डॉ. रामविलास शर्मा के समीक्षा पद्धति सम्बन्धी मत | डॉ. रामविलास शर्मा की समीक्षा-शैली की विशेषतायें

डॉ. रामविलास शर्मा के समीक्षा पद्धति सम्बन्धी मत | डॉ. रामविलास शर्मा की समीक्षा-शैली की विशेषतायें

डॉ. रामविलास शर्मा के समीक्षा पद्धति सम्बन्धी मत

मार्क्सवाद हिन्दी समीक्षकों में डॉ. रामविलास शर्मा का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। रामविलास शर्मा का समीक्षा कर्म हिन्दी में प्रगतिवादी विचारधारा के एक के रूप में होता है। पर क्रमशा उनके लेखन में बाद का आग्रह हल्का हो जाता है, और विवेचन प्रधान इस आरम्भिक रुझान से उनका संस्कार कुछ ऐसा बन गया कि मे किसी लेखक के विचार की जितनी अच्छी व्याख्या कर सकते हैं उतनी उसकी रचनात्मकता की नहीं और इसी प्रवृति का एक परिणाम यह हुआ कि ध्वंसात्मक आलोचना उन्हें उतनी ही प्रिय है जितनी अपने मत की स्थापना। अपनी रूचि और तैयारी के अनुकूल रामविलास शर्मा का श्रेष्ठतम अध्ययन महावीर प्रसाद द्विवेदी को लेकर है और इस बात का भी य उन्हें जाता है कि भारतेन्द्र के कृतित्व को ये अनेक विक्रमों से खींच कर केन्द्र में लाए।

रामविलास शर्मा ने हिन्दी में संत-साहित्य, भारतेन्दु युग, छायावाद, प्रेमचन्द्र, निराला आदि पर अत्यन्त सुलझे हुए विचार व्यक्त किया है। संत कवियों के विषय में वे लिखते हैं- ‘सदियों के सामन्ती शासन की शिला के नीचे जनसाधारण की सहृदयता का जल समिट रहा था। भारतेन्दु  युग की नव्य चेतना और नव जागरण ने उन्हें प्रभावित किया और उन्होंने मुक्त कंठ से इसकी सराहना की प्रेमचन्द्र की जनवादी चेतना के वह मुक्त कंठ के प्रशंसक हुए। उनका कहना है कि हिन्दुस्तान के किसान को प्रेमचन्द्र की रचनाओं में जो आत्माभिव्यंजना लिखी यह भारतीय साहित्य बेजोड़ है।”

रामविलास शर्मा की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि उन्होंने हर नये का समर्थन खोज- खोज कर तुलसीदास को प्रतिक्रियावादी ब्राह्मणवादी आदि सब कुछ कहा है। उनका मत है कि “यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम अपने साहित्य को पुरानी परम्पराओं से परिचित हो। परिचित होने के साथ-साथ हमें उनके श्रेष्ठ तत्वों को भी ग्रहण करना चाहिए।”

डॉ. रामविलास शर्मा की समीक्षा-शैली की विशेषतायें

रामविलास शर्मा और समीक्षा शैली की प्रमुख विशेषता है व्यंग्य की मार करना। डॉ0 नगेन्द्र के विचार और अनुभूति’ नामक पुस्तक पर चुटकी लेते हुए कहते हैं कि नगेन्द्र जी के विचार को उन्हें एक कदम धकेलते हैं तो उनकी अनुभूति उन्हें चार कदम पीछे घसीट ले जाती है। इस पुस्तक का नाम एक कदम आगे और चार कदम पीछे भी हो सकता है।

एक अन्य उदाहरण देखिए-

नगेन्द्र ने यहाँ हर चीज शुद्ध है। बानगी देखिए-

  1. साहित्य के क्षेत्र में तो शुद्ध मनोविज्ञान का अधिकार उचित होगा।
  2. लोक प्रचलित अस्थायी वादों के द्वारा साहित्य का रस शुद्ध हो जाता है।
  3. छायावाद निश्चय ही शुद्ध कविता है।

हम अपनी तरफ से यही कह सकते हैं कि नगेन्द्र की आलोचना बिल्कुल शुद्ध आलोचना होती है।

शर्मा जी की समीक्षा शैली की एक अन्य विशेषता यह है कि उसमें उदाहरण विद्यमान रहते है। इससे आलोचना में बल आ जाता है। उन्होंने जब महापंडित राहुल की विचारधारा की आलोचना की थी तो साहित्य में जैसे एक भूचाल आ गया था, किन्तु उन्होंने प्रमाण देकर अपनी बात कही थी इसलिए आने वाले तूफान से अप्रभावित रहे। स्वयं उनकी आलोचना जब अमृतराय ने ‘हंस’ में की तो उन्होंने यही कहा कि आप प्रमाण दीजिए। बिना प्रमाण दिये में आपके किसी आरोप पर गम्भीरता से विचार नहीं करूंगा।

डॉ० रामविलास शर्मा साम्राज्यवाद पूंजीवाद आदि के कट्टर शत्रु हैं और जिन रचनाओं में इनकी पंक्तिचित की झलक मिलती हो उनकी ये आलोचना करते हैं। उनका मत है, “जो पूँजीवाद या साम्राज्यवाद की खुशामद करे, उन्हें स्थायी बनाने में मददद करें प्रगति के मार्ग में काँटे बिछाये, देश का शत्रु है और हिन्दी का शत्रु है। धर्म और संस्कृति के नाम पर जनता का गला घोंटकर यह पूँजीवाद के दानव को मोटा करना चाहता है। उनसे सभी लेखकों पाठकों को सावधान रहना चाहिए।

“जहाँ तक डॉ0 रामविलास शर्मा का प्रश्न है वे मार्क्सवाद आलोचना होने के कारण साहित्य में सर्वहारा के चित्रण पर बल देते हैं। ‘साहित्य सन्देश’ में प्रकाशित अपने लेख में उन्होंने कहा है कि – “साहित्य लिखते समय साहित्यकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि केवल सर्वहारा वर्ग की समस्यायें ही नहीं हैं। वर्ग वैषम्य से पीड़ित जनता भी है। क्या प्रगतिशील साहित्य को उनके विषय में नहीं सोचना चाहिए। केवल सर्वहारा वर्ग की बात कहना चाहिए। केवल सर्वहारा वर्ग की बात कहना साहित्य की संकीर्ण परिधि में आबद्ध कर देना है।

काव्य विषय दृष्टि- रामविलास शर्मा ने छायावादी काव्य धारा का अभिनन्दन किया और नई रोमांटिक कविता को दाद देते हुए कहा “नई रोमांटिक कविता में नायक नायिकाओं को क्रीड़ा के स्थान पर व्यक्ति और उसके स्थान पर व्यक्ति और उसके भावों को प्रतिष्ठित किया।” निष्प्राण प्रतीकों के बदले जीवन भावों के द्वारा वे साहित्य के निकट लाये। निराला के वे प्रशंसक हैं। उन्होंने ईमानदारी के साथ स्वीकार किया है। “बारह वर्ष तक इतने निकट सम्पर्क में रहने के कारण उन पर पूर्ण तटस्थता में लिखना मेरे लिए प्रायः सम्भव है” कहना न होगा कि यही दृष्टि आलोचक में होनी चाहिए तभी उसकी आलोचना सही होगी। डॉ) राविलास शर्मा कविता के समर्थक हैं।

निष्कर्ष –

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि रामविलास शर्मा एक सफल आलोचक हैं। उनके जिन गुणों ने उन्हें सफल आलोचक बनाया है वे हैं, विद्वता, भाषाधिकार, प्रमाणित बात करने की आदत, वैज्ञानिक दृष्टि, निष्पक्षता। निष्पक्षता के गुण ने जहाँ एक ओर उनसे किसी की भी बेहिचक आलोचना कराई है। वहाँ दूसरी ओर छोटे-छोटे लेखकों को यथोचित सम्मान भी दिलाया है। उनकी विशेषता है कि उनमें अहंकार नाममात्र को भी नहीं है। प्रायः जाने-माने विद्वान नवोदित साहित्यकारों की उपेक्षा करते हैं। किन्तु शर्मा जी किसी भी रचनाकार का उद्धरण बड़ी उदारता से अपनी रचना में दे देते हैं। यह उनकी निष्पक्षता ही है जो वे एक ओर पंत और राहुल जैसे ख्याति “बद्ध साहित्यकारों को नहीं बख्शते और दूसरी ओर नये रचनाकारों की वांछनीय सराहना करते हैं।

हिंदी साहित्य का इतिहास– महत्वपूर्ण लिंक

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