिन्दी प्रसार के साथ गद्य भाषा का क्षेत्र व्यापक है।

‘प्रसाद’ और प्रेमचन्द्र की चिट्ठी-पनी इस विधा की उपलब्धियाँ हैं।

साक्षात्कार (इण्टरव्यू)-

साक्षात्कार भी आधुनिक हिन्दी गद्य की नूतन विधा है। इसका पुरातनता से कोई सम्बन्ध नहीं है। वह अपने आप में एक मौलिक विधा है इसके माध्यम से मानव मन की क्रिया प्रतिक्रिया का सम्यक् अध्ययन हो पाता है। इण्टरव्यू लेखक तटस्थ भाव से किसी चिन्तन बिन्दु पर बौद्धिक एवं तार्किक अभिव्यक्तियों का संकलन करता है इण्टरव्यू को, साक्षात्कार, भेटवार्ता पर विशेष वार्ता भी कहा जाता है। किसी व्यक्ति विशेष से किसी विषय विशेष पर स्वतन्त्र रूप से मन्तव्य जानने के लिए यह विधा उपयोगी है। इस विधा का प्रारम्भ पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हुआ। विविध भाषाओं की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भेंटवार्ताएं प्रकाशित हुई हैं। इस विधा के विकास में दैनिक नवभारत, हिन्दुस्तान, साप्तहिक धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिरी, ज्ञानोदय, नवनीत, सारिका, सरिता, रविकर, अमृत बाजार पत्रिका आदि का विशेष योगदान रहा है। हिन्दी में सर्वप्रथम 1931 में इस विध दिशा का श्रेय बनारसीदास चतुर्वेदी को है, जिन्होंने दैनिक पत्र ‘विशाल भारत’ में ‘इण्टरव्यू’ प्रकाशित कराया। यह इण्टरव्यू रत्नाकर से बातचीत’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। श्री रत्नाकर जी से उनकी रचना प्रक्रिया तथा कृतित्व सम्बन्धी प्रश्नों पर चर्चा का आलोचक न अपने शब्दों में अभिव्यक्ति दी। इसी पत्र में प्रेमचन्द जी के साथ दो दिन’ उल्लेखनीय साक्षत्कार है। इसके बाद चतुर्वेदी जी के अनुकरण पर डॉ० सत्येन्द्र ने अपने पत्र ‘साधना’ में इस विधा को पर्याप्त स्थान दिया। श्री जगदीश प्रसाद चतुवदी ने ‘भदन्त आनन्द सौसल्यायन’ से साक्षात्कार कर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का प्रस्तुतीकरण किया। इसी क्रम में चिरंजी लाल एकांकी महादेवी वर्मा से साक्षात्कार प्रकाशित कराया। ऐसी अनेक भेंटवार्ताओं से साहित्यकारों की मनःस्थिति का प्रकाशन हुआ।

डायरी विधा-

गद्य की नयी विधाओं में दायरी का विकास सबसे परवर्ती है। वस्तुतः अपने मूल रूप में डायरी आत्मकथा लेखन के लिए आधार प्रस्तुत करती है। इस प्रकार डायरी किसी व्यक्ति के निजी जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है। आत्मकथा लिखने वालों तथा जीवनीकारों के लिए डायरी अत्यधिक उपादेय होती है। डायरी मूलतः अंग्रेजी शब्द है, जिसके लिए रोजनामचा, दैनन्दिनी या दैनिकी नाम प्रचलित है। डायरी प्रतिदिन लिखी जाती है। इसमें दिन भर घटनाओं से छॉटकर स्मरणीय प्रसंग लिखे जाते हैं। वास्तव में डायरी एक ऐसी रचना है जिसमें रचनात्कारों के निजी पर्यवेक्षण या दूसरों के ऐसे प्रसंग जो लेखक से जुड़े होते है, प्रस्तुत किये जाते हैं। हिन्दी में साहित्यिक दृष्टि से डायरी लेखन कम हुआ प्रारम्भ में डायरी का रूप अति सामान्य था, किन्तु स्वतन्त्रता के बाद डायरी लेखन में साहित्यिक पुट मिलता है तथा इसी काल में अन्य विधाओं के अन्तर्गत डायरी शैली का प्रयोग भी किया। सर्वप्रथम सन् 1954 में डॉ0 धीरेन्द्र वर्मा की ‘मेरी कालिज डायरी’ का प्रकाशन हुआ। सन् 1960 में घनश्यामदास बिड़ला का ‘डायरी के पन्ने’ का प्रकाशन हुआ। इसी क्रम में सुन्दरलाल त्रिपाठी की ‘दैनन्छिनी और सियाराम शरण गुप्त की ‘दैनिकी’ का प्रकाशन हुआ। 1959 में उपेन्द्रनाथ अश्क की ‘ज्यादा अपनी कम परायी’ में डायरी के अंश है। सन् 1960 में ‘एक बूंद सहसा उछली’ में यात्रा वृत्त के साथ अज्ञेय ने बर्लिन की डायरी  के अंश उद्धृत किये हैं वस्तुतः सातवें दशक के बाद डायरी के प्रकाशन की परम्परा स्वतन्त्र रूप से शुरू हुई। इनमें प्रकाश की डायरी, बच्चन, दिनकर की डायरी, रघुवीर सहाय की ‘दिल्ली मेरा परदेश’, राजेन्द्र अवस्थी की ‘एक सैलानी की डायरी’ मुक्तिबोध की ‘एक साहित्यिक की डायरी’ अजित कुमार की अंकित होने दो, आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त मोहन राकेश, रवीन्द्र कालिया, रेणु, रामविलास शर्मा प्रमुख डायरी लेखक हैं।

हिंदी साहित्य का इतिहास– महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!